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शनिवार, 1 नवंबर 2025

१ नवंबर, चिंतन, ऊँच-नीच, लघुकथा, दोहा, विवाह, नवंबर, मुक्तक, गीत, मुक्तिका

सलिल सृजन १ नवंबर
नवंबर  : कब - क्या?
०१ गुरु गोविंद सिंह पुण्यतिथि, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ दिवस
०४ गणितविद् शकुंतला देवी जयंती १९९९, प्रभुदत्त ब्रह्मचारी जन्म
०६ अभिनेता संजीव कुमार निधन
०७ भौतिकीविद् चंद्रशेखर वेंकटेश्वर रमण जन्म १८८८। 
१० महाप्रसाद अग्निहोत्री निधन।
१२ महामना मालवीय निधन १९४६।
१४ बाल दिवस, जवाहरलाल नेहरू जयंती, विश्व मधुमेह दिवस।
१५ बिरसा मुंडा जयंती, संत विनोबा दिवस, जयशंकर प्रसाद निधन १९३७।
१६ विश्व सहिष्णुता दिवस, सचिव तेंदुलकर रिटायर २०१३।
१७ लाला लाजपतराय बलिदान दिवस १९२८, बाल ठाकरे दिवंगत २०१२।
१८ काशी विश्वनाथ प्रतिष्ठा दिवस।
१९ म. लक्ष्मीबाई जयंती १८२८, इंदिरा गाँधी जयंती १९१७, मातृ दिवस। 
२१- भौतिकीविद् चंद्र शेखर वेंकट रमण निधन १९७०
२२ झलकारी बाई जयंती, दुर्गादास पुण्यतिथि।
२३ सत्य साई जयंती, जगदीश चंद्र बसु निधन १९३७।
२४ गुरु तेगबहादुर बलिदान, अभिनेता महीपाल जन्म १९१९, अभिनेत्री टुनटुन निधन २००३, साहित्यकार महीप सिंह निधन २०१५, ।
२६ डॉ. हरि सिंह गौर जयंती।
२७ बच्चन निधन १९०७।
२८ जोतीबा फूले निधन १८९०।
२९ शरद सिंह १९६३।
३० जगदीश चंद्र बसु जन्म १८५८, मैत्रेयी पुष्पा जन्म।
***
चिंतन
सब प्रभु की संतान हैं, कोऊ ऊँच न नीच
*
'ब्रह्मम् जानाति सः ब्राह्मण:' जो ब्रह्म जानता है वह ब्राह्मण है। ब्रह्म सृष्टि कर्ता हैं। कण-कण में उसका वास है। इस नाते जो कण-कण में ब्रह्म की प्रतीति कर सकता हो वह ब्राह्मण है। स्पष्ट है कि ब्राह्मण होना कर्म और योग्यता पर निर्भर है, जन्म पर नहीं। 'जन्मना जायते शूद्र:' के अनुसार जन्म से सभी शूद्र हैं। सकल सृष्टि ब्रह्ममय है, इस नाते सबको सहोदर माने, कंकर-कंकर में शंकर, कण-कण में भगवान को देखे, सबसे समानता का व्यवहार करे, वह ब्राह्मण है। जो इन मूल्यों की रक्षा करे, वह क्षत्रिय है, जो सृष्टि-रक्षार्थ आदान-प्रदान करे, वह वैश्य है और जो इस हेतु अपनी सेवा समर्पित कर उसका मोल ले-ले वह शूद्र है। जो प्राणी या जीव ब्रह्मा की सृष्टि निजी स्वार्थ / संचय के लिए नष्ट करे, औरों को अकारण कष्ट दे वह असुर या राक्षस है।
व्यावहारिक अर्थ में बुद्धिजीवी वैज्ञानिक, शिक्षक, अभियंता, चिकित्सक आदि ब्राह्मण, प्रशासक, सैन्य, अर्ध सैन्य बल आदि क्षत्रिय, उद्योगपति, व्यापारी आदि वैश्य तथा इनकी सेवा व सफाई कर रहे जन शूद्र हैं। सृष्टि को मानव शरीर के रूपक समझाते हुए इन्हें क्रमशः सिर, भुजा, उदर व् पैर कहा गया है। इससे इतर भी कुछ कहा गया है। राजा इन चारों में सम्मिलित नहीं है, वह ईश्वरीय प्रतिनिधि या ब्रह्मा है। राज्य-प्रशासन में सहायक वर्ग कार्यस्थ (कायस्थ नहीं) है। कायस्थ वह है जिसकी काया में ब्रम्हांश जो निराकार है, जिसका चित्र गुप्त है, आत्मा रूप स्थित है।
'चित्रगुप्त प्रणम्यादौ वात्मानं सर्व देहिनाम्।', 'कायस्थित: स: कायस्थ:' से यही अभिप्रेत है। पौरोहित्य कर्म एक व्यवसाय है, जिसका ब्राह्मण होने न होने से कोई संबंध नहीं है। ब्रह्म के लिए चारों वर्ण समान हैं, कोई ऊँचा या नीचा नहीं है। जन्मना ब्राह्मण सर्वोच्च या श्रेष्ठ नहीं है। वह अत्याचारी हो तो असुर, राक्षस, दैत्य, दानव कहा गया है और उसका वध खुद विष्णु जी ने किया है। गीता रहस्य में लोकमान्य टिळक जो खुद ब्राह्मण थे, ने लिखा है -
गुरुं वा बाल वृद्धौ वा ब्राह्मणं वा बहुश्रुतं
आततायी नमायान्तं हन्या देवाविचारयं
ब्राह्मण द्वारा खुद को श्रेष्ठ बताना, अन्य वर्णों की कन्या हेतु खुद पात्र बताना और अन्य वर्गों को ब्राह्मण कन्या हेतु अपात्र मानना, हर पाप (अपराध) का दंड ब्राह्मण को दान बताने दुष्परिणाम सामाजिक कटुता और द्वेष के रूप में हुआ।
***
लघुकथा:
समझदार
*
हमने बच्चे को पढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। बिहार के छोटे से कसबे से बेंगलोर जैसे शहर में आया। इतने साल पढ़ाई की। इतनी अच्छी कंपनी में इतने अच्छे वेतन पर है, देश-विदेश घूमता है। गाँव में खेती भी हैं और यहाँ भी पिलोट ले लिया है। कितनी ज्यादा मँहगाई है, १ करोड़ से कम में क्या बनेगा मकान? बेटी भी है ब्याहने के लिये, बाकी आप खुद समझदार हैं।
आपकी बेटी पढ़ी-लिखी है,सुन्दर है, काम करती है सो तो ठीक है, माँ-बाप पैदा करते हैं तो पढ़ाते-लिखाते भी हैं। इसमें खास क्या है? रूप-रंग तो भगवान का दिया है, इसमें आपने क्या किया? ईनाम - फीनाम का क्या? इनसे ज़िंदगी थोड़े तेर लगती है। इसलिए हमने बबुआ को कुछ नई करने दिया। आप तो समझदार हैं, समझ जायेंगे।
हम तो बाप-दादों का सम्मान करते हैं, जो उन्होंने किया वह सब हम भी करेंगे ही। हमें दहेज़-वहेज नहीं चाहिए पर अपनी बेटी को आप दो कपड़ों में तो नहीं भेज सकते? आप दोनों कमाते हैं, कोई कमी नहीं है आपको, माँ-बाप जो कुछ जोड़ते हैं बच्चियों के ही तो काम आता है। इसका चचेरा भाई बाबू है ब्याह में बहुरिया कर और मकान लाई है। बाकी तो आप समझदार हैं।
जी, लड़का क्या बोलेगा? उसका क्या ये लड़की दिखाई तो इसे पसंद कर लिया, कल दूसरी दिखाएंगे तो उसे पसंद कर लेगा। आई. आई. टी. से एम. टेक. किया है,इंटर्नेशनल कंपनी में टॉप पोस्ट पे है तो क्या हुआ? बाप तो हमई हैं न। ये क्या कहते हैं दहेज़ के तो हम सख्त खिलाफ हैं। आप जो हबी करेंगे बेटी के लिए ही तो करेंगे अब बेटी नन्द की शादी में मिला सामान देगई तो हम कैसे रोकेंगे? नन्द तो उसकी बहिन जैसी ही होगी न? घर में एक का सामान दूसरे के काम आ ही जाता है। बाकि तो आप खुद समझदार हैं।
मैं तो बहुत कोशिश करने पर भी नहीं समझ सका, आप समझें हों तो बताइये समझदार होने का अर्थ।
***
दोहा
*
अमित ऊर्जा-पूर्ण जो, होता वही अशोक
दस दिश पाता प्रीति-यश, कोई न सकता रोक
*
कतरा-कतरा दर्द की, करे अर्चना कौन?
बात राज की जानकर, समय हुआ क्यों मौन?
*
अमित ऊर्जा-पूर्ण जो, होता वही अशोक
दस दिश पाता प्रीति-यश, सका न कोई रोक
*
