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शनिवार, 20 जनवरी 2018

सरस्वती वंदना

स्तवन
*
सरस्वती शारद ब्रम्हाणी!
जय-जय वीणा पाणी!!
*
अमल-धवल शुचि,
विमल सनातन मैया!
बुद्धि-ज्ञान-विज्ञान
प्रदायिनी छैंया।
तिमिरहारिणी,
भयनिवारिणी सुखदा,
नाद-ताल, गति-यति
खेलें तव कैंया।
अनहद सुनवाई दो कल्याणी!
जय-जय वीणापाणी!!
*
स्वर, व्यंजन, गण,
शब्द-शक्तियां अनुपम।
वार्णिक-मात्रिक छंद
अनगिनत उत्तम।
अलंकार, रस, भाव,
बिंब तव चारण।
उक्ति-कहावत, रीति-
नीति शुभ परचम।
कर्मठ विराजित करते प्राणी
जय-जय वीणापाणी!!
*
कीर्ति-गान कर,
कलरव धन्य हुआ है।
यश गुंजाता गीत,
अनन्य हुआ है।
कल-कल नाद प्रार्थना,
अगणित रूपा,
सनन-सनन-सन वंदन
पवन बहा है।
हिंदी हो भावी जगवाणी
जय-जय वीणापाणी!!
***

सोमवार, 4 अप्रैल 2011

आदि शक्ति वंदना संजीव वर्मा 'सलिल'

आदि शक्ति वंदना

संजीव वर्मा 'सलिल'
*
आदि शक्ति जगदम्बिके, विनत नवाऊँ शीश.
रमा-शारदा हों सदय, करें कृपा जगदीश....
*
पराप्रकृति जगदम्बे मैया, विनय करो स्वीकार.
चरण-शरण शिशु, शुभाशीष दे, करो मातु उद्धार.....
*
अनुपम-अद्भुत रूप, दिव्य छवि, दर्शन कर जग धन्य.
कंकर से शंकर रचतीं माँ!, तुम सा कोई न अन्य..

परापरा, अणिमा-गरिमा, तुम ऋद्धि-सिद्धि शत रूप.
दिव्य-भव्य, नित नवल-विमल छवि, माया-छाया-धूप..

जन्म-जन्म से भटक रहा हूँ, माँ ! भव से दो तार.
चरण-शरण जग, शुभाशीष दे, करो मातु उद्धार.....
*
नाद, ताल, स्वर, सरगम हो तुम. नेह नर्मदा-नाद.
भाव, भक्ति, ध्वनि, स्वर, अक्षर तुम, रस, प्रतीक, संवाद..

दीप्ति, तृप्ति, संतुष्टि, सुरुचि तुम, तुम विराग-अनुराग.
उषा-लालिमा, निशा-कालिमा, प्रतिभा-कीर्ति-पराग.

प्रगट तुम्हीं से होते तुम में लीन सभी आकार.
चरण-शरण शिशु, शुभाशीष दे, करो मातु उद्धार.....
*
वसुधा, कपिला, सलिलाओं में जननी तव शुभ बिम्ब.
क्षमा, दया, करुणा, ममता हैं मैया का प्रतिबिम्ब..

मंत्र, श्लोक, श्रुति, वेद-ऋचाएँ, करतीं महिमा गान-
करो कृपा माँ! जैसे भी हैं, हम तेरी संतान.

ढाई आखर का लाया हूँ,स्वीकारो माँ हार.
चरण-शरण शिशु, शुभाशीष दे, करो मातु उद्धार.....

**************

शुक्रवार, 8 अक्टूबर 2010

आदि शक्ति वंदना संजीव वर्मा 'सलिल'

आदि शक्ति वंदना

संजीव वर्मा 'सलिल'
*
आदि शक्ति जगदम्बिके, विनत नवाऊँ शीश.
रमा-शारदा हों सदय, करें कृपा जगदीश....
*
पराप्रकृति जगदम्बे मैया, विनय करो स्वीकार.
चरण-शरण शिशु, शुभाशीष दे, करो मातु उद्धार.....
*
अनुपम-अद्भुत रूप, दिव्य छवि, दर्शन कर जग धन्य.
कंकर से शंकर रचतीं माँ!, तुम सा कोई न अन्य..

