दिन भर कार्यालय में व्यस्त रहने के बाद थका-हारा घर पहुँचा तो पत्नी ने किराना न लाने का उलाहना दिया। उलटे पैर बाजार भागा, किराना लेकर लौटा तो बिटिया रानीशिकायत लेकर आ गई "मम्मी पिकनिक नहीं जाने दे रही।" जैसे-तैसे श्रीमती जी के मानकर अनुमति दिलवाई तो मुँह लटकाए बेटे ने बताया कोचिंग जाना है, फीस चाहिए। जेब खाली देख, अगले माह से जाने के लिए कहा और सोचने लगा कि धन कहाँ से जुटाए? माँ के खाँसना और पिता के कराहना की आवाज़ सुनकर उनसे हाल-चाल पूछा तो पता चला कि दवाई खत्म हो गई और शाम की चाय भी नहीं मिली। बिटिया को चाय बनाने के लिए कहकर बेटे को दवाई लाने भेजा ही था कि मोबाइल बजा। जीवनबीमा एजेंट ने बताया किस्त तुरंत न चुकाई तो पॉलिसी लैप्स हो जाएगी। एजेंट से शिक्षा ऋण पॉलिसी की बात कर कपड़े बदलने जा ही रहा था कि दृष्टि आलमारी में रखे, बचपन के खिलौनों पर पड़ी।
पल भर ठिठककर उन पर हाथ फेरा तो लगा खिलौने कह रहे हैं "तुम्हें ही जल्दी पड़ी थी बड़ा होने की, अब भुगतो। छोटे थे तो हम तुम्हारे हाथों के खिलौने थे, बड़े होकर तुम हो गए हो दूसरों के हाथों के खिलौने।
***
संपर्क: विश्व वाणी हिंदी संस्थान, 401 विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर 482001।
चलभाष़:7999559618, 9425183244
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दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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मंगलवार, 17 अप्रैल 2018
लघुकथा: आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
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शुक्रवार, 10 मई 2013
bundeli geet acharya sanjiv verma 'salil'
बुन्देली गीत
संसद बैठ बजावैं बंसी
संजीव
*
संसद बैठ बजावैं बंसी, नेता महानिगोरो.
कपरा पहिरे फिर भी नंगो, राजनीति को छोरो….
*
कुरसी निरख लार चुचुआवै, है लालच खों मारो.
खाद कोयला सक्कर चैनल, खेल बनाओ चारो.
आँख दिखायें परोसी, झूलै अम्बुआ डार हिंडोरो
संसद बैठ बजावैं बंसी, नेता महानिगोरो.....
*
सिस्ताचार बिसारो, भ्रिस्ताचार करै मतवारो.
कौआ-कज्जल भी सरमावै, मन खों ऐसो कारो.
परम प्रबीन स्वार्थ-साधन में, देसभक्ति से कोरो
संसद बैठ बजावैं बंसी, नेता महानिगोरो.....
*
बनो भिखारी बोट माँग खें, जनता खों बिसरा दओ.
फांस-फांस अफसर-सेठन खों, लूट-लूट गर्रा रओ.
भस्मासुर है भूख न मिटती, कूकुर सद्र्स चटोरो
संसद बैठ बजावैं बंसी, नेता महानिगोरो.....
*
चोर-चोर मौसेरे भैया, मठा-महेरी सांझी.
संगामित्ती कर चुनाव में, तरवारें हैं भांजी.
नूरा कुस्ती कर भरमावै, छलिया भौत छिछोरो
संसद बैठ बजावैं बंसी, नेता महानिगोरो.....
*
बोट काय दौं मैं कौनौ खों, सबके सब दल लुच्चे।
टिकस न दैबें सज्जन खों, लड़ते चुनाव बस लुच्चे.
ख़तम करो दल, रास्ट्रीय सरकार चुनो, मिल टेरो
संसद बैठ बजावैं बंसी नेता महानिगोरो.....
*
Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in
संसद बैठ बजावैं बंसी
संजीव
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संसद बैठ बजावैं बंसी, नेता महानिगोरो.
कपरा पहिरे फिर भी नंगो, राजनीति को छोरो….
