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शनिवार, 14 जून 2014

laghukatha: eklavya -sanjiv

लघुकथा:
एकलव्य
- 'नानाजी! एकलव्य महान धनुर्धर था?'
- 'हाँ; इसमें कोई संदेह नहीं है.'
- उसने व्यर्थ ही भोंकते कुत्तों का मुंह तीरों से बंद कर दिया था ?' 
-हाँ बेटा.' 
- दूरदर्शन और सभाओं में नेताओं और संतों के वाग्विलास से ऊबे पोते ने कहा - 'काश वह आज भी होता.'
***** 
- आचार्य संजीव 'सलिल' संपादक दिव्य नर्मदा समन्वयम , २०४ विजय अपार्टमेन्ट, नेपिअर टाऊन, जबलपुर ४८२००१ वार्ता:०७६१ २४१११३१ / ९४२५१ ८३२४४ 

मंगलवार, 24 सितंबर 2013

short story: matraa kaa kamal -s.n.sharma

रोचक कथा:
मात्रा का कमाल 
एस. एन. शर्मा 'कमल' 
*
राजा भोज के दरबार में कवि-रत्नों में कालिदास ,दंडी, शतंजय,माघ, आदि थे । इन सब में कभी तीखी नोंक-झोंक हो  जाती थी । ऐसी  ही एक नोंक-झोक कवि कालिदास  और शतंजय के बीच हुई जो शातन्जय को इतनी नागवार गुज़री  की वे दरबार ही छोड़ गए । कई दिन बाद उन्हें तंगी में मुद्रा की  आवश्यकता हुई । राजा भोज के दरबार का नियम था की जो कविता लिख कर लाता उसे पांच मुद्राएँ पुरस्कार में मिलतीं । अस्तु शातन्जय ने  एक श्लोक ( कविता ) लिख कर अपने शिष्य के  हाथ भेज दिया  जो इस प्रकार था  -

                      अपशब्द शतं माघे,  कविर्दंडी शत त्रयम                       कालिदासो न गन्यन्ते , कविरेको शतन्जयः           ( माघ की कविता में एक सौ अशुद्धियाँ होती हैं ,कवि दण्डी की कविता में तीन सौ और कालिदास की कविता में तो इतनी अशुद्धियाँ होती हैं की उनकी गिनती नहीं की जा सकती , एकमात्र कवि तो शतन्जय है )            संयोग से दरबार के द्वार पर कालिदास की नजर  उस शिष्य  पर पड़ गयी जिसे वे जानते थे । पास आकर वे शतन्जय जी  का हालचाल पूछने लगे । बात खुली कि वह शतन्जय  की कविता लेकर पुरस्कार हेतु आये हैं । उत्सुकता वश वे शिष्य से कागज़ ले कर कविता पढ़ने लगे । पढ़ कर बोले - बड़ी सुन्दर कविता है पर गुरू जी एक मात्रा लगाना भूल गए इसे शुद्ध कर लो । शिष्य ने कहा आप  ही कर दीजिये ॥  बस कालिदास ने अपशब्द के स्थान पर आपशब्द, अ में बड़ी मात्रा लगा कर बना दिया । अब अर्थ बदल गए -   आपशब्द ( जल के पर्यायवाची ) माघ पंडित सौ  और  दण्डी कवि तीन सौ जानते  हैं पर कालिदास इतने जानते  हैं  कि गणना नहीं जबकि कवि शतंजय केवल  एक )      जब कविता शिष्य ने  दरबार में राजा भोज को  दी तो पढ़ कर राजा भोज कालिदास की ओर देख मुस्कुराए उन्हें पता था की  कालिदास के कारण ही शतन्जय रुष्ट हो कर गए  हैं सो उन्हें साजिश समझते  देर ना लगी ।
उन्होंने पांच मुद्राएँ देकर  विदा करते  हुए कविता वाला वह कागज़ भी लौटाते हुए कहा की गुरू जी को मेरा प्रणाम कहना और सन्देश देना कि उनके बिना दरबार सूना है अस्तु वे पधार कर हमें अनुग्रहीत  करें ।
     अब वह कागज़ पढ़ कर शतन्जय पर जो बीती आप कल्पना  कर सकते है  ॥ मात्रा  के सम्बन्ध में इतनी कथा ही पर्याप्त है ।

बुधवार, 10 जुलाई 2013

short story WHO KNOWS

WHO KNOWS
*
Good luck, bad luck, who knows?

