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सोमवार, 9 दिसंबर 2024

दिसंबर ९, मुक्तक, बुंदेली, नव गीत, सॉनेट गीत, दोहा, सैनिक, कचनार, धन श्लोक

सलिल सृजन दिसंबर ९ 
*
कचनार 
बीज पर्ण जड़ छाल अरु, फूल फली निष्काम।
मानव को कचनार दे, सहता कष्ट तमाम।।
वास्तु सूत्र 
धन संचय 
        धन के दो अर्थ होते हैं, पहला योग या जोड़ना अर्थात संचय तथा दूसरा संपत्ति। अर्जित धन में से कम व्यय कार बचाए धन को संचित कर संपत्ति बनाई जाति है। इसीलिए धन-संपत्ति शब्द युग्म का प्रयोग संपन्नता हेतु किया जाता है। धन कई प्रकार का होता है। मुद्रा, जेवर, भूमि, विद्या, स्वास्थ्य, चरित्र आदि को प्रसंगानुसार धन कहा जा सकता है। अंग्रेजी उक्ति है- ''वेल्थ इस लॉस्ट नथिग इस लॉस्ट, हेल्थ इस लॉस्ट सम थिंग इस लॉस्ट, कैरेक्टर इस लॉस्ट एवरी थिंग इस लॉस्ट'' अर्थात धन खोया तो कुछ नहीं खोया, स्वास्थ्य खोया तो कुछ खोया, चरित्र खोया तो सब कुछ खोया।

        भारत में धन संबंधी धारणा निम्न श्लोकों में वर्णित हैं। इन्हें पढ़ें, समझें और परिस्थिति के अनुसार उपयोग में लाइए। व्यावहारिक धरातल पर धन-संचय, यथा समय समुचित उपयोग तथा भावी पीढ़ी के लिए छोड़ना सबका महत्व है। संचित धन की सुरक्षा और वृद्धि संबंधी वास्तु सूत्र अंत में दिए गए हैं।

अतितॄष्णा न कर्तव्या तॄष्णां नैव परित्यजेत्।
शनै: शनैश्च भोक्तव्यं स्वयं वित्तमुपार्जितम् ॥
        अत्यधिक तृष्णा (कामना) न करें, न पूरी तरह छोड़ दें। अपने श्रम से कमाए धन का उपभोग धीरे धीरे भोग करें।।

स हि भवति दरिद्रो यस्य तॄष्णा विशाला।
मनसि च परितुष्टे कोर्थवान् को दरिद्रा:॥
        वास्तव में दरिद्र वह है जिसकी कामनाएँ बड़ी हैं। जो मन से संतुष्ट है उसके लिए धनी या दरिद्र होना कोई अर्थ नहीं रखता। 

अर्थानाम् अर्जने दु:खम् अर्जितानां च रक्षणे।
आये दु:खं व्यये दु:खं धिग् अर्था: कष्टसंश्रया:॥
        पहले धन कमाने में कष्ट होता है, बाद में धन की रक्षा करने में भी कष्ट होता है। जिसधन की आय और व्यय दोनों  दुःख है,  ऐसे धन को धिक्कार है। 

वॄत्तं यत्नेन संरक्ष्येद् वित्तमेति च याति च।
अक्षीणो वित्तत: क्षीणो वृत्ततस्तु हतो हत:॥
        चरित्र की यत्नपूर्वक रक्षा करें, धन आता-जाता रहता है। धन-नाश से मनुष्य का नाश नहीं होता, चरित्र-नाश से जीवित मनुष्य भी मृत समान हो जाता है। 

नाम्भोधिरर्थितामेति सदाम्भोभिश्च पूर्यते।
आत्मा तु पात्रतां नेय: पात्रमायान्ति संपद:।।
        समुद्र कभी जल की इच्छा नहीं करता तब भी सदा जल से भर रहता है। खुद को पात्र बनाएँ सम्पति अपने आप मिलेगी।

गौरवं प्राप्यते दानात्,न तु वित्तस्य संचयात्। 
स्थिति: उच्चै: पयोदानां, पयोधीनां अध: स्थिति:॥

        दान से गौरव प्राप्त होता है, धन-संचय से नहीं।  जल देने वालेबादल ऊपर है जबकि जल-संचय करनेवाला समुद्र नीचे है। 

दातव्यं भोक्तव्यं धनं सञ्चयो न कर्तव्यः।
पश्येह मधुकरीणां सञ्चितार्थं हरन्त्यन्ये॥
        धन का दान अथवा उपभोग करें, धन-संचय न करें। मधु-मक्खी द्वारा मधु संचित मधु कोई और ही ले जाता है। 

सहसा विदधीत न क्रियाम् अविवेकः परमापदां पदम्।
वृणुते हि विमृश्यकारिणं गुणलुब्धाः स्वयमेव सम्पदः॥

        मन में एकाएक आए विचार को कार्यान्वित नहीं करना चाहिए। ऐसा बुद्धिहीन कार्य करनेवाला मुसीबत में पद जाता है।  धैर्य और विवेक से कार्य करें तो सद्गुण का संपत्ति स्वयं वरण करती है। 

दानं भोगो नाशस्तिस्रो गतयो भवन्ति वित्तस्य।
यो न ददाति न भुङ्क्ते तस्य तृतीयागतिर्भवति॥
        धन की तीन गतियाँ  दान, उपभोग तथा नाश हैं। धन का दान अथवा उपभोग न कर, संचय करने पर धन-नाश हो जाता है। 

सन्तोषामृततृप्तानां यत्सुखं शान्तचेतसाम्।
कुतस्तद्धनलुब्धानां एतश्चेतश्च धावताम्॥
        संतोष रूपी अमृत से तृप्त व्यक्ति सुखी और शांत रहता है। धन के पीछे भागनेवालों को सुख-शांति नहीं मिल सकती। 

अधमा: धनमिच्छन्ति धनं मानं च मध्यमा: ।
उत्तमा: मानमिच्छन्ति मानो हि महताम् धनम् ।।
        अधम मनुष्य केवल धन की कामना करते हैं, मध्यम कोटी के मनुष्य धन-मान दोनों चाहते हैं परन्तु उत्तम मनुष्य केवल मान चाहता है, महान व्यक्तिओ के लिए मान ही धन है।

यस्यास्ति वित्तं स वरः कुलिनः स पण्डितः स श्रुतवान् गुणज्ञः ।
स एव वक्ता स च दर्शनीयः सर्वे गुणाः काञ्चनं आश्रयन्ते ॥
        जिसके पास धन है उसे ही कुलीन, विद्वान, गुणी, विद्वान तथा सुंदर माना जाता है क्योंकि ये सभी गुण धन (स्वर्ण) द्वारा मिलते हैं।

वैद्यराज नमस्तुभ्यम् यमराज सहोदर: ।
यमस्तु हरति प्राणान् वैद्य: प्राणान् धनानि च ।।
        वैद्यराज (चिकित्सक) को प्रणाम है जो यमराज के भाई हैं। यम केवल प्राण हरते हैं किंतु वैद्य प्राण और धन दोनों हर लेता है ।

कॄपणेन समो दाता न भूतो न भविष्यति ।
अस्पॄशन्नेव वित्तानि य: परेभ्य: प्रयच्छति ।।
        कंजूस के समान दानवीर न हुआ, न होगा क्योंकि वह जीवन भर कमाया धन अन्यों के लिए छोड़ जाता है।

अर्था भवन्ति गच्छन्ति लभ्यते च पुन: पुन:।
पुन: कदापि नायाति गतं तु नवयौवनम्।।
        धन बार बार आता है, जाता है परंतु नवयौवन एक बार जाने के बाद दुबारा कभी नहीं आता।

परस्य पीडया लब्धं धर्मस्यौल्लंघेनेन च ।
आत्मावमानसंप्राप्तं न धनं तत् सुखाय वै।।
        दूसरों को दुख देकर, धर्म का उल्लंघन कर तथा अपमानित होकर कमाया हुआ धन कभी सुख नहीं देता।

नालसा: प्राप्नुवन्त्यर्थान न शठा न च मायिनः।
न च लोकरवाद्भीता यं न च शश्वत्प्रतीक्षिणः।।
        आलसी, शठ, लुटेरे, लोगों सेसे भयभीत रहनेवाले तथा अपने कर्तव्य का पालन न करनेवाले धनार्जन नहीं कर सकते। 

        उक्त श्लोकों  में कही गई बातें ठीक होते हुए भी पूरी तरह व्यवहार में नहीं लाई जा सकतीं। धन कमाने, उपयोग करने, बचाने, सुरक्षित रखने, दान देने तथा भावी पीढ़ी के लिए छोड़ने सबका महत्व है। वास्तु शास्त्र के अनुसार धन को सुरक्षित रखने तथा बढ़ाने के लिए सुझाए गए उपायों को पढ़-समझकर अपनि आवश्यकता व बुद्धि अनुसार प्रयोग करें। 

