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बुधवार, 27 दिसंबर 2017

navgeet

नवगीत
*
माया महा ठगिनी हम जानी 
ममता मोहित राह भुलानी 
मल्ल मुलायम कुम्हला रए रे!
मुल्ला मत भए दाना-पानी
*
ठगे गए सिवपाल बिचारे
बेटा पड़ा बाप पर भारी
शकुनी लालू फेंकें पासा
नया महाभारत है जारी
रो-रो राहुल पगला रओ रे!
जैसे मर गई बाकी नानी
*
फारुख अब्दुल्ला बर्रा रओ
घास न डाले तन्नक कोई
कमुनिस्टों खों नींद नें आ रई
सूल चुभें, जो फसलें बोई
पोल खुल गई सम्मानों की
लौटाने की करम कहानी
*
काली रोकड़ जमा हो गई
काला मनुआ अब लौं बाकी
उगरे-निगरे पीर घनेंरी
खाली बोतल भरे नें साकी
सौ चूहे खा बिना डकारे
चैनल कर रए गलत बयानी
***
२७-१२-१६

शनिवार, 13 मई 2017

manav chhand

रसानंद दे छंद नर्मदा ८४:  
 


दोहा, ​सोरठा, रोला, ​आल्हा, सार​,​ ताटंक (चौबोला), रूपमाला (मदन), चौपाई​, ​हरिगीतिका, उल्लाला​, गीतिका, ​घनाक्षरी, बरवै, त्रिभंगी, सरसी, छप्पय, भुजंगप्रयात, कुंडलिनी, सवैया, शोभन/सिंहिका, सुमित्र, सुगीतिका , शंकर, मनहरण (कवित्त/घनाक्षरी), उपेन्द्रव
ज्रा
, इंद्रव
​​
ज्रा, 
सखी
​, 
विधाता/शुद्धगा, 
वासव
​, 
अचल धृति
​,  
अचल
​, अनुगीत, अहीर, अरुण, 
अवतार, 
​​उपमान / दृढ़पद,  
एकावली,  
अमृतध्वनि, नित, आर्द्रा, ककुभ/कुकभ, कज्जल, कमंद, कामरूप, कामिनी मोहन (मदनावतार), 
काव्य, 
वार्णिक कीर्ति, 
कुंडल, गीता, गंग, 
चण्डिका, चंद्रायण, छवि (मधुभार), जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दिग्पाल / दिक्पाल / मृदुगति, दीप, दीपकी, दोधक, निधि, निश्चल
प्लवंगम, प्रतिभा, प्रदोषप्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदनाग, 
मधुमालती, मनमोहन, मनोरम  छंदों से साक्षात के पश्चात् मिलिए मानव छंद से   

Rose    मानव 
छंद
*
छंद-लक्षण: समपाद मात्रिक छंद, जाति मानव, प्रति चरण मात्रा १४ मात्रा, चरणारंभ गुरु, चरणांत गुरु लघु लघु या लघु गुरु गुरु होता है.  
लक्षण छंद:
हैं भुवन चौदह मनोरम 
आदि गुरु हो तो मिले मग
हो हमेश अंत में अंत भय   

लक्ष्य वर लो बढ़ाओ पग
उदाहरण:
१. 
साया भी साथ न देता 
   जाया भी साथ न देता
   माया जब मन भरमाती
   
काया कब साथ निभाती 

२. सत्य तज मत 'सलिल' भागो
   कर्म कर फल तुम न माँगो
   प्राप्य तुमको खुद मिलेगा
   धर्म सच्चा समझ जागो

३. लो चलो अब तो बचाओ
   देश को दल बेच खाते
   नीति खो नेता सभी मिल
   रिश्वतें ले जोड़ते धन

४. सांसदों तज मोह-माया
   संसदीय परंपरा को 
   आज बदलो, लोक जोड़ो-
   तंत्र को जन हेतु मोड़ो
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रविवार, 4 सितंबर 2011

काव्य सलिला: अनेकता हो एकता में -- संजीव 'सलिल'

sanjiv verma 'salil'

काव्य सलिला: 

अनेकता हो एकता में 

-- संजीव 'सलिल'

*
विविधता ही सृष्टि के, निर्माण का आधार है.
'एक हों सब' धारणा यह, क्यों हमें स्वीकार है?

तुम रहो तुम, मैं रहूँ मैं, और हम सब साथ हों.
क्यों जरूरी हो कि गुड़-गोबर हमेशा साथ हों?

द्वैत रच अद्वैत से, उस ईश्वर ने यह कहा.
दूर माया से सकारण, सदा मायापति रहा..

मिले मोदक अलग ही, दो सिवइयां मुझको अलग.
अर्थ इसका यह नहीं कि, मन हमारे हों विलग..

अनेकता हो एकता, में- यही स्वीकार है.
तन नहीं मन का मिलन ही, हमारा त्यौहार है..

मंगलवार, 19 जुलाई 2011

भजन तेरी शरण : प्रभु तेरी शरण --मृदुल कीर्ति

: Mridul Kirti <mridulkirti@gmail.com>,

ॐ!
भजन
मृदुल कीर्ति
तेरी शरण प्रभु तेरी शरण,  तेरी शरण प्रभु तेरी शरण.
सुख पुंज महा प्रभु तेरे चरण.
संसार महा विष व्याल घना,  नहीं दीख रहा कोई अपना.
तुझसे ही पाया अपनापन. सुख पुंज महा प्रभु तेरे चरण
तेरी शरण ------------------------------
----------------
जग मायामय और झूठा है, तेरा सांचा प्यार अनूठा है.
सब तन-मन-धन तेरे अरपन , सुख पुंज महा प्रभु तेरे चरण.
तेरी शरण -----------------------------------------------
हरि नाम जपन  साँची पूंजी, भव-सिन्धु तरन नहीं विधि दूजी.
करो तारण हार मेरा भी तरन, सुख पुंज महा प्रभु तेरे चरण.
तेरी शरण ------------------------------------------------
तू व्यापक ब्रह्म निरंजन है, कण- कण में तेरा स्पंदन है.
रहूँ ध्यान में तेरे प्रति पल क्षण ,  सुख पुंज महा प्रभु तेरे चरण.
तेरी शरण प्रभु तेरी शरण -------------------------------

शनिवार, 22 जनवरी 2011

नवगीत: लौटना मत मन... संजीव 'सलिल'

नवगीत:

लौटना मत मन...

संजीव 'सलिल'
*
लौटना मत मन,
अमरकंटक पुनः
बहना नर्मदा बन...
*
पढ़ा, सुना जो वही गुना
हर काम करो निष्काम.
सधे एक सब सधता वरना
माया मिले न राम.

फल न चाह,
बस कर्म किये जा
लगा आत्मवंचन...
*
कर्म योग कहता:
'जो बोया निश्चय काटेगा'.
सगा न कोई आपद-
विपदा तेरी बाँटेगा.

आँख मूँद फिर भी
जग सारा
जोड़ रहा कंचन...
*
क्यों सोचूँ 'क्या पाया-खोया'?
होना है सो हो.
अंतर क्या हों एक या कि
माया-विरंची हों दो?

सहज पके सो मीठा
मान 'सलिल'
पावस-सावन...
*