A father and his son owned a farm. They did not have many animals, but they did own a horse. The horse pulled the plow, guided by the farmer’s son. One day the horse ran away.

“How terrible, what bad luck,” said the neighbours.

“Good luck, bad luck, who knows?” replied the farmer.

Several weeks later the horse returned, bringing with him four wild horses.

“What marvellous luck,” said the neighbours.

“Good luck, bad luck, who knows?” replied the farmer.

The son began to train the wild horses, but one day he was thrown and broke his leg.

“What bad luck,” said the neighbours.

“Good luck, bad luck, who knows?” replied the farmer.

The next week the army came to the village to take all the young men to war. The farmer’s son was still disabled with his broken leg, so he was excused.
========

मंगलवार, 20 नवंबर 2012

शुक्रवार, 7 सितंबर 2012

Short Story: " Lunch with God"

Short Story: 

" Lunch with God" 


One Lazy afternoon a little boy wanted to meet God. He knew it was a long trip to where God lived, so he packed his suitcase with cookies and a six-pack of root beer and he started his journey…. When he had gone about three blocks, he met an elderly man. The man was sitting in the park just feeding some pigeons.

The boy sat down next to him and opened his suitcase. He was about to take a drink from his root beer when he noticed that the man looked hungry, so he offered him a cookie. The man gratefully accepted it and smiled at boy. His smile was so pleasant that the boy wanted to see it again, so he offered him a root beer. Again, the man smiled at him. The boy was delighted! They sat there all afternoon eating and smiling, but they never said a word. 

As it grew dark, the boy realized how tired he was and he got up to leave, but before he had gone more than a few steps, he turned around, ran back to the man, and gave him a hug. The man gave him his biggest smile ever. When the boy opened the door to his own house a short time later, his mother was surprised by the look of joy on his face. 

She asked him, "What did you do today that made you so happy? 

He replied "I had lunch with God." But before his mother could respond, he added "You know what? God's got the most beautiful smile I've ever seen!" 

Meanwhile, the elderly man, also radiant with joy, returned to his home. His son was stunned by the look of peace on his face and he asked," Dad, what did you do today that made you so happy?" 

He replied, "I ate cookies in the park with God." However, before his son could respond he added, "You know, he's much younger than I expected." 

 Lesson: People come into our lives for a reason, a season, or a lifetime. Embrace all equally!

मंगलवार, 28 अगस्त 2012

लघु कथा: ऐसा क्यों? -संतोष भाऊवाला

लघु कथा:
ऐसा क्यों?
 

 
संतोष भाऊवाला 
*
कुमारी का अपने पति से झगडा हो गया था I

उसका घर छोड़ कर वह अपनी माँ के घर रहने लग गई थी I  सुबह शाम मंदिर जाती और दिन में दूसरों के घर का काम कर अपना पेट पाल रही थी I

माँ बाप ने वापस जाने के लिये बहुत समझाया पर नहीं मानी I अब तो अजीबो गरीब हरकते करने लगी थी I कहती थी... उसमे माता का वास है जब जोर जोर से सिर हिलाती तो सभी उसके पैर छूने लगते ...जब वो ये बाते मुझे बताती तो मेरा मन नहीं मानता था .... कैसे किसी  लड़की में माता का वास हो सकता है , वह  माता स्वरुप हो सकती  है?

मैंने उससे पूछा: 'तुम दूसरी शादी क्यों नहीं कर लेती?'

कहती थी: 'ऐसी बात करना भी मेरे लिये पाप है अब मै देवी हूँ  I' मै चुप हो जाती क्या कहती?...