१. धन-संपत्ति लक्ष्मी माँ का प्रसाद है। इसका दुरुपयोग न करें। संचित धन व मूल्यवान रतन, गहने आदि ईशान अथवा पूर्व दिशा में रखें। हर सुबह लक्ष्मी जी का स्मरणकर संचित धन  
दोहा सलिला
करे रतजगा चंद्रमा, हो जाता तब पीत।
उषा रश्मियों से कहे, कभी न होना भीत।।
दिन करने दिनकर चला, साथ लिए आलोक।
नीलगगन रतनार लख, मुग्ध हो रहा लोक।।
९-१२-२०२२
जय जय जय कामाख्या माता।
सकर सृष्टि तेरी संतति है, सारा जग तेरे गुण गाता।
सत्य कहाँ-क्या समझ न आए, है असत्य माया फैलाए।
माटी से उपजी यह काया, माटी में वापिस मिल जाए।
भवसागर में फँसा हुआ मन, खुद ही खुद को है भरमाता।
जय जय जय कामाख्या माता।
जगत्पिता-जगजननी तारो, हर संकट हर हे हर! तारो।
सदा सुलभ हों दर्शन मैया!, हृदय विराजो मातु! उबारो।
सुख में तुम्हें भूलते, दुख में नाम तुम्हारा ही है भाता।
जय जय जय कामाख्या माता।
इस माटी में सलिल मिला दो, कूट-पीट कर दीप बना दो।
सफल साधना नव आशा हो, तुहिना- वृत्ति सदा अमला हो।
श्वास गीतिका मन्वन्तर तक, सदय शारदा हरि कमला हो।
चित्र गुप्त तव देख सकें मन, रहे हमेशा तुमको ध्याता।
जय जय जय कामाख्या माता।
संजीव
श्री कामाख्या धाम, गुवाहाटी
१५•०३, ६-१२-२०२२
●●●
गीत
नीलाभित नभ सिंदूरी हो गया किसी के नाम से।
सूर्य प्रणम्य प्रतीत हो रहे सुधिमय नम्र प्रणाम से।।
रश्मि रश्मि शाकुंतल सुषमा लिए सूर्य दुष्यंत सम।
नयन नयन से कहें-सुनें क्या; पूछो मौन दिगंत सम।।
पंछी गुंजाते शहनाई; लहरें गातीं मंगल गान-
वट पल्लव कर मंत्र-पाठ; आहुतियाँ देते संत सम।।
फुलबगिया में सँकुचाई सिय; अकथ कह गई राम से।
शाम मिली फिर मुग्धा राधा, हुलस पुलक घनश्याम से।
सूर्य प्रणम्य प्रतीत हो रहे सुधिमय नम्र प्रणाम से।
नीलाभित नभ सिंदूरी हो गया किसी के नाम से।।
ब्रह्मपुत्र नद किसको ध्याए, कल कल कल कर टेरता।
लहर लहर उत्कंठित पल पल, किसका पथ छिप हेरता।।
मेघदूत से यक्ष पठाता; व्यथा-कथा निज पाती में।
बैरागी मन को रागी चित; दसों दिशा से घेरता।।
उस अनाम को ही संबोधित; करते शत-शत नाम से।
वह आकुल मिलता है; खुद ही आकर निष्काम से।।
सूर्य प्रणम्य प्रतीत हो रहे सुधिमय नम्र प्रणाम से।
नीलाभित नभ सिंदूरी हो गया किसी के नाम से।।
किसे सुमिरता है युग युग से, लिए सुमिरनी गति-यति की।
व्यथा उमा-नंदा की कह-सुन; समय साक्ष्य दे जन-मति की।।
कहे गुवाहाटी शिव तनया गंगा से जा मिलो गले।
ब्रह्मपुत्र मंदाकिनी भेटें, लीला सरस समयपति की।।
नखत नवाशा जगा दमकते, खास बन गए आम से।
करतल ध्वनि कर मुदित शांत जन; लगते पूर्ण विराम से।।
सूर्य प्रणम्य प्रतीत हो रहे सुधिमय नम्र प्रणाम से।
नीलाभित नभ सिंदूरी हो गया किसी के नाम से।।
संजीव
६-१२-२०२२,७-५४
रॉयल डे कासा, गुवाहाटी
•••
सॉनेट - गीत
सैनिक
*
सैनिक कभी नहीं मरते हैं
*
जान हथेली पर ले जीते
चुनौतियों से टकराते हैं।
जैसे हों अपराजित चीते।।
देवोपम गरिमा पाते हैं।।
नित्य मौत से टकराते हैं।
जीते जी बनते उदाहरण।
मृत्युंजय बन जी जाते हैं।।
जूझ मौत का विहँस कर वरण।।
कीर्ति कथाएँ लोक सुनाता।
अपने दिल में करे प्रतिष्ठित।
उन्हें याद कर पुष्प चढ़ाता।।
श्रद्धा सुमन करे रो अर्पित।।
शत्रु नाम सुनकर डरते हैं।
सैनिक नहीं मरा करते हैं।।
*
सैनिक जिएँ तानकर सीना।
कठिन चुनौती हर स्वीकारें।
मार मौत को जानें जीना।।
नित आपद को अंगीकारें।।
अस्त्र-शस्त्र ले पग-पग बढ़ते।
ढाल थाम झट करते रक्षा।
लपक वक्ष पर अरि के चढ़ते।।
अरि माँगे प्राणों की भिक्षा।
हर बाधा से डटकर जूझें।
नहीं आपदाओं से डरते।
हर मुश्किल सवाल को बूझें।।
सदा देश का संकट हरते।।
होते अमर श्वास तजते हैं।
सैनिक नहीं मरा करते हैं।।
*
मत रोएँ संकल्प करें सब।
बच्चा-बच्चा बिपिन बनेगा।
मधूलिका हो हर बच्ची अब।।
हर मोर्चे पर समर ठनेगा।।
बने विरासत शौर्य-पराक्रम।
काम करें निष्काम भाव से।
याद करे दुश्मन बल-विक्रम।।
बच्चे सैनिक बनें चाव से।।
आँख आँख में डाल शत्रु की।
आँख निकाल लिया करते हैं।
जान बचाने देश-मित्र की।।
बाँह पसार दिया करते हैं।।
वीर-कथा गा कवि तरते हैं।
सैनिक नहीं मरा करते हैं।।
९-१२-२०२१
***
सूर्य चंद्र धरती गगन, रखें समन्वय खूब।
लोक तंत्र रख संतुलन, सके हर्ष में डूब।।
बोलिए भारत माँ की जय
*
सूर्य-लोक हैं केंद्र में, इन्हें साध्य लें मान।
शेष सहायक हो करें, दोनों का गुणगान।।
बोलिए भारत माँ की जय
*
चंद्र सदा रवि से ग्रहण, करता सतत उजास।
तंत्र लोक से शक्ति ले, करे लोक-हित खास।।
बोलिए भारत माँ की जय
*
धरती धरती धैर्य चुप, घूमे-चल दिन रैन।
कभी देशहित मत तजें, नहीं भिगोएँ नैन।।
बोलिए भारत माँ की जय
*
गगन बिन थके छाँह दे, कहीं न आदि न अंत।
काम करें निष्काम हम, जनहित में बन संत।।
बोलिए भारत माँ की जय
*
लोकतंत्र की शक्ति है, जनता शासक दास।
नेता-अफसर-सेठ झुक, जन को मानें खास।।
बोलिए भारत माँ की जय
***
९-१२-२०२१
नव गीत
*
भोर हुई
छाई अरुणाई
जगना तनिक न भला लगा।
*
छायद तरु
नर बना कुल्हाड़ी
खोद रहा अरमान-पहाड़ी
हुआ बस्तियों में जल-प्लावन
मनु! तूने ही बात बिगाड़ी।
अनगिन काटे जंगल तूने
अब तो पौधा नया लगा
भोर हुई
छाई अरुणाई
जगना तनिक न भला लगा
*
टेर; नहीं
गौरैया आती
पवन न गाती पुलक प्रभाती
धुआँ; धूल; कोलाहल बेहद
सौंप रहे जहरीली थाती
अय्याशी कचरे की जननी
नाता एक न नेह पगा
भोर हुई
छाई अरुणाई
जगना तनिक न भला लगा
*
रिश्तों की
रजाई थी दादी
बब्बा मोटी धूसर खादी
नाना-नानी खेत-तलैया
लगन-परिश्रम से की शादी
सुविधा; भोग-विलास मिले जब
संयम से तब किया दगा
भोर हुई
छाई अरुणाई
जगना तनिक न भला लगा
*
रखा काम से
काम काम ने
छोड़ दिया तब सिया-राम ने
रिश्ते रिसती झोपड़िया से
बेच-खरीदी करी दाम ने
नाम हुआ पद; नाम न कोई
संग रहा न हुआ सगा
भोर हुई
छाई अरुणाई
जगना तनिक न भला लगा
*
दोष तर्जनी
सबको देती
करती मोह-द्रोह की खेती
संयम; त्याग; योग अंगुलियाँ
कहें; न भूलो चिंतन खेती
भौंरा बना नचाती दुनिया
मन ने तन को 'सलिल' ठगा
भोर हुई
छाई अरुणाई
जगना तनिक न भला लगा
६-१०-२०१९
***
एक रचना
घुटना वंदन
*
घुटना वंदन कर सलिल, तभी रहे संजीव।
घुटने ने हड़ताल की, जीवित हो निर्जीव।।
जीवित हो निर्जीव, न बिस्तर से उठने दे।
गुड न रेस्ट; हो बैड, न चलने या झुकने दे।।
छौंक-बघारें छंद, न कवि जाए दम घुट ना।
घुटना वंदन करो, किसी पर रखो न घुटना।।
*
मेदांता अस्पताल दिल्ली में डॉ. यायावर के घुटना ऑपरेशन पर भेंट
९.१२.२०१८
***
मुक्तक
शिखर पर रहो सूर्य जैसे सदा तुम
हटा दो तिमिर, रौशनी दो जरा तुम
खुशी हो या गम देन है उस पिता की
जिसे चाहते हम, जिसे पूजते तुम
दोहा
पौधों, पत्तों, फूल को, निगल गया इंसान
मैं तितली निज पीर का, कैसे करूँ बखान?
*
करें वंदना शब्द की ले अक्षर के हार
सलिल-नाद सम छंद हो, जैसे मंत्रोच्चार
*
लोकतंत्र का हो रहा, भरी दुपहरी खून.
सद्भावों का निगलते, नेता भर्ता भून.
***
बुंदेली दोहा
सबखों कुरसी चाइए, बिन कुरसी जग सून.
राजनीति खा रई रे, आदर्सन खें भून.
*
मन में का? के से कहें? सुन हँस लैहें लोग.
मन की मन में ही धरी, नदी-नाव संजोग.
९-१२-२०१७
***
क्षणिका
*
बहुत सुनी औरों की
अब तो
मनमानी कुछ की जाए.
दुनिया ने परखा अब तक
अब दुनिया भी परखी जाए
*
मुक्तक
चोट खाते हैं जवांदिल, बचाते हैं और को
खुद न बदलें, बदलते हैं वे तरीके-तौर को
मर्द को कब दर्द होता, सर्द मौसम दिल गरम
आजमाते हैं हमेशा हालतों को, दौर को
***
कार्यशाला
छंद बहर दोउ एक है - ९
रगण यगण गुरु = २१२ १२२ २
सात वार्णिक उष्णिक जातीय, बारह मात्रिक आदित्य जातीय छंद
बहर- फाइलुं मुफाईलुं
*
मुक्तक
मेघ ने लुभाया है
मोर नाच-गाया है
जो सगा नहीं भाया
वह गया भुलाया है
*
मौन मौन होता है
शोर शोर बोटा है
साफ़-साफ़ बोले जो
जार-जार रोता है
*
राजनीति धंधा है
शीशहीन कंधा है
न्याय कौन कैसे दे?
क्यों प्रतीक अँधा है
*
सूर्य के उजाले हैं
सेठ के शिवाले हैं
काव्य के सभी प्रेमी
आदमी निराले हैं
*
आपने बिसरा है
या किया इशारा है?
होंठ तो नहीं बोला
नैन ने पुकारा है
*
कौन-कौन आएगा?
देश-राग गायेगा
शीश जो कटाएगा
कीर्ति खूब पायेगा
*
नवगीत
क्यों नहीं कभी देखा?
क्यों नहीं किया लेखा??
*
वायवी हुए रिश्ते
कागज़ी हुए नाते
गैर बैर पाले जो
वो रहे सदा भाते
संसदीय तूफां की
है नहीं रही रेखा?
क्यों नहीं कभी देखा?
क्यों नहीं किया लेखा??
*
लोकतंत्र पूछेगा
तंत्र क्यों दरिंदा है?
जिंदगी रही जीती
क्यों मरी न जिंदा है?
आनुशासिकी कीला
क्यों यहाँ नहीं मेखा?
क्यों नहीं कभी देखा?
क्यों नहीं किया लेखा??
*
क्यारियाँ कभी सींचें
बागबान ही भूले
फूल को किया रुस्वा
शूल को मिले झूले
मौसमी किए वादे
फायदा नहीं सदा पेखा
क्यों नहीं कभी देखा?
क्यों नहीं किया लेखा??
***
मेखा = ठोंका, पेखा = देखा
८-१२-२०१६
***
मुक्तक सलिला
*
नाग नाथ को बिदा किया तो साँप नाथ से भी बचना
दंश दिया उसने तो इसने भी सीखा केवल डँसना
दलदल दल का दल देता है जनमत को सत्ता पाकर-
लोक शक्ति नित रहे जागृत नहीं सजगता को तजना।
*
परिवर्तन की हवा बह रही इसे दिशा-गति उचित मिले
बने न अंधड़, कुसुम न जिसमें जन-आशा का 'सलिल' खिले।
मतदाता कर्तव्यों को अधिकारों पर दे वरीयता-
खुद भ्रष्टाचारी होकर नेता से कैसे करें गिले?
*
ममो सोनिया राहुल डूबे, हुई नमो की जय-जयकार
कमल संग अरविन्द न लेकिन हाल एक सा देखो यार
जनता ने दे दिया समर्थन पर न बना सकते सरकार-
कैसी जीत मिली दोनों को जिसमें प्रतिबिंबित है हार
*
वसुंधरा शिव रमन न भूलें आगे कठिन परीक्षा है
मँहगाई, कर-भार, रिश्वती चलन दे रहा शिक्षा है
दूर करो जन गण की पीड़ा, जन-प्रतिनिधि सुविधा छोडो-
मतदाता जैसा जीवन जी, सत्ता को जन से जोड़ो
८-१२-२०१३
*

