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सोमवार, 28 फ़रवरी 2011

दोहा सलिला: संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:
सत-चित-आनंद ध्येय
संजीव 'सलिल'
*
सत-शिव-सुन्दर रच सकें, सत-चित-आनंद ध्येय.
विधि-हरि-हर किये कृपा, ज्ञेय बने- अज्ञेय..

मनोरमा मन भावना, गायत्री उच्चार.
करे अर्चना मनीषा, नत आकाश निहार..

पूनम की शशि-रश्मियाँ, राजतिलक कर धन्य.
ब्रम्हा बाबा हो मुदित, दें आशीष अनन्य..

सूरज नित पाथेयले, उषा-प्रभायुत ज्वाल.
कर्म-योग सन्देश दे, कहता बनो मराल..

सुन्दर सूरत श्याम लख, दीपक-शलभ सुमित्र.
राजलक्ष्मी विहँस हो, योग्यजनों की मित्र..

सलिल-साज पर निनादित, नित कलरव ध्वनि ॐ.
धन्य दसों दिश श्रवणकर, पंचतत्व भू व्योम..

वर्षा हो नित नेह की, कविताओं के संग.
छाया-माया मुदित हो, दें जीवन को रंग..

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शनिवार, 12 फ़रवरी 2011

मुक्तिका ; पटवारी जी ---- संजीव 'सलिल'

मुक्तिका
पटवारी जी                                                                                             
संजीव 'सलिल'
*
यहीं कहीं था, कहाँ खो गया पटवारी जी?
जगते-जगते भाग्य सो गया पटवारी जी..

गैल-कुआँ घीसूका, कब्जा ठाकुर का है.
फसल बैर की, लोभ बो गया पटवारी जी..

मुखिया की मोंड़ी के भारी पाँव हुए तो.
बोझा किसका?, कौन ढो गया पटवारी जी..

कलम तुम्हारी जादू करती मान गये हम.
हरा चरोखर, खेत हो गया पटवारी जी..

नक्शा-खसरा-नकल न पायी पैर घिस गये.
कुल-कलंक सब टका धो गया पटवारी जी..

मुट्ठी गरम करो लेकिन फिर दाल गला दो.
स्वार्थ सधा, ईमान तो गया पटवारी जी..

कोशिश के धागे में आशाओं का मोती.
'सलिल' सिफारिश-हाथ पो गया पटवारी जी..

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