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गुरुवार, 21 जुलाई 2011

मुक्तिका: बरसात में ----संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:                                                                                             
बरसात में
संजीव 'सलिल'
*
बन गयी हैं दूरियाँ, नज़दीकियाँ बरसात में.
हो गये दो एक, क्या जादू हुआ बरसात में..

आसमां का प्यार लाई जमीं तक हर बूँद है.
हरी चूनर ओढ़ भू, दुल्हन बनीं बरसात में..

तरुण बादल-बिजुरिया, बारात में मिल नाचते.
कुदरती टी.वी. का शो है, नुमाया बरसात में..

डालियाँ-पत्ते बजाते बैंड, झूमे है हवा.
आ गयीं बरसातियाँ छत्ते लिये बरसात में..

बाँह उनकी राह देखे चाह में जो हैं बसे.
डाह हो या दाह, बहकर गुम हुई बरसात में..

चू रहीं कवितायेँ-गज़लें, छत से- हम कैसे बचें?
छंद की बौछार लायीं, खिड़कियाँ बरसात में..

राज-नर्गिस याद आते, भुलाये ना भूलते.
बन गये युग की धरोहर, काम कर बरसात में..

बाँध,झीलें, नदी विधवा नार सी श्री हीन थीं.
पा 'सलिल' सधवा सुहागन, हो गयीं बरसात में..

मुई ई कविता! उड़ाती नींद, सपने तोड़कर.
फिर सजाती नित नये सपने 'सलिल' बरसात में..
*
Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

सोमवार, 21 मार्च 2011

मुक्तिका: गलत मुहरा -- संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:                                                                          

गलत मुहरा

संजीव 'सलिल'
*
सही चहरा.
गलत मुहरा..

सिन्धु उथला,
गगन गहरा..

साधुओं पर
लगा पहरा..

राजनय का
चरित दुहरा..

नर्मदा जल
हहर-घहरा..

हौसलों की
ध्वजा फहरा..

चमन सूखा
हरा सहरा..

ढला सूरज
चढ़ा कुहरा..

पुलिसवाला
मूक-बहरा..

बहे पत्थर
'सलिल' ठहरा ..

****************

मुक्तिका: मन तरंगित --- संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:                                                                                         

मन तरंगित

संजीव 'सलिल'
*
मन तरंगित, तन तरंगित.
झूमता फागुन तरंगित..

होश ही मदहोश क्यों है?
गुन चुके, अवगुन तरंगित..

श्वास गिरवी आस रखती.
प्यास का पल-छिन तरंगित..

शहादत जो दे रहे हैं.
हैं न वे जन-मन तरंगित..

बंद है स्विस बैंक में जो
धन, न धन-स्वामी तरंगित..

सचिन ने बल्ला घुमाया.
गेंद दौड़ी रन तरंगित..

बसंती मौसम नशीला
'सलिल' संग सलिला तरंगित..

***********
Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

रविवार, 20 मार्च 2011

आओ खेलें होली ऐसे -- सुश्री आशा वर्मा

आओ खेलें होली ऐसे 

सुश्री आशा वर्मा
*
आओ खेलें होली ऐसे.
अब तक कभी न खेली जैसे...
*
हरा रंग हरियाली लाये,
कोइ पेड़ न कटने पाये.
घर-घर पौधे नए लगायें.
पीपल, इमली, नीम उगायें.
शीतल छाया का सुख पायें.
प्राण वायु से जीवन पायें.
वर्षा बढ़े सुखी हो जाएँ.
तन-मन झूमे खुशी मनायें.
धरती हो नंदन वन जैसे...
*
लाल रंग अनुराग बढ़ायें.
हेल-मेल का पथ पढ़ायें.
सब धर्मों के भाई आयें.
एक-दूजे को गले लगायें.
भाषा-भूषा-भेद भुलायें.
ऊँच-नीच को दूर भगाये.
प्रेम-प्यार से फगुआ गायें.
समता-रंग में भीग नहायें.
दूर करेगा कोई कैसे?...
*
पानी तनिक न व्यर्थ बहायें.
कचरे की होली दहकायें.
ढोल, मंजीरा, झांझ बजायें.
गुझिया, सेव, पपड़ियाँ खायें.
भंग भवानी परे हटायें. 
ठण्डाई मिल पियें पिलायें.
सदा प्राकृतिक रंग बनायें.
फिर पिचकारी खूब चलायें.
एक्य-भाव सुदृढ़ हो जैसे
आओ होली खेलें ऐसे...

