दोहा सलिला :
मन भरकर करिए बहस
संजीव 'सलिल'
*
मन भरकर करिए बहस, 'सलिल' बात-बेबात.
जीत न मानें जीतकर, हार न मानें मात..
मधुर-तिक्त, सच-झूठ या, भला-बुरा दिन रात.
कुछ न कुछ तो बोलिए, मौन न रहिये तात..
हर एक क्रिया-कलाप पर, कर लेती सरकार.
सिर्फ बोलना ही रहा, कर-विमुक्त व्यापार..
नेता, अफसर, बीबियाँ, शासन करते बोल.
व्यापारी नित लूटते, वाणी में रस घोल..
परनिंदा सुख बिन लगे, सारा जीवन व्यर्थ.
निंदा रस बिन काव्य में, मिलता कोई न अर्थ..
द्रुपदसुता, मंथरा की, वाणी जग-विख्यात.
शांति भंग पल में करे, लगे दिवस भी रात..
सरहद पर तैनात हो, महिलाओं की फ़ौज.
सुन चख-चख दुश्मन भगे, आप कीजिये मौज..
सुने ना सुने छात्र पर, शिक्षक बोलें रोज.
क्या कुछ गया दिमाग में, हो इस पर कुछ खोज..
पंडित, मुल्ला, पादरी, बोल-बोल लें लूट.
चढ़ा भेंट लुटता भगत, सुनकर बातें झूठ..
वाणी से होती नहीं, अधिक शस्त्र में धार.
शस्त्र काटता तन- फटे, वाणी से मन यार..
बोल-बोल थकती नहीं, किंचित एक जुबान.
सुन-सुन थक जाते 'सलिल', गुमसुम दोनों कान..
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मन भरकर करिए बहस
संजीव 'सलिल'
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मन भरकर करिए बहस, 'सलिल' बात-बेबात.
जीत न मानें जीतकर, हार न मानें मात..
मधुर-तिक्त, सच-झूठ या, भला-बुरा दिन रात.
कुछ न कुछ तो बोलिए, मौन न रहिये तात..
हर एक क्रिया-कलाप पर, कर लेती सरकार.
सिर्फ बोलना ही रहा, कर-विमुक्त व्यापार..
नेता, अफसर, बीबियाँ, शासन करते बोल.
व्यापारी नित लूटते, वाणी में रस घोल..
परनिंदा सुख बिन लगे, सारा जीवन व्यर्थ.
निंदा रस बिन काव्य में, मिलता कोई न अर्थ..
द्रुपदसुता, मंथरा की, वाणी जग-विख्यात.
शांति भंग पल में करे, लगे दिवस भी रात..
सरहद पर तैनात हो, महिलाओं की फ़ौज.
सुन चख-चख दुश्मन भगे, आप कीजिये मौज..
सुने ना सुने छात्र पर, शिक्षक बोलें रोज.
क्या कुछ गया दिमाग में, हो इस पर कुछ खोज..
पंडित, मुल्ला, पादरी, बोल-बोल लें लूट.
चढ़ा भेंट लुटता भगत, सुनकर बातें झूठ..
वाणी से होती नहीं, अधिक शस्त्र में धार.
शस्त्र काटता तन- फटे, वाणी से मन यार..
बोल-बोल थकती नहीं, किंचित एक जुबान.
सुन-सुन थक जाते 'सलिल', गुमसुम दोनों कान..
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