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रविवार, 4 अगस्त 2019

कृति चर्चा: ''पाखी खोले पंख'' श्रीधर प्रसाद द्विवेदी

कृति चर्चा: 
''पाखी खोले पंख'' : गुंजित दोहा शंख 
[कृति विवरण: पाखी खोले शंख, दोहा संकलन, श्रीधर प्रसाद द्विवेदी, प्रथम संस्करण, २०१७, आकार २२ से.मी. x १४ से.मी., पृष्ठ १०४, मूल्य ३००/-, आवरण सजिल्द बहुरंगी जैकेट सहित, प्रगतिशील प्रकाशन दिल्ली, दोहाकार संपर्क अमरावती। गायत्री मंदिर रोड, सुदना, पलामू, ८२२१०२ झारखंड, चलभाष ९४३१५५४४२८, ९९३९२३३९९३, ०७३५२९१८०४४, ईमेल sp.dwivedi7@gmail.com]
*
दोहा चेतन छंद है, जीवन का पर्याय
दोहा में ही छिपा है, रसानंद-अध्याय 
*
रस लय भाव प्रतीक हैं, दोहा के पुरुषार्थ 
अमिधा व्यंजन लक्षणा, प्रगट करें निहितार्थ 
*
कत्था कथ्य समान है, चूना अर्थ सदृश्य  
शब्द सुपारी भाव है, पान मान सादृश्य 
*
अलंकार-त्रै शक्तियाँ, इलायची-गुलकंद
जल गुलाब का बिम्ब है, रसानंद दे छंद 
*
श्री-श्रीधर नित अधर धर, पान करें गुणगान 
चिंता हर हर जीव की, करते तुरत निदान 
*
दोहा गति-यति संतुलन,  नर-नारी का मेल 
पंक्ति-चरण मग-पग सदृश, रचना विधि का खेल 
*
कवि पाखी पर खोलकर, भरता भाव उड़ान 
पूर्व करे प्रभु वंदना, दोहा भजन समान  
*
अन्तस् कलुष मिटाइए, हरिए तमस अशेष। 
उर भासित होता रहे, अक्षर ब्रम्ह विशेष।।                 पृष्ठ २१  
*
दोहानुज है सोरठा, चित-पट सा संबंध 
विषम बने सम, सम-विषम, है अटूट अनुबंध 
*
बरबस आते ध्यान, किया निमीलित नैन जब। 
हरि करते कल्याण, वापस आता श्वास तब।।           पृष्ठ २४ 
*
दोहा पर दोहा रचे, परिभाषा दी ठीक  
उल्लाला-छप्पय  सिखा, भली बनाई लीक 
*
उस प्रवाह में शब्द जो, आ जाएँ 'अनयास'।               पृष्ठ २७ 
शब्द विरूपित हो नहीं, तब ही सफल प्रयास 
*
ऋतु-मौसम पर रचे हैं, दोहे सरस  विशेष      
रूप प्रकृति का समाहित, इनमें हुआ अशेष 
*
शरद रुपहली चाँदनी, अवनि प्रफुल्लित गात। 
खिली कुमुदिनी ताल में, गगन मगन मुस्कात।।      पृष्ठ २९ 
*
दिवा-निशा कर एक सा, आया शिशिर कमाल। 
बूढ़े-बच्चे, विहग, पशु, भये विकल बेहाल।।              पृष्ठ २१   
*
मन फागुन फागुन हुआ, आँखें सावन मास।
नमक छिड़कते जले पर, कहें लोग मधुमास।।          पृष्ठ ३१

शरद-घाम का सम्मिलन, कुपित बनाता पित्त। 
झरते सुमन पलाश वन, सेमल व्याकुल चित्त।।       पृष्ठ ३३ 

बादल सूरज खेलते,  आँख-मिचौली खेल। 
पहुँची नहीं पड़ाव तक, आसमान की रेल।।               पृष्ठ ३५ 
*
बरस रहा सावन सरस्, साजन भीगे द्वार। 
घर आगतपतिका सरस, भीतर छुटा फुहार।।            पृष्ठ ३६
*
उपमा रूपक यमक की,  जहँ-तहँ छटा विशेष 
रसिक चित्त को मोहता, अनुप्रास अरु श्लेष 
*
जेठ सुबह सूरज उगा, पूर्ण कला के साथ। 
ज्यों बारह आदित्य मिल, निकले नभ के माथ।।       पृष्ठ ३९    
*
मटर 'मसुर' कटने लगे, रवि 'उष्मा' सा तप्त             पृष्ठ ४३ / ४५ 
शब्द विरूपित यदि न हों, अर्थ करें विज्ञप्त 
*
कवि-कौशल है मुहावरे, बन दोहा का अंग 
वृद्धि करें चारुत्व की, अगिन बिखेरें रंग 
*
उनकी दृष्टि कपोल पर, इनकी कंचुकि कोर। 
'नयन हुए दो-चार' जब, बँधे प्रेम की डोर।।                 पृष्ठ ४६ 

'आँखों-आँखों कट गई', करवट लेते रैन।
कान भोर से खा रही, कर्कश कोकिल बैन।।                पृष्ठ ४७  २४ 
*
बना घुमौआ चटपटा, अद्भुत रहता स्वाद। 
'मुँह में पानी आ गया', जब भी आती याद।।               पृष्ठ ४९

