शिव भजन
स्व. शांति देवि वर्मा
*
शिवजी की आयी बरात
शिवजी की आयी बरात,
चलो सखी देखन चलिए...
भूत प्रेत बेताल जोगिनी'
खप्पर लिए हैं हाथ.
चलो सखी देखन चलिए
शिवजी की आयी बरात....
कानों में बिच्छू के कुंडल सोहें,
कंठ में सर्पों की माला.
चलो सखी देखन चलिए
शिवजी की आयी बरात....
अंग भभूत, कमर बाघम्बर'
नैना हैं लाल विशाल.
चलो सखी देखन चलिए
शिवजी की आयी बरात....
कर में डमरू-त्रिशूल सोहे,
नंदी गण हैं साथ.
शिवजी की आयी बरात,
चलो सखी देखन चलिए...
कर सिंगार भोला दूलह बन के,
नंदी पे भए असवार.
शिवजी की आयी बरात,
चलो सखी देखन चलिए...
दर्शन कर सुख-'शान्ति' मिलेगी,
करो रे जय-जयकार.
शिवजी की आयी बरात,
चलो सखी देखन चलिए...
***********
गिरिजा कर सोलह सिंगार
गिरिजा कर सोलह सिंगार
चलीं शिव शंकर हृदय लुभांय...
मांग में सेंदुर, भाल पे बिंदी,
नैनन कजरा लगाय.
वेणी गूंथी मोतियन के संग,
चंपा-चमेली महकाय.
गिरिजा कर सोलह सिंगार...
बांह बाजूबंद, हाथ में कंगन,
नौलखा हार सुहाय.
कानन झुमका, नाक नथनिया,
बेसर हीरा भाय.
गिरिजा कर सोलह सिंगार...
कमर करधनी, पाँव पैजनिया,
घुँघरू रतन जडाय.
बिछिया में मणि, मुंदरी मुक्ता,
चलीं ठुमुक बल खांय.
गिरिजा कर सोलह सिंगार...
लंहगा लाल, चुनरिया पीली,
गोटी-जरी लगाय.
ओढे चदरिया पञ्च रंग की ,
शोभा बरनि न जाय.
गिरिजा कर सोलह सिंगार...
गज गामिनी हौले पग धरती,
मन ही मन मुसकाय.
नत नैनों मधुरिम बैनों से
अनकहनी कह जांय.
गिरिजा कर सोलह सिंगार...
**********
मोहक छटा पार्वती-शिव की
मोहक छटा पार्वती-शिव की
देखन आओ चलें कैलाश....
ऊँचो बर्फीलो कैलाश पर्वत,
बीच बहे गैंग-धार.
मोहक छटा पार्वती-शिव की...
शीश पे गिरिजा के मुकुट सुहावे
भोले के जटा-रुद्राक्ष.
मोहक छटा पार्वती-शिव की...
माथे पे गौरी के सिन्दूर-बिंदिया
शंकर के नेत्र विशाल.
मोहक छटा पार्वती-शिव की......
उमा के कानों में हीरक कुंडल,
त्रिपुरारी के बिच्छू कान
मोहक छटा पार्वती-शिव की.....
कंठ शिवा के मोहक हरवा,
नीलकंठ के नाग.
मोहक छटा पार्वती-शिव की......
हाथ अपर्णा के मुक्ता कंगन,
बैरागी के डमरू हाथ.
मोहक छटा पार्वती-शिव की...
सती वदन केसर-कस्तूरी,
शशिधर भस्मी राख़.
मोहक छटा पार्वती-शिव की.....
महादेवी पहने नौ रंग चूनर,
महादेव सिंह-खाल.
मोहक छटा पार्वती-शिव की......
महामाया चर-अचर रच रहीं,
महारुद्र विकराल.
मोहक छटा पार्वती-शिव की......
दुर्गा भवानी विश्व-मोहिनी,
औढरदानी उमानाथ.
मोहक छटा पार्वती-शिव की...
'शान्ति' शम्भू लख जनम सार्थक,
'सलिल' अजब सिंगार.
मोहक छटा पार्वती-शिव की...
********************
भोले घर बाजे बधाई
मंगल बेला आयी, भोले घर बाजे बधाई ...
गौर मैया ने लालन जनमे,
गणपति नाम धराई.
भोले घर बाजे बधाई ...
द्वारे बन्दनवार सजे हैं,
कदली खम्ब लगाई.
भोले घर बाजे बधाई ...
हरे-हरे गोबर इन्द्राणी अंगना लीपें,
मोतियन चौक पुराई.
भोले घर बाजे बधाई ...
स्वर्ण कलश ब्रम्हाणी लिए हैं,
चौमुख दिया जलाई.
भोले घर बाजे बधाई ...
लक्ष्मी जी पालना झुलावें,
झूलें गणेश सुखदायी.
*******************
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2010
शिव भजन: स्व. शांति देवि वर्मा
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गुरुवार, 28 जनवरी 2010
डा० गणेश दत्त सारस्वत नहीं रहे
डा० गणेश दत्त सारस्वत नहीं रहे
(१० दिसम्बर १९३६--२६ जनवरी २०१०)
हिन्दी साहित्य के पुरोधा विद्वता व विनम्रता की प्रतिमूर्ति सरस्वतीपुत्र, डा० गणेश दत्त सारस्वत २६ जनवरी २०१० को हमारे बीच नहीं रहे।
शिक्षा : एम ए, हिन्दी तथा संस्कृत में पी० एच० डी०
प्राप्त सम्मान: उ० प्र० हिंदी संस्थान से अनुशंसा पुरुस्कार, हिंदी साहित्य सम्मेलन इलाहाबाद से साहित्य महोपाध्याय की उपाधि सहित अन्य बहुत से पुरुस्कार।
पूर्व धारित पद: पूर्व विभागाध्यक्ष हिंदी विभाग आर० एम० पी० पी० जी० कालेज सीतापुर
आप ’हिन्दी सभा’ के अध्यक्ष तथा’ ’मानस चन्दन’ के प्रमुख सम्पादक रहे हैं।
सारस्वत कुल में जनम, हिरदय में आवास..
