कुल पेज दृश्य

भारत-पाक लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
भारत-पाक लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

गुरुवार, 29 सितंबर 2016

navgeet

नवगीत 
*
'सौ सुनार की' भेंट तुम्हारी  
'एक लुहार की' भेंट हमारी 
*
'जैसे को तैसा'
लो यार!
नगद रहे, 
क्यों रखें उधार?
एक वार से 
बंटाढार। 
अब रिश्तों में 
करो सुधार।  
नफरत छोड़ो, 
लो-दो प्यार। 
हार रहे बिन खेले पारी 
करे न राख एक चिंगारी  
*
'गधा शेर की
पाकर  खाल। 
भूल गया खुद 
अपनी चाल। 
ढेंचू-ढेंचू 
रेंक निहाल। 
पड़े लट्ठ 
तो हुआ निढाल। 
कसम खाई 
दे छोड़ बवाल। 
अपनी गलती तुरत सुधारी 
तभी बची जां, दहशतधारी  
*
'तीस मार खां'
हो तुम माना। 
लेकिन तुमने 
हमें न जाना।   
गर्दभ सुर में 
गाते गाना। 
हमें सुहाता 
ढोल बजाना। 
नहीं मिलेगा 
कहीं ठिकाना। 
बन सकती जो बात बिगारी 
जान बचे, आ शरण हमारी 
*
३०-९-२०१६

शनिवार, 13 फ़रवरी 2016

laghukatha

लघुकथा- 
निरुत्तर 
*
मेरा जूता है जापानी, और पतलून इंग्लिस्तानी 
सर पर लाल टोपी रूसी, फिर भी दिल है हिंदुस्तानी 

पीढ़ियाँ गुजर गयीं जापान, इंग्लॅण्ड और रूस की प्रशंसा करते इस गीत को गाते सुनते, आज भी  उपयोग की वस्तुओं पर जापान, ब्रिटेन, इंग्लैण्ड, चीन आदि देशों के ध्वज बने रहते हैं उनके प्रयोग पर किसी प्रकार की आपत्ति किसी को नहीं होती। ये देश हमसे पूरी तरह भिन्न हैं, इंग्लैण्ड ने तो हमको गुलाम भी बना लिया था। लेकिन अपने आसपास के ऐसे देश जो कल तक हमारा ही हिस्सा थे, उनका झंडा फहराने या उनकी जय बोलने पर आपत्ति क्यों उठाई जाती है? पूछा एक शिष्य ने, गुरु जी थे निरुत्तर।
***