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शुक्रवार, 14 जुलाई 2023

श्वान दंश, कीट दंश, साक्षी, आशा, रात, शुभ प्रभात, हाइकु, कमल, मुक्तक, गीत

दोहा-दोहा चिकित्सा
श्वान दंश
*
पीस-घोल चौलाई जड़, बार-बार पी आप।
श्वान जहर हो शीघ्र कम, भैरव का कर जाप।।
*
पिसी प्याज मधु मिलाकर, बाँधें दिखे न घाव।
विष-प्रभाव हो नष्ट अरु, बढ़े न तनिक प्रभाव।।
*
आक धतूरा पुनर्नवा जड़ लेकर सम भाग।
मधु में पीस लगाइए, मिटे दंश की आग।।
*
लाल मिर्च का पाउडर, श्वान दंश पर बाँध।
जलन न यदि पागल कुकुर, अगर न जानें आँध।।
*
मुर्ग-बीट पानी मिला, श्वान दंश पर लेप।
शयन न कर जागे रहें, विष कम हो मत झेंप।।
*
गूदा कड़वी तुरई का, घोल-छान पी मीत।
पाँच दिनों दोनों समय, करिए स्वस्थ्य प्रतीत।।
*
सेंधा नमक-गिलोय का गूदा बाँधें रोज।
श्वान जहर हो नष्ट फिर, हो चेहरे पर ओज।।
*
काली मिर्च पिसी सहित, सरसों तेल सुलेप।
श्वान दंश विष नष्ट कर, हरे दर्द की खेप।।
*
हींग पीस पानी सहित, श्वान-दंश पर बाँध।।
शीघ्र स्वस्थ्य हो जाइए, मिले न माँगे काँध।।
*
सबसे सरल उपाय है, रहें श्वान से दूर।
हो समीप तो सजगता, रखें आप भरपूर।।
*
श्वान काट ले तो सलिल, हो सकता उपचार।
नेता काटे तो नहीं, बचते किसी प्रकार।।
*
गए चिकित्सालय अगर, लूट मचेगी खूब।
जान बचे या मत बचे, क़र्ज़ चढ़ेगा खूब।।
***
दोहा दोहा चिकित्सा
कीट दंश
*
मधुमक्खी काटे अगर, गेंदा पत्ती आप।
मलें दर्द हो दूर झट, शांति सके मन व्याप।।
*
पीस सोंठ केसर तगर, पानी संग सम भाग।
मधुमक्खी के दंश पर, लेप सराहें भाग।।
*
मधुमक्खी के दंश पर, काट रगड़िए प्याज।
दर्द घटे पीड़ा मिटे, बन जाए झट काज।।
*
बर्रैया काटे मलें, सिरका-शहद तुरंत।
चिंता तनिक न कीजिए, पीड़ा का हो अंत।।
*
बर्र काट दे अगर तो, आक दूध मल मीत।
मुक्ति दर्द से पाइए, मर बिसराएँ रीत।।
*
बर्र ततैया दंश से, पीड़ित हो यदि चाम।
मिटटी तेल लगाइए, मिले तुरत आराम।।
*
माचिस-तीली-मसाला, गीला कर लें लेप।
कीट दंश में लाभ हो, बिसरा दें आक्षेप।।
*
दंश ततैया का मिटे, मिर्च लेपिए पीस।
शीघ्र मिले आराम तो, आप निपोरें खीस।।
*
डंक ततैया मार दे, मलिए मूली काट।
झट पीड़ा हरा दे, मनो धोबीपाट।।
*
कीट दंश पर लगाएँ, झटपट अर्क कपूर।
दर्द मिटा सूजन करे, बिना देर यह दूर।।
*
चौलाई-जड़ पीसकर गौ-घी संग कर पान।
कीट जहर से मुक्त हों, पड़े जान में जान।।
*
सिरका और कपूर संग, धनिया-पत्ती-अर्क।
कीट दंश पर लगाएँ, मारिए नहीं कुतर्क।।
१४-७-२०२१
***
दोहा सलिला
दिव्या भव्या बन सकें, हम मन में हो चाह.
नित्य नयी मंजिल चुनें, भले कठिन हो राह.
*
प्रेम परिश्रम ज्ञान के, तीन वेद का पाठ.
करे 'सलिल' पंकज बने, तभी सही हो ठाठ..
*
छंद शर्करा-नमक है, कविता में रस घोल.
