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मंगलवार, 4 जुलाई 2017

mukatak

मुक्तक लोम-विलोम: जड़-चेतन
(१) जड
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जड़ बन जड़ मत खोदिए, जड़ चेतन का मूल।
जड़ बिन खड़ा गिरे तुरत, करिए कभी न भूल।।
जमीं रहे जड़ जमीन में, हँस छू लें आकाश-
जड़ता तज चेतन बनें, नाहक मत दें तूल।।
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(२) चेतन
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चेत न मन सोया बहुत अब चेतन हो जाग।
डूब नहीं अनुराग में, भाग न वर वैराग।।
सतत समन्वय-संतुलन से जीअवन हो पूर्ण-
'सलिल' न जल में डूबना, नहीं लगाना आग।।
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#हिंदी_ब्लॉगिंग

गुरुवार, 7 अक्टूबर 2010

नवगीत: समय पर अहसान अपना... ------संजीव 'सलिल'

नवगीत:
 
समय पर अहसान अपना...

संजीव 'सलिल'
*
समय पर अहसान अपना
कर रहे पहचान,
हम न होते तो समय का
कौन करता गान?.....
*
हम समय का मान करते,
युगों पल का ध्यान धरते.
नहीं असमय कुछ करें हम-
समय को भगवान करते..
अमिय हो या गरल- पीकर
जिए मर म्रियमाण.
हम न होते तो समय का
कौन करता गान?.....
*
हमीं जड़, चेतन हमीं हैं.
सुर-असुर केतन यहीं हैं..
कंत वह है, तंत हम हैं-
नियति की रेतन नहीं हैं.
गह न गहते, रह न रहते-
समय-सुत इंसान.
हम न होते तो समय का
कौन करता गान?.....
*
पीर हैं, बेपीर हैं हम,
हमीं चंचल-धीर हैं हम.
हम शिला-पग, तरें-तारें-
द्रौपदी के चीर हैं हम..
समय दीपक की शिखा हम
करें तम का पान.
हम न होते तो समय का
कौन करता गान?.....
*