उमादत्त इनके पिता, सीतापुर में वास.
श्यामल तन झुकते नयन, हिन्दी के विद्वान .
वाहन रखते साइकिल, साधारण परिधान..
कोमल स्वर मधुरिम वचन, करते सबसे प्रीति.
सरल सौम्य व्यवहार से, जगत लिया है जीत..
कर्म साधना में रमे, भगिनी गीता साथ.
मानस चन्दन दे रहे, जनमानस के हाथ..
तजी देह गणतन्त्र दिन, छूट गये सब काज.
हुए जगत में अब अमर, सारस्वत महाराज
हिंदी की सारी सभा, हुई आज बेहाल..
रमारमणजी हैं विकल, साथ निरन्जन लाल..
आपस में हो एकता, अपनी ये आवाज.
आओ मिल पूरित करें, इनके छूटे काज..
अम्बरीष नैना सजल, कहते ये ही बात.
आपस में सहयोग हो, हो हाथों में हाथ..
--अम्बरीष श्रीवास्तव
सारस्वत जी नहीं रहे...
श्री सारस्वत जी नहीं रहे, सुनकर होता विश्वास नहीं.
लगता है कर सृजन रहे, मौन बैठकर यहीं कहीं....
... See More
मूर्ति सरलता के अनुपम,
जीवंत बिम्ब थे शुचिता के.
बाधक बन पाए कभी नहीं-
पथ में आडम्बर निजता के.
वे राम भक्त, भारत के सुत,
हिंदी के अनुपम चिन्तक-कवि.
मानस पर अब तक अंकित है
सादगीपूर्ण वह निर्मल छवि.
प्रभु को क्या कविता सुनना है?
या गीत कोई लिखवाना है?
पत्रिका कोई छपवाना है -
या भजन नया रचवाना है?
क्यों उन्हें बुलाया? प्रभु बोलो, हम खोज रहे हैं उन्हें यहीं.
श्री सारस्वत जी नहीं रहे, सुनकर होता विश्वास नहीं...
******************
सलिल.संजीव@जीमेल.कॉम / दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम
आइये! हम उन्हें कुछ श्रद्धा सुमन समर्पित करते हैं।
(१० दिसम्बर १९३६--२६ जनवरी २०१०)
हिन्दी साहित्य के पुरोधा विद्वता व विनम्रता की प्रतिमूर्ति सरस्वतीपुत्र, डा० गणेश दत्त सारस्वत २६ जनवरी २०१० को हमारे बीच नहीं रहे।
शिक्षा : एम ए, हिन्दी तथा संस्कृत में पी० एच० डी०
प्राप्त सम्मान: उ० प्र० हिंदी संस्थान से अनुशंसा पुरुस्कार, हिंदी साहित्य सम्मेलन इलाहाबाद से साहित्य महोपाध्याय की उपाधि सहित अन्य बहुत से पुरुस्कार।
पूर्व धारित पद: पूर्व विभागाध्यक्ष हिंदी विभाग आर० एम० पी० पी० जी० कालेज सीतापुर
आप ’हिन्दी सभा’ के अध्यक्ष तथा’ ’मानस चन्दन’ के प्रमुख सम्पादक रहे हैं।
सारस्वत कुल में जनम, हिरदय में आवास..
उमादत्त इनके पिता, सीतापुर में वास.
श्यामल तन झुकते नयन, हिन्दी के विद्वान .
वाहन रखते साइकिल, साधारण परिधान..
कोमल स्वर मधुरिम वचन, करते सबसे प्रीति.
सरल सौम्य व्यवहार से, जगत लिया है जीत..
कर्म साधना में रमे, भगिनी गीता साथ.
मानस चन्दन दे रहे, जनमानस के हाथ..
तजी देह गणतन्त्र दिन, छूट गये सब काज.
हुए जगत में अब अमर, सारस्वत महाराज
हिंदी की सारी सभा, हुई आज बेहाल..
रमारमणजी हैं विकल, साथ निरन्जन लाल..
आपस में हो एकता, अपनी ये आवाज.
आओ मिल पूरित करें, इनके छूटे काज..
अम्बरीष नैना सजल, कहते ये ही बात.
आपस में सहयोग हो, हो हाथों में हाथ..
--अम्बरीष श्रीवास्तव
सारस्वत जी नहीं रहे...
श्री सारस्वत जी नहीं रहे, सुनकर होता विश्वास नहीं.
लगता है कर सृजन रहे, मौन बैठकर यहीं कहीं....
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मूर्ति सरलता के अनुपम,
जीवंत बिम्ब थे शुचिता के.
बाधक बन पाए कभी नहीं-
पथ में आडम्बर निजता के.
वे राम भक्त, भारत के सुत,
हिंदी के अनुपम चिन्तक-कवि.
मानस पर अब तक अंकित है
सादगीपूर्ण वह निर्मल छवि.
प्रभु को क्या कविता सुनना है?
या गीत कोई लिखवाना है?
पत्रिका कोई छपवाना है -
या भजन नया रचवाना है?
क्यों उन्हें बुलाया? प्रभु बोलो, हम खोज रहे हैं उन्हें यहीं.
श्री सारस्वत जी नहीं रहे, सुनकर होता विश्वास नहीं...
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सलिल.संजीव@जीमेल.कॉम / दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम
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