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शुक्रवार, 13 जुलाई 2018

दोहा सलिला

रूप धूप का दिव्य
*
धूप रूप की खान है, रूप धूप का दिव्य।
छवि चिर-परिचित सनातन, पल-पल लगती नव्य।।
*
रश्मि-रथी की वंशजा, या भास्कर की दूत।
दिनकर-कर का तीर या, सूर्य-सखी यह पूत।।
*
उषा-सुता जग-तम हरे, घोर तिमिर को चीर।
करती खड़ी उजास की,  नित अभेद्य प्राचीर।।
*
धूप-छटा पर मुग्ध हो, करते कलरव गान।
पंछी वाचिक काव्य रच, महिमा आप्त बखान।।
*
धूप ढले के पूर्व ही, कर लें अपने काम।
संध्या सँग आराम कुछ, निशा-अंक विश्राम।।
*
कलियों को सहला रही, बहला पत्ते-फूल।
फिक्र धूप-माँ कर रही, मलिन न कर दे धूल।।
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भोर बालिका; यौवना, दुपहर; प्रौढ़ा शाम।
राग-द्वेष बिन विदा ले, रात धूप जप राम।।
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धूप राधिका श्याम रवि, किरण गोपिका-गोप।
रास रचा निष्काम चित, करें काम का लोप।।
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धूप विटामिन डी लुटा, कहती- रहो न म्लान।
सूर्य-़स्नान कर स्वस्थ्य हो, जीवन हो वरदान।।
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सलिल-लहर सँग नाचती, मोद-मग्न हो धूप।
कभी बँधे भुजपाश में, बाँधे कभी अनूप।।
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रूठ क्रोध के ताप से, अंशुमान हो तप्त।
जब तब सोनल धूप झट, हँस दे; गुस्सा लुप्त।।
*
आशुतोष को मोहकर, रहे मेघ ना मौन।
नेह-वृष्टि कर धूप ले, सँग-सँग रोके कौन।।
*
धूप पकाकर अन्न-फल, पुष्ट करे बेदाम।
अनासक्त कर कर्म वह, माँगे दाम न नाम।।
*
कभी न ब्यूटीपारलर, गई एक पल धूप।
जगती-सोती समय पर, पाती रूप अनूप।।
*
दिग्दिगंत तक टहलती, खा-सो रहे न आप।
क्रोध न कर; हँसती रहे, धूप न करे विलाप।।
*
salil.sanjiv@gmail.com
13.7.2018, 7999559618

सोमवार, 1 नवंबर 2010

गीत: आँसू और ओस संजीव 'सलिल'

गीत:

आँसू और ओस

संजीव 'सलिल'
*
हम आँसू हैं,
ओस बूँद मत कहिये हमको...
*
वे पल भर में उड़ जाते हैं,
हम जीवन भर साथ रहेंगे,
हाथ न आते कभी-कहीं वे,
हम सुख-दुःख की कथा कहेंगे.
छिपा न पोछें हमको नाहक
श्वास-आस सम सहिये हमको ...
*
वे उगते सूरज के साथी,
हम हैं यादों के बाराती,
अमल विमल निस्पृह वे लेकिन
दर्द-पीर के हमीं संगाती.
अपनेपन को अब न छिपायें,
कभी कहें: 'अब बहिये' हमको...
*
ऊँच-नीच में, धूप-छाँव में,
हमने हरदम साथ निभाया.
वे निर्मोही-वीतराग हैं,
सृजन-ध्वंस कुछ उन्हें न भाया.
हारे का हरिनाम हमीं हैं,
'सलिल' संग नित गहिये हमको...
*

शनिवार, 11 सितंबर 2010

मुक्तिका: डाकिया बन वक़्त... --- संजीव 'सलिल'

theek hai abstract Pictures, Images and Photos
मुक्तिका:

                          डाकिया बन  वक़्त...

संजीव 'सलिल'
*

*
सुबह की  ताज़ी  हवा  मिलती  रहे  तो  ठीक  है.
दिल को छूता कुछ, कलम रचती रहे तो ठीक है..

बाग़ में  तितली - कली  हँसती  रहे  तो  ठीक  है.
संग  दुश्वारी  के   कुछ  मस्ती  रहे  तो  ठीक  है..

छातियाँ हों  कोशिशों  की  वज्र  सी  मजबूत तो-
दाल  दल  मँहगाई  थक घटती  रहे  तो ठीक है..

सूर्य  को  ले ढाँक बादल तो न चिंता - फ़िक्र कर.
पछुवा या  पुरवाई  चुप  बहती रहे  तो ठीक  है.. 

संग  संध्या,  निशा, ऊषा,  चाँदनी  के  चन्द्रमा
चमकता जैसे, चमक  मिलती  रहे  तो ठीक है..

धूप कितनी भी  प्रखर हो, रूप  कुम्हलाये  नहीं.
परीक्षा हो  कठिन  पर फलती  रहे  तो ठीक  है..

डाकिया बन  वक़्त खटकाये  कभी कुंडी 'सलिल'-
कदम  तक  मंजिल अगर चलती रहे  तो ठीक है..

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Acharya Sanjiv Salil

गुरुवार, 29 जुलाई 2010

अभिनव प्रयोग दोहा-हाइकु गीत समस्या पूर्ति: प्रतिभाओं की कमी नहीं... संजीव 'सलिल'

अभिनव प्रयोग / समस्या पूर्ति:

दोहा-हाइकु गीत

प्रतिभाओं की कमी नहीं...

संजीव 'सलिल'
*

*
प्रतिभाओं की
कमी नहीं किंचित,
विपदाओं की....
*
         धूप-छाँव का खेल है
         खेल सके तो खेल.
         हँसना-रोना-विवशता
         मन बेमन से झेल.

         दीपक जले उजास हित,
         नीचे हो अंधेर.
         ऊपरवाले को 'सलिल' 
         हाथ जोड़कर टेर.

         उसके बिन तेरा नहीं
         कोई कहीं अस्तित्व.
         तेरे बिन उसका कहाँ
         किंचित बोल प्रभुत्व?

क्षमताओं की
कमी नहीं किंचित
समताओं की.
प्रतिभाओं की
कमी नहीं किंचित,
विपदाओं की....
*
       पेट दिया दाना नहीं.
       कैसा तू नादान?
       'आ, मुझ सँग अब माँग ले-
        भिक्षा तू भगवान'.

        मुट्ठी भर तंदुल दिए,
        भूखा सोया रात.
        लड्डूवालों को मिली-
        सत्ता की सौगात.

       मत कहना मतदान कर,
       ओ रे माखनचोर.
       शीश हमारे कुछ नहीं.
       तेरे सिर पर मोर.

उपमाओं की
कमी नहीं किंचित
रचनाओं की.
प्रतिभाओं की
कमी नहीं किंचित,
विपदाओं की....
*
http://divyanarmada.blogspot.com