*********





शनिवार, 19 फ़रवरी 2011

मुक्तिका: जिसे मैं भाया ----- संजीव 'सलिल'

मुक्तिका

संजीव 'सलिल'
*
जिसे मैं भाया, मुझे वो भायेगी.
श्वास के संग आस नगमे गायेगी..

जिंदगी औ' बंदगी की फिक्र क्या.
गयी भी तो लौट कर फिर आयेगी..

कौन मुझको जानता संसार में.
लेखनी पहचान बन रह जायेगी..

प्रीत की, मनमीत की बातें अजब.
याद कर गालों पे लाली छायेगी..

कौन है जो 'सलिल' बिन रह ना सके?
सिर्फ यह परछाईं ना रह पायेगी..
************

गुरुवार, 17 फ़रवरी 2011

मुक्तिका: अनसुलझे मसले हैं हम.. संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:                                                                                             

अनसुलझे मसले हैं हम..

संजीव 'सलिल'

*

सम्हल-सम्हल फिसले हैं हम.

फिसल-फिसल सम्हले हैं हम..

खिले, सूख, मुरझाये भी-

नहीं निठुर गमले हैं हम..

सब मनमाना पीट रहे.

पिट-बजते तबले हैं हम..

अख़बारों में रोज छपे

घोटाले-घपले हैं हम..

'सलिल' सुलझ कर उलझ रहे.

अनसुलझे मसले हैं हम..

*******************

सोमवार, 13 दिसंबर 2010

प्रो. सत्यसहाय श्रीवास्तव के प्रति भावांजलि: तुममें जीवित था... संजीव 'सलिल'

प्रो. सत्यसहाय श्रीवास्तव के प्रति भावांजलि:
तुममें जीवित था...
संजीव 'सलिल'
*
तुममें जीवित था इतिहास,
किन्तु न था युग को आभास...
*
पराधीनता के दिन देखे.
सत्याग्रह आन्दोलन लेखे..
प्रतिभा-पूरित सुत 'रनेह' के,
शत प्रसंग रोचक अनलेखे..
तुम दमोह के दीपक अनुपम
देते दिव्य उजास...
*
गंगा-विश्वनाथ मन भाये,
'छोटे'  में विराट लख पाये..
अरपा नदी बिलासा माई-
छतीसगढ़ में रम harhsaaye..
कॉलेज-अर्थशास्त्र ने पाया-
नव उत्थान-विकास...
*
साक्ष्य खरसिया-जांजगीर है.
स्वस्थ रखी तुमने नजीर है..
व्याख्याता-प्राचार्य बहुगुणी
कीर्ति-विद्वता खुद नजीर है..
छात्र-कल्याण अधिष्ठाता रह-
हुए लोकप्रिय खास...
*
कार्यस्थों को राह दिखायी.
लायन-रोटरी ज्योति जलायी.
हिंद और हिन्दी के वाहक
अमिय लुटाया हो विषपायी..
अक्षय-निधि आशा-संबल था-
सार्थक किये प्रयास...
*
श्रम-विद्या की सतत साधना.
विमल वन्दना, पुण्य प्रार्थना,
तुम अशोक थे, तुम अनूप थे-
महावीर कर विपद सामना,
नेह-नर्मदा-सलिल पानकर-
हरी पीर-संत्रास...
*
कीर्ति-कथा मोहिनी अगेह की.
अर्थशास्त्र-शिक्षा विदेह सी.
सत-शिव-सुंदर की उपासना-
शब्दाक्षर आदित्य-गेह की..
किया निशा में भी उजियारा.
हर अज्ञान-तिमिर का त्रास...
*
संस्मरण बहुरंगी अनगिन,
क्या खोया?, क्या पाया? बिन-गिन..
गुप्त चित्त में चित्र चित्रगुप्त प्रभु!
कर्म-कथाएँ लिखें पल-छीन.
हरी उपेक्षित मन की पीड़ा
दिया विपुल अधरों को हास...
*
शिष्य बने जो मंत्री-शासन,
करें नीति से जन का पालन..
सत्ता जन-हित में प्रवृत्त हो-
दस दिश सुख दे सके सु-शासन..
विद्यानगर बसा सामाजिक
नायक लिये हुलास...
*
प्रखर कहानी कर्मयोग की,
आपद, श्रम साफल्य-योग की.
थी जिजीविषा तुममें अनुपम-
त्याग समर्पण कश्र-भोग की..
बुन्देली भू के सपूत हे!
फ़ैली सुरभि-सुवास...
******