कतरा-कतरा दर्द की, करे अर्चना कौन?
बात राज की जानकर, समय हुआ क्यों मौन?
*
एक नयन में अश्रु बिंदु है, दूजा जलता दीप
इस कोरोना काल में, मुक्ता दुःख दिल सीप
*
गर्व पर्व पर हम करें, सबका हो उत्कर्ष
पर्व गर्व हम पर करे, दें औरों को हर्ष
*
श्रमजीवी के अधर पर, जब छाए मुस्कान
तभी समझना पर्व को, सके तनिक पहचान
*
झोपड़-झुग्गी भी सके, जब लछमी को पूज
तभी भवन में निरापद, होगी भाई दूज
***
मुक्तक
*
गुजारी उम्र सोकर ही, न अब तक जाग पाए हैं।
नहीं पग लक्ष्य को पहचान या अनुराग पाए हैं।।
बने अपने; न वो अपने रहे, पर याद आते हैं-
नहीं सुख को सुहाए हैं, न दुख-गम त्याग पाए हैं।।
*
अर्णव अरुण न रोके रुकता
कौन गह सके थाह।
तमहर अरुणचूर सह कहता
कर सच की परवाह।।
निज पथ चुन, चलता रह अनथक-
चुप रहकर दुख-दाह।।
*
स्वर्ण-रजत माटी मलय, पर्वत कब दें साथ?
'सलिल' मोह तज बुझाता, प्यास गहें जब हाथ।।
नहीं गर्व को सुहाता, बने नम्र या दीन-
तृप्ति तभी मिलती सखे!, जब होता नत माथ।
*
गाओ कोई राग, दुखी मन जो बहलाए।
लगे हृदय पर घाव, स्नेह से हँस सहलाए।।
शब्द-ब्रह्म आराध, कह रही है हर दिशा।
सलिल संग अखिलेश, पूर्णिमा है हर निशा।।
*
पुष्पाया है जीवन जिसका, उसका वंदन आज।
रहे पटल पर अग्र सुशोभित, शत अभिनंदन आज।।
स्वाति संग पा हों सब मोती,
मम नंदन हो आज-
सलिल-वृष्टि हो, पुष्प-वृष्टि हो,
मस्तक चंदन राज।।
*
जो कड़वी मीठी वही, जो लेता सच जान
श्वास-श्वास रस-खान सम, होता वही सुजान
मंजिल पाए बिन नहीं, रुकना यदि लें ठान
बनें सहायक विहँसकर, नटखट हो भगवान
*
नेह नर्मदा सलिल से, सिंचित हृदय प्रदेश
विंध्य-सतपुड़ा मेखला, प्रमुदित रहे हमेश
वाल्मीकि ग्वालिप तपी, सांदीपन जाबालि
बाण कालि की यह धरा,
शिव-हरि दें संदेश
*
कान्ह-हृदय ने मौन पुकारा श्री राधे।
कालिंदी जल ने उच्चारा श्री राधे।।
कुंज करील, कदंब बजाते कर-पल्लव-
गोवर्धन गिरि का जयकारा श्री राधे।।
*
शिखर न पहुँचे शून्य तक, यही समय का सत्य।
अकड़ गिरे हो शून्य ही, मात्र यही भवितव्य।।
अहंकार को भूलकर, रहो मिलाए हाथ
दिल तब ही मिल सकेंगे, याद रखो गंतव्य
*
गुरु गोविंद सिंह को नमन, सबको माना एक।
चुनकर प्यारे पाँच जो, थे बलिदानी नेक।।
थे बलिदानी नेक, न जिनको तनिक मोह था।
धर्म साध्य आतंक-राज्य प्रति अडिग द्रोह था।।
दिए अगिन बलिदान, हरा-भरा हो तब चमन।
सबको माना एक, गुरु गोविंद सिंह को नमन।।
*
मुक्तिका
४ (१२२२)
*
चले आओ; चले आओ; जहाँ भी हो; चले आओ
नहीं है गैर कोई भी; खुला है द्वार आ जाओ
सगा कोई नहीं है खास; कोई भी न बेगाना
रुचे जो गीत वो गाओ, उठो! जी जान से गाओ
करेंगी मंज़िलें सज्दा, न नाउम्मीद हो जाना
बढ़ो आगे; न पीछे देखना; रुस्वा न हो जाओ
जिएँ पुष्पा हजारों साल; बागों में बहारों सी
रहे संतोष साँसों को, हमेशा मौन-मुस्काओ
नहीं तन्हा कभी कोई; रहेंगी साथ यादें तो
दवा संजीवनी हैं ये, इन्हीं में हो फना जाओ।।
***
नवगीत:
राष्ट्रलक्ष्मी!
श्रम सीकर है
तुम्हें समर्पित
खेत, फसल, खलिहान
प्रणत है
अभियन्ता, तकनीक
विनत है
बाँध-कारखाने
नव तीरथ
हुए समर्पित
कण-कण, तृण-तृण
बिंदु-सिंधु भी
भू नभ सलिला
दिशा, इंदु भी
सुख-समृद्धि हित
कर-पग, मन-तन
समय समर्पित
पंछी कलरव
सुबह दुपहरी
संध्या रजनी
कोशिश ठहरी
आसें-श्वासें
झूमें-खांसें
अभय समर्पित
शैशव-बचपन
यौवन सपने
महल-झोपड़ी
मानक नापने
सूरज-चंदा
पटका-बेंदा
मिलन समर्पित
१-११-२०१९
***
एक रचना
हस्ती
*
हस्ती ख़त्म न होगी तेरी
*
थर्मोडायनामिक्स बताता
ऊर्जा बना न सकता कोई
बनी हुई जो ऊर्जा उसको
कभी सकेगा मिटा न कोई
ऊर्जा है चैतन्य, बदलती
रूप निरंतर पराप्रकृति में
ऊर्जा को कैदी कर जड़ता
भर सकता है कभी न कोई
शब्द मनुज गढ़ता अपने हित
ऊर्जा करे न जल्दी-देरी
हस्ती ख़त्म न होगी तेरी
*
तू-मैं, यह-वह, हम सब आये
ऊर्जा लेकर परमशक्ति से
निभा भूमिका रंगमंच पर
वरते करतल-ध्वनि विभक्ति से
जा नैपथ्य बदलते भूषा
दर्शक तब भी करें स्मरण
या सराहते अन्य पात्र को
अनुभव करते हम विरक्ति से
श्वास गली में आस लगाती
रोज सवेरे आकर फेरी
हस्ती ख़त्म न होगी तेरी
*
साँझ अस्त होता जो सूरज
भोर उषा-संग फिर उगता है
रख अनुराग-विराग पूर्ण हो
बुझता नहीं सतत जलता है
पूर्ण अंश हम, मिलें पूर्ण में
किंचित कहीं न कुछ बढ़ता है
अलग पूर्ण से हुए अगर तो
नहीं पूर्ण से कुछ घटता है
आना-जाना महज बहाना
नियति हुई कब किसकी चेरी
हस्ती ख़त्म न होगी तेरी
***
दोहा
*
अमित ऊर्जा-पूर्ण जो, होता वही अशोक
दस दिश पाता प्रीति-यश, कोई न सकता रोक
*
कतरा-कतरा दर्द की, करे अर्चना कौन?
बात राज की जानकर, समय हुआ क्यों मौन?
***
पुस्तक सलिला –
‘मैं सागर में एक बूँद सही’ प्रकृति से जुड़ी कविताएँ
आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
*
[पुस्तक विवरण – मैं सागर में एक बूँद सही, बीनू भटनागर, काव्य संग्रह, प्रथम संस्करण २०१६, ISBN९७८-८१-७४०८-९२५-०, आकार २२ से.मी. x १४.५ से.मी., आवरण बहुरंगी, सजिल्द, पृष्ठ २१५, मूल्य ४५०/-, अयन प्रकाशन १/२० महरौली नई दिल्ली , दूरभाष २६६४५८१२, ९८१८९८८६१३, कवयित्री सम्पर्क binubhatnagar@gmail.com ]
*
कविता की जाती है या हो जाती है? यह प्रश्न मुर्गी पहले हुई या अंडा की तरह सनातन है. मनुष्य का वैशिष्ट्य अन्य प्राणियों की तुलना में अधिक संवेदनशील तथा अधिक अभिव्यक्तिक्षम होना है. ‘स्व’ के साथ-साथ ‘सर्व’ को अनुभूत करने की कामना वश मनुष्य अज्ञात को ज्ञात करता है तथा ‘स्व’ को ‘पर’ के स्थान पर कल्पित कर तदनुकूल अनुभूतियों की अभिव्यक्ति कर उसे ‘साहित्य’ अर्थात सबके हित हेतु किया कर्म मानता है. प्रश्न हो सकता है कि किसी एक की अनुभूति वह भी कल्पित सबके लिए हितकारी कैसे हो सकती है? उत्तर यह कि रचनाकार अपनी रचना का ब्रम्हा होता है. वह विषय के स्थान पर ‘स्व’ को रखकर ‘आत्म’ का परकाया प्रवेश कर ‘पर’ हो जाता है. इस स्थिति में की गयी अनुभूति ‘पर’ की होती है किन्तु तटस्थ विवेक-बुद्धि ‘पर’ के अर्थ/हित’ की दृष्टि से चिंतन न कर ‘सर्व-हित’ की दृष्टि से चिंतन करता है. ‘स्व’ और ‘पर’ का दृष्टिकोण मिलकर ‘सर्वानुकूल’ सत्य की प्रतीति कर पाता है. ‘सर्व’ का ‘सनातन’ अथवा सामयिक होना रचनाकार की सामर्थ्य पर निर्भर होता है.