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कुरसी निरख लार चुचुआवै, है लालच खों मारो.
खाद कोयला सक्कर चैनल, खेल बनाओ चारो.
आँख दिखायें परोसी, झूलै अम्बुआ डार हिंडोरो
संसद बैठ बजावैं बंसी, नेता महानिगोरो.....
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सिस्ताचार बिसारो, भ्रिस्ताचार करै मतवारो.
कौआ-कज्जल भी सरमावै, मन खों ऐसो कारो.
परम प्रबीन स्वार्थ-साधन में, देसभक्ति से कोरो
संसद बैठ बजावैं बंसी, नेता महानिगोरो.....
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बनो भिखारी बोट माँग खें, जनता खों बिसरा दओ.
फांस-फांस अफसर-सेठन खों, लूट-लूट गर्रा रओ.
भस्मासुर है भूख न मिटती, कूकुर सद्र्स चटोरो
संसद बैठ बजावैं बंसी, नेता महानिगोरो.....
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चोर-चोर मौसेरे भैया, मठा-महेरी सांझी.
संगामित्ती कर चुनाव में, तरवारें हैं भांजी.
नूरा कुस्ती कर भरमावै, छलिया भौत छिछोरो
संसद बैठ बजावैं बंसी, नेता महानिगोरो.....
*
बोट काय दौं मैं कौनौ खों, सबके सब दल लुच्चे।
टिकस न दैबें सज्जन खों, लड़ते चुनाव बस लुच्चे.
ख़तम करो दल, रास्ट्रीय सरकार चुनो, मिल टेरो
संसद बैठ बजावैं बंसी नेता महानिगोरो.....
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Sanjiv verma 'Salil'
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बुधवार, 22 अप्रैल 2009
रचना आमंत्रण : नमामि मातु भारती
साहित्य समाचार:भारतीय वांग्मय पीठ कोलकाता द्बारा नमामि मातु भारती २००९ हेतु रचना आमंत्रित
संपादक श्री श्यामलाल उपाध्याय तथा अतिथि संपादक आचार्य संजीव 'सलिल' के कुशल संपादन में शीघ्र प्रकाश्य
कोलकाता. विश्ववाणी हिन्दी के में श्रेष्ठ साहित्य सृजन की पक्षधर भारतीय वांग्मय पीठ कोलकाता द्वारा वश २००२ से हर साल एक स्तरीय सामूहिक काव्य संकलन का प्रकाशन किया जाता है. इस अव्यावसायिक योजना में सम्मिलित होने के लिए रचनाकारों से राष्ट्रीय भावधारा की प्रतिनिधि रचना आमंत्रित है. यह संकलन सहभागिता के आधार पर प्रकाशित किया जाता है. इस स्तरीय संकलन के संयोजक-संपादक श्री श्यामलाल उपाध्याय तथा अतिथि संपादक आचार्य संजीव 'सलिल', संपादक दिव्य नर्मदा हैं.
हर सहभागी से संक्षिप्त परिचय (नाम, जन्मतिथि, जन्मस्थान, आजीविका, संपर्क सूत्र, दूरभाष/चलभाष, ईमेल/चिटठा (ब्लोग) का पता, श्वेत-श्याम चित्र, नाम-पता लिखे २ पोस्ट कार्ड तथा अधिकतम २० पंक्तियों की राष्ट्रीय भावधारा प्रधान रचना २५०/- सहभागिता निधि सहित आमंत्रित है.
हर सहभागी को संकलन की २ प्रतियाँ निशुल्क भेंट की जायेंगी जिनका डाकव्यय पीठ वहन करेगी. हर सहभागी की प्रतिष्ठा में 'सारस्वत सम्मान पत्र' प्रेषित किया जायेगा. समस्त सामग्री दिव्य नर्मदा कार्यालय २०४ विजय अपार्टमेन्ट, नेपिअर टाऊन, जबलपुर ४८२००१ या भारतीय वांग्मय पीठ, लोकनाथ कुञ्ज १२७/ए/ ८ ज्योतिष राय मार्ग, नया अलीपुर, कोलकाता ७०००५३ के पते पर ३० मई तक प्रेषित करें.
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