शनिवार, 2 अक्टूबर 2010

महामना मदन मोहन मालवीय के प्रति दोहांजलि : संजीव 'सलिल'


महामना मदन मोहन मालवीय के प्रति दोहांजलि :

संजीव 'सलिल'                                                                                                                             
*
म - महक रहा यश-कीर्ति से, जिनकी भारत देश. 

हा - हाड़-मांस के मनुज थे, हम से किन्तु विशेष..
म - मन-मन्दिर निर्मल बना, सरस्वती का वास.

ना - नाना कष्ट सहे किये, भागीरथी प्रयास.. 

म - मद न उन्हें किंचित हुआ, 'मदन' रहा बन दास.

द - दमन न उनकी नीति थी, संयत दीप उजास..
न - नमन करे जन-गण उन्हें, रख श्रृद्धा-विश्वास.
मो - मोह नहीं किंचित किया, 'मोहन' धवल हुलास..


ह - हरदम सेवा राष्ट्र की, था जीवन का ध्येय.
न - नहीं उन्हें यह चाह थी, मिले तनिक भी श्रेय..


मा - माल तिजोरी में सड़े, सेठों की है व्यर्थ.

ल - लगन लगी धन धनपति, दें जो धनी-समर्थ..

वी - वीर जूझ बाधाओं से, लेकर रोगी देह.

य - यज्ञ हेतु खुद चल पड़ा, तनिक न था संदेह..

अ - अनजानों का जीत मन, पूर्ण किया संकल्प.

म - मन ही मन सोचा नहीं, बेहतर कोई विकल्प..

र - रमा न रहना चाहिए, निज हित में इंसान. 

हैं - हैं जिसमें शिक्षा वही, इंसां है भगवान..
*
     विश्वनाथ के धाम में, दिया बुद्ध ने ज्ञान.

     लिया न इस युग में उसे, हमने आया ध्यान..

     शिक्षा पा मानव बने, श्रेष्ठ राष्ट्र-सन्तान.

     दीनबन्धु हो हर युवा, सद्भावों की खान..

     संस्कार ले सनातन, आदम हो इंसान.

     पराधीनता से लड़े, तरुणाई गुणवान..

     नरम नीति के पक्षधर, थे अरि-हीन विदेह.

     संत सदृश वे विरागी, नहीं तनिक संदेह..

     आता उन सा युग पुरुष, कल्प-कल्प के बाद.

     सत्य सनातन मूल्य-हित, जो करता संवाद..
     उनकी पावन प्रेरणा, हो जीवन-पाथेय.
    
     हिन्दी जग-वाणी बने, रहे न सच अज्ञेय..