शनिवार, 7 दिसंबर 2024

दिसंबर ७, भुजंगप्रयात, शुभगति, गंग, छवि, दोहा, रोला, सोरठा, छंद, लघुकथा, कुण्डलिया, कचनार,बसंत

सलिल सृजन ७ दिसंबर
० 
दोहा बसंत में 
रश्मि रूप पर मुग्ध हो, दिनकर नभ का भूप।
प्रणय याचना कर रहा, भू पर उतर अनूप।।
कनकाभित हरितिमा लख, नीलाभित नभ मौन।
रतिपति सी गति हो नहीं, सच समझाए कौन?
पर्ण-पर्ण पर छा रहा, नूतन प्रणय निखार।
कली-कली पर भ्रमर दल, है निसार दिल हार।।
वनश्री नव वधु सी सजी, करने पीले हाथ।
माँ वसुधा बेचैन है, उठा झुकाए माथ।।
कुड़माई करने चला, सूर्य धरा के संग।
रश्मि बलैया ले हँसी, बिखरे स्नेहिल रंग
७.१२.२०२४
०००
मौसम 
*
मौसम कहे न कोई मो सम।
रंग बदलता गिरगिट जैसे। 
पल में तोला, पल में माशा, 
कभी नरम है, कभी गरम है। 
इस पल करता पक्का वादा 
उस पल कह देता है जुमला। 
करता दगा चीन के जैसे, 
कभी पाक की माफिक हमला।
देश बांग्ला भटका-अटका  
खुद ने खुद को खुद ही पटका।
करे सियासत मौन-मुखर हो 
पक्ष-विपक्ष सरीखे उलझे। 
धरती हैरां, थका आसमां 
श्वान-पूँछ टेढ़ा का टेढ़ा। 
साथ न छोड़े जन्म सात तक 
अलस्सुबह से देर रात तक।   
कभी हँसाए; करे आँख नम
मौसम कहे न कोई मो सम। 
०००  
कचनार गाथा
सुंदर सुमन सुमन मन मोहे,
झूम रहा गाता मल्हार।
माह बारहों हैं बसंत सम,
शांत अशोक मौन कचनार।।
मीनाकारी कली लली की,
भर अंजलि में सरला देख।
प्रमुदित रेखा पर्ण पर्ण पर,
पवन पढ़े किस्मत का लेख।।
अनिल अनल भू सलिल गगन का,
मीत हमेशा कर संतोष।
हृदय बसाए सरला-शन्नो,
राजकुमार अस्मिता कोष।।
मदन मुग्ध सुंदर फूलों पर,
वसुधा तनुजा कर सिंगार।
कहें अर्जिता कीर्ति बढ़े नित,
पाओ-बाँटो प्यार अपार।।
७.१२.२०१९
०००
दोहा-दोहा चिकित्सा
*
खाँसी कफ टॉन्सिल अगर, करती हो हैरान।
कच्ची हल्दी चूसिए, सस्ता, सरल निदान।।
*
खाँस-खाँस मुँह हो रहा, अगर आपका लाल।
पान शहद अदरक मिला, चूसें करे कमाल।।
*
करिए गर्म अनार रस, पिएँ न खाँसें मीत।
चूसें काली मिर्च तो, खाँसी हो भय-भीत।।
*
दमा ब्रोन्कियल अस्थमा, करे अगर बेचैन।
सुबह पिएँ गो मूत्र नित, ताजा पाएँ चैन।।
*
पिसी दालचीनी मिला, शहद पीजिए मीत।
पानी गरम सहित घटे, दमा न रहिए भीत।।
*
ग्रस्त तपेदिक से अगर, पिएँ आप छह माह।
नित ताजा गोमूत्र तो, मिले स्वास्थ्य की राह।।
*
वात-पित्त-कफ दोष का, नीबू करता अंत।
शक्ति बढ़ाता बदन की, सेवन करिए कंत।।
*
ए बी सी त्रय विटामिन, लौह वसा कार्बोज।
फॉस्फोरस पोटेशियम, सेवन देता ओज।।
*
मैग्निशियम प्रोटीन सँग, सोडियम तांबा प्राप्य।
साथ मिले क्लोरीन भी, दे यौवन दुष्प्राप्य।।
*
नेत्र ज्योति की वृद्धि कर, करे अस्थि मजबूत।
कब्ज मिटा, खाया-पचा, दे सुख-ख़ुशी अकूत।।
*
जल-नीबू-रस नमक लें, सुबह-शाम यदि छान।
राहत दे गर्मियों में, फूँक जान में जान।।
*
नींबू-बीज न खाइए, करे बहुत नुकसान।
भोजन में मत निचोड़ें, बाद करें रस-पान।।
*
कब्ज अपच उल्टियों से, लेता शीघ्र उबार।
नीबू-सेंधा नमक सँग, अदरक है उपचार।।
*
नींबू अजवाइन शहद, चूना-जल लें साथ।
वमन-दस्त में लाभ हो, हँसें उठकर माथ।।
*
जी मिचलाए जब कभी, तनिक न हों बेहाल।
नीबू रस-पानी-शहद, आप पिएँ तत्काल।।
*
नींबू-रस सेंधा नमक, गंधक सोंठ समान।
मिली गोलियाँ चूसिए, सुबह-शाम गुणवान।
*
नींबू रस-पानी गरम, अम्ल पित्त कर दूर।
हरता उदर विकार हर, नियमित पिएँ हुज़ूर।।
*
आधा सीसी दर्द से, परेशान-बेचैन।
नींबू रस जा नाक में, देता पल में चैन।।
*
चार माह के गर्भ पर, करें शिकंजी पान।
दिल-धड़कन नियमित रहे, प्रसव बने आसान।।
*
कृष्णा तुलसी पात ले, पाँच- चबाएँ खूब।
नींबू-रस पी भगा दें, फ्लू को सुख में डूब।।
*
पिएँ शिकंजी, घाव पर, मलिए नींबू रीत।
लाभ एक्जिमा में मिले, चर्म नर्म हो मीत।।
*
कान दर्द हो कान में, नींबू-अदरक अर्क।
डाल साफ़ करिए मिले, शीघ्र आपको फर्क।।
*
नींबू-छिलका सुखाकर, पीस फर्श पर डाल।
दूर भगा दें तिलचटे, गंध करे खुशहाल।।
*
नीबू-छिलके जलाकर, गंधक दें यदि डाल।
खटमल सेना नष्ट हो, खुद ही खुद तत्काल।।
*
पीत संखिया लौंग संग, बड़ी इलायची कूट।
नींबू-रस मलहम लगा, करें कुष्ठ को हूट।।
*
नींबू-रस हल्दी मिला, उबटन मल कर स्नान।
नर्म मखमली त्वचा पा, करे रूपसी मान।।
*
मिला नारियल-तेल में, नींबू-रस नित आध।
मलें धूप में बदन पर, मिटे खाज की व्याध।।
*
खूनी दस्त अगर लगे, घोलें दूध-अफीम।
नींबू-रस सँग मिला पी, सोयें बिना हकीम।।
*
बवासीर खूनी दुखद, करें दुग्ध का पान।
नींबू-रस सँग-सँग पिएँ, बूँद-बूँद मतिमान।।
*
नींबू-रस जल मिला-पी, करें नित्य व्यायाम।
क्रमश: गठिया दूर हो, पाएँगे आराम।।
*
गला बैठ जाए- करें, पानी हल्का गर्म।
नींबू-अर्क नमक मिला, कुल्ला करना धर्म।।
*
लहसुन-नींबू रस मिला, सिर पर मल कर स्नान।
मुक्त जुओं से हो सकें, महिलायें अम्लान।।
*
नींबू-एरंड बीज सम, पीस चाटिए रात।
अधिक गर्भ संभावना, होती मानें बात।।
*
प्याज काट नीबू-नमक, डाल खाइए रोज।
गर्मी में हो ताजगी, बढ़े देह का ओज।।
*
