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सोमवार, 26 अक्टूबर 2020

लक्ष्मी शर्मा

लक्ष्मी शर्मा का रचना संसार 
हिंदी 
उपन्यास 
१. काश्मीर का संताप २०१४ २००/- नमन प्रकाशन दिल्ली
२. आदिशक्ति श्रीसीता २०१४ ३५०/- अयन प्रकाशन दिल्ली 
३. अंतर्द्वंद २०१६ २५०/- अयन प्रकाशन दिल्ली
४. छू लो आसमान २०१७ १८०/- अयन प्रकाशन दिल्ली 

कहानी 
५. तीसरा कोना २००४  १२०/- नमन प्रकाशन दिल्ली 
६. गलियारे की धूप २००५ १५०/- नमन प्रकाशन दिल्ली
७. मन के चक्रवात २०१३ १५०/- नमन प्रकाशन दिल्ली 
८. सुलगते प्रश्न २०१६ २५०/- नमन प्रकाशन दिल्ली
९. होनहार बच्चे २०१५ १००/- एम. के. प्रकाशन, जबलपुर (बाल)
लघुकथा 
१०. मुखौटे  २०११ १३०/- अयन प्रकाशन दिल्ली 
कविता 
११. अंतस की सीपियों के मोती २००० पाथेय जबलपुर 
१२. मौन तोड़ो आज तुम २००७ १२५/- नमन प्रकाशन दिल्ली
१३. क्षितिज के पार २०११ १५०/- नमन प्रकाशन दिल्ली
१४. कन्या जन्म लेगी २०१२  १००/- एम. के. प्रकाशन, जबलपुर
१५. एक सूरज मेरे अंदर २०१४ नमन प्रकाशन दिल्ली
१६. बच्चे मन के सच्चे २०१४ १००/- एम. के. प्रकाशन, जबलपुर 
१७. औ बच्चों देश को जानें १००/- एम. के. प्रकाशन, जबलपुर
बाल नाटक 
१८. हम बच्चे हिन्दुस्तान के २०१५ १००/- एम. के. प्रकाशन, जबलपुर 
बुंदेली 
उपन्यास 
१९. भोर को उजयारो २०१८ २५०/- पाथेय 
कहानी 
२० मायाको बिसरत नइयाँ २०१६    २००/- एम. के. प्रकाशन, जबलपुर 
लघुकथा : 
२१. करेजे की पीर २०१८  १५०/- एम. के. प्रकाशन, जबलपुर 
२२. हिया हिलोरें लेत २०१९ २००/- एम. के. प्रकाशन, जबलपुर
गीत
२३. मेला घुमन निकरी गुइयाँ  २०१० १००/- लक्ष्मी प्रकाशन जबलपुर


सोमवार, 21 सितंबर 2020

पुरोवाक् : 'भाग ने बाँचे कोय' राम रचे सो होय

पुरोवाक् :
'भाग ने बाँचे कोय' राम रचे सो होय
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल
*
मुतके दिना की बात आय, जब मानुस सुनी आवाज की नकल करबे में सफल भओ। जा कदम मनुस्य को बाकी जीवों से भौत आगे लै गओ। सुनने-गुननें -कहनें की आदत नें आपस में मिल-जुल कें रहबे की सुरुआत कर दई। तबई घर-परिबार की नींव परी। बे औरें फालतू समय में गप्प मारत हते। एई सें 'गल्प' का बिकास भओ। कहबे की आदत, 'कहानी' बन के आज लौ चली आ रई। देखी-सुनी का दिलचस्प बरनन 'किस्सा' बन गओ। हमनें-आपनें लड़कपन में दादी-नानी सें कहानी सुनकें कित्तो आनंद पाओ, को कह सकत आय। सखा-सहेलन के संगे गप्पे मारन को मजा आज लौ सुमिरत आँय। 'गप्प' बेपर की उड़ान घाईं होत है, जीको उद्देश्य मन बहलाव आय। 'किस्सा' में तन्नक सचाई होत मनो गंभीर बात नईं कई जात। कहानी कहबे को उद्देस्य कछु गंभीर बात सामने राखबो होत आय। कथा में 'सीख' छिपी रैत। सामाजिक कथा, जातक कथा सें नीति-अनीति की समझ मिलत आय। आप औरन ने पंचतंत्र और हितोपदेश की कहानियाँ पढ़ी हुइहैं। अलीबाबा और चालीस चोर, सिंदबाद की कहानी को बिसर सकत आय? बुद्ध भगवान ने भौत से जीवों में अवतार लओ और दया का संदेस फैलाओ। 'जातक कथा' में जे सब बरनन करो गओ है। 'किस्सा-ए-लैला मजनू' आज लौ कहो-सुनो जात है।
