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मंगलवार, 1 अगस्त 2017

laghukatha

लघुकथा:
काल की गति
'हे भगवन! इस कलिकाल में अनाचार-अत्याचार बहुत बढ़ गया है. अब तो अवतार लेकर पापों का अंत कर दो.' - भक्त ने भगवान से प्रार्थना की.
' नहीं कर सकता.' भगवान् की प्रतिमा में से आवाज आयी .
' क्यों प्रभु?'
'काल की गति.'
'मैं कुछ समझा नहीं.'
'समझो यह कि परिवार कल्याण के इस समय में केवल एक या दो बच्चों के होते राम अवतार लूँ तो लक्ष्मण, शत्रुघ्न और विभीषण कहाँ से मिलेंगे? कृष्ण अवतार लूँ तो अर्जुन, नकुल और सहदेव के अलावा ९८ कौरव भी नहीं होंगे. चित्रगुप्त का रूप रखूँ तो १२ पुत्रों में से मात्र २ ही मिलेंगे. तुम्हारा कानून एक से अधिक पत्नियाँ भी नहीं रखने देगा तो १२८०० पटरानियों को कहाँ ले जाऊँगा? बेचारी द्रौपदी के ५ पतियों की कानूनी स्थिति क्या होगी?
भक्त और भगवान् दोनों को चुप देखकर ठहाका लगा रही थी काल की गति.
*****
१-८-२०१६
salil.sanjiv@gmail.com
#divyanarmada.blogspot.com
#दिव्यनर्मदा
#हिंदी_ब्लॉगर

रविवार, 21 अगस्त 2011

एक रचना: काल --संजीव 'सलिल'

एक रचना:                                                                                
काल
--संजीव 'सलिल'

*
काल की यों करते परवाह...
*
काल ना सदय ना निर्दय है.
काल ना भीत ना निर्भय है.
काल ना अमर ना क्षणभंगुर-
काल ना अजर ना अक्षय है.
काल पल-पल का साथी है
काल का सहा न जाए दाह...
*
काल ना शत्रु नहीं है मीत.
काल ना घृणा नहीं है प्रीत.
काल ना संग नहीं निस्संग-
काल की हार न होती जीत.
काल है आह कभी है वाह...
*
काल माने ना राजा-रंक.
एक हैं सूरज गगन मयंक.
काल है दीपक तिमिर उजास-
काल है शंका, काल निश्शंक.
काल अनचाही पलती चाह...
*
काल को नयन मूँदकर देख.
काल है फलक खींच दे रेख.
भाल को छूकर ले तू जान-
काल का अमित लिखा है लेख.
काल ही पग, बाधा है राह...
*
काल का कोई न पारावार.
काल बिन कोई न हो व्यापार.
काल इकरार, काल इसरार-
काल इंकार, काल स्वीकार.
काल की कोई न पाये थाह...
***********

Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

बुधवार, 29 जून 2011

गीत: काल तो सदा हमारे साथ... --संजीव 'सलिल'

गीत:
काल तो सदा हमारे साथ...
संजीव 'सलिल'
*
काल तो सदा हमारे साथ,
काल की क्यों करते परवाह?
काल है नहीं किसी के साथ, काल की यों करते परवाह...
*
काल दे साथ उठाता शीश, काल विपरीत झुकाता माथ...
काल कर देता लम्बे हस्त, काल ही काटे पल में हाथ..
काल जो चाहे वह हो नित्य, काल विपरीत न करिए चाह-
काल है नहीं किसी के साथ, काल की यों करते परवाह...
*
काल के वश में है हर एक, काल-संग चलिए लाठी टेक.
काल से करिए विनय हमेश, न छूटे किंचित बुद्धि-विवेक..
काल दे स्नेह-प्रेम, सद्भाव, काल हर ले ईर्ष्या औ' डाह-
काल है नहीं किसी के साथ, काल की यों करते परवाह...
*

काल कल, आज और कल मीत, न आता-जाता हुआ प्रतीत.
काल पल सुखद गये कब बीत?, दुखद पल होते नहीं व्यतीत..
काल की गरिमा नभ विस्तीर्ण, काल की महिमा समुद अथाह-
काल है नहीं किसी के साथ, काल की यों करते परवाह...
*
काल से महाकाल
भी भीत, हुए भू-लुंठित हारे-जीत.
काल संग पढ़ो काल के पाठ, न फिर दुहराओ व्यथित अतीत.
काल की सुनो 'सलिल' लय-ताल, काल की गहो हमेषा छांह-
काल है नहीं किसी के साथ, काल की यों करते परवाह...
*
 
Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com