देता नित आनंद नव, कहे अबोले बोल..
*
कर्ता कारक क्रिया का, करिए सही चुनाव.
सहज भाव अभिव्यक्ति हो, तजिए कठिन घुमाव..
*
बिम्ब-प्रतीकों से 'सलिल', अधिक उभरता भाव.
पाठक समझे कथ्य को, मन में लेकर चाव..
*
अलंकार से निखरता, है भाषा का रूप.
बिन आभूषण भिखारी, जैसा लगता भूप..
*
रस शब्दों में घुल-मिले, करे सारा-सम्प्राण.
नीरसता से हो 'सलिल', जग-जीवन निष्प्राण..
*
कथनी-करनी में नहीं, 'सलिल' रहा जब भेद.
तब जग हमको दोष दे, क्यों? इसका है खेद..
*
मन में कुछ रख जुबां पर, जो रखते कुछ और.
सफल वही हैं आजकल, 'सलिल' यही है दौर..
*
हिन्दी के शत रूप हैं, क्यों उनमें टकराव?
कमल पंखुड़ियों सम सजें, 'सलिल' न हो बिखराव..
*
जगवाणी हिन्दी हुई, ऊँचा करिए माथ.
जय हिन्दी, जय हिंद कह, 'सलिल' मिलाकर हाथ..
१४-७-२०२०
***
काटे दुर्जन शीश, सुगीता पाठ पढ़ाया।
साथ पांडवों का दे, कौरव राज्य मिटाया।।
काम करो निष्काम, कन्हैया बोले हँसकर।
अर्जुन का रथ थाम, चले झट मोहन तजकर।।
१-७-२०१९
***
गीत
साक्षी
*
साक्षी
देगा समय खुद
*
काट दीवारें रही हैं
तोड़ना है रीतियाँ सब
थोपना निज मान्यताएँ
भुलाना है नीतियाँ अब
कौन-
किसका हाथ थामे
छोड़ दे कब?
हुए कपड़ों की तरह
अब
देह-रिश्ते,
नेह-नाते
कूद मीनारें रही हैं
साक्षी देगा समय खुद
*
घरौंदे बंधन हुए हैं
आसमानों की तलब है
लादना अपना नजरिया
सकल झगड़ों का सबब है
करूँ
मैं हर चाह पूरी
रोक मत तू
बगावत हो
या अदावत
टोंक मत तू
मनमर्जियाँ
हावी हुई हैं
साक्षी
देगा समय खुद
*
१४-७-२०१९
***
दोहा सलिला
आशा
*
आशा मत तजना कभी, रख मन में विश्वास।
मंजिल पाने के लिए, नित कर अथक प्रयास।।
*
आशा शैली; निराशा, है चिंतन का दोष।
श्रम सिक्का चलता सदा, कर सच का जयघोष।।
*
आशा सीता; राम है, कोशिश लखन अकाम।
हनुमत सेवा-समर्पण, भरत त्याग अविराम।।
*
आशा कैकेयी बने, कोशिश पा वनवास।
अहं दशानन मारती, जीवन गहे उजास।।
*
आशा कौशल्या जने, मर्यादा पर्याय।
शांति सुमित्रा कैकयी, सुत धीरज पर्याय।
*
आशा सलिला बह रही, शिला निराशा तोड़।
कोशिश अंकुर कर रहे, जड़ें जमाने होड़।।
*
आशा कोलाहल नहीं, करती रहती मौन।
जान रहा जग सफलता, कोशिश जाने कौन?
*
आशा सपने देखती, श्रम करता साकार।
कोशिश उनमें रंग भर, हार न देती हार।।
*
आशा दिख-छिपती कभी, शशि-बादल सम खेल।
कहे धूप से; छाँव से, रखना सीखो मेल।।
*
आशा माँ बहिना सखी, संगिन बेटी साध।
श्वास-आस सम साथ रख, आजीवन आराध।।
*
आशा बिन होता नहीं, जग-जीवन संजीव।
शैली सलिल सदृश रहे, निर्मल पा राजीव।।
१४-७-२०१९
***
दोहे- रात रात से बात की
*
रात रात से बात की, थी एकाकी मौन।
सिसक पड़ी मिल गले; कह, कभी पूछता कौन?
*
रहा रात की बाँह में, रवि लौटा कर भोर।
लाल-लाल नयना लिए, ऊषा का दिल-चोर।।
