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शुक्रवार, 13 अप्रैल 2018

kanti shukl kee kahaniya ek drushti

 पुरोवाक :
कहने-पढ़ने योग्य जीवन प्रसंगों से समृद्ध कांति शुक्ल की कहानियाँ 
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' 
*
           आदि मानव ने अनुभूतियों को अभिव्यक्त करने के लिए कंठजनित ध्वनि का उपयोग सीखने के बाद ध्वनियों को अर्थ देकर भाषा का विकास किया। कालान्तर में  ध्वनि संकेतों की प्रचुरता के बाद उन्हें स्मरण रखने में कठिनाई अनुभव कर विविध माध्यमों पर संकेतों के माध्यम से अंकित किया। सहस्त्रों वर्षों में इन संकेतों के साथ विशिष्ट ध्वनियाँ संश्लिष्ट कर लिपि का विकास किया गया। भूमण्डल के विविध क्षेत्रों में विचरण करते विविध मानव समूहों में अलग-अलग भाषाओँ और लिपियों का विकास हुआ। लिपि के विकास के साथ ज्ञान राशि के संचयन का जो क्रम आरम्भ हुआ वह आज तक जारी है और सृष्टि के अंत तक जारी रहेगा।  मौखिक या वाचिक और लिखित दोनों माध्यमों में देखे-सुने को सुनाने या किसी अन्य से कहने की उत्कंठा ने कहानी को जान दिया।  आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार ''कहानियों का चलन सभ्य-असभ्य सभी जातियों में चला आ रहा है सब जगह उनका समाविश शिष्ट साहित्य के भीतर भी हुआ है। घटना प्रधान और मार्मिक उनके ये दो स्थूल भेद भी बहुत पुराने हैं और इनका मिश्रण भी।"१ प्राचीन कहानियों में कथ्यगत  घटनाक्रम सिलसिलेवार तथा भाव प्रधान रहा जबकि आधुनिक कहानी में घटना-श्रृंखला सीधी एक दिशा में न जाकर, इधर-उधर की घटनाओं से जुड़ती चलती है जिनका समाहार अंत में होता है। 

चित्र में ये शामिल हो सकता है: 1 व्यक्ति, चश्मे और क्लोज़अप           कल्पना-सापेक्ष गद्यकाव्य का अन्य नाम कहानी है... प्रेमचंद कहानी को ऐसी रचना मानते हैं "जिसमें जीवन के किसी अंग या किसी मनोभाव को प्रदर्शित करना ही लेखक का उद्देश्य होता है। बाबू श्याम सुन्दर दस के अनुसार कहानी  "एक निश्चित लक्ष्य या प्रभाव को लेकर लिखा गया नाटकीय आख्यान है।" पश्चिमी कहानीकार एडगर एलिन पो के अनुसार कहानी "इतनी छोटी हो कि एक बैठक में पढ़ी जा सके और पाठक पर एक ही प्रभाव को उत्पन्न करने के लिए लिखी गई  हो।" २ "कहानी साहित्य की विकास यात्रा में समय के साथ इसके स्वरुप, सिद्धांत, उद्देश्य एवं कलेवर में आया बदलाव ही जीवंतता का द्योतक है।"३ मेहरुन्निसा परवेज़ के शब्दों में "कहानी मनुष्य के अंतर्मन की अभिव्यक्ति है, मनुष्य के जीवित रहने का सबूत है, उसके गूँगे दुःख, व्यथा, वेदना का दस्तावेज है।"४ स्वाति तिवारी के अनुसार "कहानी गपबाजी नहीं होती, वे विशुद्ध कला भी नहीं होतीं। वे किसी मन का वचन होती हैं, वे मनोविज्ञान होती हैं। जीवन है, उसकी जिजीविषा है, उसके बनते-बिगड़ते सपने हैं, संघर्ष हैं, कहानी इसी जीवन की शब्द यात्रा ही तो है, होनी भी चाहिए, क्योंकि जीवन सर्वोपरि है। जीवन में बदलाव है, विविधता है, अत: फार्मूलाबद्ध लेखन कहानी नहीं हो सकता।"५  