दल का भेद रहा नहीं, लक्ष्य सभी का एक। 
'बहते जल में हाथ धो', 'अपनी रोटी सेंक'।।                पृष्ठ ५४ 
*
बाबा व्यापारी हुए, बेचें आटा-तेल। 
कोतवाल सैंया बना, खूब जमेगा खेल।।                     पृष्ठ ७७ 

कई देश पर मर मिटे, हिन्दू-तुर्क न भेद। 
कई स्वदेशी खा यहाँ, पत्तल-करते छेद।।                  पृष्ठ ७४

अरे! पवन 'कहँ से मिला', यह सौरभ सौगात।             पृष्ठ ४७ 
शब्द लिंग के दोष दो, सहज मिट सकें भ्रात।। 
*
'अरे पवन पाई कहाँ, यह सौरभ सौगात' 
कर त्रुटि कर लें दूर तो, बाधा कहीं न तात  
*
झूमर कजरी की कहीं, सुनी न मीठी बोल।                  पृष्ठ ४८ 
लिंग दोष दृष्टव्य है, देखें किंचित झोल 
*
'झूमर-कजरी का कहीं, सुना न मीठा बोल         
पता नहीं खोया कहाँ, शादीवाला ढोल 
*
पर्यावरण बिगड़ गया, जीव हो गए लुप्त 
श्रीधर को चिंता बहुत, मनुज रहा क्यों सुप्त?
*
पता नहीं किस राह से, गिद्ध गए सुर-धाम। 
बिगड़ा अब पर्यावरण, गौरैया गुमनाम।।                 पृष्ठ ५८  
*
पौधा रोपें  तरु बना, रक्षा करिए मीत 
पंछी आ कलरव करें, सुनें मधुर संगीत
*
आँगन में तुलसी लगा, बाहर पीपल-नीम। 
स्वच्छ वायु मिलती रहे, घर से दूर हकीम।।            पृष्ठ ५८ 
*
देख विसंगति आज की, कवि कहता युग-सत्य
नाकाबिल अफसर बनें, काबिल बनते भृत्य 
*
कौआ काजू चुग रहा, चना-चबेना हंस। 
टीका उसे नसीब हो, जो राजा का वंश।।                    पृष्ठ ६१ / ३६ 
*
मानव बदले आचरण, स्वार्थ साध हो दूर 
कवि-मन आहत हो कहे, आँखें रहते सूर 
*
खेला खाया साथ में, था लँगोटिया यार। 
अब दर्शन दुर्लभ हुआ, लेकर गया उधार।।               पृष्ठ ६४ 
*
'पर सब कहाँ प्रत्यक्ष हैँ, मीडिया पैना दर्भ                 पृष्ठ ७०/६१ 
चौदह बारह कलाएँ, कहते हैं संदर्भ 
*
अलंकार की छवि-छटा, करे चारुता-वृद्धि 
रूपक उपमा यमक से, हो सौंदर्य समृद्धि 
*
पानी देने में हुई, बेपानी सरकार। 
बिन पानी होने लगे, जीव-जंतु लाचार।।                   पृष्ठ ७९ 
*
चुन-चुन लाए शाख से, माली विविध प्रसून।              पृष्ठ ७७  
बहु अर्थी है श्लेष ज्यों, मोती मानुस चून 
*
आँख खुले सब मिल करें, साथ विसंगति दूर   
कवि की इतनी चाह है, शीश न बैठे धूर 
*
अमिधा कवि को प्रिय अधिक, सरस-सहज हो कथ्य  
पाठक-श्रोता समझ ले, अर्थ न चूके तथ्य 
*
दर्शन दोहों में निहित, सहित लोक आचार 
पढ़ सुन समझे जो इन्हें, करे श्रेष्ठ व्यवहार 
*
युग विसंगति-चित्र हैं, शब्द-शब्द साकार 
जैसे दर्पण में दिखे, सारा सच साकार 
*
श्रेष्ठ-ज्येष्ठ श्रीधर लिखें, दोहे आत्म उड़ेल 
मिले साथ परमात्म  भी, डीप-ज्योति का खेल 
***
चर्चाकार : आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' 
विश्व वाणी हिंदी संस्थान,  
४०१ विजय अपार्टमेंट नेपियर टाउन जबलपुर  ४८२००१ 
चलभाष: ९४२५१ ८३२४४। ईमेल salil.sanjiv@gmail.com