*
जगजननी है रात; ले, सबको गोद-समेट।
स्वप्न दिखा बहला रही, भुज भर; तिमिर लपेट।।
*
महतारी है प्रात की, रात न करती लाड़।
कहती: 'झटपट जाग जा, आदत नहीं बिगाड़।।'
*
निशा-नाथ है चाँद पर, फिरे चाँदनी-संग।
लौट अँधेरे पाख में, कहे: 'न कर दिल संग।।'
*
राका की चाहत जयी, करे चाँद से प्यार।
तारों की बारात ले, झट आया दिल हार।।
*
रात-चाँद माता-पिता, सुता चाँदनी धन्य।
जन्म-जन्म का साथ है, नाता जुड़ा अनन्य।।
*
रजनी सजनी शशिमुखी, शशि से कर संबंध।
समलैंगिकता का करे, क्या पहला अनुबंध।।
*
रात-चाँदनी दो सखी, प्रेमी चंदा एक।
घर-बाहर हों साथ; है, समझौता सविवेक।।
*
सौत अमावस-पूर्णिमा, प्रेमी चंदा तंग।
मुँह न एक का देखती, दूजी पल-पल जंग।।
*
रात श्वेत है; श्याम भी, हर दिन बदले रंग।
हलचल को विश्राम दे, रह सपनों के संग।।
*
बात कीजिए रात से, किंतु न करिए बात।
जब बोले निस्तब्धता, चुप गहिए सौगात।।
*
दादुर-झींगुर बजाते, टिमकी-बीन अभंग।
बादल रिमझिम बरसता, रात कुँआरी संग।।
*
तारे घेरे छेड़ते, देख अकेली रात।
चाँद बचा; कर थामता, बनती बिगड़ी बात।।
*
अबला समझ न रात को, झट दे देगी मात।
अँधियारा पी दे रही, उजियाला सौगात।।
14.7.2018
***
दोहे
दोष गैर का देख जब, ऊँगली उठती एक
तीन कहें निज दोष लख, बन जा मानव नेक
*
जब करते निर्माण हम, तब लाते विध्वंस
पूर्व कृष्ण के जगत में, आ जाता है कंस
***
देश प्रथम, दल रहे बाद में
शुभ प्रभात
आम प्रथम, हो खास बाद में
शुभ प्रभात
दीनबंधु बन खुशी लुटाये
शुभ प्रभात
कुछ पौधों को वृक्ष बना दें
शुभ प्रभात
***
हाइकु
(एक प्रयोग)
*
भोर सुहानी
फूँक रही बेमोल
जान में जान। .
*
जान में जान
आ गयी, झूमी-नाची
बूँदों के साथ।
*
बूँदों के साथ
जी लिया बचपन
आज फिर से।
*
आज फिर से
मचेगा हुडदंग
संसद सत्र।
*
संसद सत्र
दुर्गन्ध ही दुर्गन्ध
फैलाओ इत्र।
***
मुक्तक:
मत सोच यार, पा-बाँट प्यार,
सह दर्द, दे ख़ुशी तू उधार।
पतवार-नाव, हो जोश-होश
कर-करा पार, तू सलिल-धार।।
१४-७-२०१७
***
एक रचना:
संजीव
*
विंध्याचल की
छाती पर हैं
जाने कितने घाव
जंगल कटे
परिंदे गायब
धूप न पाती छाँव
*
ऋषि अगस्त्य की करी वन्दना
भोला छला गया.
'आऊँ न जब तक झुके रहो' कह
चतुरा चला गया.
समुद सुखाकर असुर सँहारे
किन्तु न लौटे आप-
वचन निभाता
विंध्य आज तक
हारा जीवन-दाँव.
*
शोण-जोहिला दुरभिसंधि कर
मेकल को ठगते.
रूठी नेह नर्मदा कूदी
पर्वत से झट से.
जनकल्याण करे युग-युग से
जगवंद्या रेवा-
सुर नर देव दनुज
तट पर आ
बसे बसाकर गाँव.
*
वनवासी रह गये ठगे
रण लंका का लड़कर.
कुरुक्षेत्र में बलि दी लेकिन
पछताये कटकर.
नाग यज्ञ कह कत्ल कर दिया
क्रूर परीक्षित ने-
नागपंचमी को पूजा पर
दिया न
दिल में ठाँव.
*
मेकल और सतपुड़ा की भी
यही कहानी है.