           सारत: कहानी जीवन की एक झलक (स्नैपशॉट) है। डब्ल्यू. एच. हडसन के अनुसार कहानी में एक हुए केवल एक केंद्रीय विचार होना चाहिए जिसे तार्किक परिणति तक पहुँचाया जाए।६ कांति जी की लगभग सभी कहानियों में यह केंद्रीय एकोन्मुखता देखी जा सकती है। 'बदलता सन्दर्भ' की धोखा तेलिन हो या 'मुकाबला ऐसा भी' की भौजी उनके चरित्र में यह एकोन्मुखता ही उन कहांनियों का प्राण तत्व है। 

            कहानी के प्रमुख तत्व कथा वस्तु, पात्र, संवाद, वातावरण, शैली और उद्देश्य हैं। इस पृष्ठ भूमि पर श्रीमती कांति शुक्ल की कहानियाँ  संवेदना प्रधान, प्रवाहपूर्ण घटनाक्रम युक्त कथानक से समृद्ध हैं। वे कहानियों के कथानक का क्रमिक विकास कर पाठक में कौतूहलमय उत्सुकता जगाते हुए चार्म तक पहुंचाती हैं। स्टीवेंसन के अनुसार "कहानी के प्रारम्भ का वातावरण कुछ ऐसा होना चाहिए कि किसी सुनसान सड़क के किनारे सराय के कमरे में मोमबत्ती के धुंधले प्रकाश में कुछ लोग धीरे-धीरे बात कर रहे हों" आशय यह कि कहानी के आरम्भ में मूल संवेदना के अवतरण हेतु वातावरण की रचना  की जानी चाहिए। कांति जी इस कला में निपुण हैं। 'संभावना शेष' के आरम्भ में नायक का मोहभंग, 'आखिर कब तक' और 'आशा-तृष्णा ना मरे' में केंद्रीय चरित का स्वप्न टूटना, 'करमन की गति न्यारी' में नायिका के बचपन की समृद्धि, 'ना माया ना राम' में बिटियों पर पहरेदारी, 'मुकाबला ऐसा भी' के नायक का सुदर्शन रूप आदि मूल कथा के प्रागट्य पूर्व का वातावरण ऐसा उपस्थित करते हैं कि  पाठक के मन में आगे के घटनाक्रम के प्रति उत्सुकता जागने लगती है।  

          कांति जी रचित कहानियों में पात्रों और घटनाओं का विकास इस तरह होता है कि कथानक द्रुत गति से विकसित होकर आतंरिक कुतूहल अथवा संघर्ष के माध्यम से परिणति की ओर अग्रसर होता है। वे पाठक को वैचारिक ऊहापोह में उलझने-भटकने का अवकाश ही नहीं देतीं। 'समरथ का नहीं दोष गुसाई' में ठाकुर-पुत्र के दुर्व्यवहार के प्रत्युत्तर में पारबती की प्रतिक्रिया, उसकी अम्मा की समझाइश, ईंधन की कमी, पारबती का अकेले जाना, न लौटना  और अंतत: मृत शरीर मिलना, यह सब इतने शीघ्र और सिलसिलेवार घटता है कि इसके अतिरिक्त किसी अन्य घटनाक्रम की सम्भावना भी पाठक के मस्तिष्क में नहीं उपजती। कांति जी कहानी के कथानक के अनुरूप शब्द-जाल बुनने में दक्ष हैं। 'तेरे कितने रूप' में वैधव्य का वर्णन संतान के प्रति मोह में परिणित होता है तो  'संकल्प और विकल्प' में नवोढ़ा नायिका  को मिली उपेक्षा उसके विद्रोह में। संघर्ष, द्वन्द, कुतूहल, आशंका, अनिश्चितता  आदि मनोभावों से कहानी विकसित होती है। '५ क' (क्या, कब, कैसे, कहाँ और क्यों?) का यथावश्यक-यथास्थान प्रयोग कर कांति जी कथानक का विकास करती हैं। 

                     इन कहानियों में आशा और आशंका, उत्सुकता और विमुखता, संघर्ष और समर्पण, सहयोग और द्वेष जैसे परस्पर विरोधी मनोभावों के गिरि-शिखरों के मध्य कथा-सलिला की अटूट धार प्रवाहित होकर बनते-बिगड़ते लहर-वर्तुलों की शब्दाभा से पाठक को मोहे रखती है। वेगमयी जलधार के किसी प्रपात से कूद पड़ने  या किसी सागर में अचानक विलीन होने की तरह कहानियों का चरम आकस्मिक रूप से उपस्थित होकर पाठक को अतृप्त ही छोड़ देता है। ऐसा  नहीं होता, यह कहानीकार की निपुणता का परिचायक है। कांति जी की कहानियों की परिणिति (क्लाइमेक्स) में ही उसका सौंदर्य है, इनमें निर्गति (एंटी क्लाईमेक्स) के लिए स्थान ही नहीं है।  सीमित किन्तु जीवंत पात्र, अत्यल्प, आवश्यक और सार्थक संवाद, विश्लेषणात्मक चरित्र चित्रण, वातावरण का जीवंत शब्दांकन, इन कहानियों में यत्र-तत्र दृष्टव्य है। 