काली मिर्च-नमक मिली, पियें शिकंजी आप।
मिट जाएँगी घमौरियाँ, लगे न गर्मी शाप।।
*
चेहरे पर नींबू मलें, फिर धो रखिए शांति।
दाग मिटें आभा बढ़े, अम्ल-विमल हो कांति।।
*
नमक आजवाइन मिला, नीबू रस के संग।
आधा कप पानी पिएँ, करती वायु न तंग।।
*
अदरक अजवाइन नमक, नीबू रस में डाल।
हो जाए जब लाल तब, खाकर हों खुशहाल।।
घटे पीलिया नित्य लें, गहरी-गहरी श्वास।
सुबह-शाम उद्यान में, अधरों पर रख हास।।
*
लहसुन अजवाइन मिला, लें सरसों का तेल।
गरम करें छानें मलें, जोड़-दर्द मत झेल।।
कान-दर्द खुजली करे, खाएँ कढ़ी न भात।
खारिश दाद न रह सके, मिले रोग को मात।।
*
डालें बकरी-दूध में, मिसरी तिल का चूर्ण।
रोग रक्त अतिसार हो, नष्ट शीघ्र ही पूर्ण।।
७.१२.२०१८
***
छंद सप्तक १.
*
शुभगति
कुछ तो कहो
चुप मत रहो
करवट बदल-
दुःख मत सहो
*
छवि
बन मनु महान
कर नित्य दान
तू हो न हीन-
निज यश बखान
*
गंग
मत भूल जाना
वादा निभाना
सीकर बहाना
गंगा नहाना
*
दोहा:
उषा गाल पर मल रहा, सूर्य विहँस सिंदूर।
कहे न तुझसे अधिक है, सुंदर कोई हूर।।
*
सोरठा
सलिल-धार में खूब,नृत्य करें रवि-रश्मियाँ।
जा प्राची में डूब, रवि ईर्ष्या से जल मरा।।
*
रोला
संसद में कानून, बना तोड़े खुद नेता।
पालन करे न आप, सीख औरों को देता।।
पाँच साल के बाद, माँगने मत जब आया।
आश्वासन दे दिया, न मत दे उसे छकाया।।
*
कुण्डलिया
बरसाने में श्याम ने, खूब जमाया रंग।
मैया चुप मुस्का रही, गोप-गोपियाँ तंग।।
गोप-गोपियाँ तंग, नहीं नटखट जब आता।
माखन-मिसरी नहीं, किसी को किंचित भाता।।
राधा पूछे "मजा, मिले क्या तरसाने में?"
उत्तर "तूने मजा, लिया था बरसाने में??"
*
एक दोहा
शिव नरेश देवेश भी, हैं उमेश दनुजेश.
सत-सुन्दर पर्याय हो, घर-घर पुजे हमेश.
***
कार्यशाला
यगण x ४ = यमाता x ४ = (१२२) x ४
बारह वार्णिक जगती जातीय भुजंगप्रयात छंद,
बीस मात्रिक महादैशिक जातीय छंद
बहर फऊलुं x ४
*
हमारा न होता, तुम्हारा न होता
नहीं बोझ होता, सहारा न होता
नहीं झूठ बोता, नहीं सत्य खोता-
कभी आदमी बेसहारा न होता
*
करों याद, भूलो न बातें हमारी
नहीं प्यार के दिन न रातें हमारी
कहीं भी रहो, याद आये हमेशा
मुलाकात पहली, बरातें हमारी
*
सदा ही उड़ेगी पताका हमारी
सदा भी सुनेगा जमाना हमारी
कभी भी न छोड़ा, कभी भी न छोड़ें
अदाएँ तुम्हारी, वफायें हमारी
*
कभी भी, कहीं भी सुनाओ तराना
हमीं याद में हों, नहीं भूल जाना
लिखो गीत-मुक्तक, कहो नज्म चाहे
बहाने बनाना, हमीं को सुनाना
*
प्रथाएँ भुलाते चले जा रहे हैं
अदाएँ भुनाते छले जा रहे हैं
न भूलें भुनाना,न छोड़ें सताना
नहीं आ रहे हैं, नहीं जा रहे हैं
७.१२.२०१६
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लघुकथा -
द़ेर है
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एक प्रकाशक महोदय को उनके द्वारा प्रकाशित पुस्तक विश्वविद्यालय में स्वीकृत होने पर बधाई दी तो उनहोंने बुझे मन से आभार व्यक्त किया। कारण पूछने पर पता चला कि विभागाध्यक्ष ने पाठ्यक्रम में लगवाने का लालच देकर छपवा ली, आधी प्रतियाँ खुद रख लीं। शेष प्रतियाँ अगले सत्र में विद्यार्थियों को बेची जाना थीं किन्तु विभागाध्यक्ष जुगाड़ फिट कर किसी अकादमी के अध्यक्ष बन गये। नये विभाध्यक्ष ने अन्य प्रकाशक की किताब पाठ्यक्रम में लगा दी।
अनेक साहित्यकार मित्र प्रकाशक जी द्वारा शोषण के कई प्रसंग बता चुके थे। आज उल्टा होता देख सोचा रहा हूँ देर है अंधेर नहीं।
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लघु कथाएँ -
मुट्ठी से रेत
*
आजकल बिटिया रोज शाम को सहेली के घर पढ़ाई करने का बहाना कर जाती है और सवेरे ही लौटती है। समय ठीक नहीं है, मना करती हूँ तो मानती नहीं। कल पड़ोसन को किसी लडके के साथ पार्क में घूमते दिखी थी।
यह तो होना ही है, जब मैंने आरम्भ में उसे रोक था तो तुम्हीं झगड़ने लगीं थीं कि मैं दकियानूस हूँ, अब लडकियों की आज़ादी का ज़माना है। अब क्या हुआ, आज़ाद करो और खुश रहो।
मुझे क्या मालूम था कि वह हाथ से बाहर निकल जाएगी, जल्दी कुछ करो।
दोनों बेटी के कमरे में गए तो मेज पर दिखी एक चिट्ठी जिसमें मनपसंद लडके के साथ घर छोड़ने की सूचना थी।
दोनों अवाक, मुठ्ठी से फिसल चुकी थी रेत।
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समरसता
*
भृत्यों, सफाईकर्मियों और चौकीदारों द्वारा वेतन वृद्धि की माँग मंत्रिमंडल ने आर्थिक संसाधनों के अभाव में ठुकरा दी।
कुछ दिनों बाद जनप्रतिनिधियों ने प्रशासनिक अधिकारियों की कार्य कुशलता की प्रशंसा कर अपने वेतन भत्ते कई गुना अधिक बढ़ा लिये।
अगली बैठक में अभियंताओं और प्राध्यापकों पर हो रहे व्यय को अनावश्यक मानते हुए सेवा निवृत्ति से रिक्त पदों पर नियुक्तियाँ न कर दैनिक वेतन के आधार पर कार्य कराने का निर्णय सर्व सम्मति से लिया गया और स्थापित हो गयी समरसता।
७.१२.२०१५
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गुरुवार, 5 दिसंबर 2024