अरावली पर खून बहाया
जैसे पानी है.
अंग्रेजों के संग-बाद
अपनों ने भी लूटा
कोयल का स्वर रुद्ध
कर रहेे रक्षित
कागा काँव
*
कह असभ्य सभ्यता मिटा दी
ठगकर अपनों ने.
नहीं कहीं का छोड़ा घर में
बेढब नपनों ने.
शोषण-अत्याचार द्रोह को
नक्सलवाद कहा-
वनवासी-भूसुत से छीने
जंगल
धरती-ठाँव.
*
२८-७-२०१५
मुक्तक:
*
ऊँचाई पर उड़कर भी कागा काला, नीचे बैठा हंस श्वेत ही रहता है
जो न प्राप्त पद-मद से होता अभिमानित, उससे शोभा पद की जग यह कहता है
जो पद पाकर बिसराता औकात 'सलिल', पद बिन उसका जीवन दूभर हो जाता-
नभ, पर्वत, झरनों, नदियों से सागर तक, संभावित जल प्यास बुझा चुप रहता है
१४-७-२०१५
***
गीत:
हारे हैं...
*
कौन किसे कैसे समझाए
सब निज मन से हारे हैं?.....
*
इच्छाओं की कठपुतली हम
बेबस नाच दिखाते हैं.
उस पर भी तुर्रा यह खुद को
तीसमारखाँ पाते हैं.
रास न आये सच कबीर का
हम बुदबुद गुब्बारे हैं...
*
बिजली के जिन तारों से
टकरा पंछी मर जाते हैं.
हम नादां उनसे बिजली ले
घर में दीप जलाते हैं.
कोई न जाने कब चुप हों
नाहक बजते इकतारे हैं...
*
पान, तमाखू, जर्दा, गुटका,
खुद खरीदकर खाते हैं.
जान हथेली पर लेकर
वाहन जमकर दौड़ाते हैं.
'सलिल' शहीदों के वारिस,
या दिशाहीन गुब्बारे हैं...
*
करें भोर से भोर शोर हम,
चैन न लें, ना लेने दें.
अपनी नाव डुबाते, औरों को
नैया ना खेने दें.
वन काटे, पर्वत खोदे,
सच हम निर्मम हत्यारे है...
*
नदी-सरोवर पाट दिये,
जल-पवन प्रदूषित कर हँसते.
सर्प हुए हम खाकर अंडे-
बच्चों को खुद ही डंसते.
चारा-काँटा फँसा गले में
हम रोते मछुआरे हैं...
१४-७-२०१२
***
नवगीत:
पैर हमारे लात हैं....
*
पैर हमारे लात हैं,
उनके चरण
कमल
ह्रदय हमारे सरोवर-
उनके हैं पंकिल...
*
पगडंडी काफी है हमको,
उनको राजमार्ग भी कम है.
दस पैसे में हम जी लेते,
नब्बे निगल रहा वह यम है.
भारतवासी आम आदमी -
दो पाटों के बीच पिस रहे.
आँख मूँद जो न्याय तौलते
ऐश करें, हम पैर घिस रहे.
टाट लपेटे हम फिरें
वे धारे मलमल.
धरा हमारा बिछौना
उनका है मखमल...
*
अफसर, नेता, जज, व्यापारी,
अवसरवादी-अत्याचारी.
खून चूसते नित जनता का,
देश लूटते भ्रष्टाचारी.
म मर-खप उत्पादन करते,
लूट तिजोरी में वे भरते.
फूट डाल हमको लड़वाते.
थाना कोर्ट जेल भिजवाते.
पद-मद उनका साध्य है,
श्रम है अपना बल.
वे चंचल ध्वज, 'सलिल' हम
नींवें अविचल...
*
पुष्कर, पुहुकर, नीलोफर
हम,
उनमें कुछ काँटें बबूल के.
कुई, कुंद, पंकज, नीरज
हम,
वे बैरी तालाब-कूल के.
'सलिल'ज क्षीरज
हम, वे गगनज
हम अपने हैं, वे सपने हैं.
हम
हरिकर, वे
श्रीपद-लोलुप
मनमाने थोपे नपने हैं.
उन्हें स्वार्थ आराध्य है,
हम न चाहते छल.
दलदल वे दल बन करें
हम
उत्पल शतदल
***
युगल गीत:
बात बस इतनी सी थी...