गुरुवार, 1 अगस्त 2019

समीक्षा ; सुधियों की देहरी पर

समीक्षा ;
सुधियों की देहरी पर - दोहों की अँजुरी 
समीक्षाकार आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
*
[कृति विवरण: सुधियों की देहरी पर, दोहा संग्रह, तारकेश्वरी तरु 'सुधि', प्रथम संस्करण २०१९, आई.एस.बी.एन. ९७८९३८८४७१४८०, आकार २१.५ से.मी. x १४ से.मी., आवरण सजिल्द बहुरंगी, जैकेट सहित, पृष्ठ ९५, मूल्य २००/-, अयन प्रकाशन दिल्ली,दोहाकार संपर्क : ९८२९३८९४२६, ईमेल tarkeshvariy@gmail.com]
*
दोहा के उद्यान में, मुकुलित पुष्प अशेष 
तारकेश्वरी तरु 'सुधि', परिमल लिए विशेष 
*
प्रथम सुमन अंजुरी लिए, आई पूजन ईश 
गुणिजन दें आशीष हों, इस पर सदय सतीश  
*
दोहा द्विपदी दूहरा, छंद पुरातन ख़ास 
जीवन की हर छवि-छटा, बिम्बित लेकर हास 
*
तेरह-ग्यारह कल बिना, दोहा बने न मीत
गुरु-लघु रखें पदांत हो, लय की हरदम जीत 
*
लिए व्यंजना बन सके, दोहा सबका मित्र 
'सलिल' लक्षणा खींच दे, शब्द-शब्द में चित्र 
*
शब्द शक्ति की कर सके, दोहा हँस जयकार 
अलंकार सज्जित छटा, मोहक जग बलिहार 
*
'सुधि' गृहणी शिक्षिका भी, भार्या-माता साथ 
कलम लिए दोहा रचे, जाने कितने हाथ 
*
एक समय बहु काम कर, बता रही निज शक्ति 
छंद-राज दोहा रुचे, अनुपम है अनुरक्ति 
*
सुर वंदन की प्रथा का, किया विनत निर्वाह 
गणपति-शारद मातु का, शुभाशीष ले चाह  
*
करे विसंगति उजागर, सुधरे तनिक समाज 
पाखंडों का हो नहीं, मानव-मन पर राज
*
"अंदर से कुछ और हैं, बाहर से कुछ और।  
  किस पर करें यकीन अब, अजब आज का दौर।।" पृष्ठ १७ 
*
नातों में बाकी नहीं, अपनापन-विश्वास 
सत्य न 'तरु' को सुहाता, मन पाता है त्रास
"आता कोई भी नहीं, बुरे वक़्त में पास।  
 रंग दिखाएँ लोग वे, जो बनते हैं खास।।"    पृष्ठ २० 
*
'तरु' को अपने देश पर, है सचमुच अभिमान 
दोहा साक्षी दे रहा, कर-कर महिमा-गान 
*
उन्नत भाषा सनाकृति, मूल्य सोच परिवेश।  
इनसे ही है विश्व गुरु अपना भारत देश।।    पृष्ठ २२ 
*
अलंकार संपन्नता दोहों का वैशिष्ट्य 
रूपक उपमा कथ्य से, कर पाते नैकट्य 
*
उपवन में विचरण करे, मन-हिरणा उन्मुक्त।  
ख्वाहिश बनी बहेलिया, करती माया मुक्त।। पृष्ठ २३ 
*
समता नहीं समाज में, क्यों? अनबूझ सवाल 
सबको सम अवसर मिलें, होंगे दूर बवाल 
*
ऊँच-नीच औ' जन्म पर, क्यों टिक गया विवाद। 
करिए मन-मस्तिष्क को समता से आबाद।।  पृष्ठ २४ 
*
कन्या भ्रूण न हननिए, वह जग जननी जान 
दोहा दे संदेश यह, कहे कर कन्या का मान 
*
करो न हत्या गर्भ में, बेटी तेरा वंश। 
रखना है अस्तित्व में उसे किसी का वंश।। पृष्ठ २७   
*
त्रुटि हो उसे सुधारिए, छिपा न करिए भूल 
रोगों का उपचार हो, सार्थक यही उसूल 
*
करती हूँ मैं गलतियाँ, होती मुझसे भूल। 
गिरकर उठ जाना सदा मेरा रहा उसूल।। पृष्ठ २८
*
साँस न जब तक टूटती, सीखें सबक सदैव 
खुद को ज्ञानी समझना, करिए दूर कुटैव 
*
किसी मोड़ पर तुम नहीं, करो सीखना बंद।    
जीवन को परवाज़ ही, देता ज्ञान स्वछंद ।। पृष्ठ ३०  
*
पंछी चूजे पालते, बढ़ होते वे दूर 
मनुज न चाहे दूर हों, सहते हो मजबूर 
*
खून-पसीना एक कर, बच्चे किए जवान। 
बसे मगर परदेस में, घर करके वीरान ।। पृष्ठ ३३    
*
घर की रौनक बेटियाँ, वे घर का सम्मान। 
उन्हें कलंकित मत करो, 'देना' सीखो मान।। पृष्ठ ३५ 
*
'देना' सीखो मान या, 'करना' सीखो मान?
जो 'देते' हो 'दूर' वह, 'करते' 'पास' निदान 
*
गली-गली में खोलकर, अंग्रेजी स्कूल । पृष्ठ ३५ 
नौ मात्रिक दूजा चरण, फिर न करें यह भूल
*
कर्म आपका आपको, दे जाए सम्मान। 
ऐसे क्रिया कलाप से, खींचो सबका ध्यान।। पृष्ठ २६
*
सम्मानित है 'आप' पर, 'खींचो' आज्ञायुक्त। 
मेल न कर्ता-क्रिया में, शब्द चुनें उपयुक्त।।
*
आनेवाले वक़्त का, उसे न था कुछ भान। 
जल में उत्तरी नाव फिर, लड़ी संग तूफ़ान ।। पृष्ठ १९ 
*
'नाव' नहीं 'नाविक' लड़े, यहाँ तथ्य का दोष 
'चेतन' लड़ता 'जड़' नहीं, लें सुधार बिन रोष 
*
अब बेटी के वास्ते, हुआ जागरूक देश।          पृष्ठ १७ 
कल बारह-बारह यहाँ, गलती यहाँ विशेष 
*
खुद को करो समर्थ यह, है उपयुक्त निदान        
बनें बेटियाँ शक्तिमय, भारत की पहचान 
*
चलो ध्यान से बेटियों, कदम-कदम पर गिद्ध। 
तुम भी रखकर हौसला, करो स्वयं को सिद्ध ।। पृष्ठ ३६ 
*
'कर्म योग' का उचित है, देना शुभ संदेश 
'भाग्य वाद' की जय कहें, क्यों हम साम्य न लेश 
*
जिसका जितना है लिखा, देंगे दीनानाथ।       पृष्ठ ४० 
सत्य यही तो कर्म क्यों, कभी करेगा हाथ?
*
जिस घर भी पैदा हुई, खुशियाँ बसीं अपार। 
बेटी से ही सृष्टि को, मिलता है विस्तार।।       पृष्ठ ४०    
*
अर्ध सत्य ही है यहाँ, बेटे से भी वंश 
बढ़ता- संतति में रहे, मात-पिता का अंश 
*
बेटी से सपने जुड़े, वो है मेरी जान। 
जुडी उसे से भावना, वही सुखों की खान ।।     पृष्ठ ६६ 
*
अतिरेकी है सोच यह, एकाकी है कथ्य 
बेटे-बेटी सम लगें, मात-पिता को- तथ्य          
*
रगड़-रगड़ कर धो लिए, तन के वस्त्र मलीन। 
मन का कैसे साफ़ हो, गंदा जो कालीन ।। पृष्ठ ८० 
*
बात सही तन-मन रखें, दोनों ही हम साफ़ 
वरना कभी करें नहीं, प्रभु जी हमको माफ़ 
*
शब्द न कोई भी रहे, दोहे में बिन अर्थ 
तब सार्थकता बढ़े हो, दोहाकार समर्थ 
*
भाषा शैली सहज है, शब्द चयन अनुकूल 
पहली कृति में क्षम्य हैं, यत्र-तत्र कुछ भूल 
*
'तरु' में है संभावना, दोहा ज्यों हो सिद्ध 
अधिक सारगर्भित बने, भाव रहें आबिद्ध     
*
दोहा-'तरु' में खिल सकें, सुरभित पुष्प अनेक 
'सलिल' सींच दें 'सुधि' सहित, रख 'संजीव' विवेक 
*
'तारकेश्वरी' ने किया, सार्थक सृजन प्रयास 
बहुत बधाई है उन्हें, सिद्धि बहुत है पास 
*
अगला दोहा संकलन, शीघ्र छपे आशीष 
दोहा-संसद मिल कहे, दोहाकार मनीष  ४९ 
*
होती है मुश्किल बहुत, कहना सच्ची बात। 
बुरी बनूँ सच बोलकर, लेकिन करूँ न घात।। ।। पृष्ठ ९५ 
*
यही समीक्षक-धर्म है, यथाशक्ति निर्वाह 
करे 'सलिल' मत रूठ 'सुधि', बहुत ढेर सी 'वाह' 
***
समीक्षक: आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
विश्ववाणी हिंदी संस्थान, 
४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन,
जबलपुर ४८२००१ 
चलभाष: ७९९९५५९६१८ 
ईमेल : salil.sanjiv@gmail.com 