इस पृष्ठभूमि में बीनू भटनागर की काव्यकृति ‘मैं सागर में एक बूँद सही’ की रचनाओं से गुजरना प्रकृति से दूर हो चुकी महानगरीय चेतना को पृकृति का सानिंध्य पाने का एक अवसर उपलब्ध कराती है. प्रस्तावना में श्री गिरीश पंकज इन कविताओं में ‘परंपरा से लगाव, प्रकृति के प्रति झुकाव और जीवन के प्रति गहरा चाव’ देखते हैं. ‘अवर स्वीटेस्ट सोंग्स आर दोज विच टेल ऑफ़ सैडेस्ट थौट’ कहें या ‘हैं सबसे मधुर वे गीत जिन्हें हम दर्द के सुर में गाते हैं’ यह निर्विवाद है कि कविता का जन्म ‘पीड़ा’से होता है. मिथुनरत क्रौन्च युग्म को देख, व्याध द्वारा नर का वध किये जाने पर क्रौंची के विलाप से द्रवित महर्षि वाल्मीकि द्वारा प्रथम काव्य रचना हो, या हिरनी के शावक का वध होने पर मातृ-ह्रदय के चीत्कार से निसृत प्रथम गजल दोनों दृष्टांत पीड़ा और कविता का साथ चोली दामन का सा बताती हैं. बीनू जी की कवितओं में यही ‘पीड़ा’ पिंजरे के रूप में है.
कोई रचनाकार अपने समय को जीता हुआ अतीत की थाती ग्रहण कर भविष्य के लिए रचना करता है. बीनू जी की रचनाएँ समय के द्वन्द को शब्द देते हुए पाठक के साथ संवाद कर लेती हैं. सामयिक विसंगतियों का इंगित करते समय सकारात्मक सोच रख पाना इन कविताओं की उपादेयता बढ़ाता है. सामान्य मनुष्य के व्यक्तित्व के अंग चिंतन, स्व, पर, सर्व, अनुराग, विराग, द्वेष, उल्लास, रुदन, हास्य आदि उपादानों के साथ गूँथी हुई अभिव्यक्तियों की सहज ग्राह्य प्रस्तुति पाठक को जोड़ने में सक्षम है. तर्क –सम्मतता संपन्न कवितायेँ ‘लय’ को गौड़ मानती है किन्तु रस की शून्यता न होने से रचनाएँ सरस रह सकी हैं. दर्शन और अध्यात्म, पीड़ा, प्रकृति और प्रदूषण, पर्यटन, ऋतु-चक्र, हास्य और व्यंग्य, समाचारों की प्रतिक्रिया में, प्रेम, त्यौहार, हौसला, राजनीति, विविधा १-२ तथा हाइकु शीर्षक चौदह अध्यायों में विभक्त रचनाएँ जीवन से जुड़े प्रश्नों पर चिंतन करने के साथ-साथ बहिर्जगत से तादात्म्य स्थापित कर पाती हैं.
संस्कृत काव्य परंपरा का अनुसरण करती बीनू जी देव-वन्दना सूर्यदेव के स्वागत से कर लेती हैं. ‘अहसास तुम्हारे आने का / पाने से ज्यादा सुंदर है’ से याद आती हैं पंक्तियाँ ‘जो मज़ा इन्तिज़ार में है वो विसाले-यार में नहीं’. एक ही अनुभूति को दो रचनाकारों की कहन कैसे व्यक्त करती है? ‘सारी नकारात्मकता को / कविता की नदी में बहाकर / शांत औत शीतल हो जाती हूँ’ कहती बीनू जी ‘छत की मुंडेर पर चहकती / गौरैया कहीं गुम हो गयी है’ की चिंता करती हैं. ‘धूप बेचारी / तरस रही है / हम तक आने को’, ‘धरती के इस स्वर्ग को बचायेंगे / ये पेड़ देवदार के’, ‘प्रथम आरुषि सूर्य की / कंचनजंघा पर नजर पड़ी तो / चाँदी के पर्वत को / सोने का कर गयी’ जैसी सहज अभिव्यक्ति कर पाठक मन को बाँध लेती हैं.
छंद मुक्त कविता जैसी स्वतंत्रता छांदस कविता में नहीं होती. राजनैतिक दोहे शीर्षकांतर्गत पंक्तियों में दोहे के रचना विधान का पालन नहीं किया गया है. दोहा १३-११ मात्राओं की दो पंक्तियों से बनता है जिनमें पदांत गुरु-लघु होना अनिवार्य है. दी गयी पंक्तियों के सम चरणों में अंत में दो गुरु का पदांत साम्य है. दोहा शीर्षक देना पूरी तरह गलत है.
चार राग के अंतर्गत भैरवी, रिषभ, मालकौंस और यमन का परिचय मुक्तक छंद में दिया गया है. अंतिम अध्याय में जापानी त्रिपदिक छंद (५-७-५ ध्वनि) का समावेश कृति में एक और आयाम जोड़ता है. भीगी चुनरी / घनी रे बदरिया / ओ संवरिया!, सावन आये / रिमझिम फुहार / मेघ गरजे, तपती धरा / जेठ का है महीना / जलते पाँव, पूस की सर्दी / ठंडी बहे बयार / कंपकंपाये, मन-मयूर / मतवाला नाचता / सांझ-सकारे, कडवे बोल / करेला नीम चढ़ा / आदत छोड़ आदि में प्रकृति चित्रण बढ़िया है. तत्सम-तद्भव शब्दों के साथ अंग्रेजी-उर्दू शब्दों का बेहिचक प्रयोग भाषा को रवानगी देता है.
बीनू जी की यह प्रथम काव्य कृति है. पाठ्य अशुद्धि से मुक्त न होने पर भी रचनाओं का कथ्य आम पाठक को रुचेगा. शिल्प पर कथ्य को वरीयता देती रचनाएँ बिम्ब, प्रतीक, रूपक और अलंकार अदि का यथास्थान प्रयोग किये जाने से सरस बन सकी हैं. आगामी संकलनों में बीनू जी का कवि मन अधिक ऊँची उड़ान भरेगा.
***
१-११-२०१६
-------------------------
कोकिलकंठी गायिका श्रीमती तापसी नागराज के
जन्मोत्सव पर अनंत मंगल कामनाएँ
नर्मदा के तीर पर वाक् गयी व्याप सी
मुरली के सुर सजे संगिनी पा आप सी
वीणापाणी की कृपा सदा रहे आप पर
कीर्ति नील गगन छुए विनय यही तापसी
बेसुरों की बर्फ पर गिरें वज्र ताप सी
आपसे से ही गायन की करे समय माप सी
पश्चिम की धूम-बूम मिटा राग गुँजा दें
श्रोता-मन पर अमिट छोड़ती हैं छाप सी
स्वर को नमन कलम-शब्दों का अभिनन्दन लें
भावनाओं के अक्षत हल्दी जल चन्दन लें
रहें शारदा मातु विराजी सदा कंठ में
संजीवित हों श्याम शिलाएं, शत वंदन लें
१-११-२०१४
***
दोहा सलिला:
विवाह- एक दृष्टि
द्वैत मिटा अद्वैत वर...
*
रक्त-शुद्धि सिद्धांत है, त्याज्य- कहे विज्ञान।
रोग आनुवंशिक बढ़ें, जिनका नहीं निदान।।
पितृ-वंश में पीढ़ियाँ, सात मानिये त्याज्य।
मातृ-वंश में पीढ़ियाँ, पाँच नहीं अनुराग्य।।
नीति:पिताक्षर-मिताक्षर, वैज्ञानिक सिद्धांत।
नहीं मानकर मिट रहे, असमय ही दिग्भ्रांत।।
सहपाठी गुरु-बहिन या, गुरु-भाई भी वर्ज्य।
समस्थान संबंध से, कम होता सुख-सर्ज्य।।
अल्ल गोत्र कुल आँकना, सुविचारित मर्याद।
तोड़ें पायें पीर हों, त्रस्त करें फ़रियाद।।
क्रॉस-ब्रीड सिद्धांत है, वैज्ञानिक चिर सत्य।
वर्ण-संकरी भ्रांत मत, तजिए- समझ असत्य।।
किसी वृक्ष पर उसी की, कलम लगाये कौन?
नहीं सामने आ रहा, कोई सब हैं मौन।।
आपद्स्थिति में तजे, तोड़े नियम अनेक।
समझें फिर पालन करें, आगे बढ़ सविवेक।।
भिन्न विधाएँ, वंश, कुल, भाषा, भूषा, जात।
मिल- संतति देते सबल, जैसे नवल प्रभात।।
एक्य समझदारी बढ़े, बने सहिष्णु समाज।
विश्व-नीड़ परिकल्पना, हो साकारित आज।।
'सलिल' ब्याह की रीति से, दो अपूर्ण हों पूर्ण।
द्वैत मिटा अद्वैत वर, रचें पूर्ण से पूर्ण।।
१-११-२०१२