कल कोई बता रहा था कि कुमारी किसी के साथ भाग गई, वह भी दो बच्चों के पिता के साथ .....
 *


गुरुवार, 12 जुलाई 2012

लघु कथा: short story: सच्चा प्रेम true love

लघु कथा: सच्चा प्रेम 

एक गरीब आदमी अपनी पत्नी के साथ रहता था। 

 एक दिन पत्नी ने अपने लिए एक कंघे की फरमाइश की ताकि वह अपने लम्बे बालों की देखभाल ठीक से कर सके। पति ने बहुत दुखी मन से मना करते हुई बताया कि पैसे न होने के कारण वह अपनी घड़ी का टूटा हुआ पट्टा भी नहीं सुधरवा पा रहा है। पत्नी ने अपनी बात पर जोर नहीं दिया। 

पति काम पर जाते समय एक घड़ी-दुकान के सामने से गुजरा, उसने अपनी टूटी घड़ी कम दाम पर बेचकर एक कंघा खरीद लिया। 

शाम घर आते समय वह खुश था कि अपनी पत्नी को नया कंघा दे सकेगा किन्तु अपनी पत्नी के छोटे-छोटे बाल देखकर चकित रह गया। उसकी पत्नी अपने बाल बेचकर घड़ी का नया पट्टा हाथ में लेकर खड़ी थी। 

यह देखकर दोनों की आँखों से एक साथ आँसू बहने लगे। यह अश्रुपात अपना प्रयास के विफल होने के कारण न होकर एक दूसरे के प्रति पारस्परिक प्रेम के आधिक्य के कारण था। 

वास्तव में प्यार करना कुछ नहीं है, प्यार पाना कुछ उपलब्धि है किन्तु प्यार करने के साथ-साथ प्रेमपत्र का प्यार पाना ही सच्ची उपलब्धि है। प्यार को अपने आप मिली वास्तु न मानें, प्यार पाने के लिए प्यार दें।



short story:

true love  

A very poor man lived with his wife. One day, his wife, who had very long hair asked him to buy her a comb for her hair to grow well and to be well-groomed. The man felt very sorry and said no.

He explained that he did not even have enough money to fix the strap of his watch he had just broken. She did not insist on her request. The man went to work and passed by a watch shop, sold his damaged watch at a low price and went to buy a comb for his wife. 

He came home in the evening with the comb in his hand ready to give to his wife. He was surprised when he saw his wife with a very short hair cut. She had sold her hair and was holding a new watch band. 

Tears flowed simultaneously from their eyes, not for the futility of their actions, but for the reciprocity of their love.

MORAL: To love is nothing, to be loved is
something but to love and to be loved by the one you love, that is EVERYTHING. Never take love for granted.:)

मंगलवार, 26 जून 2012

short story: time and happiness लघुकथा: समय और प्रेम

short story: read & think  

time and happiness



 

लघुकथा:

समय और प्रेम 

किसी समय सुख, दुःख, प्रेम आदि भावनाएं समय के साथ एक द्वीप पर रहती थीं. एक दिन आकाशवाणी हुई कि द्वीप डूबनेवाला है. प्रेम को छोड़कर सभी ने तुरंत द्वीप छोड़ दिया. प्रेम ने अंतिम क्षण तक प्रतीक्षा की कि  संभवतः द्वीप न डूबे. अंततः द्वीप के डूबने की घड़ी जानकर प्रेम ने द्वीप छोड़ने का  निश्चय किया. एक बड़ी नाव में बैठ कर जा रहे समृद्धि को पुकारकर प्रेम ने पूछा: 'समृद्धि तुम मुझे अपने साथ ले सकोगी?'

'नहीं, मेरी नाव में बहुमूल्य सोना-चांदी है, तुम्हारे लिए जगह नहीं है.'

प्रेम ने खूबसूरत कक्ष में जा रहे सौन्दर्य को आवाज दी: 'सौन्दर्य! कृपया मेरी मदद करो'. 

'नहीं, तुम भीगे हो, तुम्हारे आने से मेरा कक्ष ख़राब हो जायेगा.' सौन्दर्य बोला.

इस बीच निकट आ चुके दुःख से प्रेम ने कहा: 'दुःख मुझे अपने साथ चलने दो.'

'ओह।.. प्रेम मैं इतना दुखी हूँ कि एकाकी रहना चाहता हूँ.' दुःख ने कहा.

तभी समीप से सुख निकला किन्तु वह इतना सुखी था कि  प्रेम की पुकार ही नहीं सुन सका.