परापरा, अणिमा-गरिमा, तुम ऋद्धि-सिद्धि शत रूप.
दिव्य-भव्य, नित नवल-विमल छवि, माया-छाया-धूप..

जन्म-जन्म से भटक रहा हूँ, माँ ! भव से दो तार.
चरण-शरण जग, शुभाशीष दे, करो मातु उद्धार.....
*
नाद, ताल, स्वर, सरगम हो तुम. नेह नर्मदा-नाद.
भाव, भक्ति, ध्वनि, स्वर, अक्षर तुम, रस, प्रतीक, संवाद..

दीप्ति, तृप्ति, संतुष्टि, सुरुचि तुम, तुम विराग-अनुराग.
उषा-लालिमा, निशा-कालिमा, प्रतिभा-कीर्ति-पराग.

प्रगट तुम्हीं से होते तुम में लीन सभी आकार.
चरण-शरण शिशु, शुभाशीष दे, करो मातु उद्धार.....
*
वसुधा, कपिला, सलिलाओं में जननी तव शुभ बिम्ब.
क्षमा, दया, करुणा, ममता हैं मैया का प्रतिबिम्ब..

मंत्र, श्लोक, श्रुति, वेद-ऋचाएँ, करतीं महिमा गान-
करो कृपा माँ! जैसे भी हैं, हम तेरी संतान.

ढाई आखर का लाया हूँ,स्वीकारो माँ हार.
चरण-शरण शिशु, शुभाशीष दे, करो मातु उद्धार.....

**************

गुरुवार, 9 सितंबर 2010

मुक्तिका: प्रश्न वन संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:
प्रश्न वन

संजीव 'सलिल'
*
प्रश्न वन में रह रहे हैं आजकल.
उत्तरों बिन दह रहे हैं आजकल..

शिकायत-शिकवा किसी से क्या करें?
जो अचल थे बह रहे आजकल..

सत्य का वध नुक्कड़ों-संसद में कर.
अवध खुद को कह रहे हैं आजकल..

काबिले-तारीफ हिम्मत आपकी.
सच को चुप रह सह रहे हैं आजकल..

लाये खाली हाथ भरकर जायेंगे.
जर-जमीनें गह रहे हैं आजकल..

ज्यों की त्यों चादर रहेगी किस तरह?
थान अनगिन तह रहे हैं आजकल..

ढाई आखर पढ़ न पाये जो 'सलिल'
सियासत में शह रहे हैं आजकल..

'सलिल' सदियों में बनाये मूल्य जो
बिखर-पल में ढह रहे हैं आजकल..

***************************

Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

बुधवार, 21 जुलाई 2010

दोहा दर्पण: संजीव 'सलिल' *


दोहा दर्पण:

संजीव 'सलिल'

*
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*
कविता की बारिश करें, कवि बादल हों दूर.
कौन किसे रोके 'सलिल', आँखें रहते सूर..

है विवेक ही सुप्त तो, क्यों आये बरसात.
काट वनों को, खोद दे पर्वत खो सौगात..

तालाबों को पाट दे, मरुथल से कर प्यार.
अपना दुश्मन मनुज खुद, जीवन से बेज़ार..

पशु-पक्षी सब मारकर खा- मंगल पर घूम.
दंगल कर, मंगल भुला, 'सलिल' मचा चल धूम..

जर-ज़मीन-जोरू-हुआ, सिर पर नशा सवार.
अपना दुश्मन आप बन, मिटने हम बेज़ार..

गलती पर गलती करें, दें औरों को दोष.
किन्तु निरंतर बढ़ रहा, है पापों का कोष..

