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रविवार, 13 अक्टूबर 2013

geet : vedna par -sanjiv

गीत:
वेदना पर.…
संजीव
*
वेदना पर चेतना की जीत होगी
जिंदगी तब ही मधुर संगीत होगी…
*
दर्द है सौभाग्य यदि हँस झेल पाओ
पीर है उपहार यदि हँस खेल पाओ
निकष जीवट का कठिन तूफ़ान होता-
है सुअवसर यदि उसे हँस ठेल पाओ
विरह-पल में साथ जब-जब प्रीत होगी
वेदना पर चेतना की जीत होगी
जिंदगी तब ही मधुर संगीत होगी…
*
कशिश कोशिश की कहेगी कथा कोई
हौसला हो हमकदम-हमराज कोई
रति रमकती रात रानी रंग-रसमय
रास थामे रास रचती रीत कोई 
रातरानी श्वास का संगीत होगी
वेदना पर चेतना की जीत होगी
जिंदगी तब ही मधुर संगीत होगी…
*
स्वेद-सीकर से सुवासित संगिनी सम
स्नेह-सलिला नर्मदा सद्भाव संगम
सियाही पर सिपाही सम सीध साधे-
सीर-सीता सुयोगित सोपान अनुपम
सभ्यता सुदृढ़ सफल संनीत होगी
वेदना पर चेतना की जीत होगी
जिंदगी तब ही मधुर संगीत होगी…
*
facebook: sahiyta salila / sanjiv verma 'salil'

रविवार, 30 अक्टूबर 2011

मुक्तिका: देखो -- संजीव 'सलिल'

मुक्तिका

देखो

संजीव 'सलिल'
*
रात के गर्भसे, सूरज को उगा कर देखो.
प्यास प्यासे की 'सलिल' आज बुझा कर देखो.

हौसलों को कभी आफत में पजा कर देखो.
मुश्किलें आयें तो आदाब बजा कर देखो..

मंजिलें चूमने कदमों को खुद ही आयेंगी.
आबलों से कभी पैरों को सजा कर देखो..

दौलते-दिल को लुटा देंगे विहँस पल भर में.
नाजो-अंदाज़ से जो आज लजा कर देखो..

बात दिल की करी पूरी तो किया क्या तुमने.
गैर की बात 'सलिल' खुद की रजा कर देखो..

बंदगी क्या है ये दुनिया न बता पायेगी.
जिंदगी क्या है किताबों को हटा कर देखो.

*****************************************

शनिवार, 29 अक्टूबर 2011

नवगीत: सड़क पर.... संजीव 'सलिल'

नवगीत:
                                                                                       
सड़क पर

संजीव 'सलिल'
*
सड़क पर
सतत ज़िंदगी चल रही है.....
*
उषा की किरण का
सड़क पर बसेरा.
दुपहरी में श्रम के
परिंदे का फेरा.
संझा-संदेसा
प्रिया-घर ने टेरा.
रजनी को नयनों में
सपनों का डेरा.
श्वासा में आशा
विहँस पल रही है.
सड़क पर हताशा
सुलग-जल रही है. ....
*
कशिश कोशिशों की
सड़क पर मिलेगी.
कली मेहनतों की
सड़क पर खिलेगी.
चीथड़ों में लिपटी
नवाशा मिलेगी.
कचरा उठा
जिंदगी हँस पलेगी.
महल में दुपहरी
खिली, ढल रही है.
सड़क पर सड़क से
सड़क मिल रही है....
*
अथक दौड़ते पग
सड़क के हैं संगी.
सड़क को न भाती
हैं चालें दुरंगी.
सड़क पर न करिए
सियासत फिरंगी.
'सलिल'-साधना से
सड़क स्वास्थ्य-चंगी.
मंहगाई जन-गण को
नित छल रही है.
सड़क पर जवानी
मचल-फल रही है.....

मुक्तिका: देखो -- संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:
देखो
-- संजीव 'सलिल'
*
ज़िंदगी क्या है किताबों को हटा कर देखो.
चाँद पाना है तो तारों को सजा कर देखो..

बंदगी पूजा इबादत या प्रार्थना प्रेयर
क़ुबूल होगी जो रोते को हँसा कर देखो..

चाहिए नज़रे-इनायत हुस्न की जो तुम्हें
हौसलों को जवां होने दो, खुदा कर देखो..

ढाई आखर का पढ़ो व्याकरण बिना हारे.
और फिर ज्यों की त्यों चादर को बिछा कर देखो..

ठोकरें जब भी लगें गिर पड़ो, उठो, चल दो.
मंजिलों पर नयी मंजिल को उठा कर देखो..

आग नफरत की लगा हुक्मरां बने नीरो.
बाँसुरी छीन सियासत की, गिरा कर देखो..

कौन कहता है कि पत्थर पिघल नहीं सकता?
नर्मदा नेह की पर्वत से बहा कर देखो..

संग आया न 'सलिल' के, न कुछ भी जाएगा.
जहां है गैर, इसे अपना बना कर देखो..
*
Acharya Sanjiv verma 'Salil'

http://divyanarmada.blogspot.कॉम
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बुधवार, 23 फ़रवरी 2011

मुक्तिका कब कहा संजीव 'सलिल'

मुक्तिका

कब कहा

संजीव 'सलिल'
*
कब कहा मंदिर में लुटने हम नहीं आते.
क्या खुशी की ज़िंदगी में गम नहीं आते?

अधिक की है चाह सबको, बिना यह जाने.
अधिक खोने के सुअवसर कम नहीं आते..

जान को लेकर हथेली पर चले जाओ.
बुलाओ, आवाज़ दो पर यम नहीं आते..

बातियों की तरह जो जलते रहे खुद ही.
सामने उनके कभी भी तम नहीं आते..

नागिनों की चाल ही होती लचीली है.
मत डरो उनकी कमर में खम नहीं आते..

असम को मत विषम होने दो, तनिक सोचो
सियासत के गीत में क्यों सम नहीं आते?

*************

रविवार, 16 जनवरी 2011

नवगीत: सड़क पर.... संजीव 'सलिल'

नवगीत:
                                                                                सड़क पर

संजीव 'सलिल'
*
सड़क पर
सतत ज़िंदगी चल रही है.....
*
उषा की किरण का
सड़क पर बसेरा.
दुपहरी में श्रम के
परिंदे का फेरा.
संझा-संदेसा
प्रिया-घर ने टेरा.
रजनी को नयनों में
सपनों का डेरा.
श्वासा में आशा
विहँस पल रही है.
सड़क पर हताशा
सुलग-जल रही है. ....
*
कशिश कोशिशों की
सड़क पर मिलेगी.
कली मेहनतों की
सड़क पर खिलेगी.
चीथड़ों में लिपटी
नवाशा मिलेगी.
कचरा उठा
जिंदगी हँस पलेगी.
महल में दुपहरी
खिली, ढल रही है.
सड़क पर सड़क से
सड़क मिल रही है....
*
अथक दौड़ते पग
सड़क के हैं संगी.
सड़क को न भाती
हैं चालें दुरंगी.
सड़क पर न करिए
सियासत फिरंगी.
'सलिल'-साधना से
सड़क स्वास्थ्य-चंगी.
मंहगाई जन-गण को
नित छल रही है.
सड़क पर जवानी
मचल-फल रही है.....