हिंदी साहित्य के सयाने जनों में से एक आचार्य रामचंद्र शुक्ल कैत हैं- ''कहानियों का चलन सभ्य-असभ्य सभी जातियों में चला आ रहा है सब जगह उनका समावेश शिष्ट साहित्य के भीतर भी हुआ है। घटना प्रधान और मार्मिक उनके ये दो स्थूल भेद भी बहुत पुराने हैं और इनका मिश्रण भी।"१
महान कहानीकार प्रेमचंद कहानी कैत कि "कहानी में जीवन के किसी अंग या किसी मनोभाव को प्रदर्शित करना ही लेखक का उद्देश्य होता है।
बाबू श्याम सुन्दर दास के अनुसार कहानी "एक निश्चित लक्ष्य या प्रभाव को लेकर लिखा गया नाटकीय आख्यान है।"
अंग्रेज कहानीकार एडगर एलिन पो कैत कि कहानी "इतनी छोटी हो कि एक बैठक में पढ़ी जा सके और पाठक पर एक ही प्रभाव को उत्पन्न करने के लिए लिखी गई हो।"२ "कहानी साहित्य की विकास यात्रा में समय के साथ इसके स्वरूप, सिद्धांत, उद्देश्य एवं कलेवर में आया बदलाव ही जीवंतता का द्योतक है।"३
मशहूर कहानीकार मेहरुन्निसा परवेज़ के शब्दों में "कहानी मनुष्य के अंतर्मन की अभिव्यक्ति है, मनुष्य के जीवित रहने का सबूत है, उसके गूँगे दुःख, व्यथा, वेदना का दस्तावेज है।"४
स्वाति तिवारी के अनुसार "कहानी गपबाजी नहीं होती, वे विशुद्ध कला भी नहीं होतीं। वे किसी मन का वचन होती हैं, वे मनोविज्ञान होती हैं। जीवन है, उसकी जिजीविषा है, उसके बनते-बिगड़ते सपने हैं, संघर्ष हैं, कहानी इसी जीवन की शब्द यात्रा ही तो है, होनी भी चाहिए, क्योंकि जीवन सर्वोपरि है। जीवन में बदलाव है, विविधता है, अत: फार्मूलाबद्ध लेखन कहानी नहीं हो सकता।"५
बुंदेली में कओ जात 'जित्ते मूँ उत्ती बातें'। कहानी के बारे में जा कहाउत सौ टंच खरी आय। समय बदलत है तो, लोग, बिचार, भासा और सिल्प सोई नई सकल धर लेत हैं। सयाने लोग जो बात कहन चाउत ते, ओई के मुताबिक ताना-बाना बुनत जात ते। ऐंसी कहानी 'कथ्यप्रधान' कहानी कई जात। आजकल के कहानीकार सीधे-सीधे बात नईं कैते, बे औरें इतै-उतै की घटना जोड़ खें, पाठक को मन रमा खें आखर में कहानी को सार बतात हैं। इनें 'भावप्रधान कहानी' कओ जात। गए ज़माने के कहानीकार कछू सिखाबे-बताबे के लाने कहानी कैत रए, नए ज़माने के कहानीकार समाज में ब्याप्त बुराई, बिसंगति, दुःख-दर्द को सामने ला रए हैं।
बुंदेली में कहानी कहबे में कुसल डॉ. सुमनलता श्रीवास्तव ने कहानी संग्रह 'सरे राह' में औटो में इतै -उतै आत-जात समै जो देखो-सुनो, ओई के आधार पे मनभावन कहानी कै दई हैं।
एक अंग्रेज कहानीकार डब्ल्यू. एच. हडसन कैत कि 'कहानी में केवल एक केंद्रीय विचार होना चाहिए जिसे तार्किक परिणति तक पहुँचाया जाए।'६ हमें ऐसो लगत है कि कहानीकार कहानी में जीवन की एक या कुछ झलकियाँ दिखाबे की कोसिस करत हैं, जैसे फोटू खींचबेबारो 'स्नैपशॉट' लेत है और कहानी में कथा वस्तु, पात्र, संवाद, वातावरण, शैली और उद्देश्य जरूर रहो चाही।