ले विकास का नाम हम, करने तुले विनाश.
खुद को खुद ही हो रहे, 'सलिल' मौत का पाश..
******
Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

मंगलवार, 20 जुलाई 2010

सरस्वती वंदना: संजीव 'सलिल'

सरस्वती वंदना:

संजीव 'सलिल'
*


















*

संवत १६७७ में रचित ढोला मारू दा दूहा से सरस्वती वंदना का दोहा :

सकल सुरासुर सामिनी, सुणि माता सरसत्ति.
विनय करीन इ वीनवुं, मुझ घउ अविरल मत्ति..

अम्ब  विमल मति दे.....
*


हे हंस वाहिनी! ज्ञानदायिनी!!
अम्ब विमल मति दे.....

नन्दन कानन हो यह धरती।
पाप-ताप जीवन का हरती।
हरियाली विकसे.....

बहे नीर अमृत सा पावन।
मलयज शीतल शुद्ध सुहावन।
अरुण निरख विहसे.....

कंकर से शंकर गढ़ पायें।
हिमगिरि के ऊपर चढ़ जाएँ।
वह बल-विक्रम दे.....

हरा-भरा हो सावन-फागुन।
रम्य ललित त्रैलोक्य लुभावन।
सुख-समृद्धि सरसे.....

नेह-प्रेम से राष्ट्र सँवारें।
स्नेह समन्वय मन्त्र उचारें।
' सलिल' विमल प्रवहे.....

************************

२.

हे हंस वाहिनी! ज्ञानदायिनी!!
अम्ब विमल मति दे.....

जग सिरमौर बने माँ भारत.
सुख-सौभाग्य करे नित स्वागत.
आशिष अक्षय दे.....

साहस-शील हृदय में भर दे.
जीवन त्याग तपोमय करदे.
स्वाभिमान भर दे.....

लव-कुश, ध्रुव, प्रहलाद हम बनें.
मानवता का त्रास-तम् हरें.
स्वार्थ सकल तज दे.....

दुर्गा, सीता, गार्गी, राधा,
घर-घर हों काटें भव बाधा.
नवल सृष्टि रच दे....

सद्भावों की सुरसरि पवन.
स्वर्गोपम हो राष्ट्र सुहावन.
'सलिल' निरख हरषे...
*

३.

हे हंस वाहिनी! ज्ञानदायिनी!!
अम्ब विमल मति दे.....

नाद-ब्रम्ह की नित्य वंदना.
ताल-थापमय सलिल-साधना
सरगम कंठ सजे....,

रुन-झुन रुन-झुन नूपुर बाजे.
नटवर-नटनागर उर साजे.
रास-लास उमगे.....

अक्षर-अक्षर शब्द सजाये.
काव्य, छंद, रस-धार बहाये.
शुभ साहित्य सृजे.....

सत-शिव-सुन्दर सृजन शाश्वत.
सत-चित-आनंद भजन भागवत.
आत्मदेव पुलके.....

कंकर-कंकर प्रगटें शंकर.
निर्मल करें हृदय प्रलयंकर.
गुप्त चित्र प्रगटे.....
*

४.

हे हंस वाहिनी! ज्ञानदायिनी!!
अम्ब विमल मति दे.....

कलकल निर्झर सम सुर-सागर.
तड़ित-ताल के हों कर आगर.
कंठ विराजे सरगम हरदम-
सदय रहें नटवर-नटनागर.
पवन-नाद प्रवहे...

विद्युत्छटा अलौकिक वर दे.
चरणों मने गतिमयता भर डॉ.
अंग-अंग से भाव साधना-
चंचल चपल चारू चित कर दे.
तुहिन-बिंदु पुलके....

चित्र गुप्त, अक्षर संवेदन.
शब्द-ब्रम्ह का कलम निकेतन.
जियें मूल्य शाश्वत शुचि पावन-
जीवन-कर्मों का शुचि मंचन.
मन्वन्तर महके...
****************

सामूहिक सरस्वती वंदना:

सरस्वती वंदना:

१. महाकवि गुलाब खंडेलवालजी :
अयि मानस-कमल-विहारिणी!
हंस-वाहिनी! माँ सरस्वती! वीणा-पुस्तक-धारिणी!

