कविता:
प्रेम का अंकुर
संतोष भाऊवाला
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जिंदगी गर जाफरानी लगे
पूस की धूप सी सुहानी लगे
लगे अमन चैन लूटा है
तो समझो ह्रदय में
प्रेम का अंकुर फूटा है
पूस की धूप सी सुहानी लगे
लगे अमन चैन लूटा है
तो समझो ह्रदय में
प्रेम का अंकुर फूटा है
भावों का सलिल बहने लगे
शब्दों का अभाव रहने लगे
सब्र का बाँध टूटा है
तो समझो ह्रदय में
प्रेम का अंकुर फूटा है
शब्दों का अभाव रहने लगे
सब्र का बाँध टूटा है
तो समझो ह्रदय में
प्रेम का अंकुर फूटा है
कुछ करने का न मन करे
तन्हाई में खुद से बाते करें
जग से नाता छूटा है
तो समझो ह्रदय में
प्रेम का अंकुर फूटा है
बढ़ने घटने लगे जब साँसों का स्पंदन
लगे प्यारा बस प्यार का ही बन्धन
रोम रोम में घुलता अहसास अनूठा है
तो समझो ह्रदय में
प्रेम का अंकुर फूटा है
तन्हाई में खुद से बाते करें
जग से नाता छूटा है
तो समझो ह्रदय में
प्रेम का अंकुर फूटा है
बढ़ने घटने लगे जब साँसों का स्पंदन
लगे प्यारा बस प्यार का ही बन्धन
रोम रोम में घुलता अहसास अनूठा है
तो समझो ह्रदय में
प्रेम का अंकुर फूटा है
मन जब ईश्वर में रम जाये
उसके प्रेम में बंध जाये
माया मोह झूठा है
तो समझो ह्रदय में
प्रेम का अंकुर फूटा है
उसके प्रेम में बंध जाये
माया मोह झूठा है
तो समझो ह्रदय में
प्रेम का अंकुर फूटा है