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रविवार, 17 दिसंबर 2017

bal dohe

बाल दोहे:
*
आर्युश को अच्छा लगा, गौरैया का साथ
गया पकड़ने उड़ गई, फुर्र न आई हाथ
*
तितली बैठी फूल पर, आर्यन खींचे चित्र
पेन्सिल से रंग भर रहा, देख सराहें मित्र
*
पापा अँगुली पकड़कर, ले जाते बाज़ार
नदी गोमती घुमाकर, आ पढ़ते अखबार
*
मम्मी चुम्मी ले कहे, लड़ो न, रहना एक
पाठ आज का आज ही, याद करो बन नेक
*
आर्युष-आर्यन खेलते, हैं पढ़ने के बाद
कक्षा में आते प्रथम, पाठ सभी कर याद
*

गुरुवार, 10 नवंबर 2016

doha , muktak

दोहा दुनिया 
दिन-दिन बेहतर हो सृजन, धीरज है अनिवार्य
सधते-सधते ही सधें, जीवन में सब कार्य *
तन मिथिला मिथलेश मन, बिंब सिया सुकुमार राम कथ्य संजीव हो, भाव करे भाव-पार *
काव्य-कामिनी-कांति को, कवि निरखे हो मुग्ध
श्यामल दिलवाले भ्रमर, हुए द्वेष से दग्ध 
*
कमी न हो यदि शब्द की, तो भी खर्चें सोच 
दृढ़ता का मतलब नहीं, गँवा दीजिए लोच 
*
शब्द-शब्द में निहित हो, शुभ-सार्थक संदेश


मुक्तक 
*
जय शारदा मनाऊँ आपको?
छंद-प्रसाद चढ़ाऊँ आपको 
करूँ कल्पना, मिले प्रेरणा 
नयनारती सुनाऊँ आपको।।

*
बाल मुक्तक
जगा रही आ सुबह चिरैया
फुदक-फुदक कर ता-ता-थैया
नहला, करा कलेवा भेजे 
सदा समय पर शाला मैया
*
मुक्तक 
मुक्त हुआ मन बंधन  तजकर मुक्त हुआ 
युक्त हुआ मन छंदों से संयुक्त हुआ 
दूर-दूर तन रहे, न देखा नयनों ने 
धन्य हुआ मैं हिंदी हेतु प्रयुक्त हुआ 
*
सपने में भी फेसबुक दिखती सारी रात 
चलो, कार्य शाला चलो नाहक करो न बात 
इसको मुक्तक सीखना, उसे पूछना छंद 
मात्रा गिनते जागकर ज्यों निशिचर की जात
*
षट्पदी 
*
नत मस्तक है है हर कवि लेता बिम्ब उधार 
बिना कल्पना कब हुआ कवियों का उद्धार?
कवियों का उद्धार, कल्पना पार लगाती 
जिससे हो नाराज उसे ठेंगा दिखलाती
रहे 'सलिल' पर सदय, तभी कविता दे दस्तक
धन्य कल्पना होता है हर कवि नतमस्तक
*

मंगलवार, 24 मई 2016

doha

दोहा सलिला 

लहर-लहर लहर रहे, नागिन जैसे केश। 
कटि-नितम्ब से होड़ ले, थकित न होते लेश।।
*
वक्र भृकुटि ने कर दिए, खड़े भीत के केश।
नयन मिलाये रह सके, साहस रहा न शेष।।
*
मनुज-भाल पर स्वेद सम, केश सजाये फूल।
लट षोडशी कुमारिका, रूप निहारे फूल।।
*
मदिर मोगरा गंध पा, केश हुए मगरूर।
जुड़े ने मर्याद में, बाँधा झपट हुज़ूर।।
*
केश-प्रभा ने जब किया, अनुपम रूप-सिंगार।
कैद केश-कारा हुए, विनत सजन बलिहार।।
*
पलक झपक अलसा रही, बिखर गये हैं केश।
रजनी-गाथा अनकही, कहतीं लटें हमेश।।
*
केश-पाश में जो बँधा, उसे न भाती मुक्ति।
केशवती को पा सकें, अधर खोजते युक्ति।।
*
'सलिल' बाल बाँका न हो, रोज गूँथिये बाल।
किन्तु निकालें मत कभी, आप बाल की खाल।।
*
बाल खड़े हो जाएँ तो, झुका लीजिए शीश।
रुष्ट रूप से भीत ही, रहते भूप-मनीष।।
***
२४-५०२०१६

गुरुवार, 18 जून 2015

dohe: sanjiv

दोहा के रंग बाल के संग 
संजीव  
*
बाल-बाल जब भी बचें, कहें देव! आभार 
बाल न बांका हो कभी कृपा करें सरकार 
बाल खड़े हों जब कभी, प्रभु सुमिरें मनमीत 
साहस कर उठ हों खड़े, भय पर पायें जीत 
नहीं धूप में किये हैं, हमने बाल सफेद
जी चाहा जीभर लिखा, किया न किंचित खेद 
सुलझा काढ़ो ऊँछ लो, पटियां पारो खूब 
गूंथौ गजरा बाल में, प्रिय हेरे रस-डूब 
बाल न बढ़ते तनिक भी, बाल चिढ़ाते खूब 
तू न तरीका बताती, जाऊँ नदी में डूब 
*
बाल होलिका-ज्वाल में, बाल भूनते साथ 
दीप बाल, कर आरती, नवा रहे हैं माथ 
बाल मुँड़ाने से अगर, मिटता मोह-विकार 
हो जाती हर भेद तब, भवसागर के पार
बाल और कपि एक से, बाल-वृद्ध हैं एक 
वृद्ध और कपि एक क्यों, माने नहीं विवेक?
*
बाल बनाते जा रहे, काट-गिराकर बाल
सर्प यज्ञ पश्चात ज्यों, पड़े अनगिनत व्याल 
*
बाल बढ़ें लट-केश हों, मिल चोटी हों झूम
नागिन सम लहर रहे, बेला-वेणी चूम
*
अगर बाल हो तो 'सलिल', रहो नाक के बाल 
मूंछ-बाल बन तन रखो, हरदम उन्नत भाल 
*
भौंह-बाल तन चाप सम, नयन बाण दें मार
पल में बिंध दिल सूरमा, करे हार स्वीकार 
*
बाल पूंछ का हो रहा, नित्य दुखी हैरान 
धूल हटा, मक्खी भगा, थके-चुके हैरान 
*
बाल बराबर भी अगर, नैतिकता हो संग 
कर न सकेगा तब सबल, किसी निबल को तंग 
*
बाल भीगकर भीगते, कुंकुम कंचन देह 
कंगन-पायल मुग्ध लख, बिन मौसम का मेह 
*
गिरें खुद-ब-खुद तो नहीं, देते किंचित पीर 
नोचें-तोड़ें बाल तो, हों अधीर पा पीर 
*