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शनिवार, 3 अप्रैल 2021

वेदोक्त रात्रि सूक्त


।। वेदोक्त रात्रि सूक्त।।
*
। ॐ रजनी! जग प्रकाशें, शुभ-अशुभ हर कर्म फल दें।
।। विश्व-व्यापें देवी अमरा,ज्योति से तम नष्ट कर दें।।
*
। रात्रि देवी! भगिनी ऊषा को प्रगट कर मिटा दें तम।
।। मुदित हों माँ पखेरू सम, नीड़ में जा सो सकें हम ।।
*
। मनुज, पशु, पक्षी, पतंगे, पथिक आंचल में सकें सो।
।। काम वृक वासना वृकी को, दूर कर सुखदायिनी हो।।
*
। घेरता अज्ञान तम है, उषा!ऋणवत दूर कर दो।
।। पयप्रदा गौ सदृश रजनी!, व्योमपुत्रि!! हविष्य ले लो।।
***
३-४-२०१७

सोमवार, 29 मार्च 2021

वेदोक्त रात्रि सूक्त


।। अथ वेदोक्त रात्रि सूक्तं ।।
।। वेदोक्त रात्रि सूक्त।।
*
ॐ रात्री व्यख्यदायती पुरुत्रा देव्यक्षभि:। विश्र्वा अधिश्रियोधित ।१।
। ॐ रात्रि! विश्रांतिदायिनी जगत आश्रित। सब कर्मों को देखें, फल दें।१।
*
ओर्वप्रा अमर्त्या निवतो देव्युद्वत:। ज्योतिषा बाधते तम:।२।
।। देवी अमरा व्याप विश्व में, नष्ट करें अज्ञान तिमिर को ज्ञान ज्योति से ।२।
*
निरु स्वसारमस्कृतोषसं देव्येति। अपेदु हासते तम: ।३।
। पराशक्ति रूपा रजनी प्रगटा दें ऊषा, नष्ट अविद्या तिमिर स्वत्: हो। ३।
*
सा नो अद्य यस्या वयं नि ते यामन्नाविक्ष्महि। वृक्षे न वसतिं वय:।४।
।रात्रि देवी पधारें हों मुदित , सो सकें हम खग सदृश निज घोंसले में।४।
*
नि ग्रामासो अविक्षत नि पद्वन्तो नि पक्षिण:। नि श्येना सश्चिदर्थिन:।५।
। सोते सुख से ग्राम्य जन, पशु, जीव-जंतु,खग, रात्रि अंक में।५।
*
यावया वृक्यं वृकं यवय स्तेनमूर्म्ये। अथा न: सुतरा भव। ६।
।रात्रि देवी! पाप वृक वासना वृकी को, दूर कर सुखदायिनी हो।६।
*
उप मा पेपिशत्तम: कृष्णं व्यक्तमस्थित। उष ऋणेव् यातय। ७।
।घेरे अज्ञान तिमिर ज्ञान दे कर दूर, उषा! उऋण करतीं मुझे दे धन। ७।
*
उप ते गा इवाकरं वृणीष्व दुहितर्दिव:। रात्रि स्तोमं न जिग्युषे। ८।
। पयप्रदा गौ सदृश रजनी!, व्योमकन्या!! हविष्य ले लो।३।
२९.३.२०२०
***

मंगलवार, 13 अक्टूबर 2020

वेदोक्त रात्रि सूक्त

 

यह वेदोक्त रात्रि सूक्त है
*
नमन​ रात्रि! करतीं प्रगट, देश काल जड़-जीव।
यथोचित​ दें कर्म-फल, जय माँ! करुणासींव।१।​
*
ओ​ देवी! हो अमर तुम, उछ-अधम में व्याप्त।
नष्ट​ करो अज्ञान को, ज्ञान-ज्योति 'थिर आप्त।२।
*
पराशक्ति रजनी करें, प्रगट उषा को नित्य।
नष्ट अविद्या-तिमिर हो, प्रगटे ज्ञान अनित्य।३।​
*
प्रगटें​ खुश हों रात्रि माँ!, ​कर सुख-निद्रा लीन।
ज्यों​ कोटर में खग हुए, मिश्रित अभय अदीन।४।
*
रजनी माँ के अंक में, शयन करें सुख-धार।
पशु-पक्षी, ग्रामीणजन, पथिक भूल व्यापार।५।
*
​वृकी वासना; पाप वृक, माँ राका! कर दूर।
मोक्ष​दायिनी! कर कृपा, ​दो निद्रा भरपूर।६।
*
उषा! रात्रि!! अज्ञान-तम, घेरे है चहुँ ओर। ​
​ऋणवत मुझसे दूर कर, दो; लूँ ज्ञान अँजोर।७।
*
धेनु​ दुधारू सदृश हो, रात्रि! रहो अनुकूल।
मिली कृपा हूँ अरिजयी, लो स्तोम-दुकूल।८। ​
​*
१३-१०-२०१८
(​स्तोम​ = स्तुति)

