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शुक्रवार, 30 अप्रैल 2010

गीत: जब - तब ... ---आचार्य संजीव 'सलिल'

गीत :
गीत: जब - तब ... ---आचार्य संजीव 'सलिल'
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जब अक्षर का अभिषेक किया,
तब कविता का दीदार मिला.
जब शब्दों की आराधना करी-
तब गीतों का स्वीकार मिला.
 

जब छंद बसाया निज उर में
तब भावों के दर्शन पाये.
जब पर पीड़ा अपनी समझी-
तब जीवन के स्वर मुस्काये.
 

जब वहम अहम् का दूर हुआ
तब अनुरागी मन सूर हुआ.
जब रत्ना ने ठोकर मारी
तब तुलसी जग का नूर हुआ.
 

जब खुद को बिसराया मैंने
तब ही जीवन मधु गान हुआ.
जब विष ले अमृत बाँट दिया
तब मन-मंदिर रसखान हुआ..
 

जब रसनिधि का सुख भोग किया,
तब 'सलिल' अकिंचन दीन हुआ.
जब जस की तस चादर रख दी-
तब हाथ जोड़ रसलीन हुआ..




जब खुद को गँवा दिया मैंने,

तब ही खुद को मैंने पाया.
जब खुदी न मुझको याद रही-
तब खुदा खुदी मुझ तक आया.. 
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