*
देव उठनी एकादशी (गन्ना ग्यारस) पर

नवगीत: १

देव सोये तो

सोये रहें

हम मानव जागेंगे

राक्षस

अति संचय करते हैं

दानव

अमन-शांति हरते हैं

असुर

क्रूर कोलाहल करते

दनुज

निबल की जां हरते हैं

अनाचार का

शीश पकड़

हम मानव काटेंगे


भोग-विलास

देवता करते

बिन श्रम सुर

हर सुविधा वरते

ईश्वर पाप

गैर सर धरते

प्रभु अधिकार

और का हरते

हर अधिकार

विशेष चीन

हम मानव वारेंगे


मेहनत

अपना दीन-धर्म है

सच्चा साथी

सिर्फ कर्म है

धर्म-मर्म

संकोच-शर्म है

पीड़ित के

आँसू पोछेंगे

मिलकर तारेंगे

***

नवगीत २

सोये बहुत देव अब जागो

*

सोये बहुत

देव! अब जागो...


तम ने

निगला है उजास को।

गम ने मारा

है हुलास को।

बाधाएँ छलती

प्रयास को।

कोशिश को

जी भर अनुरागो...


रवि-शशि को

छलती है संध्या।

अधरा धरा

न हो हरि! वन्ध्या।

बहुत झुका

अब झुके न विन्ध्या।

ऋषि अगस्त

दक्षिण मत भागो...


पलता दीपक

तले अँधेरा ।

हो निशांत

फ़िर नया सवेरा।

टूटे स्वप्न

न मिटे बसेरा।

कथनी-करनी

संग-संग पागो...

**************




शुक्रवार, 4 नवंबर 2022

समानार्थी, हाथी, छंद दोही, नवंबर, पैरोडी, गणितीय मुक्तक, दोहा गीत, दोहा मुक्तक, नरक चौदस, गीत