रविवार, 28 जुलाई 2019

दोहा दुनिया

दोहा दुनिया
*
जब तक मन उन्मन न हो, तब तक तन्मय हो न
शांति वरण करना अगर, कुछ अशान्ति भी बो न
*
तब तक कुछ मिलता कहाँ, जब तक तुम कुछ खो न.
दूध पिलाती माँ नहीं, बच्चा जब तक रो न.
*
खोज-खोजकर थक गया, किंतु मिला इस सा न.
और सभी कुछ मिला गया, मगर मिला उस सा न.
*
बहुत हुआ अब मानिए, रूठे रहिए यों न.
नीर-क्षीर सम हम रहे, मिल आपस में ज्यों न.
*
गँवा नहीं सकते कभी, जब तक लें कुछ पा न.
अधर अधर से मिल रचे, जब खाया हो पान.
२८-७-२०१८
*
संजीव 

शनिवार, 27 जुलाई 2019

दोहा दुनिया - शुभ प्रभात

दोहा दुनिया :
शुभ प्रभात
*
रह प्रशांत रच छंद तो, शुभ प्रभात हो आप
गौरैया कलरव करे, नाद सके जग व्याप 
*

खुली हवा में सांस ले, जी भर फिर दे छोड़ 
शुभ प्रभात कह गगन से, सुत सम नाता जोड़
*
पैर जमा जब धरा पर, कर करबद्ध प्रणाम 
माता तेरी गोद में, आता पुत्र अनाम  
*
अष्ट दिशाओं को नमन, कर कह 'रहना साथ
जितने दिन भी मैं जिऊँ, कभी न नत हो माथ' 