                          कहानी के सकल रचना प्रसार में तीन स्थल आदि, मध्य और अंत बहुत महत्त्वपूर्ण होते हैं। आरम्भ पूर्वपीठिका है तो अंत प्रतिपाद्य, मध्य इन दोनों के मध्य समन्वय सेतु का कार्य करता है। यदि अंत का निश्चय किए बिना कहानी कही जाए तो वह मध्य में भटक सकती है जबकि अंत को ही सब कुछ मान लिया जाए तो कहानी नद्य में प्रचारात्मक लग सकती है। इन तीनों तत्वों के मध्य संतुलन-समन्वय आवश्यक है। कांति जी इस निकष पर प्राय: सफल रही हैं। डॉ. जगन्नाथ प्रसाद शर्मा के अनुसार 'आड़ी और 'आंत के तारतम्य में 'आंत को अधिक महत्त्व देना चाहिए क्योंकि मूल परिपाक का वही केंद्र बिंदु है।७  कांति जी की कहांनियों में अंत अधिकतर मर्मस्पर्शी हुआ है। 'अनुरक्त विरक्त' और 'चाह गयी चिंता मिटी' के अंत  अपवाद स्वरूप हैं। 

                      कहानी में कहानीकार का व्यक्तित्व हर तत्व में अन्तर्निहित होता है। शैली के माध्यम से कहानीकार की अभिव्यक्ति सामर्थ्य (पॉवर ऑफ़ एक्सप्रेशन) की परीक्षा होती है। कहानी में कविता की तुलना में अधिक और उपन्यास की तुलना में अल्प विवरण और वर्णन होते हैं।  अत: वर्णन-सामर्थ्य (पॉवर ऑफ़ नरेशन) की परीक्षा भी शैली के माध्यम से होती है। भाषा, भाव और कल्पना अर्थात तन, मन और मस्तिष्क... इन कहानियों में इन तत्वों की प्रतीति भली प्रकार की जा सकती है। कांति जी की कहानियों का वैशिष्ट्य घटना क्रम का सहज विकास है। कहीं भी घटनाएँ थोपी हुई या आरोपित नहीं हैं। चरित्र चित्रण स्वाभाविक रूप से हुआ है। कहानीकार ने बलात किसी चरित्र को आदर्शवाद, या विद्रोह या विमर्श  के पक्ष में खड़ा नहीं किया है, न किसी की जय-पराजय को ठूँसने की कोशिश की है। 

                          कहानी के भाषिक विधान के सन्दर्भ में निम्न बिंदु विचारणीय होते हैं- भाषा पात्र को कितना जीवन करती है, भाषा कहानी की संवेदना को कितना उभारती है, भाषा कहानी के केन्द्रीय विचार को कितना सशक्त तरीके के व्यक्त करती है, भाषा कहानी के घटना क्रम के समय के साथ कितना न्याय करती है तथा भाषा वर्तमान युग सन्दर्भ में कितनी ग्राह्य और सहज है।८ ये कहानियाँ वतमान समय से ही हैं अत: समय के परिप्रेक्ष्य की तुलना में पात्र, घटनाक्रम और केन्द्रीय विचार के सन्दर्भ में इन कहानियों की भाषा का आकलन हो तो कांति जी अपनी छाप छोड़ने में सफल हैं। प्राय: सभी कहानियों की भाषा देश-काल. पात्र और परिस्थिति अनुकूल है। 