***
हिंदी वैभव - समानार्थी शब्द : हाथी 
कुञ्जरः,गजः,हस्तिन्, हस्तिपकः,द्विपः, द्विरदः, वारणः, करिन्, मतङ्गः, सुचिकाधरः, सुप्रतीकः, अङ्गूषः, अन्तेःस्वेदः, इभः, कञ्जरः, कञ्जारः, कटिन्, कम्बुः, करिकः, कालिङ्गः, कूचः, गर्जः, चदिरः, चक्रपादः, चन्दिरः, जलकाङ्क्षः, जर्तुः, दण्डवलधिः, दन्तावलः, दीर्घपवनः, दीर्घवक्त्रः, द्रुमारिः, द्विदन्तः, द्विरापः, नगजः, नगरघातः, नर्तकः, निर्झरः, पञ्चनखः, पिचिलः, पीलुः, पिण्डपादः, पिण्डपाद्यः, पृदाकुः, पृष्टहायनः, पुण्ड्रकेलिः, बृहदङ्गः, प्रस्वेदः, मदकलः, मदारः, महाकायः, महामृगः, महानादः, मातंगः, मतंगजः, मत्तकीशः, राजिलः, राजीवः, रक्तपादः, रणमत्तः, रसिकः, लम्बकर्णः, लतालकः, लतारदः, वनजः, वराङ्गः, वारीटः, वितण्डः, षष्टिहायनः, वेदण्डः, वेगदण्डः, वेतण्डः, विलोमजिह्वः, विलोमरसनः, विषाणकः।
(आभार - जमुना कृष्णराज)
***
कार्य शाला
छंद सलिला ;
दोही छंद
*
लक्षण छंद -
चंद्र कला पंद्रह शुभ मान, रचें विषम पद आप।
एक-एक ग्यारह सम जान, लघु पद-अंत सुमाप।।
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उदहारण -
स्नेह सलिल अवगाहन करे, मिट जाए भव ताप।
मदद निबल की जो नित करे, हो जाए प्रभु जाप।।
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नवंबर २०१९ : कब - क्या?
०१ गुरु गोविंद सिंह पुण्यतिथि
मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ दिवस
०३ संत दयाराम वाला जयंती
०४ गणितविद् शकुंतला देवी जयंती १९९९, प्रतिदत्त ब्रह्मचारी जन्म
०५ अक्षय/आँवला जयंती
०६ अभिनेता संजीव कुमार निधन
०७ भौतिकीविद् चंद्रशेखर वेंकटेश्वर रमण जन्म १८८८
०८ देव उठनी एकादशी, गन्ना ग्यारस, तुलसी विवाह, संत नामदेव जयंती, महाकवि कालिदास जयंती।
१० मिलाद-उन-नबी, महाप्रसाद अग्निहोत्री निधन।
१२ गुरु नानक देव जयंती, म. सुदर्शन जयंती, महामना मालवीय निधन १९४६।
१३ भेड़ाघाट मेला।
१४ बाल दिवस, जवाहरलाल नेहरू जयंती, विश्व मधुमेह दिवस।
१५ बिरला मुंडा जयंती, समय विनोबा दिवस, जयशंकर प्रसाद निधन १९३७।
१६ विश्व सहिष्णुता दिवस, सचिव तेंदुलकर रिटायर २०१३।
१७ लाला लाजपतराय बलिदान दिवस १९२८, बाल ठाकरे दिवंगत २०१२, तुकड़ोजी जयंती, भ. मायानंद चैतन्य जयंती।
१८ काशी विश्वनाथ प्रतिष्ठा दिवस।
१९ म. लक्ष्मीबाई जयंती १८२८, इंदिरा गाँधी जयंती १९१७, मातृ दिवस
२१- भौतिकीविद् चंद्र शेखर वेंकट रमण निधन १९७०
२२ झलकारी बाई जयंती, दुर्गादास पुण्यतिथि।
२३ सत्य साई जयंती, जगदीश चंद्र बलि निधन १९३७।
२४ गुरु तेगबहादुर बलिदान, अभिनेता महीपाल जन्म १९१९, अभिनेत्री टुनटुन निधन २००३, साहित्यकार महीप सिंह २०१५, ।
२६ डॉ. हरि सिंह गौर जयंती।
२७ बच्चन निधन १९०७।
२८ जोतीबा फूले निधन १८९०।
२९ शरद सिंह १९६३।
३० जगदीश चंद्र बसु जन्म १८५८, मायानंद चैतन्य जयंती, मैत्रेयी पुष्पा जन्म।
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एक गीत -एक पैरोडी
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ये रातें, ये मौसम, नदी का किनारा, ये चंचल हवा ३१
कहा दो दिलों ने, कि मिलकर कभी हम ना होंगे जुदा ३०
*
ये क्या बात है, आज की चाँदनी में २१
कि हम खो गये, प्यार की रागनी में २१
ये बाँहों में बाँहें, ये बहकी निगाहें २३
लो आने लगा जिंदगी का मज़ा १९
*
सितारों की महफ़िल ने कर के इशारा २२
कहा अब तो सारा, जहां है तुम्हारा २१
मोहब्बत जवां हो, खुला आसमां हो २१
करे कोई दिल आरजू और क्या १९
*
कसम है तुम्हे, तुम अगर मुझ से रूठे २१
रहे सांस जब तक ये बंधन न टूटे २२
तुम्हे दिल दिया है, ये वादा किया है २१
सनम मैं तुम्हारी रहूंगी सदा १८
फिल्म –‘दिल्ली का ठग’ 1958
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पैरोडी
है कश्मीर जन्नत, हमें जां से प्यारी, हुए हम फ़िदा ३०
ये सीमा पे दहशत, ये आतंकवादी, चलो दें मिटा ३१
*
ये कश्यप की धरती, सतीसर हमारा २२
यहाँ शैव मत ने, पसारा पसारा २०
न अखरोट-कहवा, न पश्मीना भूले २१
फहराये हरदम तिरंगी ध्वजा १८
*
अमरनाथ हमको, हैं जां से भी प्यारा २२
मैया ने हमको पुकारा-दुलारा २०
हज़रत मेहरबां, ये डल झील मोहे २१
ये केसर की क्यारी रहे चिर जवां २०
*
लो खाते कसम हैं, इन्हीं वादियों की २१
सुरक्षा करेंगे, हसीं घाटियों की २०
सजाएँ, सँवारें, निखारेंगे इनको २१
ज़न्नत जमीं की हँसेगी सदा १७
४-११-२०१९
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गणितीय दोहा मुक्तक:
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बिंदु-बिंदु रखते रहे, जुड़ हो गयी लकीर।
जोड़ा किस्मत ने घटा, झट कर दिया फकीर।।
कोशिश-कोशिश गुणा का, आरक्षण से भाग-
रहे शून्य के शून्य हम, अच्छे दिन-तकदीर।।
*
खड़ी सफलता केंद्र पर, परिधि प्रयास अनाथ।
त्रिज्या आश्वासन मुई, कब कर सकी सनाथ।।
छप्पन इंची वक्ष का निकला भरम गुमान-
चाप सिफारिश का लगा, कभी न श्रम के हाथ।।
*
गुणा अधिक हो जोड़ से, रटा रहे तुम पाठ।
उल्टा पा परिणाम हम, आज हुए हैं काठ।।
एक गुणा कर एक से कम, ज्यादा है जोड़-
एक-एक ग्यारह हुए जो उनके हैं ठाठ।।
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दोहा गीत:
दीपक लेकर हाथ
*
भक्त उतारें आरती,
दीपक लेकर हाथ।
हैं प्रसन्न माँ भारती,
जनगण-मन के साथ।।
*
अमरनाथ सह भवानी,
कार्तिक-गणपति झूम।
चले दिवाली मनाने,
भायी भारत-भूम।।
बसे नर्मदा तीर पर,
गौरी-गौरीनाथ।
भक्त उतारें आरती,
दीपक लेकर हाथ।।
*
सरस्वती सिंह पर हुईं,
दुर्गा सदृश सवार।
मेघदूत सम हंस उड़,
गया भुवन के पार।।
ले विरंचि को आ गया,
कर प्रणाम नत माथ।
भक्त उतारें आरती,
दीपक लेकर हाथ।।
*
सलिल लहर संजीव लख,
सफल साधना धन्य।
त्याग पटाखे, शंख-ध्वनि,
दस दिश गूँज अनन्य।।
श्रम-सीकर से स्नानकर,
मानव हुआ सनाथ।
भक्त उतारें आरती,
दीपक लेकर हाथ।।
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४.११.२०१८
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गीत:
उत्तर, खोज रहे...
*
उत्तर, खोज रहे प्रश्नों को, हाथ न आते।
मृग मरीचिकावत दिखते, पल में खो जाते।
*
कैसा विभ्रम राजनीति, पद-नीति हो गयी।
लोकतन्त्र में लोभतन्त्र, विष-बेल बो गयी।।
नेता-अफसर-व्यापारी, जन-हित मिल खाते...
*
नाग-साँप-बिच्छू, विषधर उम्मीदवार हैं।
भ्रष्टों से डर मतदाता करता गुहार है।।
दलदल-मरुथल शिखरों को बौना बतलाते...
*
एक हाथ से दे, दूजे से ले लेता है।
संविधान बिन पेंदी नैया खे लेता है।।
अँधा न्याय, प्रशासन बहरा मिल भरमाते...
*
लोकनीति हो दलविमुक्त, संसद जागृत हो।
अंध विरोध न साध्य, समन्वय शुचि अमृत हो।।
'सलिल' खिलें सद्भाव-सुमन शत सुरभि लुटाते...
*
जो मन भाये- चुनें, नहीं उम्मीदवार हो।
ना प्रचार ना चंदा, ना बैठक उधार हो।।
प्रशासनिक ढाँचे रक्षा का खर्च बचाते...
*
जन प्रतिनिधि निस्वार्थ रहें, सरकार बनायें।
सत्ता और समर्थक, मिलकर सदन चलायें।।
देश पड़ोसी देख एकता शीश झुकाते...
*
रोग हुई दलनीति, उखाड़ो इसको जड़ से।
लोकनीति हो सबल, मुक्त रिश्वत-झंखड़ से।।
दर्पण देख न 'सलिल', किसी से आँख चुराते...
४-११-२०१२
***
नरक चौदस / रूप चतुर्दशी पर विशेष रचना:
*
असुर स्वर्ग को नरक बनाते
उनका मरण बने त्यौहार.
देव सदृश वे नर पुजते जो
दीनों का करते उपकार..

अहम्, मोह, आलस्य, क्रोध, भय,
लोभ, स्वार्थ, हिंसा, छल, दुःख,
परपीड़ा, अधर्म, निर्दयता,
अनाचार दे जिसको सुख..

था बलिष्ठ-अत्याचारी
अधिपतियों से लड़ जाता था.
हरा-मार रानी-कुमारियों को
निज दास बनाता था..

बंदीगृह था नरक सरीखा
नरकासुर पाया था नाम.
कृष्ण लड़े, उसका वधकर
पाया जग-वंदन कीर्ति, सुनाम..

रजमहिषियाँ कृष्णाश्रय में
पटरानी बन हँसी-खिलीं.
कहा 'नरक चौदस' इस तिथि को
जनगण को थी मुक्ति मिली..

नगर-ग्राम, घर-द्वार स्वच्छकर
निर्मल तन-मन कर हरषे.
ऐसा लगा कि स्वर्ग सम्पदा
धराधाम पर खुद बरसे..

'रूप चतुर्दशी' पर्व मनाया
सबने एक साथ मिलकर.
आओ हम भी पर्व मनाएँ
दें प्रकाश दीपक बनकर..