कचनार

कचनार 

   
हाँगकाँग का राष्ट्रीय, फूल बना कचनार।
बवासीर खाँसी दमा, हरकर दे उपहार।।
         
            कचनार (काँचनार, कराली, बौहिनिया वेरिएगाटा) एक पर्णपाती वृक्ष है जिसमें विशिष्ट तितली के आकार के पत्ते और दिखावटी आर्किड जैसे फूल होते हैं। दक्षिण एशिया का मूल निवासी, यह वृक्ष १२ मीटर की ऊँचाई तक बढ़ता है, जिसमें फैला हुआ मुकुट और हरी-भूरी छाल होती है। इसके सफेद फ़ेद, पीले, लाल रंग के फूल, गुलाबी रंग की धारियों के साथ बेहद खूबसूरत दिखाई देते हैं। संस्कृत में कचनार शब्द का अर्थ है 'एक सुंदर चमकती हुई महिला', जो इस तरह के सुंदर वृक्ष के लिए एक उपयुक्त नाम है। इसे बगीचों और पार्कों में लगाया जाता है। फूलने पर इसका सौंदर्य देखने लायक होता है। दो-लोब वाली पत्तियों की विशेषता के कारण इस वृक्ष को इसका लैटिन नाम बौहिनिया मिला। इसकी पत्तियों के आकार के कारण इसे 'ऊँट के पैर का पेड़' भी कहा जाता है। कचनार मार्च-अप्रैल महीनों में फूलता है। मई-जून में  इसकी फलियों में बीज पकते हैं जिन्हें इकट्ठा कर नए पौधे पाए जा सकते हैं। कचनार के पौधे में हेनट्रीकॉन्टेन, ऑक्टाकोसानॉल, साइटोस्टेरॉल और स्टिगमास्टरोल जैसे फाइटोकोन्स्टिट्यूएंट्स होते हैं जो पौधे की एंटीएलर्जिक गुणों में सहायक होते हैं। कचनार की दो प्रजातियाँ होती हैं। एक में सफेद कलर की पुष्प कालिकाएँ आती हैं जबकि दूसरी पर  लाल रंग के फूल खिलते हैं। सर्दियों में यह पेड़ गुलाबी रंग के बहुत प्यारे प्यारे फूलों से लद जाता है। कचनार का पेड़ भारत, पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका, म्यांमार, थाईलैंड, चीन, वियतनाम, कंबोडिया, लाओस, और इंडोनेशिया आदि देशों में पाया जाता है। भारत में विशेष रूप से उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, और ओडिशा राज्यों में अधिक पाया जाता है। 

            कचनार एंटीऑक्सीडेंट, एंटी-हेल्मिंटिक, एस्ट्रिंजेंट, एंटी-लेप्रोटिक, एंटी-डायबिटिक, एंटी-हाइपरग्लाइसेमिक और एंटी-माइक्रोबियल है। यह रक्त शर्करा स्तर को नियंत्रित करने में मदद कर मधुमेह (डायबिटीज) को प्रभावी रूप से प्रबंधित करने में मदद करते हैं। यह क्षय रोग, खाँसी, कफ  में रामबाण औषधि का काम करता है। कचनार (बौहिनिया वेरिएगाटा) चयापचय में सुधार करस्टेम वजन घटाने में सहायक होता है। 'ग्रोथ हर्ब' के नाम से प्रसिद्ध कचनार घावों को ठीक कर नई कोशिकाओं के निर्माण को तेज करता है। आयुर्वेद के अनुसार कचनार-चूर्ण का गुनगुने पानी और शहद के साथ सेवन करें तो यह हाइपोथायरॉइड-प्रबंधन में मदद करता है। इस में त्रिदोष संतुलन और दीपन (क्षुधावर्धक) गुण होते हैं। अपने शीत और कसैले गुणों के कारण कचनार त्वचा की समस्याओं जैसे कि कील, मुँहासे आदि के इलाज में बहुत उपयोगी है। कचनार पौधे के यौगिक  शरीर में इंसुलिन तंत्र को नियंत्रित कर बढ़ते रक्त शर्करा का स्तर कम करते हैं। मुँह में छाले, मसूड़े में कीड़े सहित जख्म या दुर्गंध हो तो दिन में तीन बार कचनार के पेड़ की छाल का काढ़ा बनाकर, छान कर गरारे करने से राहत मिलती है।  कचनार की छाल को अच्छे से पीसकर बना चूर्ण रोज सुबह २ ग्राम पानी के साथ सेवन करने से पेट से संबंधित बीमारियों से भी राहत मिलती है। कचनार की पत्तियों का काढ़ा बनाकर पिएँ तो लिवर से संबंधित समस्याएँ, मधुमेह, रक्तचाप आदि नियंत्रित रहेगा। कचनार-चूर्ण शहद यागुनगुने पानी के साथ सेवन करें, तो उससे थायरायड का समाधान होता है। 

कचनार का उपयोग हाइपोथायरायडिज्म के उपचार में किया जाता है। एक क्लासिकल आयुर्वेदिक पॉलीहर्बल औषधि 'कचनार गुग्गुल'  हैत्वचा रोग, घाव, सूजन, पेचिश और अल्सर जैसी विभिन्न बीमारियों के इलाज में मदद करता है। यह फ्री रेडिकल्‍स से लड़ने में मदद करता है, इम्‍यूनिटी को बढ़ाता है,  एंटी-इंफ्लेमेटरी गुणों के कारण सूजन कम करता है। आयुर्वेद के अनुसार, जब शहद के साथ मिलाया जाता है तो यह त्वचा के लिए एक क्लींजिंग एजेंट के रूप में काम कर खुजली, मुँहासे (पिंपल्स) आदि समस्याओं से राहत देता है। इसके कसैले गुणों के कारण त्वचा पर इसका कूलिंग प्रभाव पड़ता है। कचनार गुग्गुल गोली (टैबलेट) का उपयोग थायरॉयड डिसऑर्डर, पीसीओएस, सिस्ट, कैंसर, लिपोमा, फाइब्रॉएड, बाहरी और आंतरिक वृद्धि, त्वचा रोग आदि के लिए किया जाता है। कचनार अपने कषाय (कसैला) और सीत (ठंडा) स्वभाव के कारण प्रभावित क्षेत्र पर लगाने से दाँत दर्द कम करने में मदद करता है। यह बैक्टीरिया के विकास को भी रोकता है जो दाँत दर्द और मुँह से दुर्गंध का कारण बनते हैं। कचनार की पत्तियों में अल्सर रोधी गुण होते हैं और ये लीवर, किडनी की रक्षा करने के साथ ही जीवाणुरोधी गुण भी रखती हैं। मलेरिया बुखार में सिरदर्द से राहत पाने के लिए भारतीय लोग कचनार-पत्तियों के काढ़े का इस्तेमाल करते हैं।
दक्षिण भारत, सिक्किम, बंगाल, बिहार और ओडिशा में इसकी पत्तियों का उपयोग पीलिया के इलाज तथा पेट में घाव और ट्यूमर को ठीक करने के लिए किया जाता है।