शून्य अजान सिन्धु के तट पर
मानव-शिशु रोता  था कातर
उतरी ज्योति सत्य, शिव, सुन्दर
तू भय-शोक-निवारिणी

देख प्रभामय तेरी मुख-छवि
नाच उठे भू, गगन, चन्द्र, रवि
चिति की चिति तू  कवियों की कवि
अमित रूप विस्तारिणी

तेरे मधुर स्वरों से मोहित
काल अशेष शेष-सा नर्तित
आदि-शक्ति तू अणु-अणु में स्थित
जन-जन-मंगलकारिणी

अयि मानस-कमल-विहारिणी!
हंस-वाहिनी! माँ सरस्वती! वीणा-पुस्तक-धारिणी!

*****************
शकुंतला बहादुर जी :
शारदे ! वर दे , वर दे ।
दूर कर अज्ञान-तिमिर माँ,
ज्ञान-ज्योति भर दे , वर दे । शारदे...
सत्य का संकल्प दे माँ,
मन पवित्र रहें हमारे ,
वेद की वीणा बजा कर,
जग झंकृत कर दे,वर दे ।। शारदे...
** ** **

सरस्वती माता ss
सरस्वती माता ss
विद्या-दानी, दयानी
सरस्वती माता ss
कीजे कृपा दृष्टि,
दीजे विमल बुद्धि,
गाऊँ मैं शुभ-गान,
मुझको दो वरदान।
सरस्वती माता, सरस्वती माता।।
** ** **
आर. सी. शर्मा :  
 rcsharmaarcee@yahoo.co.in
माँ शारदे ऐसा वर दे।
दिव्य ज्ञान से जगमग कर दे॥

शीश झुका कर दीप जला कर।
शब्द्पुष्प के हार बना कर॥
हम  तेरा  वंदन  करते  हैं।
सब मिल अभिनन्दन करते हैं।।
करुण कृपा का वरद हस्त  माँ, शीश मेरे धर दे।

प्रेम दया सबके हित मन में।
करुणा की जलधार नयन में॥
वीणा  की  झंकार  सृजन  में।
भक्ति की  रसधार  भजन में॥
हंस वाहिनी धवल धारिणी परम कृपा कर दे।

साक्षरता के दिये  जला दें।
भूख  और  संताप मिटा दें।
बहे ज्ञान की  अविरल धरा
हो अभिभूत जगत ये सारा॥
जग जननी माँ अब गीतों को नितनूतन स्वर दे।
माँ शारदे ऐसा वर दे।
दिव्य ज्ञान से जगमग कर दे॥

***********************
 
माँ शारदा के स्तुति गान में एक विनम्र पुष्प:
कल्पना की क्यारियों से
फूल चुन चुन कर सजाये
कार्तिकी पूनम निशा के
मोतियॊं की गूँथ माला
शब्द के अक्षत रंगे हैं
भावना की रोलियों में
प्राण में दीपित किये हैं
अर्चना की दीप-ज्वाला
और थाली में रखे हैं
काव्य की अगरु सुगन्धित
शारदे तेरे चरण में
एक कविता और अर्पित
छंद दोहे गीत मुक्तक
नज़्म कतए और गज़लें
कुछ तुकी हैं, बेतुकी कुछ
जो उगा हम लाये फ़सलें
हर कवि के कंठ से तू
है विनय के ्साथ वम्दित
शारदे तेरे चरण में
एक कविता और अर्पित
आदि तू है, तू अनादि
तू वषटकारा स्वरा है
तू है स्वाहा तू स्वधा है
तू है भाषा, अक्षरा है
तेरी वीणा की धुनों पर
काल का हर निमिष नर्तित
शारदे तेरे चरण में
एक कविता और अर्पित
************************ 

-आर० सी० शर्मा “आरसी”
 - rcsharmaarcee@yahoo.co.in

धवल  धारिणी  शारदे,  वीणा  सोहे  हाथ।
शब्द सुमन अर्पित करें, धर चरणों में माथ ॥
 
वागेश्वरी, सिद्धेश्वरी, विश्वेश्वरी तुम मात।
वाणी का वरदान दो, गीतों की  बरसात ॥
 
बन याचक  वर  मांगते, पूरी  कर  दे साध।
हम पानी के बुलबुले, तू कृपासिन्धु अगाध॥
 
शब्द पुष्प अर्पित करें, हम गीतों के हार ।
दिन दूना बढ़ता रहे, ज्ञान कृपा भण्डार ॥
 