अँजुरी भरकर सलिल से, चेहरे पर छिड़काव 
कर- प्रभु का सुमिरन करो, मेटो ईश अभाव
*
सब छोटों को याद कर, मन से दो आशीष
जहाँ रहें सुख से रहें, हो संजीव मनीष 
*
जड़-चेतन से पुलक कह, शत वंदन आभार 
जीवन भर पा-दे सकूँ, वर दो साथी प्यार 
*
संजीव 
२७-७-२०१९ 
७९९९५५९६१८ 


दोहा सलिला

दोहा सलिला 
*
सद्गुरु ओशो ज्ञान दें, बुद्धि प्रदीपा ज्योत
रवि-शंकर खद्योत को, कर दें हँस प्रद्योत 
*

गुरु-छाया से हो सके, ताप तिमिर का दूर. 
शंका मिट विश्वास हो, दिव्य-चक्षु युत सूर.
*

गुरु गुरुता पर्याय हो, खूब रहे सारल्यदृढ़ता में गिरिवत रहे, सलिला सा तारल्य
*
गुरु गरिमा हो हिमगिरी, शंका का कर अंत 
गुरु महिमा मंदाकिनी, शिष्य नहा हो संत

*
गरज-गरज कर जा रहे, बिन बरसे घन श्याम. 
शशि-मुख राधा मानकर, लिपटे क्या घनश्याम.

*

शुक्रवार, 26 जुलाई 2019

दोहा सलिला

दोहा सलिलाः
संजीव
*
प्राची पर आभा दिखी, हुआ तिमिर का अन्त
अन्तर्मन जागृत करें, सन्त बन सकें सन्त
*
आशा पर आकाश टंगा है, कहते हैं सब लोग
आशा जीवन श्वास है, ईश्वर हो न वियोग
*
जो न उषा को चाह्ता, उसके फूटे भाग
कौन सुबह आकर कहे, उससे जल्दी जाग
*
लाल-गुलाबी जब दिखें, मनुआ प्राची-गाल
सेज छोड़कर नमन कर, फेर कर्म की माल
*
गाल टमाटर की तरह, अब न बोलना आप
प्रेयसि के नखरे बढ़ें, प्रेमी पाये शाप.
*
प्याज कुमारी से करे, युवा टमाटर प्यार
किसके ज्यादा भाव हैं?, हुई मुई तकरार
*

२६-७-२०१४ 

दोहा सलिला

दोहा सलिला
आभा जब आ भा कहे, तितली रंग बिखेर
कहे कली से खिल सखी, अब न अधिक कर देर
*
कमलमुखी ने हुलसकर, जब देखा निज रूप
लहरें संजीवित हुई,  सलिल हो गया भूप 
*
अंजुरी में ले सलिल को, लिया अधर ने चूम
हम भी कह मचले नयन, लगे मचाने धूम
*
चरण चम्पई सलिल छू, सिहरे ठिठके तीर
रतनारे नयना उठे, मिले चुभ गया तीर
*
सलिल संग संजीव हो, पुलकित हुई तरंग
उछल-कूद अल्हड करें मानों पी ली भंग
*
संजीव
२६-७-२०१९
७९९९५५९६१८     

गुरुवार, 25 जुलाई 2019

दोहा

दोहा:
तिमिर न हो तो रुचेगा, किसको कहो प्रकाश.
पाता तभी महत्त्व जब, तोड़े तम के पाश..
***
२०-७-२०११ 
salil.sanjiv@gmail.com
#दिव्यनर्मदा
#हिंदी_ब्लॉगर

दोहा रवि वसुधा का ब्याह

दोहा सलिला;
रवि-वसुधा के ब्याह में...
संजीव 'सलिल'
*
रवि-वसुधा के ब्याह में, लाया नभ सौगात.
'सदा सुहागन' तुम रहो, ]मगरमस्त' अहिवात..
सूर्य-धरा को समय से, मिला चन्द्र सा पूत.
सुतवधु शुभ्रा 'चाँदनी', पुष्पित पुष्प अकूत..
इठला देवर बेल से बोली:, 'रोटी बेल'.
देवर बोला खीझकर:, 'दे वर, और न खेल'..
'दूधमोगरा' पड़ोसी, हँसे देख तकरार.
'सीताफल' लाकर कहे:, 'मिल खा बाँटो प्यार'..
भोले भोले हैं नहीं, लीला करे अनूप.
बौरा गौरा को रहे, बौरा 'आम' अरूप..
मधु न मेह मधुमेह से, बच कह 'नीबू-नीम'.
जा मुनमुन को दे रहे, 'जामुन' बने हकीम..
हँसे पपीता देखकर, जग-जीवन के रंग.
सफल साधना दे सुफल, सुख दे सदा अनंग..
हुलसी 'तुलसी' मंजरित, मुकुलित गाये गीत.
'चंपा' से गुपचुप करे, मौन 'चमेली' प्रीत..
'पीपल' पी पल-पल रहा, उन्मन आँखों जाम.
'जाम' 'जुही' का कर पकड़, कहे: 'आइये वाम'..
बरगद बब्बा देखते, सूना पनघट मौन.
अमराई-चौपाल ले, आये राई-नौन..
कहा लगाकर कहकहा, गाओ मेघ मल्हार.
जल गगरी पलटा रहा, नभ में मेघ कहार..
*
salil.sanjiv@gmail.com
#दिव्यनर्मदा
#हिंदी_ब्लॉगर

