कहानी :
' दूसरा फैसला '
एस. एन. शर्मा 'कमल'
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रायबरेली शहर से सटे गाँव के एक साधारण परिवार में ममता तीन बहनों में सबसे बड़ी थी । अपनी प्रतिभा व मेहनत के बल पर उसने इसी वर्ष बी० ए० की परीक्षा पास की थी । पास के ही एक मकान में उन्हीं दिनों एक युवा मास्टर किराये का एक कमरा ले कर रहने लगा था । धीरे-धीरे उसका आना-जाना ममता के परिवार में होने लगा। कुछ समय वह उसकी बहनों को पढ़ाने के बहाने वहाँ देर तक ठहरने लगा और ममता से वार्तालाप में रूचि लेने लगा । उसने परिवार की स्थिति भाँप ममता को स्कूल में अध्यापिका की नौकरी लगवा देने का आश्वासन भी दे डाला। समीपता बढ़ने से मास्टर नवीन और ममता के बीच अंतरंगता पनपी और प्यार पेंगें मारने लगा।
माँ-बाप को भनक लगी तो उन्होंने नवीन का आना-जाना बंद करा दिया पर इश्क का भूत जब सवार होता है तो सारा विवेक और रोक-टोक धरी रह जाती है । पिता ने टंटा ख़त्म करने की गरज से ममता की शादी पक्की कर दी । आग में घी पड़ा और एक दिन चुपके से दोनों भाग निकले । अपनी सीमित हैसियत के कारण उन लोगों ने पुलिस में रिपोर्ट नहीं की व व्यक्तिगत स्तर पर थोड़ी बहुत खोजबीन के बाद मन मार कर चुप बैठ गए ।
ममता और नवीन दोनों इलाहाबाद जा कर रहने लगे । ममता नवीन पर शादी का जोर डालती रही पर वह बहाने बनाता हुआ टालता रहा । नवीन ने कही अध्यापक की नौकरी करली । इसी प्रकार लगभग छह माह बीत गए। एक दिन जब ममता रसोई निपटा कर आराम करने बैठी ही थी कि एक महिला साधारण सी मैली धोती पहने सर पर पल्ला डाले वहाँ आयी । उसने मनी आर्डर फ़ार्म का एक तुड़ा मुडा टुकड़ा ममता की ओर बढ़ाते हुए पूछा-
' ये यहाँ रहते हैं क्या ? '
ममता ने पढ़ा तो पाया कि वह नवीन द्वारा चार-पांच माह पहले भेजे गए दो सौ रुपए के मनी आर्डर की पावती का टुकड़ा था । ममता को कुछ खुटका हुआ और उत्सुकता भी पूछा- 'आप कौन हैं ?'
वह कुछ हिचकते हुए बोली- 'ये मेरे पति हैं। शादी को एक साल हो गया। वे शहर नौकरी के लिये गये तो अब तक नहीं लौटे । कुछ महीने पहले यह पैसा भेजा था। अब माँ बहुत बीमार है इसलिए उन्हें इस पते के बल पर ढूंढते यहाँ आई हूँ ।'
ममता के सामने सारा रहस्य प्रकट हो गया और उसके पैर तले से जमीन खिसक गयी। औरत की प्रश्नसूचक निगाहें ममता पर टिकी हुई थीं । किसी प्रकार संयत हो कर ममता ने कहा-
'हाँ बहन! वे यहीं रहते हैं । आप बैठिये कहकर वह रसोई में गई और दो गिलास पानी पिया। फिर अगन्तुक के लिये एक प्लेट में कुछ खुरमे और पानी लाकर बोली-
'आप जलपान करें वे स्कूल से लौटते ही होंगे । '
वह औरत बड़े पशोपेश में थी कुछ साफ़ साफ़ पूछने की हिम्मत नहीं हुई । दोनों के बीच अजीब सा सन्नाटा पसर गया । कुछ देर बाद नवीन ने दरवाजे से घुसते ही जो देखा उससे सन्न रह गया । पारा चढ़ गया बोला-
'तुम यहाँ क्यों आई ?'
