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गुरुवार, 16 जनवरी 2014

Hindi in abroad: Dr. Kavita Vachaknavee


हिंदी-विमर्श: 
सियोल मेट्रो में टैगोर की कविताएँ

डॉ. कविता वाचक्नवी
सियोल के एक मित्र से प्राप्त सूचना - 
स्मार्टफोन और टैबलेट में घुसी पड़ी कोरियन पब्लिक को साहित्य की ओर आकर्षित करने के लिए सरकार ने
​​
सियोल मेट्रो में टैगोर की कविताएँ लगाई हैं. भारत की सरकारें भी कुछ सीखें तो अच्छा हो.
 
__._,_.___From:  

शनिवार, 12 जून 2010

कवीन्द्र रवींद्रनाथ ठाकुर की एक रचना का भावानुवाद: ---संजीव 'सलिल'

कवीन्द्र रवींद्रनाथ ठाकुर की एक रचना का भावानुवाद:
संजीव 'सलिल'
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रुद्ध अगर पाओ कभी, प्रभु! तोड़ो हृद -द्वार.
कभी लौटना तुम नहीं, विनय करो स्वीकार..
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मन-वीणा-झंकार में, अगर न हो तव नाम.
कभी लौटना हरि! नहीं, लेना वीणा थाम..
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सुन न सकूँ आवाज़ तव, गर मैं निद्रा-ग्रस्त.
कभी लौटना प्रभु! नहीं, रहे शीश पर हस्त..
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हृद-आसन पर गर मिले, अन्य कभी आसीन.
कभी लौटना प्रिय! नहीं, करना निज-आधीन..

Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com
Acharya Sanjiv Salil

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