कुल पेज दृश्य

नवगीत ढाई आखर लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
नवगीत ढाई आखर लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

सोमवार, 30 जुलाई 2018

navgeet

नवगीत: ढाई आखर संजीव * जिन्स बना बिक रहा आजकल ढाई आखर . दाँत दूध के टूट न पाये पर वयस्क हैं.औ नहीं सुंदरी नर्स इसलिए अनमयस्क हैं. चूस रहे अंगूठा लेकिन आँख मारते बाल भारती पढ़ न सके डेटिंग परस्त हैं हर उद्यान काम-क्रीड़ा हित इनको बाखर जिन्स बना बिक रहा आजकल ढाई आखर . मकरध्वज घुट्टी में शायद गयी पिलायी वात्स्यायन की खोज गर्भ में गयी सुनायी मान देह को माटी माटी से मिलते हैं कीचड किया, न शतदल कलिका गयी खिलायी मन अनजाना तन इनको केवल जलसाघर जिन्स बना बिक रहा आजकल ढाई आखर .