वह बोली- 'माँ बहुत बीमार हैं सो ढूंढती हुई यहाँ पहुँची हूँ । '
नवीन ने ममता की ओर देखा जो एक ओर चुप बैठी थी । कुछ बोलते न बना । वह पत्नी को कुछ उलटा-सीधा कहने लगा तभी ममता फट पड़ी-
'तुम इतने धूर्त होगे मैंने कभी कल्पना न की थी। अब चुपचाप पत्नी के साथ चले जाओ। '
नवीन गुस्से में और जोर से बडबडाने लगा । ऊपर शोर सुन मकान मालकिन दौड़ी आयी। माजरा समझने के बाद उसने भी नवीन को खरी-खोटी सुनाई और कह दिया तुम लोग अभी मकान खाली कर दो।नवीन को वहाँ से जाने में ही भलाई नजर आयी। ममता ने उसके साथ जाने से साफ़ इनकार कर दिया और वह पत्नी के साथ चुपचाप वहाँ से खिसक लिया ।
नवीन के जाते ही ममता फूट फूट कर रोने लगी । मकान मालकिन को दया आयी । वह उसे नीचे अपने कमरे में ले गई। वहाँ ममता ने रो-रो कर आप बीती उसे बता दी। मकान मालकिन ने उसे समझाया कि वह वापस घर लौट जाए। ममता ने शंका जाहिर की कि घर में उसे शायद ही पनाह मिले। मालकिन ने आश्वस्त किया कि फिर मेरे पास आना कुछ जुगाड़ करूंगी।
दूसरे दिन ममता गाँव पहुँची तो पिता देखते ही उस पर बरस पड़े- 'अरी बेशरम! अब यहाँ क्या मुंह ले कर लौटी है? कहीं डूब मरती । सारी बिरादरी और मोहल्ले में थुक्का-फजीहत करा चुकी यह न सोचा की दो बहनें और हैं उनका क्या होगा?'
माँ ने कुछ बीच-बचाव की कोशिश की तो पिता ने साफ़ कह दिया- 'यह यहाँ नहीं रह सकती कहीं भी जाए, कहीं डूब मरे जा कर ।'
ममता उलटे पाँव लौटपड़ी कि अब वह जाकर संगम नगरी में डूब कर प्राण देगी। रास्ते भर सोचती रही फिर उसने तय किया कि मरने से पहले एक बार मकान मालकिन से मिल ले जैसा उसने कहा था। विचारों में उलझी वह मकान मालकिन के पास पहुँची और घर पर मिला व्यवहार बताया। मकान मालकिन सदय थी, उसने कहा- 'तुम यहाँ नहा धो लो भोजन करो, देखो मैं तब तक कुछ जुगाड़ करती हूँ ।'
मकान मालकिन ने अपनी पुरानी सहेली इलाहाबाद की प्रसिद्ध अधिवक्ता करुणा सिंह को फोन मिलाकर उन्हें ममता की आपबीती सुनाई । करुणा जी ने उन्हें शाम को ममता को साथ ला कर मिलने का समय दिया ।
निश्चित समय पर दोनों जा कर करुणा जी से मिले । सारा वृत्तांत सुन कर करुणा जी ने कहा 'आप चाहें तो मुकदमा दायर कर अपने गुजारे के लिए भत्ता माँग सकती हैं।' ममता ने मुकदमा दायर कारने से इनकार कर दिया और अनुरोध किया कि अगर उसके लिए कोई छोटी-मोटी नौकरी का प्रबंध हो सके तो भला । करुणा भांप चुकी थी की लड़की शांत सरल और ईमानदार है। उसने प्रस्ताव किया -
'देखो बेटी मैं यहाँ बिलकुल अकेली रहती हूँ। पति का स्वर्गवास हुए पांच साल हो गये, निःसंतान हूँ । तुम चाहो तो मेरे साथ रह कर घर के काम में हाथ बंटा सकती हो।' इस बीच हम तुम्हारी नौकरी के लिए भी प्रयास करेंगे ।
ममता को यह सुझाव पसंद आया और उसने तुरंत स्वीकार कर लिया । तब से ममता वहाँ रहकर अधिवक्ता के साथ काम में हाथ बँटाती उनकी कानून की पुस्तकें केस-फाइलें करीने से रखती और समय मिलता तो उन्हें पढ़ती तथा कभी-कभी तो करुणा जी से उन पर विचार करती। करुणा ने यह देखा तो उन्हें लगा इसे ला-कालेज में भर्ती करा कर वकील क्यों न बनाया जाए? बी० ए० तो वह थी ही सो ला-कालेज में दाखिला हो गया और ममता तन्मयता से पढ़ाई में जुट गई । उसने आनर्स के साथ परीक्षा पास की । अब वह करुणा जी के साथ वकालत भी करने लगी । शीघ्र ही उसकी प्रतिभा की ख्याति फैलने लगी और अधिवक्ता समुदाय में सबसे योग्य सिद्धांत की पक्की और कानूनविद समझी जाने लगी ।