बुधवार, 24 जुलाई 2019

गले मिले दोहा-यमक

दोहा सलिला 
गले मिले दोहा-यमक ३ 
*
गरज रहे बरसे नहीं, आवारा घन श्याम
नहीं अधर में अधर धर, वेणु बजाते श्याम 
*
कृष्ण वेणु के स्वर सुने, गोप सराहें भाग
सुन न सके वे जो रहे, श्री के पीछे भाग
*
हल धर कर हलधर चले, हलधर कर थे रिक्त
चषक थाम कर अधर पर, हुए अधर द्वय सिक्त
*
बरस-बरस घन बरस कर, करें धरा को तृप्त
गगन मगन बादल नचे, पर नर रहा अतृप्त
*
असुर न सुर को समझते, अ-सुर न सुर के मीत
ससुर-सुता को स-सुर लख, बढ़ा रहे सुर प्रीत
*
पग तल पर रख दो बढें, उनके पग तल लक्ष्य
हिम्मत यदि हारे नहीं, सुलभ लगे दुर्लक्ष्य
*
ताल तरंगें पवन संग, लेतीं पुलक हिलोर
पत्ते देते ताल सुन, ऊषा भाव-विभोर
*
दिल कर रहा न संग दिल, जो वह है संगदिल
दिल का बिल देता नहीं, नाकाबिल बेदिल
*
हसीं लबों का तिल लगे, कितना कातिल यार
बरबस परबस दिल हुआ, लगा लुटाने प्यार
*
दिलवर दिल वर झूमता, लिए दिलरुबा हाथ
हर दिल हर दिल में बसा, वह अनाथ का नाथ
*
रीझा हर-सिंगार पर, पुष्पित हरसिंगार
आया हरसिंगार हँस, बनने हर-सिंगार
*

दोहा - षट्पदी

दोहा सलिला
नेह नर्मदा कलम बन, लिखे नया इतिहास
प्राची तक का अन्त कर / देती रहे उजास
*
प्राची पर आभा दिखी, हुआ तिमिर का अन्त
अन्तर्मन जागृत करें, कंत बन सकें संत
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हास्य षट्पदी
संजीव
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फिक्र न ज्यादा कीजिए, आसमान पर भाव 
भेज उसे बाजार दें, जिसको आता ताव
जिसको आता ताव, शान्त वह हो जायेगा
थैले में पैसे ले खुश होकर जाएगा
सब्जी जेबों में लेकर रोता आएगा
'सलिल' अजायबघर में सब्जी देखें बच्चे
जियें फास्ट फुड खाकर, बनें नंबरी लुच्चे
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सोमवार, 22 जुलाई 2019

मुकतक महिला क्रिकेट

मुकतक महिला क्रिकेट
*
दीप्ति तम हरकर उजाला बाँट दे 
अब न शर्मा शतक से तम छांट दे
दस दिशाओं से सुनो तुम तालियाँ 
फाइनल लो जीत धोबीपाट दे
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एकता है तो मिलेगी विजय भी
गेंद की गति दिशा होगी मलय सी
खाए चक्कर ब्रिटिश बल्लेबाज सब 
तिरंगा फ़हरा सके, हो जयी भी
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स्मृति का बल्ला चला, गेंद हुई रॉकेट.
पलक झपकते नभ छुए, गेंदबाज अपसेट.
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दीप्ति कौंधती दामिनी, गिरे उड़ा दे होश.
चमके दमके निरंतर, कभी न रीते कोश.
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पूनम उतरी तो हुई,  अजब अनोखी बात.
घिरे विपक्षी तिमिर में,  कहें अमावस तात.
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शर संधाना तो हुई, टीम विरोधी ढेर. 
मंधाना के वार से,  नहीं किसी की खैर
२२.७.२०१७ 
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दोहा-यमक

दोहा-यमक 
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गले मिले दोहा यमक, गणपति दें आशीष। 
हो समृद्ध गणतंत्र यह, गणपति बने मनीष।। 
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वीणावादिनि शत नमन, साध सकूं कुछ राग ।
वीणावादिनि है विनत, मन में ले अनुराग। ।
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अक्षर क्षर हो दे रहा, क्षर अक्षर ज्ञान।
शब्द ब्रह्म को नमन कर, भव तरते मतिमान।।
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चित्र गुप्त है चित्र में, देख सके तो देख।
चित्रगुप्त प्रति प्रणत हो, अमिट कर्म का लेख।।
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दोहा ने दोहा सदा, भाषा गौ को मीत।
गीत प्रीत के गुँजाता, दोहा रीत पुनीत।।
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भेंट रहे दोहा-यमक, ले हाथों में हार।
हार न कोई मानता, प्यार हुआ मनुहार।।
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नीर क्षीर दोहा यमक, अर्पित पिंगल नाग।
बीन छंद, लय सरस धुन, झूम उठे सुन नाग।।
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गले मिले दोहा-यमक, झपट झपट-लिपट चिर मीत।
गले भेद के हिम शिखर, दमके ऐक्य पुनीत।।
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ग्यारह-तेरह यति रखें, गुरु-लघु हो पद अंत।
जगण निषिद्ध पदादि में, गुरु-लघु सम यति संत।।
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नाहक हक ना त्याग तू, ना हक पीछे भाग।
ना मन में अनुराग रख, ना तन में बैराग।।
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ना हक की तू माँग कर, कर पहले कर कर्तव्य।
नाहक भूला आज को, सोच रहा भवितव्य।।
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शुक्रवार, 19 जुलाई 2019