*बात बस इतनी सी थी, तुमने नहीं समझा मुझे.
बात बस इतनी सी थी...
*
चाहते तुम कम नहीं थे, चाहते कम हम न थे.
चाहतें क्यों खो गईं?, सपने सुनहरे कम न थे..

बात बस इतनी सी थी, रिश्ता लगा उलझा मुझे.
बात बस इतनी सी थी, तुमने नहीं समझा मुझे.
बात बस इतनी सी थी...
*
बाग़ में भँवरे-तितलियाँ, फूल-कलियाँ कम न थे.
पर नहीं आईं बहारें, सँग हमारे तुम न थे..

बात बस इतनी सी थी, चेहरा मिला मुरझा मुझे.
बात बस इतनी सी थी, तुमने नहीं समझा मुझे.
बात बस इतनी सी थी...
*
दोष किस्मत का नहीं, हम ही न हम बन रह सके.
सुन सके कम दोष यह है, क्यों न खुलकर कह सके?.

बात बस इतनी सी थी, धागा मिला सुलझा मुझे.
बात बस इतनी सी थी, तुमने नहीं समझा मुझे.
बात बस इतनी सी थी...
***
***
गीत:
स्नान कर रहा.....
*
शतदल, पंकज, कमल, सूर्यमुख
श्रम-सीकर से
स्नान कर रहा.
शूल चुभा
सुरभित गुलाब का फूल-
कली-मन म्लान कर रहा...
*
जंगल काट, पहाड़ खोदकर
ताल पाटता महल न जाने.
भू करवट बदले तो पल में-
मिट जायेंगे सब अफसाने..
सरवर सलिल समुद्र नदी में
खिल इन्दीवर कुई बताता
हरिपद-श्रीकर, श्रीपद-हरिकर
कृपा करें पर भेद न माने..
कुंद कुमुद क्षीरज नीरज
नित सौगन्धिक का गान कर रहा.
सरसिज, अलिप्रिय, अब्ज, रोचना
श्रम-सीकर से
स्नान कर रहा.....
*
पुण्डरीक सिंधुज वारिज
तोयज उदधिज नव आस जगाता.
कुमुदिनि, कमलिनि, अरविन्दिनी के
अधरों पर शशि हास सजाता..
पनघट चौपालों अमराई
खलिहानों से अपनापन रख-
नीला लाल सफ़ेद जलज हँस
सुख-दुःख एक सदृश बतलाता.
उत्पल पुंग पद्म राजिव
निर्मलता का भान कर रहा.
जलरुह अम्बुज अम्भज कैरव
श्रम-सीकर सेस्नान कर रहा.....
*
बिसिनी नलिन सरोज कोकनद
जाति-धर्म के भेद न मानें.
मन मिल जाए ब्याह रचायें-
एक गोत्र का खेद न जानें..
दलदल में पल दल न बनाते,
ना पंचायत, ना चुनाव ही.
शशिमुख-रविमुख रह अमिताम्बुज
बैर नहीं आपस ठानें..
अमलतास हो या पलाश
पुहकर पुष्कर का गान कर रहा.
सौगन्धिक पुन्नाग अलोही
श्रम-सीकर से स्नान कर रहा.....
*
चित्र : कमलासना, कमलनयन, पद कमल, कमल मुखी के कर कमलों की कमल मुद्रा, कमल-जड़, कमल-बीज, कमल-नाल (मृणाल), कमल- पत्र, कमल-जड़ के टुकड़े, कमल-गट्टा.
***
दोहा सलिला
दिव्या भव्या बन सकें, आत्मा यदि हो चाह.
नित्य नयी मंजिल चुने, भले कठिन हो राह..
*
प्रेम परिश्रम ज्ञान के, तीन वेद का पाठ.
करे 'सलिल' पंकज बने, तभी सही हो ठाठ..
*
छंद शर्करा-नमक है, कविता में रस घोल.
देता नित आनंद नव, कहे अबोले बोल..
*
कर्ता कारक क्रिया का, करिए सही चुनाव.
सहज भाव अभिव्यक्ति हो, तजिए कठिन घुमाव..
*
बिम्ब-प्रतीकों से 'सलिल', अधिक उभरता भाव.
पाठक समझे कथ्य को, मन में लेकर चाव..
*
अलंकार से निखरता, है भाषा का रूप.
बिन आभूषण भिखारी, जैसा लगता भूप..
*
रस शब्दों में घुल-मिले, करे सारा-सम्प्राण.
नीरसता से हो 'सलिल', जग-जीवन निष्प्राण..
*
कथनी-करनी में नहीं, 'सलिल' रहा जब भेद.
तब जग हमको दोष दे, क्यों? इसका है खेद..
*
मन में कुछ रख जुबां पर, जो रखते कुछ और.
सफल वही हैं आजकल, 'सलिल' यही है दौर..
*
हिन्दी के शत रूप हैं, क्यों उनमें टकराव?
कमल पंखुड़ियों सम सजें, 'सलिल' न हो बिखराव..
*
जगवाणी हिन्दी हुई, ऊँचा करिए माथ.
जय हिन्दी, जय हिंद कह, 'सलिल' मिलाकर हाथ..
१४-७-२०१०

