कविता-प्रति कविता
राकेश खंडेलवाल-संजीव
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राकेश खंडेलवाल-संजीव
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श्री आचार्य सलिल चरण प्रथम नवाऊँ माथ
वन्दन करूँ महेश का जोड़ूँ दोनों हाथ
सुमिर करूँ घनश्याम से, क्षमा प्रार्थना तात
पाऊँ सीताराम का अपने सर पर हाथ
जय महिपाल ग्वालियर वाले
जय हो अद्भुत प्रतिभा वाले
शुक्ल श्री हो लें अभिनन्दित
पाठक जी करते आनन्दित
सुमन सखा हैं अपने श्याल
कुसुम वीर का लेखन उज्ज्वल
ममताजी की बात करें क्या
रहीं मंच पर ममता फ़ैला
सन्मुख रहें द्विवेदी जब द्वय
गौतम तब गाते हो निर्भय
सब के सब हो जाते कायल
जब भी आते छाते घायल
प्रणव भारतीजी का वन्दन
काव्य महकता बन कर चन्दन
किसकी गलती मानी भारी
बैठीं होकर रुष्ट तिवारी
पल में दीप्ति पुन: खामोशी
ऐसे ही दिखती मानोशी
हुईं दूज का चाँद शार्दुला
अनुरूपा कहतीं, आ सिखला
किरण कुसुम की बातें न्यारी
कविताकी महके फ़ुलवारी
अद्भुत रहा विजय का चिन्तन
नयी सोच ले आते सज्जन
गज़ल वालियाजी की प्यारी
मान गये अनुराग तिवारी
मथुरा में सन्तोष मिल रहा
दिल्ली का दिल लगा हिल रहा
नज़्म सुनाते जब भूटानी
दांतों उंगली पड़े दबानी
श्री महेन्द्रजी और आरसी
दिखा रहे हैं काव्य आरसी
अमित त्रिपाठी जब उच्चारें
कविता, नमन मेरा स्वीकारें
अनिल अनूप ओम जी तन्मय
कभी कभी बोलेंगे है तय
अबिनव और अर्चना गायब
ये सचमुच है बड़ा अजायब
पूर्ण हुआ चालीसा रचना
मान्य अचलजी किरपा करना
इस कविता के मंच पर मिला समय जो आज
नमन आप सबको करूँ स्वीकारें कविराज.
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अग्रज दें आशीष, नहीं अनुजों का आदर श्लाघ्य,
स्नेह-पूर्ण कर रहे शीश पर, यही अनुज का प्राप्य।
सलिल निराभित, बिम्बित हो राकेश-रश्मि दे मान
ओम व्योम से सुनता, अनुरूपा लहरों से यश-गान।
शीश महेश सुशोभित निशिकर, मुदित नीरजा भौन
जय-जय सीताराम कहें घनश्याम, अनिल सुन मौन।
प्रणव जाप महिपाल करें, शार्दुला-नाद हो नित्य
किरण-कुसुम की गमक-चमक, नित अभिनव रहे अनित्य।
श्यामल प्रतिभा पा गौतम तन्मय, इंदिरा-सुजाता
चाह खीर की किन्तु आरसी राहुल रहा दिखाता।
श्री प्रकाश अनुराग वरे, संतोष नही नि:शेष
हो अनूप आनंद, अमित हो दीप्ति, मुदित हों शेष।
मानोशी-ममता पा घायल, हो मजबूत महेन्द्र
करे अर्चना विजय वरे, नर खुद पर बने नरेन्द्र।
कमल वालिया-भूटानी से, गले मिले भुज भेंट
महिमा कविता की न सलिल, किंचित भी सका समेट।
जगवाणी हिंदी की जय-जयकार करें सब साथ
नमन शारदा श्री चरणों में, विनत सलिल नत माथ।
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Sanjiv verma 'Salil'