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रविवार, 14 अक्टूबर 2012

मुक्तिका: बेवफा से ... संजीव 'सलिल'

मुक्तिका: 

बेवफा से ... 

संजीव 'सलिल'

*
बेवफा से दिल लगाकर, बावफा गाफिल हुआ।
अधर की लाली रहा था, गाल का अब तिल हुआ।।

तोड़ता था बेरहम अब, टूटकर चुपचाप है।
हाय रे! आशिक 'सलिल', माशूक का क्यों दिल हुआ?

कद्रदां दुनिया थी जब तक नाश्ते की प्लेट था।
फेर लीं नजरों ने नजरें, टिप न दी, जब बिल हुआ।।

हँसे खिलखिल यही सपना साथ मिल देखा मगर-
ख्वाब था दिलकश,  हुई ताबीर तो किलकिल हुआ।।

'सलिल' ने माना था भँवरों को  कँवल का मीत पर-
संगदिल भँवरों के संग मंझधार भी साहिल हुआ।।

*****