संस्कृति और परंपरा: कचनार प्रेम और पर्वोल्लास का पर्याय है। इसके फूलों का उपयोग पारंपरिक समारोहों और सजावट में किया जाता है। कला, साहित्य और धार्मिक प्रतीकवाद में इस पेड़ का सांस्कृतिक महत्व है। बच्चों को इसकी दो खंडीय पत्तियाँ बहुत रोचक लगती हैं और वे इसे अपने खेलों में पुस्तक के रूप में प्रयोग करते हैं। यह पौधा हिंदुओं के लिए पवित्र है, दशहरा पर इसकी पूजा की जाती है। कचनार के सफेद फूलों का उपयोग धन की देवी लक्ष्मी और ज्ञान की देवी सरस्वती की पूजा के लिए किया जाता है। इसकी पत्तियों में १०-१६ प्रतिशत प्रोटीन होने के कारण टहनियों और फलियों का उपयोग पशुओं के चारे के रूप में किया जाता है। हिमाचल प्रदेश के लोकगीतों में कचनार का स्थान महत्वपूर्ण और कालजयी है। 

कचनार के फूल को हांगकांग के झंडे और सिक्कों पर दर्शाया गया है।

पर्यावरणीय प्रभाव: यह पेड़ फलीदार परिवार से संबंधित है और राइजोबियम बैक्टीरिया के साथ सहजीवी संबंध में रहता है, जो वायुमंडलीय नाइट्रोजन को ठीक करने और मिट्टी की उर्वरता में सुधार करने में मदद करता है। आर्किड के पेड़ परागणकों के लिए उच्च मूल्य प्रदान करते हैं। लंबी पूँछ वाली स्किपर तितली के लिए मेजबान कचनार के फूल का रस अन्य तितलियों, मधुमक्खियों और पक्षियों सहित कई अन्य परागणकों को आकर्षित करता है। यह चिलाडेस पांडवा - प्लेन्स क्यूपिड के लिए लार्वा मेजबान पौधा है।

भोजन और पाककला में उपयोग : हल्के तीखे स्वाद के कचनार के फूल पारंपरिक व्यंजनों तथा सलाद, स्टर-फ्राई या अचार जैसे व्यंजनों में शामिल किए जाते हैं। झारखंड के आदिवासी समुदाय इस बहुउद्देशीय पेड़ के हर हिस्से का सेवन करते हैं। कचनार के फूल, फल और पत्ते खाने योग्य और पोषण का एक महत्वपूर्ण स्रोत होते हैं। भोजन के बारहमासी स्रोत पत्तियों को करी के रूप में, तलकर या उन्हें थोड़े से नमक के साथ उबालकर चावल के साथ खाया जा सकता है।
मुंडा जनजातीय समुदाय सूखी पत्तियों को कई तरीकों से पकाते हैं। वे इसे गर्म पानी में भिगोकर मिर्च, लहसुन या सूखी मछली या सूखे झींगे या बाँस के अंकुर के साथ चटनी बनाकर या पके हुए चावल के पानी में मसालों के साथ पकाकर भूनते हैं। पत्तियों के चूर्ण (पाउडर) को इडली और कचौरी में भी मिलाया जा सकता है। सूप, चीला और उत्तपम में भी ताज़ी पत्तियों को मिलाया है। इससे व्यंजनों का पोषण मूल्य बढ़ जाता है। उत्तर भारत और नेपाल में "कचनार की काली की सब्जी" बनाने के लिए नई कचनार कलियों का उपयोग किया जाता है। कचनार के फूल और कलियाँ कच्चे होने पर कड़वे लगते हैं। इसका उपयोग अचार में किया जाता है।

गुण - लघु (पचाने में हल्का), रूक्ष (सूखापन), रस (स्वाद) - कषाय (कसैला), विपाक (पाचन के बाद का प्रभाव) - कटु (तीखा), वीर्य - शीतल (शीत), प्रभाव (विशेष प्रभाव) - गंडमाला नशा - सर्वाइकल लिम्फैडेनाइटिस और सभी प्रकार की थायरॉयड जटिलताओं में उपयोगी। त्रिदोष पर प्रभाव - कफ और पित्त से राहत दिलाता है।सोफहारा - सूजन से राहत दिलाता है। स्वराहार - अस्थमा से राहत दिलाता है। रसायन - कायाकल्प। कृमिघ्न - कीड़ों के संक्रमण में उपयोगी। कंदुघ्न- खुजली से राहत दिलाता है।। विशघ्न - विषहरण में उपयोगी। वृनहारा - घावों में उपयोगी। कसहारा-खांसी से राहत दिलाता है। कचनार के एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण बवासीर के कारण होने वाली सूजन और दर्द को कम करने में मदद करते हैं। इससे मल का मार्ग आसान हो जाता है। कचनार की छाल शरीर में कफ दोष की समस्या को ठीक करने में मदद करती है। यह थायरॉयड से हार्मोन के स्तर के संतुलन में असंतुलन को ठीक करने में मदद करता है। ऐसा इसलिए क्‍योंकि कचनार शरीर से कफ को बाहर निकालने में मदद करती है। कचनार की छाल डाइजेस्टिव सिस्‍टम को बेहतर बनाने में मदद करती है, यह पेट की समस्याओं को दूर करती है। कचनार के कसैले गुणों का पाचन तंत्र पर ठंडा प्रभाव पड़ता है। कचनार कैंसर कोशिकाओं के विकास को धीमा कर देता है और इस प्रकार कैंसर को रोकता है। कचनार के अर्क में इंसुलिन जैसे केमिकल्‍स होते हैं जो शुगर लेवल को कम करने और कंट्रोल में लाने में मदद करते हैं। कचनार के फूल शरीर के अंदरुनी घाव को भरने में काफी कारगर होते हैं। कचनार के पेड़ की छाल का पाउडर मुंह में बैक्टीरिया और कीटाणुओं से लड़ने में मदद करता है। यह बैक्टीरिया को मारने और मुँह में पीएच संतुलन बहाल करने में बहुत प्रभावी है। यह मुँह को सांसों की दुर्गंध से प्राकृतिक रूप से मुक्त रखता है। कचनार के कड़वे फूल रक्त शोधक का काम करते हैं। यह महिलाओं के लिए बेहद फायदेमंद है क्योंकि यह पीरियड्स को कंट्रोल करने में मदद करता है। यह ब्‍लड को साफ करता है और इसलिए शरीर के अन्य आवश्यक अंग, जैसे लिवर को भी साफ करता है। कचनार के फूल खाँसी को ठीक करते हैं और अपने एंटी-बैक्टीरियल गुणों से श्वसन पथ को साफ करते हैं। इसकी कलियाँ व फूल सब्जी, पत्तियाँ  पशुओं के चारे के और लकड़ी ईंधन (जलावन) के रूप में प्रयोग होती है। तासीर ठंडी होने के कारण इसे सुखाकर गर्मी में सब्जी, अचार, पकौड़े बनाते हैं। कचनार की कली और फूल वात,रक्त पित, फोड़े, फुंसियों से निजात दिलाती हैं। पहाड़ी गीतों में भी है कराली (कचनार) को पिरोया गया है। १९९३ में बने हिंदी चलचित्र 'वक्त हमारा है' में अक्षय कुमार व आयशा जुल्का पर गीत 'कच्ची कली कचनार की तोड़ी नहीं जाती' का फिल्मांकन है। 