सनातन सलिला नरमदा के किनारे संस्कारधानी जबलपुर में कहानी कहबेबारे दिग्गजों में एक नाम श्रीमती लक्ष्मी शर्मा है। लक्ष्मी जू कहानियों में आम आदमी का दुःख-दर्द ऐंसी सचाई से बतात हैं कि पाठक के मूँ से आह और आँखन सें आँसू निकल परें। बे एक कें बाद एक घटना को मकड़जाल ऐंसे बुनत चलत हैं कि पढ़बेवारो बिना रुके आखिर तक पढ़त जात है।
स्टीवेंसन कैत कि "कहानी के प्रारम्भ का वातावरण कुछ ऐसा होना चाहिए कि किसी सुनसान सड़क के किनारे सराय के कमरे में मोमबत्ती के धुंधले प्रकाश में कुछ लोग धीरे-धीरे बात कर रहे हों।" मतलब ये कि कहानीकार को शुरू में कहानी की घटनाओं के मुताबिक माहौल का बरनन करना चाहिए। लक्ष्मी शर्मा जू कहानियों में आम लोगों के दुःख-दर्द को ऐंसे कहती हैं मनो बे खुदई झेल रई होंय।
'भाग ने बाँचे कोय' में ग्यारा कहानियाँ सामिल हैं। 'विश्वासघात' में ठेकेदार मंगल सिंग, मजूर रामलखन को इलाज करबे का झाँसा देके ओकी किडनी निकरबा लेत है। 'बब्बा की बंडी' में पुराने ज़माने के सयाने बब्बा जी की हुसियारी के चटपटे किस्सों का बरनन है। 'पन्नाबारी भौजी' के बारे में इत्तोइ कहो जा सकत आय कि बे अपने अनाथ देवरन की अम्मा हतीं, जिननें देवरन की सब मुसीबतें अपने मूँड़ पे ले लीं, मनो देवरन को बालउ बाँका नें होन दौ। उनें पढ़ा-लिखा कें, अफसर बना कें ब्याव दौ मनो खुद पुरखों की ड्योढ़ी छोड़ कें आखर लौं नई गईं। कहानी 'गुरूदच्छना' में नायिका शोभा घरफोड़ू बहू आय जो सब जनों खों तितर-बितर कर अपनो स्वार्थ साधो चात। 'रामगढ़ की राजकुमारी' में जे संदेस छिपो है की मोंड़ी कौनउ बिध मोड़ों से कम नईं होत। राजकुमारी अपने पिता को बेटे की कमी अनुभव नईं होन देत और खुद आगे हो के सब काम-काज सम्हाल लेत हैं। 'भाग नें बाँचे कोय' एक दर्दभरी दास्तान है। कहाउत है कि ऊपरवाले का काम भी बिचित्र है जब दाँत देत है तो रोटी नई देत और जब रोटी देत है तो दाँत छीन लेत है। रिक्सा चला के पेट भरबेबारो लक्खू और ओकी घरबारी सुगना जिनगी भर खटत रए मनो पेट भर भोजन नई जुरो, धीरे-धीरे बाल-बच्चे और लक्खू चल बसे। अकेली सुगना खों दुकानबारे ने चिल्लर के बदले लाटरी को टिकिट जबरन पकड़ा दओ हतो, ओई पे बीस लाख रुपैया को ईनाम निकर आओ, जिननें दुःख के समै परछाईं ने दाबी, बेई जनें गुड़ सें चीटे जैसें चिपट परे और सबरे रुपैया तीन तेरा कर दए। 'बिट्टी' सबसे ज्यादा नोँनी कहानी है। बिट्टी गरीबी में पली हती मनो भौतई मेहनती हती। सबको काम-काज दौड़-दौड़ के करे, मनो पढ़ाई सोई करत रई। ओकी मेहनत और लगन रंग लाई। जैसे-जैसे मौका मिलो बा दौड़ने में मेहनत करत गई और पैले स्कूल फिर पंचायत, जिला, प्रदेस और आखिर में देस की दौड़ प्रतियोगिता में बिजय पाकें नाम कमाओ। 