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मंगलवार, 12 दिसंबर 2017

लघुकथा बैठक

समाचार:
लघुकथा जीवन का दर्पण- प्रदीप शशांक 
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जबलपुर, ११-१२-२०१६. स्थानीय भँवरताल उद्यान में विश्व वाणी हिंदी संस्थान जबलपुर तथा अभियान जबलपुर के तत्वावधान में नवलेखन संगोष्ठी के अंतर्गत मुख्य वक्ता वरिष्ठ लघुकथाकार श्री प्रदीप शशांक ने 'लघुकथा के उद्भव और विकास' विषय पर सारगर्भित वक्तव्य में लघु कथा को जीवन का दर्पण निरूपित किया. पुरातन बोध कथाओं, दृष्टांत कथाओं, जातक कथाओं आदि को आधुनिक लघुकथा का मूल निरूपित करते हुए वक्ता ने लघुकथा के मानकों, शिल्प, तत्वों तथा तकनीक कि जानकारी दी. आरम्भ में लघुकथा को स्वतंत्र विधा स्वीकार न किये जाने, चुटकुला कहे जाने और पूरक कहे जाने का उल्लेख करते हुए 'फिलर' से 'पिलर' के रूप में लघुकथा के विकास पर संतोष करते हुए शशांक जी ने यह अवसर उपलब्ध करने के लिए अपने ४ दशक पुराने सहरचनाकार साथ और इस अनुष्ठान के संयोजक आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' के अवदान को महत्वपूर्ण बताते हुए नवांकुर पल्लवित करने के इस प्रयास को महत्वपूर्ण माना.

श्रीमती मंजरी शर्मा कि अध्यक्षता में संपन्न कार्यक्रम में आचार्य संजीव 'सलिल' ने लघुकथा के विविध आयामों तथा तकनीक से संबंधित प्रश्नोत्तर के माध्यम से नव लघुकथाकारों की शंकाओं का समाधान करते हुए मार्गदर्शन किया. उन्होंने लघुकथा, कहानी और निबंध में अंतर, लघुकथा के अपरिहार्य तत्व, तत्वों के लक्षण तथा शैली और शिल्प आदि पर प्रकाश डाला.
डॉ. मीना तिवारी, श्रीमती मिथलेश बड़गैयां, श्रीमती मधु जैन, श्री बसंत शर्मा, श्री पवन जैन, श्री कामता तिवारी, संजीव 'सलिल', प्रदीप शशांक आदि ने काला धन, सद्भाव विषयों पर तथा अन्य लघुकथाओं वाचन किया. गोष्ठी का वैशिष्ट्य भोपाल से श्रीमती कांता रॉय तथा कानपूर से श्रीमती प्रेरणा गुप्ता द्वारा वाट्स एप के माध्यम से भेजी गयी लघुकथाओं का वाचन रहा. प्रेरणा जी की लघुकथा में हिंदी के देशज रूप मिर्जापुरी का रसास्वादन कर श्रोता आनंदित हुए. श्री सलिल ने समन्वय प्रकाशन अभियान द्वारा शीघ्र प्रकाश्य सामूहिक लघुकथा संकलन प्रकाशन योजना की जानकारी दी.
आभार प्रदर्शन मिथलेश जी ने किया. 
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सोमवार, 4 दिसंबर 2017