इस्तेमाल का तरीका
कचनार की छाल का चूर्ण ३-६  ग्राम,फूलों का रस १०-२० मिलीलीटर और छाल का काढ़ा ४०-८०  मिलीलीटर की मात्रा में प्रयोग किया जाता है। इसकी छाल का महीन पिसा-छना चूर्ण ३-६  ग्राम (आधा से एक चम्मच) ठंडे पानी के साथ सुबह-शाम लेना लाभकारी होता है। इसका काढ़ा बनाकर भी सुबह-शाम ४-४ चम्मच मात्रा में (ठंडा करके) एक चम्मच शहद मिलाकर लेना फायदेमंद होता है।
- सूजन: कचनार की जड़ को पानी में घिसकर बनाया लेप गर्म कर सूजन वाली जगह पर लगाए, जल्दी ही आराम मिलेगा।
- मुँह के छाले: कचनार की छाल के काढ़े में थोड़ा-सा कत्था मिलाकार लगाएँ  तुरंत आराम मिलता है और छाले जल्दी ठीक हो जाते हैं।
- बवासीर: कचनार की एक चम्मच छाल को एक कप मट्ठा (छाछ) के साथ दिन में ३ बार सेवन करने से बवासीर में खून गिरना बंद हो जाएगा। कचनार की कलियों के पाउडर को मक्खन और शक्कर मिलाकर ११ दिन खाने से पेट के कीड़े साफ हो जाते हैं।
- भूख न लगना: कचनार की फूल की कलियाँ घी में भूनकर सुबह-शाम खाएँ, भूख बढ़ जाएगी।
- वायु( गैस) विकार: कचनार की छाल का काढ़ा बनाकर, इसके २० मिलीलीटर काढ़े में आधा चम्मच पिसी अजवायन मिलाकर नियमित रूप से सुबह-शाम भोजन करने बाद पिएं,  पेट फूलने की समस्या और गैस की तकलीफ दूर होती है।
-खांसी-दमा : शहद के साथ कचनार की छाल का काढ़ा २ चम्मच, दिन में ३ बार सेवन करने से खाँसी और दमा में आराम मिलता है।
- दांतों का दर्द: कचनार के पेड़ की छाल जलाकर उसकी राख से सुबह एवं रात को खाना खाने के बाद मंजन करने से दाँत-दर्द तथा मसूढ़ों से खून निकलना बंद होता है। इसकी छाल को उबालने के बाद  ५०-५०  मिलीलीटर गर्म पसनी से रोजाना ३-४ बार कुल्ला करें, दांतों का हिलना, दर्द, खून निकलना, मसूढों की सूजन और पायरिया खत्म हो जाता है।
- कब्ज:  कचनार के फूलों को चीनी के साथ घोटकर शर्बत की तरह बनाकर सुबह-शाम पीने से कब्ज दूर होती है और पेट साफ रहता है। कचनार के फूलों का गुलकन्द रात में सोने से पहले २ चम्मच की मात्रा में कुछ दिनों तक सेवन करने से कब्ज दूर होती है।
- कैंसर: कचनार की छाल का काढ़ा बनाकर पीने से पेट का कैंसर ठीक होता है।
- दस्त:  कचनार की छाल का काढ़ा दिन में २ बार पीने से दस्त रोग में ठीक होता है। 
- पेशाब के साथ खून आना: कचनार के फूलों का काढ़ा बनाकर सुबह-शाम पीने से पेशाब में खून का आना बंद होता है। इसके सेवन से रक्त प्रदर एवं रक्तस्राव आदि भी ठीक होता है।
- बवासीर: कचनार की छाल का  ३ ग्राम चूर्णएक गिलास छाछ के साथ प्रति दिन सुबह-शाम पीने से बवासीर एवं खूनी बवासीर में लाभ मिलता है। कचनार का ५ ग्राम चूर्ण   प्रतिदिन सुबह पानी के साथ खाने से बवासीर ठीक होता है।
- खूनी दस्त: कचनार के फूल का काढ़ा सुबह-शाम पीने  से खूनी दस्त (रक्तातिसार) में जल्दी लाभ मिलता है।
- कुबड़ापन: पीठ के नीचे कचनार का फूल बिछाकर सुलाने से, लगभग १ ग्राम का चौथाई भाग कचनार और गुग्गुल को शहद के साथ मिलाकर सेवन करने व  कचनार का काढ़ा पीने से कुबड़ापन दूर होता है।  
- घाव: कचनार की छाल का काढ़ा बनाकर सुबह-शाम पीने से घाव ठीक होता है। इसके काढ़े से घाव को धोना भी चाहिए।
- स्तन-गाँठ: कचनार की छाल पीसकर बना चूर्ण आधे ग्राम की मात्रा में सौंठ और चावल के पानी (धोवन) के साथ मिलाकर पीने और स्तनों पर लेप करने से गाँठ ठीक होती है।
- थायराइड: कचनार के फूल थायराइड की सबसे अच्छी दवा हैं। लिवर में किसी भी तरह की तकलीफ हो तो कचनार की जड़ का काढ़ा पीना बेहद लाभकारी होता है।
ध्यान रखें- 
कचनार देर से हजम होती है और इसका सेवन करने से कब्ज हो सकता है। इसलिए जब तक कचनार का सेवन करें, तब तक पपीता खाएँ। 
*** 

डाक टिकटों के संसार में कचनार
 पूर्णिमा वर्मन


२०
०२ में हांगकांग चाइना ओपन के अवसर पर जारी एक टिकट पर कचनार


डाक टिकटों की दुनिया को सबसे अधिक रिझाते है फूल। फूल किसे अच्छे नहीं लगते और किस अवसर पर काम नहीं आतेजन्म से मृत्यु तक फूलों का महत्व हमारे जीवन में बना ही रहता है। राजनीति शास्त्र में भी फूलों की अच्छी पैठ है तभी तो हर देश का एक राष्ट्रीय फूल होता है। कचनार को हांगकांग का राष्ट्रीय फूल होने का गौरव प्राप्त है। शायद वह एक ऐसा अकेला फूल है जो किसी देश के झंडे का हिस्सा है। शोभाकर फूलों वाले वृक्षों में कचनार को विभिन्न देशों के डाक टिकटों में महत्वपूर्ण स्थान मिला है पर सबसे ज्यादा कचनार की तस्वीरों वाले डाक टिकट हांगकांग के ही हैं।

२५ सितंबर १९८५ को जारी एक डाक-टिकट के साथ बिलकुल वैसा ही प्रथम दिवस आवरण जारी किया गया। प्रथम दिवस आवरण को दाहिनी ओर के चित्र पर क्लिक कर के देखा जा सकता है। १.७० हांगकांग डॉलर वाले इस टिकट पर चीनी और अंग्रेज़ी में बुहेनिया लिखा गया है। यह बुहेनिया की ब्लैकियाना प्रजाति का पुष्प है। यह एक संकरित प्रजाति है अर्थात इसमें बीज या फल नहीं होते जिसके कारण नगर की सजावट के लिए इसका प्रयोग बहुत सुविधाजनक हो जाता है। बीज या फल न होने के कारण फूलों का समय लंबा होता है साथ ही सफ़ाई की आवश्यकता बीज और फल वाले पेड़ों की अपेक्षा बहुत कम होती है।

१४ मार्च २००८ को हांगकांग पुष्प प्रदर्शनी के अवसर पर उद्घाटन समारोह में देश में बहुलता से पाए जाने वाले ६ फूलों वाली एक डाक टिकट शृंखला को जारी किया। फूलों के ये चित्र पारंपरिक चीनी शैली में हाथ से बनाए गए थे जबकि इनकी पृष्ठभूमि को कंप्यूटर से बनाया गया था। इन फूलों में एक स्थान बुहेनिया ब्लैकियाना यानी कचनार को भी दिया गया था और ये एक सुंदर प्रथम दिवस कवर के साथ जारी किए गए थे। इनका मूल्य १.४० हांगकांग डॉलर रखा गया था। संग्रहकर्ताओं को आकर्षित करने के लिए इनके दो तीन प्रकाऱ के अलग अलग आकर्षक पैकिंग भी बनाए गए थे जिसमें स्मारिका पैक, मिनिएचर शीट और उपहार पैक भी शामिल थे। चित्र पर क्लिक करने से इस पूरी शृंखला को मिनियेचर शीट के साथ देखा जा सकता है।

टिकट इतिहास की अमूल्य धरोहर भी होते हैं। दाहिनी ओर दिखाए गए हांगकांग के टिकट पर ताज और महारानी एलिजबेथ की फ़ोटो हांगकांग पर ब्रिटिश अधिकार की याद दिला देते है। ६५ सेंट के इस टिकट में कचनार के स्केच के नीचे बुहेनिया ब्लैकियाना पढ़ा जा सकता है।

१९९७ में जब हांगकांग चीन को वापस किया गया तो उसकी याद में भी छे टिकटों के साथ एक प्रथम दिवस आवरण जारी किया गया। बाईं ओर दिया गया कचनार की फूलों वाला यह टिकट बड़े शीट पर नीचे की ओर बाएँ कोने में स्थित है। इस टिकट के साथ जारी किया गया पूरा सेट टिकट पर क्लिक कर के देखा जा सकता है।

२००७ में चीन के अधिकार में हांगकांग के १० वर्ष पूरे हुए। इस उपलक्ष्य में दसवीं जयंती के को मनाते हुए हांगकांग और चीन के प्रमुख चिह्नों और प्रतीकों को प्रदर्शित करने वाला यह टिकट जारी किया गया। यह टिकट हांगकांग और चीन ने एक साथ जारी किया था। इन पर लगाने जाने के लिए विशेष मोहरों का निर्माण भी किया गया था। चित्र में हांगकांग के लाल झंडे पर सफ़ेद कचनार का फूल देखा जा सकता है। १९ जून २००७ को जारी इस टिकट का मूल्य १.४० डॉलर था।

प्रशांत महासागर में चार द्वीपों का एक देश है जिसे पिटकर्न आईलैंड के नाम से जाना जाता है। पत्तियों पर चित्रकारी यहाँ का परंपरिक लोक हस्त शिल्प है। इस शिल्प में जिन पत्तों का प्रयोग किया जाता है उसमें कचनार की एक प्रजाति बुहेनिया मोनान्ड्रा प्रमुख है।


इस देश द्वारा १८ अगस्त २००३ को जारी किए गए, देश की लोक कला को समर्पित पाँच टिकटों के इस समूह में तीन ऐसे वृक्षों को चित्रित किया गया है जिनकी पत्तियाँ चित्रकारी के काम आती हैं। इनमें बाईं ओर कचनार के गुलाबी फूल और द्विदलीय पत्तियों से पहचाने जा सकते हैं। चित्र में इनमें पत्तियों के साफ़ करने और उन पर चित्रकारी करने की प्रक्रिया को दिखाया गया है जबकि टिकटों के साथ छपे हाशिए पर इसे विस्तार से लिखा भी गया है। (यह हाशिया यहाँ दिखाई नहीं दे रहा है।) टिकटों पर इस कला में दक्ष कुछ महिला कलाकारों को भी दिखाया गया है। १.५० डॉलर वाले टिकट पर बरनिस का चित्र है जिनका देहांत १९९३ में ९४ वर्ष की आयु में हुआ था और जो अपने अंतिम समय तक कलाकृतियाँ बनाती रहीं थीं। ३ डॉलर वाले टिकट पर उनकी बेटी कार्लो क्रिश्चियन हैं। कार्लो ने यह कला आपनी बेटी कैरोल और नातिनों डार्लिन और चार्लिन को सिखाई। ८० सेंट के टिकटों पर कैरोल तथा  सेंट के टिकट पर  डार्लिन और चार्लिन के चित्र हैं। 