'बँटवारो' कहानी में दो कमरा के घर में बाल-बच्चों संगे रै रए तीन भैयन के मनमुटाव की कहानी है। सयाने प्रधान जी ऐंसी सूझ देत हैं कि साँप मरे मनो लाठी ने टूटे। 'मजूरों को देवता' जालसाज गाँव प्रधान के कुकर्मों का चिट्ठा है। ओका काम करत समय ट्रैक्टर पलट जाए से, मजूरन की मौत हो जात मनो बो पुलिस सें साँठ-गाँठ करके मजूरों को ठेंगा बता देत है। एक मजूर की बिधवा बिन्दो सहर में काम-काज करकें पेट भरत है। ओको एक बकील के घर में उनकी बूढ़ी माँ की सेवा-टहल को काम मिल जात है। उतै कुठरिया में रैके बो अपने मोंड़ा किसान को पढ़ात जात। बकील साब की मदद सें किसान सोई पढ़-लिख कें बकील बन जात है और फिर पुराना केस खुलबा के प्रधान को सजा और सब मजूरों को कोर्ट से मुआवजा दिलाउत है। 'देस खों समर्पित' सोई भौत अच्छी कहानी आय। रामरतन जू बेंच कें, मुतकी तकलीफें सहकेँ मोंडा रघुनंदन की पढ़ाई-लिखाई करात हैं। रघुनंदन सैना में भरती होके मेजर तक बन जात हैं। बो घर सुधरवाउत है, अपनी बहनों के ब्याव में मदद करत है, ब्याव के बाद एक मोंडा का पिता बनत है। नौकरी और परिबार दोनों को खूब खयाल राखत है मनो आतंकी हमले में सहीद हो जात है, ओकी मेहरारू सीमा पति आग देत समै संकल्प लेत है कि अपने मोंडा को सैना में भेज के पिता जैसो बनाहे। आखिरी कहानी 'बसेरे की ओर' कोरोना महामारी के मारे, रोजगार गँवा चुके मजूरों की करुण कथा है। घर लौटते समै केऊ मजूर रस्ते में मर-खाप गए, जो घर लौट पाए उनने 'जान बची तो लाखों पाए'।
इन कहानियन में बुंदेली भासा के मुहावरों गुड़ भरो हँसिया हो गओ, उगलत बने न लीलत बने, साँप मर जावे और लाठी ने टूटे, देहरी खूँदे खा रए, ठनठन गोपाल, दाँत काटी रोटी, पूत भये स्याने दरिद्दर गओ भ्याने, कोंड़ी ,के दाम, मूँड़ पटके, माटी के माधो, छाती पीटना आदि नें ने चार चाँद लगा दै हैं।
भासा और साहित्य समय के संगे न बदलें तो पाठक दूर होन लगत है। लक्ष्मी जू जे बात जानखें सब्द चुनने में उदार आँय। आपने कई एक अंग्रेजी शब्द अपार्टमेंट, किडनी, डॉक्टर, नर्स, फॉर्म, एक्सरे, सिस्टर, सिक्युरिटी, ट्रांसप्लांट, बटन, स्कूल, पार्टी, कैंसर, प्रेक्टिस,कलेक्टर, नंबर, सर्टिफिकेट, पाउच, मैट्रिक, फ्री, फुटबाल, हॉकी, एक्सीडेंट, लॉ, कॉलेज, लेफ्टिनेंट, ट्रेक्टर, इंटरनेट, मिलिट्री, ग्रेनेड, बॉर्डर, वार्ड बॉय, मास्क, कोरोना, फैक्ट्री, होटल, माल, कंपनी, पेट्रोल वगैरह को जथा-जोग्य प्रयोग करो है। इनखें संगे फ़ारसी से ख़ुशी, दस्तखत, शान, बुखार, अंदेशा वगैरह और अरबी से ख़ास, इन्तिजाम, खलीता, ख़तम, सिरफिरा वगैरह मिलबे में लक्ष्मी जो कौन कौनउ संकोच नई भओ।
लक्ष्मी जू नें कई एक सब्दों को रूप बुंदेली भासा के अनुसार बदल लौ है। ऐंसे कछू एक सब्द हैं - अपरेशन (ऑपरेशन), टेम (टाइम), फिकर (फ़िक्र), सिरकारी (सरकारी), जेबर (जेवर), डिजान (डिजाइन), हुशयार (होशियार), निस्फिकिर (निष्फिक्र), बोतल (बॉटल), परसिद्ध (प्रसिद्ध), फोटू (फोटो), मुस्कल (मुश्किल), खुदई (खुद ही), तारे-कुची (ताले-कुंजी), सुभाव (स्वभाव), पुलस (पोलिस), अफसर (ऑफिसर), बिंजन (व्यंजन), प्रिक्रिति (प्रकृति) आदि। सब्दन को ऐसो रूपांतरण सब के बस की बात नईंआ। एके काजे कइएक भासाओं के सब्दन कें मतलब समज के अपनी भासा में बदलने पड़त है।
