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गुरुवार, 4 जून 2009

बाल-गीत: पेन्सिल -संजीव 'सलिल'

पेंसिल


पेन्सिल बच्चों को भाती है.

काम कई उनके आती है.

अक्षर-मोती से लिखवाती.

नित्य ज्ञान की बात बताती.

रंग-बिरंगी, पतली-मोटी.



लम्बी-ठिगनी, ऊँची-छोटी.



लिखती कविता, गणित करे.

हँस भाषा-भूगोल पढ़े.

चित्र बनाती बेहद सुंदर.

पाती है शाबासी अक्सर.

बहिना इसकी नर्म रबर.

मिटा-सुधारे गलती हर.

घिसती जाती,कटती जाती.

फ़िर भी आँसू नहीं बहाती.

'सलिल' जलाती दीप ज्ञान का.

जीवन सार्थक नाम-मान का.

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