कचनार पिटकर्न द्वीप की संस्कृति का अभिन्न अंग है। इसके पेड़ यहाँ बहुतायत से मिलते हैं। यहाँ उत्पन्न होने वाली एक और प्रजाति बुहेनिया वेरियागाटा का तना मज़बूत होता है, घनी शाखाएँ फूल और पत्तियों को इस प्रकार सहारा देती हैं कि यह एक सुंदर छायादार वृक्ष दिखाई देता है। १९८३ में इस देश  के डाक विभाग ने अपने देश के महत्वपूर्ण वृक्षों को प्रदर्शित करने वाले टिकटों की एक शृंखला जारी की जिसमें कचनार की इस प्रजाति एक पेड़ दिखाया गया है। ३५ सेंट के इस टिकट में बाईं ओर ऊपर के कोने पर इसका स्थानीय नाम हैटी ट्री भी लिखा गया है।

इसी अवसर पर जारी एक और टिकट में कचनार की इसी प्रजाति  बोहेनिया वेरियागाटा का एक और रूप चित्रित किया गया है। इस प्रजाति के कचनार पत्तों पर भी इस देश की बहुचर्चित लोककला अंकित की जाती है। टिकट पर इस कला से अंकित दो पत्ते भी दिखाए गए हैं। ऊपर की ओर बीच में महीन अक्षरों में हैटी ट्री और बोहेनिया वैरिगाटा भी लिखा गया है।

 

इसी देश के गुलाबी रंग के एक और सुंदर चौकोर टिकट पर कचनार की ही एक प्रजाति बुहेनिया मोनान्ड्रा के एक फूल को प्रदर्शित किया गया है। १० डॉलर मूल्य के इस टिकट पर बायीं और ऊपर देश का नाम है दाहिनी ओर ब्रिटिश साम्राज्य का ताज दिखाई दे रहा है और नीचे की ओर बाएँ कोने पर हैटी ट्री लिखा गया है।

१९९५में प्रकाशित थाईलैंड के एक टिकट में कचनार के सफ़ेद रंग के छोटे फूलों वाली एक जाति बुहेनिया एक्युमिनाटा को चित्रित किया गया है। २ बहत के हरे रंग के इस सुंदर चित्र में दाहिनी ओर ऊपर प्रकाशन तिथि को अंग्रेज़ी और थाईलैंड की भाषा में लिखा गया है। नीचे दाहिनी ओर देश का नाम दोनों भाषाओं में है।

दाहिनी ओर दिए गए कांगो के टिकट में कचनार की बोहेनिया वेरियागाटा प्रजाति का नाम लिखा है। क्षेत्रफल के हिसाब से कांगो अफ्रीका महाद्वीप का तीसरा सबसे बड़ा देश है। टिकट पर लिखी गई भाषा से अंदाज़ लगाया जा सकता है कि इस देश की आधिकारिक भाषा फ्रांसीसी है। १० फ्रैंक वाले इस टिकट पर नीचे फ्रेन्च में उष्णकटिबंधीय पुष्प लिखा है। बायीं ओर प्रजाति का नाम है और दायीं ओर टिकट के जारी किए जाने का वर्ष १९७१ लिखा हुआ है। पूरे अफ्रीका और प्रशांत क्षेत्र में बहुनिया की बोहेनिया वेरियागाटा और बोहेनिया मोनान्ड्रा प्रजातियाँ बहुतायत से पाई जाती हैं। यही कारण है कि कांगो, लीबिया, मोंत्सेरात कंबोडिया और सॉल्मन द्वीप के डाकटिकटों में इन्हीं को स्थान मिला है।

मोंटेसेराट कैरेबियन सागर में स्थित लीवार्ड द्वीप समूह में ब्रिटेन का सागर पार क्षेत्र के अंतरगत एक छोटा सा द्वीप है। साढ़े चार हज़ार की जनसंख्या वाला यह द्वीप प्राकृतिक सौंदर्य के लिए जाना जाता है। कचनार यहाँ के प्रमुख फूलों में से एक है। इसी कारण दिए गए चित्र में कचनार की एक झाड़ी और उसके फूलों के गुच्छे को दिखाया गया है। टिकट का मूल्य १५ सेंट हैं। यहाँ पश्चिम कैरेबियन डॉलर मुद्रा के रूप में प्रयोग किए जाते हैं।

गिनि बिसाउ पश्चिम अफ्रीका का एक देश है। इससे मिलते जुलते नाम का एक देश गिनि गणतंत्र इसके पास ही है। गिनी बिसाऊ की भाषा पुर्तगीज़ है और राजधानी बिसाऊ है। कचनार की बोहेनिया वेरियागाटा प्रजाति के चित्र वाला यह टिकट १९८३ में जारी किया गया था.। मुद्रा के स्थान नीचे ध्यान से देखें तो अंग्रेज़ी के "सी ओ आर आर ई आई सी एस (CORREICS)" अक्षर दिखाई देते हैं। यह इनकी डाक संस्था का संक्षेप है जिसका पूरा नाम है- इम्प्रेसा ब्राज़िलियेरा डि कोरियोस ए टेलीग्राफ़ोस, इसका अर्थ है ब्राजीलियन डाक व तार संस्थान। यह ब्राज़ील की राष्ट्रीय डाक सेवा है। हो सकता है गिनी बिसाउ के टिकट छापने का काम इसी संस्था के पास हो या यह संस्था गिनी बिसाऊ में भी डाक की ज़िम्मेदारी संभालती हो।

१ सितंबर १९८१ में भारत ने भी देश के प्रमुख पेड़ों के चित्रों से युक्त एक टिकट शृंखला जारी की थी। इसके चार टिकटों में अमलतास, पलाश, वरना और कचनार के अत्यंत सुंदर चित्र प्रदर्शित किए गए हैं। ये चित्र भारत के दो प्रसिद्ध फ़ोटोग्राफ़रों द्वारा खींचे गए हैं। अमलतास व कचनार के टिकटों पर के एम वैद द्वारा खींचे गए फ़ोटो हैं और पलाश व वरना के टिकटों पर राजेश बेदी द्वारा खींचे गए। टिकटों में बाईं ओर ऊपर मूल्य अंकित किया गया है और दाहिनी ओर दो भाषाओं में देश का नाम छापा गया है। चित्र के नीचे पेड़ का नाम और टिकट का प्रकाशन वर्ष अंकित किया गया है। मौसम की कड़ी मार सहकर भी खुशी से खिलने वाले इन बहुरंगे टिकटों की २० लाख प्रतियाँ जारी की गई थीं। लगभग ढाई से.मी. चौड़े और ३.५ से.मी. ऊँचे टिकटों के इस सेट के साथ एक प्रथम दिवस कवर भी जारी किया गया था जिसे सुहमिंदर सिंह ने डिज़ाइन किया था।

दाहिनी और स्थित कंबोडिया के टिकट में कचनार का एक और सुंदर चित्र प्रदर्शित किया गया है। कंबोडिया की वर्तनी पर ध्यान देने पर देखा जा सकता है इस पर देश के नाम की प्राचीन भारतीय ग्रंथों में प्रयुक्त वर्तनी कांबोज का प्रयोग किया गया है ना कि बुहेनिया अंग्रेज़ी वर्तनी का। सुदूर पूर्व में स्थित थाईलैंड के पास बसे इस देश की भारत के साथ सांस्कृतिक आदान प्रदान की ऐतिहासिक परंपरा पाई जाती है।

सॉल्मन आईलैंड द्वारा जारी किए गए उष्णकटिबंधीय देशों के वृक्षों की शृंखला में १९८७ में प्रकाशित २५ सेंट के इस टिकट पर बाएँ निचले कोने में बोहेनिया वेरियागाटा लिखा है।  बीच में कचनार का चित्र है बाएँ ऊपरी कोने पर देश का नाम है और दाहिने ऊपरी कोने पर राजचिह्न अंकित है। इसको १७ टिकटों के साथ जारी किया गया था जिसमें देश के सत्रह प्रमुख फूलों को प्रदर्शित किया गया था। नीले, गुलाबी और हरे रंग के इस टिकट पर किसी फ़ोटो को नहीं बल्कि एक कलाकृति को प्रदर्शित किया गया है। यह देश भी दक्षिण एशिया में पापुआ और गुयाना के पास प्रशांत महासागर में स्थित हैं और यहाँ की जलवायु कंबोडिया और इंडोनेशिया से काफ़ी मिलती जुलती है जिसके कारण यहाँ कचनार, के वृक्षों को पनपने का अच्छा अवसर मिलता है।

बारबाडोस से इस टिकट पर कचनार की बोहेनिया  ब्लेकियाना की एक झाड़ी और फूलों का एक गुच्छा चित्रित किया गया है। इस वृक्ष का बोहेनिया नाम १६ वीं शती के वनस्पति वैज्ञानिक भाइयों जोहानेस और कैस्पर बोहिन के नाम पर रखा गया है। इसकी दो हिस्सों वाली पत्तियाँ इन दो जुड़वाँ भाइयों की स्मृति ताज़ा करती हैं।

 १६ जून २००८                                                                         साभार अभिव्यक्ति