इतनी  शीतलता  लिए,  है  माँ  तेरा  प्यार ।
ज्ञान पिपासु हम धरा, तू रिमझिम बरसात ॥
 
हम  तेरे  सुत  शारदे  दे  ऐसा  वरदान ।
फसल उगाएं ज्ञान की, भरें खेत खलिहान॥
 
आस लिए  हम  सब  खड़े, देखें तेरी ओर।
ज्यों चातक स्वाति तके, चंदा तके चकोर ।।
 
********************************
 
                                                            


                                                                           

सोमवार, 29 मार्च 2010

बुन्देली में शारदा वन्दना: अभियंता देवकीनंदन 'शांत'

बुन्देली में शारदा वन्दना:


दोहा

शब्द-शब्द में भओ प्रगट, मैया तेरो रूप.
तोरी किरपा छाँओ है, बिन तुझ तपती धूप..

वीणा वादिनी तेरौ नाम, जाने मैया जग सारौ...

चार भुजी है रूप तिहारो, वेद पुरानन मन्त्र उचारो.
हाथों में वीणा अभिराम, जाने मैया जग सारौ..
वीणा वादिनी तेरौ नाम, जाने मैया जग सारौ...

हंसवाहिनी तू है माता, कवियन की तू जीवनदाता.
आशीषनो है तेरौ काम, जाने मैया जग सारौ..
वीणा वादिनी तेरौ नाम, जाने मैया जग सारौ...

माथे मुकुट श्वेत कमलासन, ममता भरो 'शांत' सुन्दर मन.
चरनन में तोरे परनाम, जाने मैया जग सारौ..
वीणा वादिनी तेरौ नाम, जाने मैया जग सारौ...

*********************************************
१०/३०/२ इंदिरा नगर, लखनऊ २२६०१६ / ०९९३५२१७८४१
Acharya Sanjiv Salil

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गुरुवार, 21 जनवरी 2010

माँ सरस्वती शत-शत वन्दन --संजीव 'सलिल'

माँ सरस्वती शत-शत वन्दन

संजीव 'सलिल'

माँ सरस्वती! शत-शत वंदन, अर्पित अक्षत हल्दी चंदन.
यह धरती कर हम हरी-भरी, माँ! वर दो बना सकें नंदन.
प्रकृति के पुत्र बनें हम सब, ऐसी ही मति सबको दो अब-
पर्वत नभ पवन धरा जंगल खुश हों सुन खगकुल का गुंजन.
*
माँ हमको सत्य-प्रकाश मिले, नित सद्भावों के सुमन खिलें.
वर ऐसा दो सत्मूल्यों के शुभ संस्कार किंचित न हिलें.
मम कलम-विचारों-वाणी को मैया! अपना आवास करो-
मेर जीवन से मिटा तिमिर हे मैया! अमर उजास भरो..
*
हम सत-शिव-सुन्दर रच पायें ,धरती पर स्वर्ग बसा पायें.
पीड़ा औरों की हर पायें, मिलकर तेरी जय-जय-जय गायें.
गोपाल, राम, प्रहलाद बनें, सीता. गार्गी बन मुस्कायें.
हम उठा माथ औ' मिला हाथ हिंदी का झंडा फहरायें.
*
माँ यह हिंदी जनवाणी है, अब तो इसको जगवाणी कर.
सम्पूर्ण धरा की भाषा हो अब ऐसा कुछ कल्याणी कर.
हिंदीद्वेषी हो नतमस्तक खुद ही हिंदी का गान करें-
हर भाषा-बोली को हिंदी की बहिना वीणापाणी कर.
*

बुधवार, 6 जनवरी 2010

सरस्वती वंदना : ४ संजीव 'सलिल'