'सलिल' सार्थक जीवन तब ही
जब औरों के कष्ट हरें.
एक-दूजे के सुख-दुःख बाँटें
इस धरती को स्वर्ग करें..
४-११-२०१०
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सोमवार, 31 अक्टूबर 2022

नवंबर, मुक्तिका, गीत, लघुकथा, दंडक छंद, मुक्तक

 कब ? क्या ? नवंबर २०२१

कार्तिक/अगहन (मार्गशीर्ष)
शंकराचार्य संवत २५२८, विक्रम संवत २०७८, ईस्वी २०२१, शक संवत १९४३, हिजरी १४४३, बांग्ला १४२८
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०१. १८५८ भारत का प्रशासन ईस्ट इण्डिया कंपनी से ब्रिटिश सरकार ने लिया, १८८१ कोलकाता ट्राम सेवा आरंभ, १९१३ ग़दर आरंभ क्रांतिकारी तारकनाथ दास सैनफ्रांसिस्को कैलीफ़ोर्निया, १९२४ पद्मभूषण रामकिंकर उपाध्याय जन्म जबलपुर, १९२७ चित्रकार दीनानाथ भार्गव, १९४२ प्रभा खेतान जन्म, १९५० भारत का पहला रेल इंजिन चितरंजन रेल कारखाना, १९५४ फ़्राँस ने पांडिचेरी, करिकल, माहे तथा यानोन भारत को सौंपे, तापसी नागराज जन्म, ११९५५ डेल कारनेगी निधन, ९५६ कर्णाटक-केरल गठन, दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश, १९६६ पंजाब-हरियाणा गठन, १९७३ ऐश्वर्या राय जन्म, २००० छत्तीसगढ़-मध्यप्रदेश गठन।
०२. १५३४ चौथे गुरु रामदास जयंती, १७७४ रॉबर्ट क्लाइव आत्महत्या, १८९७ सोहराब मोदी जन्म, १९३६ बी बी सी दूरदर्शन आरंभ, १९४० ममता कालिया जन्म, १९५० जॉर्ज बर्नाड शॉ निधन, १९६५ शाहरुख़ खान जन्म, धनतेरस।
०३. १४९३ कोलंबस ने डोमोनोका द्वीप खोजा, १६८८ सवाई जयसिंह जन्म, १८३९ ब्रिटेन-चीन अफीम युद्ध आरंभ, १९०३ पनामा आज़ाद, १९०६ पृथ्वीराज कपूर जन्म, १९३७ संगीतकार लक्ष्मीकांत जन्म, १९३८ असम हिंदी प्रचार समिति स्थापित, १९४८ प्रधानमंत्री नेहरू संयुक्त राष्ट्र सभा प्रथम संबोधन, १९६२ स्वर्ण बांड योजना लागू, रूप चतुर्दशी (नरक चौदस)।
०४. १६१८ औरंगजेब जन्म, १८२२ दिल्ली जल आपूर्ति योजन आरंभ, १८८३ स्वामी दयानन्द निर्वाण (जन्म १२-२-१८२४), १९३९ गणितज्ञ शकुंतला देवी जन्म, १९४५ आज़ाद हिंद फौजियों पर लाल किला मुक़दमा, १९५४ हिमालय पर्वतारोहण संस्थान दार्जिलिंग स्थापना, १९८४ ओबी अग्रवाल एमेच्योर स्नूकर विश्व चैम्पियन, १९९७ सियाचीन बेस कैम्प विश्व का सर्वाधिक ऊँचा एस.टी.डी. बूथ स्थापित, २००० दूरदर्शन डायरेक्ट टु होम सेवा, २००८ गंगा राष्ट्रीय नदी घोषित, पहला भारतीय मानवरहित अंतरिक्ष यान चंद्र कक्षा में, बराक ओबामा अफ़्रीकी मूल के प्रथम अमरीकी राष्ट्रपति, दीपावली।
०५. १५५६ पानीपत द्वितीय युद्ध अकबर ने हेमू को हराया, १६३० स्पेन-इंग्लैंड शांति समझौता, १८७० चितरंजन दास जन्म, १९१७ बनारसी दास गुप्ता जन्म, १९२० इंडियन रेडक्रॉस सोसायटी स्थापित, १९३० अर्जुन सिंह जन्म,१९९९ गेंदबाज मैल्कम मार्शल निधन, २००७ प्रथम चीनी यान चंद्र कक्षा में, २०१३ मंगल परिक्रमा अभियान रॉकेट प्रक्षेपण, अन्नकूट-गोवर्धन पूजा।
०६. १८६० अब्राहम लिंकन अमरीकी राष्ट्रपति, १९०३ पनामा स्वतंत्र, १९१३ द. अफ्रीका गांधी जी बंदी, १९४३ जापान ने अंदमान-निकोबार नेताजी को सौंपे, १९६२ राष्ट्रीय रक्षा परिषद्, १९८५ अभिनेता संजीव कुमार निधन, यम द्वितीया, चित्रगुप्त पूजा, भाई दूज।
०७. १६२७ बहादुरशाह द्वितीय निधन रंगून, १८५८ बिपिनचंद्र पाल जन्म, १८७६ बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय वंदे मातरम लिखा, १८८८ चंद्रशेखर वेंकट रमन जन्म, १९१७ रूस बोल्शेविक क्रांति सफल, १९३६ चंद्रकांत देवताले जन्म, १९५४ कमल हासन जन्म, विश्वामित्र जयंती।
०८. १९४५ हॉन्गकॉन्ग नौका दुर्घटना १५५० मरे, १९८८ चीन भूकंप ९०० मरे, २००८ प्रथम भारतीय मानवरहित अंतरिक्ष यान चंद्रकक्षा में, २०१६ भारत नोट विमुद्रीकरण,
०९. १२७० संत नामदेव जयंती, १८१८ इवान तुर्गेनेव जन्म, १८६२ कलकत्ता उच्च न्यायालय उद्घाटन, १८७७ इक़बाल जन्म, १९०४ वनस्पति विज्ञानी पंचानन माहेश्वरी जन्म, १९३६ सुदामा पाण्डे धूमिल जन्म, १९४८ जूनागढ़ भारत में विलय, १९५३ कंबोडिया स्वतंत्र, १९८९ ब्रिटेन मृत्यु दंड समाप्त, २००० उत्तराखंड दिवस, राष्ट्रीय क़ानूनी सेवा दिवस।
१०. १६५९ शिवजी ने प्रतापगढ़ दुर्ग के निकट अफ़ज़ल खान को मारा, १६९८ ईस्ट इंडिया कंपनी ने कलकत्ता ख़रीदा, १८४८ सुरेन्द्रनाथ बैनर्जी जन्म, १८८५ गोटलिएब डेमलेर पहली मोटर साईकिल, १९२० दत्तोपंत ठेंगड़ी जन्म, सदानंद बकरे शिल्पकार-मूर्तिकार जन्म, १९६३ रोहिणी खाडिलकर प्रथम एशियाई शतरंज चैम्पियनशिप १९८१विजेता, १९७० फ़्रांस राष्ट्रपति डगाल दिवंगत, १९७५ अंकोला स्वतंत्र, १९८२ बिल गेट विंडो १ आरंभ, १९८९ बर्लिन जर्मन दीवार गिराना आरंभ, १९९० चंद्रशेखर भारत के प्रधान मंत्री, २००१ भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई ने संयुक्त राष्ट्र संघ को संबोधित किया, २००२ ऑस्ट्रेलिया ने इंग्लैंड से पहला ऐशेस मैच जीता, छठ पूजा।
११. १६७५ गोबिंद सिंह सिख गुरु बने, १८८८ मौलाना अबुल कलाम आज़ाद-जे.बी.कृपलानी जन्म, १९१८ पोलैंड स्वतंत्र, १९३६ माला सिन्हा जन्म, १९४३ परमाणु वैज्ञानिक अनिल काकोडकर जन्म, १९६२ कुवैत संविधान दिवस, १९७३ डाक टिकिट प्रथम अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी दिल्ली, १९७५ अंगोला स्वतंत्र, , राष्ट्रीय शिक्षा दिवस, जलाराम बापा जयंती, सहस्त्रबाहु जयंती।
१२. १८४७ सर जेम्स यंग सिमसन क्लोरोफॉर्म का पहला औषधीय प्रयोग, १८९६ पक्षी विज्ञानी सालिम अली जन्म,१९१८ ऑस्ट्रिया गणतंत्र बना, १९३० प्रथम गोलमेज सम्मेलन लंदन, १९३६ केरल मंदिर सब हिन्दुओं हेतु खुले, १०४० अमजद खान जन्म, १९४६ मदनमोहन मालवीय निधन, २००८ बालासोर परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम के १५ का सफल परीक्षण, प्रथम भारतीय मानवरहित अंतरिक्ष यान चंद्रमा की अंतिम कक्षा में स्थापित, २००९ अतुल्य भारत अभियान वर्ल्ड ट्रेवेल अवार्ड २००८ प्राप्त, गोपाष्टमी।