कुछ दोहे अनुप्रास के

दोहा सलिला:
कुछ दोहे अनुप्रास के
संजीव
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अजर अमर अक्षर अमित, अजित असित अवनीश
अपराजित अनुपम अतुल, अभिनन्दन अमरीश
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अंबर अवनि अनिल अनल, अम्बु अनाहद नाद
अम्बरीश अद्भुत अगम, अविनाशी आबाद
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अथक अनवरत अपरिमित, अचल अटल अनुराग
अहिवातिन अंतर्मुखी, अन्तर्मन में आग
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आलिंगन कर अवनि का, अरुण रश्मियाँ आप्त
आत्मिकता अध्याय रच, हैं अंतर में व्याप्त
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अजब अनूठे अनसुने, अनसोचे अनजान
अनचीन्हें अनदिखे से,अद्भुत रस अनुमान
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अरे अरे अ र र र अड़े, अड़म बड़म बम बूम
अपनापन अपवाद क्यों अहम्-वहम की धूम?
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अकसर अवसर आ मिले, बिन आहट-आवाज़
अनबोले-अनजान पर, अलबेला अंदाज़
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गले मिले दोहा-यमक

दोहा सलिला :
गले मिले दोहा-यमक
संजीव
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चंद चंद तारों सहित, करे मौन गुणगान
रजनी के सौंदर्य का, जब तक हो न विहान
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जहाँ पनाह मिले वहीं, बस बन जहाँपनाह
स्नेह-सलिल का आचमन, देता शांति अथाह
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स्वर मधु बाला चन्द्र सा, नेह नर्मदा-हास
मधुबाला बिन चित्रपट, है श्रीहीन उदास
*
स्वर-सरगम की लता का,प्रमुदित कुसुम अमोल
खान मधुरता की लता, कौन सके यश तौल
*
भेज-पाया, खा-हँसा, है प्रियतम सन्देश
सफलकाम प्रियतमा ने, हुलस गहा सन्देश
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गुमसुम थे परदेश में, चहक रहे आ देश
अब तक पाते ही रहे, अब देते आदेश
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पीर पीर सह कर रहा, धीरज का विनिवेश
घटे न पूँजी क्षमा की, रखता ध्यान विशेष
*
माया-ममता रूप धर, मोह मोहता खूब
माया-ममता सियासत, करे स्वार्थ में डूब
*
जी वन में जाने तभी, तू जीवन का मोल
घर में जी लेते सभी, बोल न ऊँचे बोल
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विक्रम जब गाने लगा, बिसरा लय बेताल
काँधे से उतरा तुरत, भाग गया बेताल
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गुरुवार, 18 जुलाई 2019

दोहा सलिला: अंगरेजी में खाँसते

दोहा सलिला:
अंगरेजी में खाँसते...
संजीव 'सलिल'
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अंगरेजी में खाँसते, समझें खुद को श्रेष्ठ.
हिंदी की अवहेलना, समझ न पायें नेष्ठ..
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टेबल याने सारणी, टेबल माने मेज.
बैड बुरा माने 'सलिल', या समझें हम सेज..
*
जिलाधीश लगता कठिन, सरल कलेक्टर शब्द.
भारतीय अंग्रेज की, सोच करे बेशब्द..
*
नोट लिखें या गिन रखें, कौन बताये मीत?
हिन्दी को मत भूलिए, गा अंगरेजी गीत..
*
जीते जी माँ ममी हैं, और पिता हैं डैड.
जिस भाषा में श्रेष्ठ वह, कहना सचमुच सैड..
*
चचा फूफा मौसिया, खो बैठे पहचान.
अंकल बनकर गैर हैं, गुमी स्नेह की खान..
*
गुरु शिक्षक थे पूज्य पर, टीचर हैं लाचार.
शिष्य फटीचर कह रहे, कैसे हो उद्धार?.
*
शिशु किशोर होते युवा, गति-मति कर संयुक्त.
किड होता एडल्ट हो, एडल्ट्री से युक्त..
*
कॉपी पर कॉपी करें, शब्द एक दो अर्थ.
यदि हिंदी का दोष तो अंगरेजी भी व्यर्थ..
*
टाई याने बाँधना, टाई कंठ लंगोट.
लायर झूठा है 'सलिल', लायर एडवोकेट..
*
टैंक अगर टंकी 'सलिल', तो कैसे युद्धास्त्र?
बालक समझ न पा रहा, अंगरेजी का शास्त्र..
*
प्लांट कारखाना हुआ, पौधा भी है प्लांट.
कैन नॉट को कह रहे, अंगरेजीदां कांट..
*
खप्पर, छप्पर, टीन, छत, छाँह रूफ कहलाय.
जिस भाषा में व्यर्थ क्यों, उस पर हम बलि जांय..
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लिख कुछ पढ़ते और कुछ, समझ और ही अर्थ.
अंगरेजी उपयोग से, करते अर्थ-अनर्थ..
*
हीन न हिन्दी को कहें, भाषा श्रेष्ठ विशिष्ट.
अंगरेजी को श्रेष्ठ कह, बनिए नहीं अशिष्ट..
*
#दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.इन
#हिंदी_ब्लॉगर