                          कहानी का उद्देश्य न तो मनरंजन मात्रा होता है, न उपदेश या परिष्करण, इससे हटकर कहानी का उद्देश्य कहानी लेखन का उद्देश्य मानव मन में सुप्त भावनाओं को उद्दीप्त कर उसे रस अर्थात उल्लास, उदात्तता और सार्थकता की प्रतीति कराना है। क्षुद्रता, संकीर्णता, स्वार्थपरकता और अहं से मुक्त होकर उदारता, उदात्तता, सर्वहित और नम्रता जनित आनंद की प्रतीति साहित्य सृजन का उद्देश्य होता है।  कहानी भी एतदअनुसार कल्पना के माध्यम से यथार्थ का अन्वेषण कर जीवन को परिष्कृत करने का उपक्रम करती है। कांति जी की कहानियाँ इस निकष पर खरी उतरने के साथ-साथ किसी वाद विशेष, विचार विशेष, विमर्श विशेष के पक्ष-विपक्ष में नहीं हैं। उनकी प्रतिबद्धताविहीनता ही निष्पक्षता और प्रमाणिकता का प्रमाण है।  प्रथम कहानी संकलन के माध्यम से कांति जी भावी संकलनों के प्रति उत्सुकता जगाने में सफल हुई हैं। कहानी कला में शैली और शिल्पगत हो रहे अधुनातन प्रयोगों से दूर इन कहानियों में ब्यूटी पार्लर का सौंदर्य भले ही न हो किन्तु सलज्ज ग्राम्य बधूटी का सात्विक नैसर्गिक सौंदर्य है। यही इनका वैशिष्ट्य और शक्ति है। 
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संदर्भ: १. हिंदी साहित्य का इतिहास- रामचंद्र शुक्ल, २. आलोचना शास्त्र मोहन वल्लभ पंत, ३. समाधान डॉ. सुशीला कपूर, ४. अंतर संवाद रजनी सक्सेना, ५.मेरी प्रिय कथाएँ स्वाति तिवारी, ६. एन इंट्रोडक्शन टू द स्टडी ऑफ़ लिटरेचर, ७. कहानी का रचना विधान जगन्नाथ प्रसाद शर्मा, ८समकालीन हिंदी कहानी संपादक डॉ. प्रकाश आतुर में कृष्ण कुमार ।     

शुक्रवार, 18 अगस्त 2017

sahityik samman gahamar

विज्ञप्ति घोषणा:
अखिल भारतीय साहित्यकार सम्मेलन २०१७ गहमर (गाजीपुर) उत्तर प्रदेश 
 *
अखिल भारतीय साहित्यकार सम्मेलन २०१७ में सम्मानित किए जा रहे साहित्यकारों के नामों की सूची प्रकाशित करते अपार हर्ष हो रहा है । इन सम्मानों हेतु पूर्व निर्धारित मापदंडों के आधार पर चयन की खुली प्रक्रिया में साहित्‍यकारों का चयन किया जाना दुरूह कार्य था। आप सब द्वारा भेजी गईं जानकारियों की अनेकानेक सूचियों में से सर्व सहमति के आधार पर एक-एक नाम का चुनाव काफी कठिन कार्य सिद्ध हुआ। संयोजक श्री अखंड गहमरी द्वारा सौपा गया यह कठिन दायित्‍व निर्णायक मंडल के माननीय सदस्यों सर्वश्री प्रो. विश्वम्भर शुक्ल जी लखनऊ ( उ.प्र ), सुभाष चंदर जी दिल्ली, गिरीश पंकज जी रायपुर ( छ. ग.),संदीप अवस्थी जी राजस्थान , अरूण अर्णव खरे जी, भोपाल, रमा प्रवीर वर्मा जी महाराष्ट्र, समीर परिमल जी पटना बिहार के सौजन्य से सम्‍पन्‍न हो पाया। इन्होंने सम्मानों के निष्पक्ष चयन में मुझे जो सहयोग दिया, उसके लिए ह्रदय से आभार व्यक्त करती हूँ । मैं सभी सम्‍मानित होने वाले साहित्‍यकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ  देती हूँ। मैं उनको भी अपनी हार्दिक शुभकामनाएँ देती हूँ जिनका चयन इस बार नहीं हो पाया, वे निराश न हो, चलते रहेगें तो मंजिल मिलेगी ही । 
अंत में अपनी बात समाप्‍त करते हुए मैं आशा करती हूँ कि आप सब हमेशा संस्‍था और प्रिय अखण्‍ड गहमरी का साथ देते हुए, उन्हें निस्‍वार्थ और निष्‍पक्ष साहित्‍य सेवा के लिए प्रेरित करते रहेंगे। 
आपकी 
कान्ति शुक्‍ला, 
अध्‍यक्षा सम्‍मान सभा, 
अ. भा. साहित्‍यकार सम्‍मेलन गहमर।
कार्यक्रम में सम्‍मानित किये जाने हेतु चयनित साहित्‍यकारों की सूची:
(०१) हिन्दी साहित्य के सर्वांगीण विकास में बहुमूल्य योगदान: आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' जी जबलपुर, मध्य प्रदेश को राज धामदेव साहित्‍य सेवक सम्‍मान।