१३. १७८० रंजीत सिंह पंजाब शासक, १८९२ रायकृष्ण दास जन्म, १८९५ सी के नायडू जन्म, १८९८ सारदा माँ ने भगिनी निवेदिता के विद्यालय का उद्घाटन किया, १९१७ मुक्तिबोध जन्म, १९१८ ऑस्ट्रिया गणराज्य, १९६७ मीनाक्षी शेषाद्रि जन्म, १९६७ जुही चावला जन्म, १९७१ नासा मैरीनर ९ यान मंगल कक्षा में, १९७५ विश्व स्वास्थ्य संगठन एशिया चेचक मुक्त, १९८५ पूर्वी कोलंबिया ज्वालामुखी २३,००० मरे, २०१३ हरिकृष्ण देवसरे निधन, आंवला / अक्षय नवमी।
१४. १८८९ जवाहर लाल नेहरू जन्म, १९२२ बी बी सी रेडियो सेवा, १९२६ पीलू मोदी जन्म, १९५५ कर्मचारी राज्य बीमा निगम उद्घाटित, १९५७ बाल दिवस आरंभ, विश्व मधुमेह दिवस, १९७७ श्रील भक्तिवेदांत प्रभुपाद दिवंगत।
१५. १८७५ बिरसा मुंडा जन्म, १९२० लीग ऑफ़ नेशंस प्रथम बैठक जिनेवा, १९३७ जयशंकर प्रसाद निधन, १९३८ महात्मा हंसराज निधन, १९४९ नाथूराम गोडसे-नारायम दत्तात्रेय आप्टे को फाँसी,१९८२ विनोबा भावे निधन पवनार, १९८६ सानिया मिर्ज़ा जन्म, १९८८ फिलिस्तीन स्वतंत्र राष्ट्र घोषित, २००७ चिली भूकंप ७.७ रिक्टर, झारखण्ड दिवस, २०१७ कुंवर नारायण निधन, तुलसी विवाह, कालिदास जयंती।
१६. १९०७ शंभु महाराज जन्म, १९२७ श्रीराम लागु जन्म, १९३० मिहिर सेन जन्म, १९७३ पुलेला गोपीचंद जन्म, २०१३ सचिन तेंडुलकर भारत रत्न, राष्ट्रीय प्रेस दिवस, विश्व सहिष्णुता दिवस।
१७. १५५८ एलिजाबेथ प्रथम सत्तासीन, १९०० पद्मजा नायडू जन्म, १९२८ लाला लाजपत राय शहीद, १९३२ तीसरा गोलमेज सम्मलेन, १९६६ रीता फारिया मिस वर्ल्ड, १९७० रुसी लूनाखोद १ चंद्र तल पर, १९९९ अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस, अंतर्राष्ट्रीय छात्र दिवस। ।
१८. १७२७ जयपुर दिवस वास्तुकार विद्याधर चक्रवर्ती, १७३८ फ़्रांस-ऑस्ट्रिया शांति समझौता, १८३३ हालेंड-बेल्जियम जोनहोवेन संधि, १९०१ वी. शांताराम जन्म, १९१० क्रन्तिकारी बटुकेश्वर दत्त जन्म, १९१८ लातविया स्वतंत्र, १९४६ कमलनाथ जन्म, १९४८ पटना स्टीमर नारायणी जलमग्न ५०० मरे, १९५६ मोरक्को स्वतंत्र, १९७२ बाघ राष्ट्रीय पशु, २०१३ नासा मंगल पर यान भेजा, २०१७ मानसी छिल्लर मिस वर्ल्ड।
१९. १८२४ रूस सेंट पीटरसबर्ग बाढ़ १०,००० मरे, १८२८ रानी लक्ष्मी बाई जन्म, १८९५ फ्रेडरिक ई ब्लेसडेल पेंसिल का पेंटेट, १९२८ दारासिंह जन्म,१९३३ स्पेन महिला मताधिकार, १८३८ केशवचन्द्र सेन, १९१७ इंदिरा गाँधी जन्म, १९८२ नौवाँ एशियाई खेल आरंभ, १९९५ कर्णम मल्लेश्वरी भारोत्तोलन विश्व रिकॉर्ड, १९९४ ऐश्वर्या राय मिस वर्ल्ड, १९९७ कल्पना चावला प्रथम भारतीय महिला अंतरिक्ष यात्री, २००८ मून इम्पैक्ट प्रोब चाँद पर उतरा, राष्ट्रीय एकता दिवस, गुरु नानक जयंती।
२०. १७५० टीपू सुल्तान जन्म, १९१७ यूक्रेन गणराज्य, १९२९ मिल्खा सिंह जन्म, १९८१ भास्कर उपग्रह प्रक्षेपित, १९८५ माइक्रोसॉफ्ट विंडोस १ जारी, १९१६ नायक यदुनाथ सिंह परमवीर चक्र, १९८९ बबीता फोगाट जन्म, २०१६ पी. वी, सिंधु चाइना ओपन सुपर सीरीज विजेता।
२१. १८७७ प्रथम फोनोग्राम थॉमस एल्वा एडिसन, १८९९ हरेकृष्ण महताब, १९१४ क्रांतिकारी उज्ज्वला मजूमदार, १९३१ ज्ञानरंजन जन्म, १९४७ प्रथम भारतीय डाक टिकिट, १९५६ शिक्षक दिवस प्रस्ताव पारित, १९६२ भारत-चीन युद्ध विराम, १९६३ प्रथम भारतीय रॉकेट प्रक्षेपित थुम्बा, १९७० सी वी रमन निधन।
२२. १८३० झलकारी बाई जन्म, १८६४ रुक्माबाई प्रथम भारतीय महिला चिकित्सक जन्म, १८९२ मीरा बेन जन्म, १९४८ सरोज खान जन्म, १९३९ मुलायम सिंह यादव जन्म, १९६३ अमरीकी राष्ट्रपति कैनेडी की हत्या, १९९७ डायना हेडेन मिस वर्ल्ड।
२३. १९१४ कृष्ण चंदर जन्म, १९२६ सत्य साईं जन्म, १९३० गीता दत्त, १९३७ जगदीशचंद्र बोस निधन, १९८३ भारत में प्रथम राष्ट्र मंडल शिखर सम्मेलन।
२४. १७५९ इटली विसूवियस ज्वालामुखी विस्फोट, १८५९ चार्ल्स डार्विन ऑन द ओरिजिन ऑफ़ स्पीशीज प्रकाशित, १८६७ जोसेफ ग्लीडन अमेरिका कंटीले तार का पेटेंट, १९१९ महिपाल जन्म अभिनेता शायर, १९४४ अमोल पालेकर जन्म, १९५५ इयान बॉथम जन्म, १९२६ श्री अरोबिन्दो घोष सिद्धि दिवस, १९६२ अरुंधति रॉय जन्म, २००३ टुनटुन (उमादेवी) निधन, २०१५ महिप सिंह निधन।
२५. १८६६ इलाहाबाद उच्च न्यायालय उद्घाटित, १८६७ अल्फ्रेड नोबल डायनामाइट पेटेंट, १८९० सुनीत कुमार चटर्जी जन्म, १८९८ देवकी बोस जन्म, १९३० जापान भूकंप के ६९० झटके, १९४९ भारतीय संविधान हस्ताक्षरित व प्रभावी, १९७४ यू थांट निधन, १९८२ झूलन गोस्वामी जन्म।
२६. १८७० डॉ. हरिसिंह गौर जयंती, १९२६ प्रो. यशपाल जन्म, १९६० कानपूर-लखनऊ एस टी डी, २०१२ आम आदमी पार्टी गठित।
२७. १७९५ प्रथम बांगला नाटक मंचन, १८८५ उल्कापिंड प्रथम तस्वीर, १८९० ज्योतिबा फुले निधन, १८९५ नोबल पुरस्कार स्थापित, १९०७ हरिवंश राय बच्चन जन्म, १९३२ डॉन ब्रेडमैन दस हजार रन, १९४० ब्रूस ली जन्म, १९४२ मृदुला सिन्हा जन्म।
२८. १८२१ पनामा स्वतंत्र।
२९. १८६९ ठक्कर बापा जन्म, १९१३ अली सरदार ज़ाफ़री जन्म, १९६३ शरद सिंह।
३०. १७३१ बीजिंग भूकंप एक लाख मृत, १८५८ जगदीशचंद्र बोस जन्म, १८८८ क्रांतिकारी गेंदा लाल दीक्षित जन्म, मायानन्द चैतन्य जयंती, १९३१ रोमिला थापर जन्म, १९४४ मैत्रेयी पुष्पा जन्म, १९६५ गुड़िया संग्रहालय दिल्ली, २००० प्रियंका चोपड़ा मिस वर्ल्ड।
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मुक्तिका
मापनी - २१२ २२१ २ २२१ २ १२
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अंत की चिंता न कर; शुरुआत तो करें
मंज़िलों की चाहतें, फौलाद तो करें