दोहा सलिला: अलंकारों के रंग-राखी के संग

दोहा सलिला:
अलंकारों के रंग-राखी के संग
संजीव 'सलिल'
*
राखी ने राखी सदा, बहनों की मर्याद.
संकट में भाई सदा, पहलें आयें याद..
राखी= पर्व, रखना.
*
राखी की मक्कारियाँ, राखी देख लजाय.
आग लगे कलमुँही में, मुझसे सही न जाय..
राखी= अभिनेत्री, रक्षा बंधन पर्व.
*
मधुरा खीर लिये हुए, बहिना लाई थाल.
किसको पहले बँधेगी, राखी मचा धमाल..
*
अक्षत से अ-क्षत हुआ, भाई-बहन का नेह.
देह विदेहित हो 'सलिल', तनिक नहीं संदेह..
अक्षत = चाँवल के दाने,क्षतिहीन.
*
रो ली, अब हँस दे बहिन, भाई आया द्वार.
रोली का टीका लगा, बरसा निर्मल प्यार..
रो ली= रुदन किया, तिलक करने में प्रयुक्त पदार्थ.
*
बंध न सोहे खोजते, सभी मुक्ति की युक्ति.
रक्षा बंधन से कभी, कोई न चाहे मुक्ति..
*
हिना रचा बहिना करे, भाई से तकरार.
हार गया तू जीतकर, जीत गयी मैं हार..
*
कब आएगा भाई? कब, होगी जी भर भेंट?
कुंडी खटकी द्वार पर, भाई खड़ा ले भेंट..
भेंट= मिलन, उपहार.
*
मना रही बहिना मना, कहीं न कर दे सास.
जाऊँ मायके माय के, गले लगूँ है आस..
मना= मानना, रोकना, माय के=माता-पिता का घर, माँ के
*
गले लगी बहिना कहे, हर संकट हो दूर.
नेह बर्फ सा ना गले, मन हरषे भरपूर..
गले=कंठ, पिघलना.
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शुक्रवार, 12 जुलाई 2019

दोहा आभूषण

प्रदत्त शब्द :- आभूषण, गहना
दिन :- बुधवार
तारीख :- ११-०७-२०१८
विधा :- दोहा छंद (१३-११)
*
आभूषण से बढ़ सकी, शोभा किसकी मीत?
आभूषण की बढ़ा दे, शोभा सच्ची प्रीत.
*
'आ भूषण दूँ' टेर सुन, आई वह तत्काल.
भूषण की कृति भेंट कर, बिगड़ा मेरा हाल.
*
गहना गह ना सकी तो, गहना करती रंज.
सास-ननदिया करेंगी, मौका पाकर तंज.
*
अलंकार के लिए थी, अब तक वह बेचैन.
'अलंकार संग्रह' दिया, देख तरेरे नैन.
*
रश्मि किरण मुख पर पड़ी, अलंकार से घूम.
कितनी मनहर छवि हुई, उसको क्या मालूम?
*
अलंकारमय रमा को, पूज रहे सब लोग.
गहने रहित रमेश जी, मन रहे हैं सोग.
*
मिली सुंदरी ज्वेल सी, ज्वेलर हो हूँ धन्य.
माँगे मिली न ज्वेलरी, हुई उसी क्षण वन्य.
*

गुरुवार, 11 जुलाई 2019

दोहा यमक

दोहा यमक मिले गले 
तारो! तारोगे किसे, तर न सके खुद आप.
शिव जपते हैं उमा को, उमा भजें शिव नाम.
*
चंद चंद तारों सहित, करे मौन गुणगान
रजनी के सौंदर्य का, जब तक हो न विहान
*
एक दोहा 
जब भी 'मैं' की छूटती, 'हम' की हो अनुभूति.
तब ही 'उस' से मिलन हो, सबकी यही प्रतीति..
७-७-२०१०

दोहा सलिला

दोहा सलिला
*
पाठक मैं आनंद का, गले मिले आनंद 
बाहों में आनंद हो, श्वास-श्वास मकरंद
*
आनंदित आनंद हो, बाँटे नित आनंद
हाथ पसारे है 'सलिल', सुख दो आनंदकंद!
*
जब गुड्डो दादी बने, अनुशासन भरपूर
जब दादी गुड्डो बने, हो मस्ती में चूर
*
जिया लगा जीवन जिया, रजिया है हर श्वास
भजिया-कोफी ने दिया, बारिश में उल्लास
*
पता लापता जब हुआ, उड़ी पताका खूब
पता न पाया तो पता, पता कर रहा डूब 
***