अधिवक्ता बने पाँच साल से अधिक समय बीत गया। उसकी प्रखर बुद्धि और क़ानून पर पकड़ से प्रभावित होकर सरकार ने उसे इलाहाबाद उच्च न्यालय का जज बना दिया । करुणा जी को फिर भी वह अपना गुरु और आश्रयदाता का मान देती रही और जब-तब पुरानी मकान मालकिन से भी मिलने जाती। सभी उसके स्वभाव से गदगद थे। समय मजे में गुजरने लगा।
एक दिन अदालत में उसके सामने एक मुकदमा पेश हुआ जिसमें अपप्राधी को बलात्कार और नृशंस ह्त्या के अपराध में लोअर-कोर्ट से फांसी की सजा मिल चुकी थी। याचिका उच्च न्यायालय में पुनर्विचार हेतु प्रस्तुत हुई थी। अपराधी को कटघरे में ला खडा किया गया। यह क्या यह तो वही नवीन-मास्टर था। फ़ाइल में नाम देखा और अवाक रह गई। नवीन की उस पर नजर पडी तो लज्जा से गड़ गया और आँखें न मिला सका। सर झुकाए खड़ा रहा। कार्यवाही चलती रही। अगली पेशियाँ पड़ती रहीं।दोनों ओर के वकीलों की बहस हुई। सबूत पेश हुए। अंतिम पेशी पर बहस समाप्त हुई। जज ने अगले दो दिन बाद फैसला सुनाने की तारीख दे दी ।
निवास पर पहुँचते ही उसे मकान मालकिन का फोन मिला कि वे उससे कुछ जरूरी वार्तालाप करना चाहती हैं । वह तुरन्त जाकर उनसे मिली। वहाँ नवीन की पत्नी और उसकी दो लड़कियाँ एक पांच साल, एक सात साल की पहले से मौजूद थीं। उसने रोते-गिडगिडाते हुए उससे दया की भीख मांगनी शुरू कर दी। मकान मालकिन ने भी सिफारिश की कि दो बच्चियों और परिवार की हालत देख कर नवीन पर रहम किया जाए। मालकिन ने बताया की उसने करुणा से भी फोन पर बात की पर उसने यह कह कर बीच में पड़ने से इनकार कर दिया कि मुकदमें पर वह किसी की सिफारिश नहीं सुनेगी। अस्तु, उसने सीधे ममता से ही बात करने का निर्णय लिया।
ममता बोली- 'बहन! न्याय की देवी की आँख पर पट्टी बँधी है। वहाँ मानवीय संवेदना का कोई स्थान नहीं। परसों फैसला सुनाने के बाद आप से फिर मिलूंगी। बात वहीं ख़त्म हो गयी। उन लोगों को फिर भी भरोसा था कि शायद कुछ रहम मिले।
नियत दिन जज ने फैसला सुनाया कि सारे हालात, गवाहों के बयान और पोस्टमार्टम रिपोर्ट के आधार पर अपराध असंदिग्द्ध रूप से सिद्ध होता है । अतः, मुलजिम की फांसी की सजा का फैसला यह अदालत बरकरार रखते हुए दायर याचिका खारिज करती है ।
वायदे के अनुसार शाम जब वह मकान मालकिन से मिली तो वे और वहाँ मौजूद नवीन का परिवार उदास और बेहद दुखी था। ममता की आँख में भी आंसू थे बोली-
'बहन न्याय की कुर्सी पर बैठ कर पक्षपात करने और न्याय को धोखा देना मेरे लिये महापाप है। अस्तु, वहाँ क़ानून ने अपना फैसला सुनाया। मानवीय संवेदना के आधार पर मैं यहाँ अपना दूसरा फैसला लेकर आयी हूँ कि नवीन की पत्नी और उसकी दोनों पुत्रियों के पालन-पोषण का भार आज से मुझ पर होगा।'
पत्नी और बच्चियों ने रोते-रोते ममता के पैर पकड़ उन पर मस्तक धर दिया ।
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