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मंगलवार, 13 अप्रैल 2021

सामयिक दोहे

सामयिक दोहे 
सलिल 
*
शिशु भी बात समझ रहे, घर में है सुख-चैन
नादां बाहर घूमते, दिन हो चाहे रैन
*
तब्लीगी की फ़िक्र में, बच्चे हैं बेचैन
मजलिस में अब्बू गुमे, गीले सबके नैन
*
बुला रहा जो उसे हो, सबसे भारी दंड
देव लात के बात से, कब मानें उद्द्ण्ड
*
नेताजी की चाह है, हर दिन कहीं चुनाव 
कोरोना की फ़िक्र तज, सरकारों का चाव 
*
मंत्री जी पहिनें नहीं, मास्क न कोई बात 
किंतु नागरिक खा रहे, रोज पुलिसिया लात 
*
दवा-ओषजन है नहीं, जनगण है लाचार
शासन झूठ परोसता, हर दिन सौ सौ बार 
*
दवा ब्लैक में बेचना, निज आत्मा को मार 
लानत है व्यापारियों, पड़े काल की मार 
*
अँधा शासन प्रशासन, बहरा गूँगे लोग 
लाजवाब जनतंत्र यह, ' सलिल' कीजिए सोग 
*
भाँग विष नहीं घोल दें, मुफ्त न पीता कौन?
आश्वासन रूपी सुरा, नेता फिर हों मौन 
*
देश लाश का ढेर है, फिर भी  हैं हम मस्त 
शेष न कहीं विपक्ष हो, सोच हो रहे त्रस्त 
*
लोकतंत्र में 'तंत्र' का, अब है 'लोक' गुलाम
आजादी हैं नाम की, लेकिन देश गुलाम 
*

सामयिक दोहे

सामयिक दोहे
'वृद्ध-रत्न' सम्मान दें, बच्चों को यदि आप।
कहें न क्या अपमान यह, रहे किस तरह माप?
*
'उत्तम कोंग्रेसी' दिया, अलंकरण हो हर्ष।
भाजपाई किस तरह ले, उसे लगा अपकर्ष।।
*
'श्रेष्ठ यवन' क्यों दे रहे पंडित जी को मित्र।
'मर्द रत्न' महिला गहे, बहुत अजूबा चित्र।।
*
'फूल मित्र' ले रहे हैं, हँसकर शूल खिताब।
'उत्तम पत्थर'विरुद पा, पीटे शीश गुलाब।।
*
देने-लेने ने किया, सचमुच बंटाढार।
लेन-देन की सत्य ही महिमा सलिल अपार।।
*
लोकतंत्र की हो गई, आज हार्ट-गति तेज?
राजनीति को हार्ट ने, दिया सँदेसा भेज?
*
वादा कर जुमला बता, करते मन की बात
मनमानी को रोक दे, नोटा झटपट तात
*
मत करिए मत-दान पर, करिए जग मतदान
राज-नीति जन-हित करे, समय पूर्व अनुमान
*
लोकतंत्र में लोकमत, ठुकराएँ मत भूल
दल-हित साध न झोंकिए, निज आँखों में धूल
*
सत्ता साध्य न हो सखे, हो जन-हित आराध्य
खो न तंत्र विश्वास दे, जनहित से हो बाध्य
*
नोटा का उपयोग कर, दें उन सबको रोक
स्वार्थ साधते जो रहे, उनको ठीकरा लोक
**
१३-४-२०१९ 
संवस

१३.४.२०१९

शनिवार, 27 मार्च 2021

सामयिक दोहे


⭐⭐⭐⭐👌👌👌👌⭐⭐⭐⭐
सामयिक दोहे
लोकतंत्र की हो गई, आज हार्ट-गति तेज?
राजनीति को हार्ट ने, दिया सँदेसा भेज?
वादा कर जुमला बता, करते मन की बात
मनमानी को रोक दे, नोटा झटपट तात
मत करिए मत-दान पर, करिए जग मतदान
राज-नीति जन-हित करे, समय पूर्व अनुमान
लोकतंत्र में लोकमत, ठुकराएँ मत भूल
दल-हित साध न झोंकिए, निज आँखों में धूल
सत्ता साध्य न हो सखे, हो जन-हित आराध्य
खो न तंत्र विश्वास दे, जनहित से हो बाध्य
नोटा का उपयोग कर, दें उन सबको रोक
स्वार्थ साधते जो रहे, उनको ठीकरा लोक
👌👌👌👌⭐⭐⭐⭐👌👌👌👌
२७-३-२०१९

मंगलवार, 16 मार्च 2021

सामयिक दोहे

दोहा दुनिया
*
भाई-भतीजावाद के, हारे ठेकेदार
चचा-भतीजे ने किया, घर का बंटाढार
*
दुर्योधन-धृतराष्ट्र का, हुआ नया अवतार
नाव डुबाकर रो रहे, तोड़-फेंक पतवार
*
माया महाठगिनी पर, ठगी गयी इस बार
जातिवाद के दनुज सँग, मिली पटकनी यार
*
लग्न-परिश्रम की विजय, स्वार्थ-मोह की हार
अवसरवादी सियासत, डूब मरे मक्कार
*
बादल गरजे पर नहीं, बरस सके धिक्कार
जो बोया काटा वही, कौन बचावनहार?
*
नर-नरेंद्र मिल हो सके, जन से एकाकार
सर-आँखों बैठा किया, जन-जन ने सत्कार
*
जन-गण को समझें नहीं, नेतागण लाचार
सौ सुनार पर पड़ गया,भारी एक लुहार
*
गलती से सीखें सबक, बाँटें-पाएँ प्यार
देश-दीन का द्वेष तज, करें तनिक उपकार
*
दल का दलदल भुलाकर, असरदार सरदार
जनसेवा का लक्ष्य ले, बढ़े बना सरकार
*
१६-३-२०१८ 

गुरुवार, 19 नवंबर 2020

सामायिक दोहे

 दोहा सलिला 

*
आदम से करके घृणा, पूजें वेद-कुरान 
नादां समझो हक़ीक़त, लिखें इन्हें इंसान 
*
दुलराओ हँस प्यार से, झुर्रीवाले हाथ 
जिसने जन्म दिया विहँस, चूमो उसका माथ 
*
पिंजरे में कैसे भरे, पंछी कहो उड़ान
पंखों को परवाज़ दो, कतरो मत नादान  
*
सड़कें हैं आबाद हम, भूल गए दहलीज
घर सन्नाटा बुन रहे, चिथड़े प्यार-कमीज 
*  
मदद करो दिल से कहे, पैना खंज़र चीख 
कहे खबरची हर जगह, अमन रहा है दीख 
*
आँखें मूँदो दिख रहे, तारे दिन में यार 
देश सो रहा चैन से, चीख रही सरकार 
*
उफनाई जब से नदी, तिनकों को तैराक 
बता रहे अखबार में, मंत्रीजी बेबाक 
लोहू ओढ़े बर्फ की, चादर बेबस मौन 
गाल बजा नेता रहे, मकसद पूछे कौन?
*
सत्य न होते नींद में, देखे ख्वाब हुजूर 
नींद उड़ा दें स्वप्न जो, होते सत्य जरूर 
*
तिमिर बताता छिप गया, खोजो कहाँ प्रकाश 
धरा कहे पग जमाकर, छूलो हँस आकाश 
*