(०२) हिन्दी साहित्य के सर्वांगीण विकास में बहुमूल्य योगदान: श्रीमती नीलम श्रीवास्तव जी, सीवान बिहार को स्व. सरोज सिंह साहित्य गौरव सम्मान: । 
(०३) श्री योगराज प्रभाकर पटियाला पंजाब को लघुकथा के क्षेत्र में अवधेश सिंह लघु कथाकार सम्‍मान।
(०४) श्री गंगाराम शर्मा मंडी हिमाचल प्रदेश को कहानी के क्षेत्र में गंगेश्‍वर उपाध्‍याय कहानीकार सम्‍मान।
(०५) श्री श्रवण कुमार उर्मलिया रायपुर छतीसगढ़ को व्यंग्य के क्षेत्र में डा0 सुनील सिंह व्‍यंग्‍य साधक सम्‍मान।
(०६) डा0 दीप्ति भटनागर  दिल्‍ली को आलेख लेखन के क्षेत्र में डा0 विवेकी राय साहित्‍य गौरव सम्‍मान ।
(०७) श्री ओम प्रकाश क्षत्रिय रतनगढ मध्‍यप्रदेश को बाल साहित्‍य के क्षेत्र में इन्‍द्रदेव सिंह 'इन्‍द्र' बालसेवक सम्‍मान।
(०८) श्री घनश्‍याम मै‍थिल 'अमृत' भोपाल मध्‍यप्रदेश को समीक्षा के क्षेत्र में स्‍व0 बालमुकुन्‍द सिंह समीक्षक सम्‍मान।
(०९) ई0 आशा शर्मा बीकानेर राजस्थान को अनुवाद कार्य हेतु कैप्‍टन रामरूप सिंह स्‍मृति अनुवादक सम्‍मान।
(१०) डॉ. मुक्ता वाराणसी उ. प्र. को मुक्तछंद काव्य हेतु स्वर्णकार तेजमन स्‍मृति छंद मुक्त गौरव सम्‍मान।
हिन्‍दी साहित्‍य की पद्य विधा:
(११) श्री राधेश्‍याम बंधु नई दिल्‍ली को नवगीत के क्षेत्र में वीर मैगर सिंह नवगीतकार सम्‍मान।
(१२) श्री विनोद कुमार पान्‍डें बनारस उ. प्र. को हास्य के क्षेत्र में गोबर गणेश हास्‍य रचनाकार सम्‍मान।
(१३) श्री पूर्णेंदु कुमार सिंह शहडाेल म. प्र. को गीत-लेखन के क्षेत्र में भोलानाथ गहमरी गीत गौरव सम्‍मान।
(१४) डा0 प्रतिभा माही इंसा पंचकुला हरियाणा को ग़ज़ल-लेखन के क्षेत्र में पं. शीतलप्रसाद उपाध्‍याय गज़ल गौरव सम्‍मान।
(१५) आचार्य प्रकाशचंद्र फुलोरिया, फरीदाबाद हरियाणा को मुक्तक के क्षेत्र में सांसद विश्‍वनाथ सिंह गहमरी मुक्तक गौरव सम्‍मान।
(१६) श्रीमती पूनम आनंद, पटना बिहार को समाजसेवा के क्षेत्र में महंत बचाऊ बाबा स्‍मृति सम्‍मान।
(१७) हास्य-व्यंग्य पत्रिका अट्टहास लखनऊ उ. प्र.को श्रेष्ठ पत्रिका के क्षेत्र में ठाकुर योगेश्वर सिंह श्रेष्ठ पत्रिका सम्‍मान।  
(१८) डॉ. कुँवर वीरसिंह ‘मार्तण्ड'  कोलकाता बंगाल को पत्रिका संपादन के क्षेत्र में पं. कपिलदेव द्विवेदी स्‍मृति संपादक संपादक गौरव सम्‍मान। 
(१९) श्री देवेन्‍द्र दूबे , भोपाल म. प्र. को पत्रकारिता जगत में छायांकन हेतु सोना देवी श्रेष्ठ छायाकार सम्‍मान।  
(२०)  प्रो. चक्रधर त्रिपाठी, विश्‍व भारती केंद्रीय विश्‍वविद्यालय शांति निकेतन बंगाल को शिक्षा के क्षेत्र में स्‍व. मान्‍धाता सिंह शिक्षक सम्‍मान।
(२१)  डा0 रिचा आर्या, लखनऊ को संगीत शिक्षा के लिए स्‍व0 रामयश सिंह तहसीलदार संगीत शिक्षक सम्‍मान।
(२२) भारतीय साहित्य उत्थान समिति कानपुर (अध्‍यक्ष आदित्‍य नारायण मिश्र 'बेबाक जौनपुरी') को स्‍वामी सहजानंद साहित्‍य प्रेरक सम्‍मान ।
(२३) विदेश में हिंदी विकास कार्य करने हेतु श्री कपिल कुमार बेल्जियम को डा0 भरत सिंह गौरव स्‍मृति साहित्‍य सम्‍मान। 
(२४ - २८) आशीष चन्‍द्र शुक्‍ल स्‍मृति हिन्‍दी मित्र सम्‍मान - श्रीमती कान्‍ता रॉय भोपाल, श्रीमती मोनिलसा मुखर्जी मुम्‍बई, रीता सिंह 'सर्जना' तेजपुर असम, मालोबिका राय मेधी दास गुवाहाटी असम, श्रीमन्नारायण चारी 'विराट' आन्‍ध्र प्रदेश।
(२९ - ३६) शिक्षक दिवस पर साहित्‍य सरोज शिक्षा प्रेरक सम्‍मान - श्री समीर परिमल पटना बिहार, श्रीमती रविता पाठक पंश्चिम बंगाल, श्री कमलापति गौतम मध्‍यप्रदेश,  श्रीमती सुलक्षणा अहलावत हरियाणा,  श्रीमती वीणा श्रीवास्‍तव झारखंड,
श्रीमती चेतना उपाध्‍याय राजस्‍थान, डा0 ज्‍योति मिश्रा, बिलासपुर छतीसगढ़, श्रीमती आरती जी लखनऊ। 
कान्ति शुक्‍ला, 
अध्‍यक्षा सम्‍मान सभा, 
अ. भा. साहित्‍यकार सम्‍मेलन गहमर।