शनिवार, 13 अक्टूबर 2018

vedokt ratri sukta


यह वेदोक्त रात्रि सूक्त है
*
नमन​ रात्रि! करतीं प्रगट, देश काल जड़-जीव।
यथोचित​ दें कर्म-फल, जय माँ! करुणासींव।१।​
*
ओ​ देवी! हो अमर तुम, उछ-अधम में व्याप्त।
नष्ट​ करो अज्ञान को, ज्ञान-ज्योति 'थिर आप्त।२।
*
पराशक्ति रजनी करें, प्रगट उषा को नित्य।
नष्ट अविद्या-तिमिर हो, प्रगटे ज्ञान अनित्य।३।​
*
प्रगटें​ खुश हों रात्रि माँ!, ​कर सुख-निद्रा लीन।
ज्यों​ कोटर में खग हुए, मिश्रित अभय अदीन।४।
*
रजनी माँ के अंक में, शयन करें सुख-धार।
पशु-पक्षी, ग्रामीणजन, पथिक भूल व्यापार।५।
*
​वृकी वासना; पाप वृक, माँ राका! कर दूर।
मोक्ष​दायिनी! कर कृपा, ​दो निद्रा भरपूर।६।
*
उषा! रात्रि!! अज्ञान-तम, घेरे है चहुँ ओर। ​
​ऋणवत मुझसे दूर कर, दो; लूँ ज्ञान अँजोर।७।
*
धेनु​ दुधारू सदृश हो, रात्रि! रहो अनुकूल।
मिली कृपा हूँ अरिजयी, लो स्तोम-दुकूल।८। ​
​*
(​स्तोम​ = स्तुति)

सोमवार, 3 अप्रैल 2017

vedokta ratri sukta


।। अथ वेदोक्त रात्रि सूक्तं ।।

।। वेदोक्त रात्रि सूक्त।।
*
ॐ रात्री व्यख्यदायती पुरुत्रा देव्यक्षभि:। विश्र्वा अधिश्रियोधित ।१।

। ॐ रात्रि! विश्रांतिदायिनी जगत आश्रित। सब कर्मों को देखें, फल दें।१।
*
ओर्वप्रा अमर्त्या निवतो देव्युद्वत:। ज्योतिषा बाधते तम:।२।

।। देवी अमरा व्याप विश्व में, नष्ट करें अज्ञान तिमिर को ज्ञान ज्योति से ।२।
*
निरु स्वसारमस्कृतोषसं देव्येति। अपेदु हासते तम: ।३।

। पराशक्ति रूपा रजनी प्रगटा दें ऊषा, नष्ट अविद्या तिमिर स्वत्: हो। ३।
*
सा नो अद्य यस्या वयं नि ते यामन्नाविक्ष्महि। वृक्षे न वसतिं वय:।४।

।रात्रि देवी पधारें हों मुदित , सो सकें हम खग सदृश निज घोंसले में।४।
*
नि ग्रामासो अविक्षत नि पद्वन्तो नि पक्षिण:। नि श्येना सश्चिदर्थिन:।५।

। सोते सुख से ग्राम्य जन, पशु, जीव-जंतु,खग, रात्रि अंक में।५।
*
यावया वृक्यं वृकं यवय स्तेनमूर्म्ये। अथा न: सुतरा भव। ६।
।रात्रि देवी! पाप वृक वासना वृकी को, दूर कर सुखदायिनी हो।६।
*
उप मा पेपिशत्तम: कृष्णं व्यक्तमस्थित। उष ऋणेव् यातय। ७।

।घेरे अज्ञान तिमिर ज्ञान दे कर दूर, उषा! उऋण करतीं मुझे दे धन। ७।
*
उप ते गा इवाकरं वृणीष्व दुहितर्दिव:। रात्रि स्तोमं न जिग्युषे। ८।
। पयप्रदा गौ सदृश रजनी!, व्योमकन्या!! हविष्य ले लो।३।
२९.३.२०२०
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