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शुक्रवार, 18 सितंबर 2020

संस्मरण : सीख - महेश सोनी

संस्मरण : सीख                                                                                                                                                                                     महेश सोनी 

एक दिन, मेरे पिता ने हलवे से भरे २ कटोरे ,मेज़ पर रखे। एक के ऊपर २ बादाम थे, जबकि दूसरे कटोरे में हलवे के ऊपर कुछ नहीं था।      फिर उन्होंने मुझे हलवे का कोई एक कटोरा चुनने के लिए कहा, क्योंकि उन दिनों तक हम गरीबों के घर बादाम आना मुश्किल था। मैंने २ बादाम वाले कटोरे को चुना!  मैं अपने बुद्धिमान विकल्प / निर्णय पर खुद को बधाई दे रहा था, और जल्दी जल्दी मुझे मिले २ बादाम हलवा खा रहा था परंतु मेरे आश्चर्य का ठिकाना नही था, जब मैंने देखा कि की मेरे पिता वाले कटोरे के नीचे ४ बादाम छिपे थे!

बहुत पछतावे के साथ, मैंने अपने निर्णय में जल्दबाजी करने के लिए खुद को डाँटा। मेरे पिता मुस्कुराए और मुझे यह याद रखना सिखाया कि आपकी आँखें जो देखती हैं वह हरदम सच नहीं हो सकता, उन्होंने कहा कि यदि आप स्वार्थ की आदत की अपनी आदत बना लेते हैं तो आप जीत कर भी हार जाएंगे।

अगले दिन, मेरे पिता ने फिर से हलवे से भरे २  कटोरे  टेबल पर रक्खे एक कटोरा के शीर्ष पर २ बादाम और दूसरा कटोरा जिसके ऊपर कोई बादाम नहीं था। फिर से उन्होंने मुझे अपने लिए कटोरा चुनने को कहा। इस बार मुझे कल का संदेश याद था, इसलिए मैंने शीर्ष पर बिना किसी बादाम कटोरी को चुना परंतु मेरे आश्चर्य करने के लिए इस बार इस कटोरे के नीचे एक भी बादाम नहीं छिपा था! 

मेरे पिता ने मुस्कुराते हुए मुझसे कहा, "मेरे बच्चे, आपको हमेशा अनुभवों पर भरोसा नहीं करना चाहिए, क्योंकि कभी-कभी, जीवन आपको धोखा दे सकता है या आप पर चालें खेल सकता है स्थितियों से कभी भी ज्यादा परेशान या दुखी न हों, बस अनुभव को एक सबक अनुभव के रूप में समझें, जो किसी भी पाठ्यपुस्तकों से प्राप्त नहीं किया जा सकता है।

तीसरे दिन, मेरे पिता ने फिर से हलवे से भरे २ कटोरे रखे। पहले २दिन की ही तरह, एक कटोरे के ऊपर २ बादाम, और दूसरे के शीर्ष पर कोई बादाम नहीं। मुझे उस कटोरे को चुनने के लिए कहा जो मुझे चाहिए था लेकिन इस बार, मैंने अपने पिता से कहा, पिताजी, आप पहले चुनें, आप परिवार के मुखिया हैं और आप परिवार में सबसे ज्यादा योगदान देते हैं । आप मेरे लिए जो अच्छा होगा वही चुनेंगे।

मेरे पिता मेरे लिए खुश थे। उन्होंने शीर्ष पर २ बादाम के साथ कटोरा चुना, लेकिन जैसा कि मैंने अपने  कटोरे का हलवा खाया!  कटोरे के हलवे के एकदम नीचे ८ बादाम और थे। मेरे पिता मुस्कुराए और मेरी आँखों में प्यार से देखते हुए, उन्होंने कहा मेरे बच्चे, तुम्हें याद रखना होगा कि, जब तुम भगवान पर सब कुछ छोड़ देते हो, तो वे हमेशा तुम्हारे लिए सर्वोत्तम का चयन करेंगे। जब तुम दूसरों की भलाई के लिए सोचते हो, अच्छी चीजें स्वाभाविक तौर पर आपके साथ भी हमेशा होती रहेंगी ।

शिक्षा:  बड़ों का सम्मान करते हुए उन्हें पहले मौका व स्थान देवें, बड़ों का आदर-सम्मान करोगे तो कभी भी खाली हाथ नही लौटोगे ।   "अनुभव व  दृष्टि का ज्ञान व विवेक के साथ सामंजस्य हो जाये बस यही सार्थक जीवन है।"

***

बुधवार, 26 जून 2013

Teachings: maa --swami vivekanand

    एक सीख !      
माँ
स्वामी विवेकानन्द



                           
एक युवक ने स्वामी विवेकानन्द जी से पूछा: 'स्वामी जी मैं अपनी माँ का क़र्ज़ किस तरह अदा कर सकता हूँ?' 
                              
स्वामी जी धीरे से मुस्कराए और उससे कहा: 'आज जब तुम काम पर जाओ तो एक छोटा पत्थर किसी कपडे में लपेटकर अपने पेट पर बांध लेना, फिर शाम को मुझसे आकर मिलना।' 
                             
युवक स्वामी जी की बात सुनकर चला गया और उसने वही किया जैसा स्वामी जी ने उससे करने को कहा थ। 
           
शाम होते ही युवक स्वामी जी के पास आया।  स्वामी जी ने उससे को पूछा: 'कहो कैसा रहा आज का दिन?' 
                
युवक बोला: 'स्वामी जी बहुत परेशानी हुई इस पत्थर की वजह से।'! 
               
स्वामी जी मुस्कराए और कहां: 'तुम्हें अपने सवाल का जवाब मिल गया? माँ अपनी औलाद को ९ महीने पेट में पालती है लेकिन जरा सी भी परेशान नही होती और तुम बस एक ही दिन में इतना परेशान हो गए। माँ का क़र्ज़ कोई भी अदा नही कर सकता।'