मंगलवार, 21 फ़रवरी 2017

narmada vandana



 





मुक्तक
कान्ति शुक्ला
*








गौरव पुनीत अविरल प्रवाह ।
निर्मित करती निज श्रेष्ठ राह ।
रेवा के विमल धवल जल में-
नूतन रस-सागर है अथाह.।
*
नीरव निसर्ग की मुखर प्राण ।
गुंजित कल-छल के मधुर गान ।
ऐश्वर्यमयी महिमा शालिनी-
चिर नवल नर्मदा लो प्रणाम ।
*
भक्ति हो भावुक जनों की ।
शक्ति हो साधक जनों की ।
विपुल वैभव से अलंकृत-
शांति सुख भौतिक जनों की ।
*
यह जयंती हो चिरंतन ।
स्वप्न रच लें नित्य नूतन ।
भूखंड की श्रृंगार तुम-
हो अलौकिक और पावन ।
***

गीत
कान्ति शुक्ला
*
शिवधाम अमरकंटक से आकर निर्बाधित बहना ।
नर्मदे तुम्हीं से सीखा भूतल पर जन ने रहना ।
*
तुम कोमल सी कल-कल में अपना इतिहास सुनातीं.।
कूलों की रोमावलियाँ सुन कर पुलकित हो जातीं ।
प्राणों की हर धड़कन में लहरों का गीत मचलना ।
*
नर्मदे तुम्हें देते हैं शीतल छाया निज तरुवर.।
आलिंगन नित करते हैं तव कंठहार बन गिरिवर ।
तुमने हर पल चाहा है मानव को पावन करना ।
*
चिर ऋणी देश है रेवा गरिमा से पूरित तुमसे ।
ऋषि-मुनियों सच्चे संतों की महिमा मंडित तुमसे।
उल्लसित धरणि है कहती, तुमसे सुख वैभव मिलना ।
*
पथ के पाहन छूने से पावन हो पूजे जाते।
जिस स्थल पर चरण पड़ें तव, वे घाट अमर हो जाते।
मोहक श्रद्धालु जनों का, है दीप समर्पित करना।
***








*