रविवार, 7 मई 2023

अवतार छंद, बाल गीत, शुभ प्रभात, माँ, मुक्तक,

छंद सलिला:
अवतार छंद
*
छंद-लक्षण: जाति रौद्राक, प्रति चरण मात्रा २३ मात्रा, यति १३ - १०, चरणान्त गुरु लघु गुरु (रगण) ।
लक्षण छंद:
दुष्ट धरा पर जब बढ़ें / तभी अवतार हो
तेरह दस यति, रगण रख़ / अंत रसधार हो
सत-शिव-सुंदर ज़िंदगी / प्यार ही प्यार हो
सत-चित-आनँद हो जहाँ / दस दिश दुलार हो
उदाहरण:
१. अवतार विष्णु ने लिये / सब पाप नष्ट हो
सज्जन सभी प्रसन्न हों / किंचित न कष्ट हो
अधर्म का विनाश करें / धर्म ही सार है-
ईश्वर की आराधना / सच मान प्यार है
२. धरती की दुर्दशा / सब ओर गंदगी
पर्यावरण सुधारना / ईश की बंदगी
दूर करें प्रदूषण / धरा हो उर्वरा
तरसें लेनें जन्म हरि / स्वर्ग है माँ धरा
३. प्रिय की मुखछवि देखती / मूँदकर नयन मैं
विहँस मिलन पल लेखती / जाग-कर शयन मैं
मुई बेसुधी हुई सुध / मैं नहीं मैं रही-
चक्षु से बही जलधार / मैं छिपाती रही.
६-५-२०१४
*********
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामिनीमोहन, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, नित, निधि, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदनअवतार, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, योग, ऋद्धि, रसामृत, राजीव, राधिका, रामा, लीला, वाणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, सरस, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, हरि, हेमंत, हंसगति, हंसी)
***
बाल गीत:
शुभ प्रभात
***
शुभ प्रभात, गुड मोर्निंग,
आओ! खेलें खेल।
उछलें-कूदें, नाचें-गायें-
रख आपस में मेल।
*
कलियों से सीखें मुस्काना,
फूलों से नित खिलना।
चिड़ियों से सीखें संग रहना-
आसमान में उड़ना।
चलो! तोड़ दें बैर-भाव की-
मिलकर आज नकेल…
*
हरियाली दे शुद्ध हवा हँस,
बादल देता छैयां।
धूप अँधेरा हरकर थामे-
उजियारे की बैयां।
कोयल कहती मीठा बोलो
छोडो दूर झमेल
६-५-२०१३
***
मुक्तक 
माँ 
*
तन पुलकित, मन सुरभित करतीं, माँ की सुधियाँ पुरवाई सी.
दोहा गीत गजल कुण्डलिनी, मुक्तक छप्पय रूबाई सी..
मन को हुलसित-पुलकित करतीं, यादें 'सलिल' डुबातीं दुख में-
होरी गारी बन्ना बन्नी, सोहर चैती शहनाई सी..
*
मानस पट पर अंकित नित नव छवियाँ ऊषा अरुणाई सी.
तन पुलकित, मन सुरभित करतीं, माँ की सुधियाँ पुरवाई सी..
प्यार हौसला थपकी घुड़की, आशीर्वाद दिलासा देतीं-
नश्वर जगती पर अविनश्वर विधि-विधना की परछांई सी..
*
उँगली पकड़ सहारा देती, गिरा उठा गोदी में लेती.
चोट मुझे तो दर्द उसे हो, सुखी देखकर मुस्का देती.
तन पुलकित, मन सुरभित करतीं, माँ की सुधियाँ पुरवाई सी-
'सलिल' अभागा माँ बिन रोता, श्वास -श्वास है रुसवाई सी..
*
जन्म-जन्म तुमको माँ पाऊँ, तब हो क्षति की भरपाई सी.
दूर हुईं जबसे माँ तबसे घेरे रहती तन्हाई सी.
अंतर्मन की पीर छिपाकर, कविता लिख मन बहला लेता-
तन पुलकित, मन सुरभित करतीं, माँ की सुधियाँ पुरवाई सी
*
कौशल्या सी ममता तुममें, पर मैं राम नहीं बन पाया.
लाड़ दिया जसुदा सा लेकिन, नहीं कृष्ण की मुझमें छाया.
मूढ़ अधम मुझको दामन में लिए रहीं तुम निधि पाई सी.
तन पुलकित, मन सुरभित करतीं, माँ की सुधियाँ पुरवाई सी
***
गीत :
जब - तब
*