bundeli laghu katha

बुन्देली लघुकथाएँ

प्रदीप शशांक 
१. लालच 
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'काय ,सुनो तो जरा, हमका ऊ कलेंडर मा देखेके बतावा कुम्भ ,सोमवती अमावस्या ,कारतक पूरनिमा कौनो तारीख मा पड़ रई आय?'
गोपाल ने अपनी बीवी की ओर अचरज से देखत भये पूछी -- 'तुमको का करने है ई सब जानके ?' 
कछु नई हम सोचत हते कि कौनो ऐसे परब के नजदीक मा सासु मां को तीरथ के लाने भिजवाई दें , मांजी को तीरथ भी हो जायगो और भीड़-भाड़ की भगदड़ मा दब-दबाकर बुढ़िया मर जावे तो सरकार से हम औरन को मुआवजा में एक लाख रुपइया भी मिल जेहे और बुढ़िया से मुक्ति ।
गोपाल हतप्रभ हो अपनी बीवी की आँखन में लालच की चमक देखत रह गओ । 
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2--- जागरूकता 
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आदिवासी जिला के सरकारी अस्पताल में दो दना से औरतों को नसबन्दी शिविर चल रहो थो । ऊ शिविर में नसबन्दी करावे के काजे औरतन की बहुत भीड़ हती ।उ न में परिवार नियोजन के लाने बढ़ती जागरूकता से डागदर भी मन ही मन बहुत खुश हो रओ थो
उत्सुकतावश डाक्टर ने मजदूर औरत से नसबन्दी करावे को कारन पूछो तो बा बोली:अरे डागदर साब! कछु मत पूछो ,हम मजदूरी करवे जात है तो ठेकेदार परेशान करत है और फिर नों महीना तक ओको पाप हम औरन को भोगवे पड़त है । ई बीच मा मजदूरी भी नाही मिलत हती, सो हमें और हमरे बच्चों को भूखे मरवे की नोबत आ जात थी । ऐई से ई सब झंझट से मुक्ति पावे हम ओरें नसबन्दी करवा रए हैं । 
डॉक्टर उन की जागरूकता का रहस्य जानकर अवाक रह गए । 
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३. ठगी 
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" काय कलुआ के बापू, इत्ती देर किते लगाये दई? वा नेता लोगन की रैली तो तिनै बजे बिला गई हती ना? सौ रुपैया तो मिलइ गए हुइहें? " 
रमुआ कुछ देर उदास बैठा रहा फिर उसने बीवी से कहा -- " का बताएं इहां से तो बे लोग लारी में भरकर लेई गए थे और कई भी हती थी कि रैली खतम होत ही सौ-सौ रुपइया सबई को दे देहें ,मगर उन औरों ने हम सबई को ठग लऔ । मंत्री जी की रैली खतम होवे के बाद सबई को धता बता दओ । हम ओरें शहर से गांव तक निगत-निगत आ रए हैं । बा लारी में भी हम औरों को नई बैठाओ । बहुतै थक गए हैं । आज की मजूरी भी गई और कछु हाथे न लगो ,अब तो तुम बस एकइ लोटा भर पानी पिलाए देओ,ओई से पेट भर लेत हैं।" 
रमुआ की बीवी ऐसे ठगों को बेसाख्ता गाली बकती हुई अंदर पानी लेने चली गई ।
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४. आस का दीपक 
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" आए गए कलुआ के बापू! आज तो अपन का काम होइ गओ हुईए''  कहत भई बाहर निकरी  तो आदमी के मूँ पे छाई मुर्दनी देखतई  खुशी से खिला उसका चेहरा पीलो पड़ गओ । 
रघुवा ने उदास नजरों से अपनी बीवी को देखा और बोला- " इत्ते दिना से जबरनई तहसीलदार साहब के दफ्तर के चक्करवा लगाए रहे, आज तो ऊ ससुरवा ने हमका दुत्कार दियो और कहि कि तुमको मुआवजा की राशि मिल गई है ,ये देखो तुम्हारा अंगूठा लगा है इस कागज़ पर और लिखो है कि रघुवा ने २५०० रुपैया पा लए । " 
जिस दिन से बाबू ने आकर रघुवा से कागद में अंगूठा लगवाओ हतो और कही हती कि सरकार की तरफ से फसल को भये नुकसान को मुआवजा मिल हे , तभई से ओकी बीवी और बच्चे के मन में दिवाली मनावे हते एक आस का दीपक टिमटिमाने लगा था , लेकिन बाबुओं के खेल के कारण उन आंखों में जो आस का दीपक टिमटिमा रहा था वह जैसे दिए में तेल सूख जाने के कारण एकाएक ही बुझ गया । 

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