अचानक एक वृद्ध की आवाज़ आई  'आओ, प्रेम मेरे साथ आ जाओ, मैं तुम्हें अपने साथ ले चलूँगा'. प्रेम इतना अधिक प्रसन्न हुआ कि  वृद्ध से यह पूछना भी  भूल गया कि वे कहाँ जा रहे हैं?' सूखी धरती पर आते ही वृद्ध अपनी राह पर चला गया। वृद्ध कितने परोपकारी थे यह अनुभव करते हुए प्रेम ने अन्य वृद्ध ज्ञान से पूछा: 'मेरी सहायता किसने की?'

'वह समय था' ज्ञान ने उत्तर दिया।

'किन्तु समय ने मेरी सहायता क्यों की?' प्रेमने पूछा।

ज्ञान ने समझदारी से मंद-मंद मुस्कुराते हुए कहा: ' क्योंकि केवल समय ही यह समझने में सक्षम है कि प्रेम कितना मूल्यवान है।'

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शनिवार, 12 मई 2012

लघुकथा: एकलव्य --संजीव 'सलिल'

लघुकथा:
एकलव्य

संजीव 'सलिल'
*
- 'नानाजी! एकलव्य महान धनुर्धर था?'
- 'हाँ; इसमें कोई संदेह नहीं है.'
- उसने व्यर्थ ही भोंकते कुत्तों का मुंह तीरों से बंद कर दिया था ?'
-हाँ बेटा.'
- दूरदर्शन और सभाओं में नेताओं और संतों के वाग्विलास से ऊबे पोते ने कहा - 'काश वह आज भी होता.'
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-सलिल.संजीव@जीमेल.कॉम / दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.इन

रविवार, 12 दिसंबर 2010

sattire: THREE PARROTS -- vijay kushal.

sattire:


THREE    PARROTS                                    


-- vijay kushal.

A man wanted to buy his son a parrot as a birthday present.
The next day he went to the pet shop and saw
three identical parrots in a cage.

He asked the clerk, "how much for the parrot on the right?

 The owner said it was Rs. 2500.
"Rs. 2500.", the man said. "Well what does he do?
"He knows how to use all of the functions of Microsoft Office 2000,
responds the clerk.
"He can do all of your spreadsheets and type all of your letters."

 The man then asked what the second parrot cost.
The clerk replied, Rs. 5000, but he not only knows Office 2000,
but is an expert computer programmer.

 Finally, the man inquired about the cost of the last parrot.
The clerk replied, "Rs. 10,000."
Curious as to how a bird can cost Rs. 10,000, the man asked what this
bird's specialty was.
The clerk replies, "Well to be honest I haven't seen him do anything.

But the other two call him *"BOSS"!! *

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सोमवार, 3 मई 2010

लघु कथा: जंगल में जनतंत्र - आचार्य संजीव वर्मा "सलिल"

Kaifi
जंगल में चुनाव होनेवाले थे। मंत्री कौए जी एक जंगी आमसभा में सरकारी अमले द्वारा जुटाई गयी भीड़ के आगे भाषण दे रहे थे- 'जंगल में मंगल के लिए आपस का दंगल बंद कर एक साथ मिलकर उन्नति की रह पर क़दम रखिये। सिर्फ़ अपना नहीं सबका भला सोचिये।'

मंत्री जी! लाइसेंस दिलाने के लिए धन्यवाद। आपके काग़ज़ घर पर दे आया हूँ। ' भाषण के बाद चतुर सियार ने बताया। मंत्री जी ख़ुश हुए।
तभी उल्लू ने आकर कहा- 'अब तो बहुत धाँसू बोलने लगे हैं। हाऊसिंग सोसायटी वाले मामले को दबाने के लिए रखी' और एक लिफ़ाफ़ा उन्हें सबकी नज़र बचाकर दे दिया।
विभिन्न महकमों के अफ़सरों उस अपना-अपना हिस्सा मंत्री जी के निजी सचिव गीध को देते हुए कामों की जानकारी मंत्री जी को दी।
समाजवादी विचार धारा के मंत्री जी मिले उपहारों और लिफ़ाफ़ों को देखते हुए सोच रहे थे - 'जंगल में जनतंत्र जिंदाबाद।'

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मंगलवार, 6 अप्रैल 2010

लघु कथा: शब्द और अर्थ --संजीव वर्मा "सलिल "

लघु कथा: शब्द और अर्थ
संजीव वर्मा "सलिल "

