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शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2020

तकनीकी आलेख कागनेटिव रेडियो प्रो. शोभित वर्मा

तकनीकी आलेख
कागनेटिव रेडियो
प्रो.  शोभित वर्मा
विभागाध्यक्ष इल्क्ट्रॉनिक्स  व टेलीकम्युनकेशन 

तक्षशिला इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंजिनीरिंग एन्ड टेक्नोलॉजी जबलपुर 

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आज के इस आधुनिक युग में दूरसंचार के उपकरणों का उपयोग बढ़ता ही जा रहा है। इन उपकरणों के द्वारा सूचना को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचाने के लिये बेतार (वायरलैस) माध्यमों द्वारा उपयोग किया जाता है। कई विकसित तकनीकें जैसे वाय-फाय, बलूटूथ आदि इस क्षेत्र में उपयोग की जा रही हैं। इन सभी वायरलैस तकनीकों को साथ में उपयोग में लाने के कारण स्पेकट्रम की अनुपलब्धता एक बड़ी समस्या का रूप लेती जा रही है। वास्तव में स्पेक्ट्रम को लाइसेंस्ड उपयोगकर्ता ही उपयोग करता है। यह सुनिश्चित किया जाता है कि स्पेक्ट्रम का उपयोग केवल लाइसेंस्ड उपयोगकर्ता ही कर सके। इस कारण स्पेकट्रम का एक बहुत बड़ा हिस्सा अनुपयोगी ही रह जाता है। स्पेक्ट्रम का आवंटन सरकार की नीतियों के अनुसार किया जाता है।  इस समस्या के निराकरण हेतु सन १९९९  में जे. मितोला ने कागनेटिव रेडियो का सिंद्धात प्रस्तुत किया।


कागनेटिव रेडियो सिंद्धात के अनुसार जब भी लाइसेंस्ड उपयोगकर्तो स्पेकट्रम का उपयोग न कर रहा हो तब अनलाइसेंस्ड उपभोक्र्ता उस  स्पेक्ट्रम का उपयोग कर सकता है और जैसे ही लाइसेंस्ड उपयोगकर्ता की वापसी होगी, अनलाइसेंस्ड उपयोगकर्ता किसी दूसरे खाली स्पेक्ट्रम की सहायता से अपना कार्य करने लगेगा। यह प्रक्रिया इस तरह चलती रहेगी जब तक सूचना का आदान-प्रदान नहीं हो जाता।
कागनेटिव रेडियो के बहुत से आयाम हैं जैसे कि स्पेक्ट्रम सेंसिग, स्पेक्ट्रम शेयरिंग, स्पेक्ट्रम मोबीलिटी आदि । हर आयाम अपने आप में शोध का विषय है। कागनेटिव रेडियो पर बहुत से शोध कार्य राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हो रहे हैं । अभी भी इस तकनीक को जमीनी स्तर पर लागू कर पाने में बहुत सी समस्याओं का सामाना करना पड़ रहा है। प्रयास यह भी हो रहे है कि कागनेटिव वायरलैस सेंसर नेटवर्क का विकास किया जाये ताकि वायरलैस संचार के क्षेत्र में प्रगति की जा सके। प्रयास है युवा अभियंताओं में इस विषय पर रूचि जगाने का ताकि वह आगे चल कर इस तकनीक को और विकसित करने हेतु प्रयास कर सकें ।
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