अभिषेक किया जब अक्षर का

तब कविता का दीदार मिला.
शब्दों की आराधना करी-
तब भावों का स्वीकार मिला.
जब छंद बसाया निज उर में
तब कविता के दर्शन पाये.
पर पीड़ा जब अपनी समझी
तब जीवन के स्वर मुस्काये.
जब वहम अहम् का दूर हुआ
तब अनुरागी मन सूर हुआ.
जब रत्ना ने ठोकर मारी
तब तुलसी जग का नूर हुआ.
जब खुद को बिसराया मैंने
तब ही जीवन मधु गान हुआ.
जब विष ले अमृत बाँट दिया
तब मन-मंदिर रसखान हुआ..
जब रसनिधि का सुख भोग किया
तब 'सलिल' अकिंचन दीन हुआ.
जब जस की तस चादर रख दी
तब हाथ जोड़ रसलीन हुआ..
६-५-२०१०

***

शनिवार, 13 मार्च 2021

बाल गीत 'शुभ प्रभात'

बाल गीत 
'शुभ प्रभात'
संजीव 'सलिल' 
*
खिड़की पर बैठी हुई, मीत गुनगुनी धूप. 
'शुभ प्रभात' कह रही है, तुमको हवा अरूप. 
चूँ-चूँ कर चिड़िया कहे: 'जगो, हो गयी भोर. 
आलस छोडो कह रही है मैया झकझोर. 
खड़ी द्वार पर सफलता, उठो, मिलाओ हाथ.
 'सलिल' परिश्रम जो करे, किस्मत उसके साथ.
*
१३-३-२०१० 

मंगलवार, 14 जुलाई 2020

शुभ प्रभात


देश प्रथम, दल रहे बाद में
शुभ प्रभात
आम प्रथम, हो खास बाद में
शुभ प्रभात
दीनबंधु बन खुशी लुटाये
शुभ प्रभात
कुछ पौधों को वृक्ष बना दें
शुभ प्रभात