सरस्वती वंदना : ४
संजीव 'सलिल'
*
हे हंसवाहिनी! ज्ञानदायिनी!
अम्ब विमल मति दे...
*
कलकल निर्झर सम सुर-सागर.
तड़ित-ताल के हों कर आगर.
कंठ विराजे सरगम हरदम-
कृपा करें नटवर-नटनागर.
पवन मुक्त प्रवहे...
*
विद्युत्छटा अलौकिक चमके.
चरणों में गतिमयता भर दे.
अंग-अंग से भाव-साधना-
चंचल चपल चारु चित कर दे.
तुहिन-बिंदु पुलके...
*
चित्र-गुप्त अक्षर संवेदन.
शब्द-ब्रम्ह का कलम निकेतन.
सृजे 'सलिल' साहित्य सनातन-
शाश्वत मूल्यों का शुचि मंचन.
मन्वंतर चहके...
*

सरस्वती वंदना : ३ संजीव 'सलिल'

सरस्वती वंदना : ३


संजीव 'सलिल'


*

हे हंसवाहिनी! ज्ञानदायिनी!

अम्ब विमल मति दे...

*

नाद-ब्रम्ह की नित्य वंदना.

ताल-थापमय सृजन-साधना.

सरगम कंठ सजे...

*

रुनझुन-रुनझुन नूपुर बाजे.

नटवर-चित्रगुप्त उर साजे.

रास-लास उमगे...

*

अक्षर-अक्षर शब्द सजाये.

काव्य-छंद, रस-धार बहाये.

शुभ साहित्य सृजे...

*

सत-शिव-सुन्दर सृजन शाश्वत.

सत-चित-आनंद भजन भागवत.

आत्म देव पुलके...

*

कंकर-कंकर प्रगटे शंकर.

निर्मल करें ह्रदय प्रयलंकर.

'सलिल' सतत महके...

*

Acharya Sanjiv Salil

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सरस्वती वंदना : २ संजीव 'सलिल'

सरस्वती वंदना : २


संजीव 'सलिल'

*

हे हंसवाहिनी!, ज्ञानदायिनी!!

अम्ब विमल मति दे...

*

जग सिरमौर बने माँ भारत.

सुख-सौभाग्य करे नित स्वागत.

नव बल-विक्रम दे...

*

साहस-शील ह्रदय में भर दे.

जीवन त्याग-तपोमय कर दे.

स्वाभिमान भर दे...

*

लव-कुश, ध्रुव-प्रह्लाद हम बनें.

मानवता का त्रास-तम हरें.

स्वार्थ विहँस तज दें...

*

दुर्गा, सीता, गार्गी, राधा.

घर-घर हों, काटें हर बाधा.

सुख-समृद्धि सरसे...

*

नेह-प्रेम की सुरसरि पावन.

स्वर्गोपम हो राष्ट्र सुहावन.

'सलिल' निरख हरषे...

***

दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम

Acharya Sanjiv Salil

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रविवार, 3 जनवरी 2010

सरस्वती वंदना : 1 अम्ब विमल मति दे संजीव 'सलिल'

सरस्वती वंदना : 1




संजीव 'सलिल'



अम्ब विमल मति दे



हे हंस वाहिनी! ज्ञानदायिनी!!

अम्ब विमल मति दे.....



नन्दन कानन हो यह धरती।

पाप-ताप जीवन का हरती।

हरियाली विकसे.....



बहे नीर अमृत सा पावन।

मलयज शीतल शुद्ध सुहावन।

अरुण निरख विहसे.....



कंकर से शंकर गढ़ पायें।

हिमगिरि के ऊपर चढ़ जाएँ।

वह बल-विक्रम दे.....



हरा-भरा हो सावन-फागुन।

रम्य ललित त्रैलोक्य लुभावन।

सुख-समृद्धि सरसे.....



नेह-प्रेम से राष्ट्र सँवारें।

स्नेह समन्वय मन्त्र उचारें।

' सलिल' विमल प्रवहे.....



************************

Acharya Sanjiv Salil



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