है सियासत को न गम, जनता मरे- मरे
चाह सत्ता की न हो, हालात तो करें

रूठना भी, मानना भी, आपकी अदा
दूरियाँ नजदीकियाँ हों, बात तो करें

वायदों का क्या?, कहा क्या-क्या न याद है
कायदों को तोड़ने, फरियाद तो करें

कौन क्या लाया यहाँ?, क्या ले गया कहो?
कैद में है हर बशर, आज़ाद तो करें
३१-१०-२०२२
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--- : शब्द निर्माण शक्ति : ---
महामहोपाध्याय पण्डित रामावतार शर्मा ( १८७७ -- १९२९ ) पटना कालेज मे पढ़ा रहे थे, गर्मी के दिन थे। पंखा कुली झालरदार पंखा डोरी से खीचकर चला रहा था लेकिन आलस के कारण पंखा रुक जाता। गर्मी से तंग छात्र उसे डाट डपट कर रहे थे। पढ़ाई में व्यवधान देख पंडित जी ने कहा - 'जाने दो उसे। वह बड़ा स्टुपिड (मूर्ख) है। उसी समय कालेज का अंग्रेज प्रिन्सिपल जो बरामदे में थे, उनहोंने छात्रों को शांत कराकर विनोद में कहा कि आपने संस्कृत के पण्डित होकर अंग्रेजी के स्टूपिड ( Stupid ) शब्द का कैसे प्रयोग कर दिया? पण्डित रामावतार जी ने कहा कि प्रयुक्त शब्द संस्कृत का है , अंग्रेजी का नही। शब्द है ' इष्टपिट ' जिसका व्युत्पत्तिजन्य अर्थ है  'इष्टं पिनष्टीति' अर्थात जो इष्ट को पीस दे, मनचाही बात को विनष्ट कर दे , अर्थात- जड़, मूर्ख। प्रिन्सिपल साहब इस असाधरण शब्द चमत्कार  से आश्चर्यचकित रह गए। 
आप शब्दों के संस्कृतीकरण में दक्ष थे। उनके द्वारा कुछ देशों व व्यक्तियों का संस्कृतीकरण दृष्टव्य है-
आरब्य              अरेबिया
औष्ट्रालय            आस्ट्रेलिया
दानव                  डेन्यूब
शर्मण्य                 जर्मनी|
नन्दन                   लण्डन
नवार्क                   न्यूयार्क 
अरिष्टोत्तर              अरिस्टाटल
अलक्षेन्द्र                अलेकजेण्डर
सुक्रतु                    साक्रेटीज ( सुकरात)
उरगजिह्व               औरंगजेब
गीत
*
श्वास श्वास समिधा है
आस-आस वेदिका
*
अधरों की स्मित के
पीछे है दर्द भी
नयनों में शोले हैं
गरम-तप्त, सर्द भी
रौनकमय चेहरे से
पोंछी है गर्द भी
त्रास-त्रास कोशिश है
हास-हास साधिका
*
नवगीती बन्नक है
जनगीति मन्नत
मेहनत की माटी में
सीकर मिल जन्नत
करना है मंज़िल को
धक्का दे उन्नत
अभिनय के छंद रचे
नए नाम गीतिका
*
सपनों से यारी है
गर्दिश भी प्यारी है
बाधाओं को टक्कर
देने की बारी है
रोप नित्य हौसले
महकाई क्यारी है
स्वाति बूँद पा मुक्ता
रच देती सीपिका
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छंद कार्यशाला -
२८ वार्णिक दण्डक छंद
विधान - २८ वार्णिक, ६-१४-१८-२३-२८ पर यति।
४३ मात्रिक, १०-११--७-६-९ पर यति।
गणसूत्र - र त न ज म य न स ज ग।
*
नाद से आल्हाद, झर कर ही रहेगा, देख लेना, समय खुद, देगा गवाही
अक्षरों में भाव, हर भर जी सकेगा, लेख लेना, सृजन खुद, देगा सुनाई
शब्द हो नि:शब्द, अनुभव ले सकेगा, सीख देगा, घुटन झट होगी पराई
भाव में संचार, रस भर पी सकेगा, लीक होगी, नवल फिर हो वाह वाही
*
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
९४२५१८३२४४
३१-१०-२०२१
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मुक्तक
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स्नेह का उपहार तो अनमोल है
कौन श्रद्धा-मान सकता तौल है?
भोग प्रभु भी आपसे ही पा रहे
रूप चौदस भावना का घोल है
*
स्नेह पल-पल है लुटाया आपने।
स्नेह को जाएँ कभी मत मापने
सही है मन समंदर है भाव का
इष्ट को भी है झुकाया भाव ने
*
फूल अंग्रेजी का मैं,यह जानता
फूल हिंदी की कदर पहचानता
इसलिए कलियाँ खिलता बाग़ में
सुरभि दस दिश हो यही हठ ठानता
*
उसी का आभार जो लिखवा रही
बिना फुरसत प्रेरणा पठवा रही
पढ़ाकर कहती, लिखूँगी आज पढ़
सांस ही मानो गले अटका रही
३१-१०-२०२०
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गीत
*
श्वास श्वास समिधा है
आस-आस वेदिका
*
अधरों की स्मित के
पीछे है दर्द भी
नयनों में शोले हैं
गरम-तप्त, सर्द भी
रौनकमय चेहरे से
पोंछी है गर्द भी
त्रास-त्रास कोशिश है
हास-हास साधिका
*
नवगीती बन्नक है
जनगीति मन्नत
मेहनत की माटी में
सीकर मिल जन्नत
करना है मंज़िल को
धक्का दे उन्नत
अभिनय के छंद रचे
नए नाम गीतिका
*
सपनों से यारी है
गर्दिश भी प्यारी है
बाधाओं को टक्कर
देने की बारी है
रोप नित्य हौसले
महकाई क्यारी है
स्वाति बूँद पा मुक्ता
रच देती सीपिका
३१-१०-२०१९
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लघुकथा:
पटखनी
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सियार के घर में उत्सव था। उसने अतिउत्साह में पड़ोस के नीले सियार को भी न्योता भेज दिया।
शेर को आश्चर्य हुआ कि उसके टुकड़ों पर पलनेवाला वफादार सियार उससे दगाबाजी करनेवाले नीले सियार को को आमंत्रित कर रहा है।
आमंत्रित नीले सियार को याद आया कि उसने विदेश में वक्तव्य दिया था: 'शेर को जंगल में अंतर्राष्ट्रीय देख-रेख में चुनाव कराने चाहिए'।
सियार लोक में आपके विरुद्ध आंदोलन, फैसले और दहशतगर्दी पर आपको क्या कहना है? किसी पत्रकार ने पूछा तो उसे दुम दबाकर भागना पड़ा था।
'शेर तो शेरों की जमात का नेता है, सियार उसे अपना नुमाइंदा नहीं मानते' नीले सियार ने आते ही वक्तव्य दिया तो केले खा रहे बंदरों ने तुरंत कुलाटियाँ खाते हुए उछल-कूदकर चैनलों पर बार-बार यही राग अलापना शुरू कर दिया।
'हम सियार तो नीले सियार को अपने साथ बैठने लायक भी नहीं मानते, नेता कैसे हो सकता है वह हमारा?' आमंत्रणकर्ता युवा सियार ने पूछा।
'सूरज पर थूकने से सूरज मैला नहीं होता, अपना ही मुँह गन्दा होता है' भालू ने कहा।
'शेर सिर्फ शेरों का नहीं पूरे जंगल का नेता है' कोयल ने कहा 'लेकिन उसे भी केवल शेरों के हितों की बात न कर, अन्य प्रजाति के पशु-पक्षियों के भी हित साधने चाहिए।'
'जानवरों के बीच नफरत फ़ैलाने और दूरियाँ बढ़ानेवाले घातक समाचार बार-बार प्रसारित करनेवाले बिकाऊ बंदरों पर कार्यवाही हो। कोटि-कोटि जनता का अनमोल समय और बर्बाद करने का हक़ इन्हें किसने दिया?' भीड़ को गरम होता देखकर बंदरों और नीले सियार को होना पड़ा नौ दो ग्यारह।
सभी विस्मित रह गये चुनाव का परिणाम देखकर कि मतदाताओं ने कोयल को विजयी बनाकर शेर और नीले सियार दोनों को दे दी थी पटखनी।
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३१-१०-२०१४
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