लक्ष्मी जू नें अपनी भासा सैली बनात समै प्रबाह लाबे के काजे जोरी बारे सब्दन को खूब परयोग करो है। जैसें चीज-बखत, गाजे-बाजे, जोर-शोर, नियम कायदे, मान-सम्मान, नाचत-गाउत, चिंता-फिकिर, किरिया-करम, शिक्षा-दीक्षा, राज- काज,जानते-समझते, लड़ाई-झगड़ा, माता- पिता, राजा-रानी, देखत-समझत, ठीक-ठाक, साँठ-गाँठ, गरीब-गुरबा, लग्गा-तग्गा, खाबे-पियाबे, दवा-दारू, रोवा-पीटी, पढ़-लिख, तारो-कुची, तड़क-भड़क, ,हँसी-ठिठोली, हँसी-मजाक, समझौअल-बुझौअल, दादी-बब्बा, साफ़- सफाई,काम-काज, दौड़-धूप, हक्के-बक्के, रूप-सरूप, हाल-चाल, रीत-रिवाज, हँसी-खुसी, मोड़ा-मोंड़ी, खेलत-खात, देख-रेख, घर-द्वार, काम-काज, पुरा-परोस, खाबो-पीबो, नाचबो-गाबो, छोटी-मोटी, गुजर-बसर, पालबो-पोसबो, फरें-फूरें, हाथ-पाँव, आउत-जात, पालने-पोसने, पोता-पोती, पढ़ाबो-लिखाबो, जूता-चप्पल, यार-दोस्त, सोच-समझ, देख-परख, गाँव-गँवई, पढ़ी-लिखी, खुर-फुसुर, नास्ता-पानी, चाय-पानी, खोज-खबर, छोटी-मोटी, देख-रेख, पुरा-परोस, साज-सज्जा, लाड-प्यार, पूजा-पाठ वगैरह।
बुंदेली में केई बेर एकई सब्द को दो बेर प्रयोग होत है। इन कहानियन में सब्दन दुहराव के सोई मुतके उदाहरण सकत हैं। कछु एक जे आंय- कहूँ-कहूँ, अच्छे-अच्छे, कँभउँ-कँभउँ, बैठे-बैठे, बातें- बातें,चालत-चालत, जुग-जुग, जगा-जगा, बीच-बीच, पाई-पाई, ढूँढत-ढूँढत, धीरे-धीरे, सूनो-सूनो, पाई-पाई, फर्र-फर्र, ,बकर-बकर वगैरह।
लक्ष्मी शर्मा जू ने इन कहानियन में सरल-सहज, रोजमर्रा की भासा का प्रयोग करो है। बुंदेली लोग तो इनको मजा ले सकहें, मनो बुंदेली नें जाननेबारे सोई इनकों आसानी सें समझ सकत हैं। बुंदेली को रूप जगै-जगै बदलत जात है। ऐइसें सुद्ध भासा के नाम पे नासमझ भलई नाक-भौं सिकोरें आम पाठक जिनके काजे जे कहानियाँ लिखी गईं हैं, इनखों पसंद करहे।
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संदर्भ: १. हिंदी साहित्य का इतिहास- रामचंद्र शुक्ल, २. आलोचना शास्त्र मोहन वल्लभ पंत, ३. समाधान डॉ. सुशीला कपूर, ४. अंतर संवाद रजनी सक्सेना, ५.मेरी प्रिय कथाएँ स्वाति तिवारी, ६. एन इंट्रोडक्शन टू द स्टडी ऑफ़ लिटरेचर, ७. कहानी का रचना विधान जगन्नाथ प्रसाद शर्मा, ८ समकालीन हिंदी कहानी संपादक डॉ. प्रकाश आतुर में कृष्ण कुमार ।
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संपर्क : आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल', संचालक विश्ववाणी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट नेपियर टाउन जबलपुर ४८२००१।
चलभाष ९४२५१८३२४४, ईमेल salil.sanjiv@gmail.com ।