सोमवार, 6 जुलाई 2020

मुक्तक

मुक्तक:
*
भारती की आरती है शुभ प्रभात
स्वच्छता ही तारती है शुभ प्रभात
हरियाली चूनर भू माँ को दो-
मैया मनुहारती है शुभ प्रभात
*
झुक बुजुर्ग से आशिष लेना शुभ प्रभात है
छंदों में नव भाव पिरोना शुभ प्रभात है
आशा की नव फसलें बोना शुभ प्रभात है
कोशिश कर अवसर ना खोना शुभ प्रभात है
*
गरज-बरसकर मेघ, कह रहे शुभ प्रभात है
योग भगाए रोग करें, कह शुभ प्रभात है
लगा-बचाकर पौध, कहें हँस शुभ प्रभात है
स्वाध्याय कर, रचें नया कुछ शुभ प्रभात है
***
६-७-२०१७ 

मुक्तक

मुक्तक:
*
गरज-बरसकर मेघ, कह रहे शुभ प्रभात है
योग भगाए रोग करें, कह शुभ प्रभात है
लगा-बचाकर पौध कहें हँस शुभ प्रभात है
स्वाध्याय कर, रचें नया कुछ शुभ प्रभात है
***

शनिवार, 27 जुलाई 2019

दोहा दुनिया - शुभ प्रभात

दोहा दुनिया :
शुभ प्रभात
*
रह प्रशांत रच छंद तो, शुभ प्रभात हो आप
गौरैया कलरव करे, नाद सके जग व्याप 
*

खुली हवा में सांस ले, जी भर फिर दे छोड़ 
शुभ प्रभात कह गगन से, सुत सम नाता जोड़
*
पैर जमा जब धरा पर, कर करबद्ध प्रणाम 
माता तेरी गोद में, आता पुत्र अनाम  
*
अष्ट दिशाओं को नमन, कर कह 'रहना साथ
जितने दिन भी मैं जिऊँ, कभी न नत हो माथ' 

अँजुरी भरकर सलिल से, चेहरे पर छिड़काव 
कर- प्रभु का सुमिरन करो, मेटो ईश अभाव
*
सब छोटों को याद कर, मन से दो आशीष
जहाँ रहें सुख से रहें, हो संजीव मनीष 
*
जड़-चेतन से पुलक कह, शत वंदन आभार 
जीवन भर पा-दे सकूँ, वर दो साथी प्यार 
*
संजीव 
२७-७-२०१९ 
७९९९५५९६१८ 


रविवार, 14 जुलाई 2019

शुभ प्रभात 
*
देश प्रथम, दल रहे बाद में 
शुभ प्रभात
आम प्रथम, हो खास बाद में
शुभ प्रभात 
दीनबंधु बन खुशी लुटाये
शुभ प्रभात
कुछ पौधों को वृक्ष बना दें
शुभ प्रभात

गुरुवार, 6 जुलाई 2017

muktak

मुक्तक:
*

भारती की आरती है शुभ प्रभात
स्वच्छता ही तारती है शुभ प्रभात
हरियाली चूनर भू माँ को दो- 
मैया मनुहारती है शुभ प्रभात
झुक बुजुर्ग से आशिष लेना शुभ प्रभात है 
छंदों में नव भाव पिरोना शुभ प्रभात है 
आशा की नव फसलें बोना शुभ प्रभात है 
कोशिश कर अवसर ना खोना शुभ प्रभात है 
गरज-बरसकर मेघ, कह रहे शुभ प्रभात है 
योग भगाए रोग करें, कह शुभ प्रभात है 
लगा-बचाकर पौध, कहें हँस शुभ प्रभात है 
स्वाध्याय कर, रचें नया कुछ शुभ प्रभात है 

***
#हिंदी_ब्लॉगर 

सोमवार, 6 मई 2013

HINDI RHYME: SHUBH PRABHAT SANJIV

बाल गीत:
शुभ प्रभात
संजीव 'सलिल' 
***
 

शुभ प्रभात, गुड मोर्निंग,
आओ! खेलें खेल।
उछलें-कूदें, नाचें-गायें-
रख आपस में मेल।
*
कलियों से सीखें मुस्काना,
फूलों से नित खिलना।
चिड़ियों से सीखें संग रहना-
आसमान में उड़ना।
चलो! तोड़ दें बैर-भाव की-
मिलकर आज नकेल…
*
हरियाली दे शुद्ध हवा हँस,
बादल देता छैयां।
धूप अँधेरा हरकर थामे-
उजियारे की बैयां।
कोयल कहती मीठा बोलो
छोडो दूर झमेल
*