शब्द कोशकार ने अपना कार्य समाप्त किया...कमर सीधी कर लूँ , सोचते हुए लेटा कि काम की मेज पर कुछ खटपट सुनायी दी... मन मसोसते हुए उठा और देखा कि यथास्थान रखे शब्दों के समूह में से निकल कर कुछ शब्द बाहर आ गए थे। चश्मा लगाकर पढ़ा , वे शब्द 'लोकतंत्र', प्रजातंत्र', 'गणतंत्र' और 'जनतंत्र' थे।

शब्द कोशकार चौका - ' अरे! अभी कुछ देर पहले ही तो मैंने इन्हें यथास्थान रखा रखा था, फ़िर ये बाहर कैसे...?'

'चौंको मत...तुमने हमारे जो अर्थ लिखे हैं वे अब हमें अनर्थ लगते हैं। दुनिया का सबसे बड़ा लोक तंत्र लोभ तंत्र में बदल गया है। प्रजा तंत्र में तंत्र के लिए प्रजा की कोई अहमियत ही नहीं है। गण विहीन गण तंत्र का अस्तित्व ही सम्भव नहीं है। जन गण मन गाकर जनतंत्र की दुहाई देने वाला देश सारे संसाधनों को तंत्र के सुख के लिए जुटा रहा है। -शब्दों ने एक के बाद एक मुखर होते हुए कहा


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शुक्रवार, 29 जनवरी 2010

लघु कथा / बोध कथा: आदमीं बन जाओ… __संजीव 'सलिल'

लघु कथा / बोध कथा:

आदमीं बन जाओ…


संजीव 'सलिल'

भारत माता ने अपने घर में जन-कल्याण का जानदार आँगन बनाया. उसमें शिक्षा की शीतल हवा, स्वास्थ्य का निर्मल नीर, निर्भरता की उर्वर मिट्टी, उन्नति का आकाश, दृढ़ता के पर्वत, आस्था की सलिला, उदारता का समुद्र तथा आत्मीयता की अग्नि का स्पर्श पाकर जीवन के पौधे में प्रेम के पुष्प महक रहे थे ।

सिर पर सफ़ेद टोपी लगाये एक बच्चा आया, रंग-बिरंगे पुष्प देखकर ललचाया. पुष्प पर सत्ता की तितली बैठी देखकर उसका मन ललचाया, तितली को पकड़ने के लिए हाथ बढाया, तितली उड़ गयी. बच्चा तितली के पीछे दौड़ा, गिरा, रोते हुए रह गया खडा ।

कुछ देर बाद भगवा वस्त्रधारी दूसरा बच्चा खाकी पैंटवाले मित्र के साथ आया. सरोवर में खिला कमल का पुष्प उसके मन को भाया, मन ललचाया, बिना सोचे कदम बढाया, किनारे लगी काई पर पैर फिसला, गिरा, भीगा और सिर झुकाए वापिस लौट गया, कोने मे खड़ा चुपचाप सब देखता रहा ।

तभी चक्र घुमाता तीसरा बच्चा अनुशासन को तोड़ता, शोर मचाता घर में घुसा और हाथ में हँसिया-हथौडा थामे चौथा बच्चा उससे जा भिड़ा. दोनों टकराए, गिरे, कांटें चुभे और वे चोटें सहलाते सिसकने लगे ।

हाथी की तरह मोटे, अक्ल के छोटे, कुछ बच्चे एक साथ धमाल मचाते आए, औरों की अनदेखी कर जहाँ मन हुआ वहीं जगह घेरकर हाथ-पैर फैलाये. धक्का-मुक्की में फूल ही नहीं पौधे भी उखाड़ लाये ।

कुछ देर बाद भारत माता घर में आयीं, कमरे की दुर्दशा देखकर चुप नहीं रह पायीं, दुःख के साथ बोलीं- ‘ मत दो झूटी सफाई, मत कहो कि घर की यह दुर्दशा तुमने नहीं तितली ने बनाई. काश तुम तितली को भुला पाते, काँटों को समय रहते देख पाते, मिल-जुल कर रह पाते, ख़ुद अपने लिये लड़ने की जगह औरों के लिए कुछ कर पाते तो आदमी बन जाते ।

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