कुल पेज दृश्य

चित्र पर कविता: 7 लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
चित्र पर कविता: 7 लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

रविवार, 26 अगस्त 2012

चित्र पर कविता: 7 जागरण

चित्र पर कविता: 7
जागरण 

इस स्तम्भ की अभूतपूर्व सफलता के लिये आप सबको बहुत-बहुत बधाई. एक से बढ़कर एक रचनाएँ अब तक प्रकाशित चित्रों में अन्तर्निहित भाव सौन्दर्य के विविध आयामों को हम तक तक पहुँचाने में सफल रहीं हैं. संभवतः हममें से कोई भी किसी चित्र के उतने पहलुओं पर नहीं लिख पाता जितने पहलुओं पर हमने रचनाएँ पढ़ीं. 

चित्र और कविता की प्रथम कड़ी में शेर-शेरनी संवाद, कड़ी २ में पराठा, दही, मिर्च-कॉफी,
कड़ी ३ में दिल-दौलत, चित्र ४ में रमणीक प्राकृतिक दृश्य, चित्र ५ हिरनी की बिल्ली शिशु पर ममता,  चित्र ६ में पद-चिन्ह के पश्चात प्रस्तुत है चित्र ७. ध्यान से देखिये यह नया चित्र और रच दीजिये एक अनमोल कविता.



 1.
बीनू भटनागर

*
सू्र्यदेव का स्वागत,
मै बाँहें फैला कर करता हूँ,
आग़ोश मे लेलूँ सूरज को,
महसूस कभी ये करता हूँ।
इस सुनहरे पल मे,
कुछ आधात्मिक अनुभूति
होतीं हैं।
जो नहीं मिला मंदिर मे कभी,
उसका दर्शन मै करता हूँ।
*
"Binu Bhatnagar" <binu.bhatnagar@gmail.com>
____________________________________
  2.

sanjiv verma (आप) का प्रोफ़ाइल फ़ोटो

संजीव 'सलिल'
*
पग जमाये हूँ धरा पर, हेरता आकाश.
काल को भी बाँध ले, जब तक जिऊँ भुज-पाश..

हौसलों का दिग-दिगंतिक, व्योम तक विस्तार.
ऊर्जा रवि-किरण देतीं, जीत लूँ संसार.

आत्म-पाखी प्रार्थना कर, चहचहाता है.
वंदना कर देव से, वरदान पाता है.

साधना होती सफल, संकल्प यदि पक्का.
रुद्ध कब बाधाओं से, होता प्रगति-चक्का..

दीप मृण्मय तन, जलाकर आत्म की बाती.
जग प्रकाशित कर बने रवि, नियति मुस्काती.

गिरि शिखर आलोचना के, हुए मृग-छौने.
मंद श्यामल छवि सहित, पग-तल नमित बौने.

करे आशीषित क्षितिज, पीताभ चक्रों से.
'खींच दे साफल्य-रेखा, पार वक्रों के.'

हूँ प्रकृति का पुत्र, है उद्गम परम परमात्म.
टेरता कर लीन खुद में, समर्पित है आत्म.

Acharya Sanjiv verma 'Salil'
९४२५१ ८३२४४ / ०७६१ २४१११३१ 
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in
__________________________________
3.
Pranava Bharti का प्रोफ़ाइल फ़ोटो




प्रणव भारती
              अभिषेक सूरज का.....
     
   अभिषेक हुआ है सूरज का 
   मन लगता है कुछ भरा-भरा.....|
   जीवन की लघुतम सच्चाई 
   है बियाबान ओढ़े आती 
   पागल-पागल सी तन्हाई
   नीलांबर पर है छा जाती  
   उन्मुक्त  नहीं  मन मानव का |

   ऊंचे-ऊचे से स्वप्न सजे,
   कुछ बिखर गये,कुछ शूल बने 
   चंदा के घूँघट में छिपकर 
   काली दुल्हन सज,इतराती  
   परिवेश यही है मानव का |
   
    चंदा-तारे सब ही हारे
    खेलें वे आँख-मिचौनी सी
    फिर कहाँ-कहाँ रख आज कदम 
    जीवन खेले है होली सी 
    सर्वेश यही तो मानव का |

    सूरज दादा उत्ताप-प्रचंडित
    तड़ित-मडित ऊपर झूमें 
    नीचे  मानव खा हिचकोले 
    चाहे  धरती-अंबर छू ले 
    संदेश पुकारे मानव का |

    अब बैठें न गुमसुम होकर 
    लेलें उधार कुछ सूरज से 
    अपमानित न हों जीवन भर 
    जीवन के द्वार अमी बरसे 
    अतिमुक्त रहे मन मानव का..........| 
*
Pranava Bharti  द्वारा yahoogroups.com 
______________________________________
4. 
चित्र ७ पर कविता
आह्वान
इन्दिरा प्रताप 
मैं खड़ा हुआ उत्तुंग शिखर पर
आह्वान करता हूँ ----------
हे , तेज पुंज ! हे , रश्मिरथी !
तुम जगती के कण – कण में,
नव प्रकाश भर दो ,
तुम ऐसा वर दो |
उदय – अस्त का खेल तुम्हारा ,
धुप छाहँ का छलके प्याला ,
हिम शिखरों के उच्च श्रृंगों को
ज्योतिर्मय कर दो ,
तुम ऐसा वर दो |
देखो, धरती चटक रही है ,
पीकर तेज तुम्हारा ,
नव जीवन की, नव फुहार से
इस धरती को ,
हरा भरा कर दो;
तुम ऐसा वर दो |
तन मन में प्रकाश भर दे जो ,
हृदय- तार झंकृत कर दे जो ,
दूर करे मन का अँधियारा ,
जैसे अंधकार में नन्हा दीप बेचारा,
हे प्रभात के दिव्य पुंज !
छोटे से मुझ स्नेह दीप को ,
आलोकित कर दो ,
तुम ऐसा वर दो |
हे तेज पुंज ! हे रश्मि रथी !
तुम सृष्टि के इस महताकाश में
चिर प्रकाश भर दो ,
तुम ऐसा वर दो |  
*
Indira Pratap  द्वारा yahoogroups.com 
____________________________________
5.