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शुक्रवार, 26 सितंबर 2025

सितंबर २५, मुक्तिका, भारत, सॉनेट, सरस्वती, श्लेष, अलंकार, गीत,

 सलिल सृजन सितंबर २५

*
पद
कान्हा! झूलें विहँस हिंडोला
*
ललिता स्वांग धरे राधा का, पहिनें बाँका चोला
लै संदेस बिसाखा आई, राज न तनकउ खोला
चित्रा हरि नैनों में उलझी, रंग प्रीत का घोला
चंपकलता भई चिंतित, कहुँ होय न मासा-तोला
कर सिंगार इंदुलेखा झट, विहँस बन गईं भोला
रंगदेवी ने कान्हा जू पै, सँकुच आलता ढोला
संख फूँक खेँ तुंगविद्या दें, माखन-मिसरी गोला
चतुर सुदेवी जल लाई, मनहर मन हर हँस बोला
कओ कितै वृषभान दुलारी, जिन पै मोहन डोला
***
राधा जी की अष्ट सखियाँ 
ललिता- अष्टसखियों में सबसे प्रमुख सखी, जो निडर और तीव्र स्वभाव की हैं। 
विशाखा- सुंदर और बुद्धिमान सखी, जो राधा और कृष्ण के संदेशवाहक के रूप में कार्य करती थीं

चित्रा- कलात्मक और रचनात्मक सखी, जो राधा-कृष्ण की लीलाओं को सुंदर बनाने में निपुण थीं

चंपकलता- चंचल और सेवा कार्यों में कुशल सखी, जो राधा जी की आवश्यकताओं का ध्यान रखती थीं

तुंगविद्या- तीक्ष्ण बुद्धि वाली सखी, जिन्हें ललित कलाओं और संगीत का गहन ज्ञान था

इंदुलेखा- प्रसन्नचित्त और सरल स्वभाव की सखी, जो राधा जी के श्रृंगार और साज-सज्जा में मदद करती थीं

रंगदेवी- जावक (महावर) लगाने और चंदन चढ़ाने में कुशल सखी, जो राधा जी के चरणों में महावर लगाती थीं

सुदेवी- अत्यंत सुंदर सखी, जो राधा जी को जल पिलाने का कार्य करती थीं और जल को शुद्ध करने का ज्ञान रखती थीं
२५.९.२०२५ 
***
मुक्तिका
सजग भारत
*
सजग भारत है सनातन।
कर्म-पोथी करे वाचन।।
काल की है यह उपासक।
सभ्यता है यह पुरातन।।
सकल सृष्टि कुटुंब इसका।
सभी का यह करे पालन।।
करे दंडित यह अनय को।
विनय को दे अग्र आसन।।
ध्वज तिरंगा चंद्रमा ले।
करे इसका कीर्ति गायन।।
आपदाओं का प्रबंधन।
करे पल-पल निपुण शासन।।
नर नरेंद्र हरेक इसका।
बल अमित है नीति ही धन।।
भारती की आरती कर।
रोक लेता हर प्रभंजन।।
है अलौकिक लोक भारत।
सजग भारत है सनातन।।
***
सॉनेट
अविश्वास
अविश्वास से राम बचाए,
जिस मन में पलती है शंका,
दाह डाह का कौन बुझाए?
निश्चय जलती उसकी लंका।
फलदायक विश्वास जानिए,
परंपरा ने हमें बताया,
बिन श्रद्धा कस ज्ञान पाइए?
जो ठगता, खुद गया ठगाया।
गुरु पर श्रद्धा अगर न हो तो
ज्ञान नहीं फलदायक होता,
मत नाराजी गुरु की न्योतो,
कर्ण न अपना जीवन खोता।
अविश्वास को जहर जानिए।
सच अमृत विश्वास मानिए।।
२६.९.२०२३
•••
शारद स्तुति
माँ शारदे!
भव-तार दे।
संतान को
नित प्यार दे।
हर कर अहं
उद्धार दे।
सिर हाथ धर
रिपु छार दे।
निज छाँव में
आगार दे।
पग-रज मुझे
उपहार दे।
आखर सिखा
आचार दे।
२५-९-२०२२
•••
बाल नव गीत
ज़िंदगी के मानी
*
खोल झरोखा, झाँक-
ज़िंदगी के मानी मिल जायेंगे.
मेघ बजेंगे, पवन बहेगा,
पत्ते नृत्य दिखायेंगे.....
*
बाल सूर्य के संग ऊषा आ,
शुभ प्रभात कह जाएगी.
चूँ-चूँ-चूँ-चूँ कर गौरैया
रोज प्रभाती गायेगी..
टिट-टिट-टिट-टिट करे टिटहरी,
करे कबूतर गुटरूं-गूं-
कूद-फांदकर हँसे गिलहरी
तुझको निकट बुलायेगी..
आलस मत कर, आँख खोल,
हम सुबह घूमने जायेंगे.
खोल झरोखा, झाँक-
ज़िंदगी के मानी मिल जायेंगे.....
*
आई गुनगुनी धूप सुनहरी
माथे तिलक लगाएगी.
अगर उठेगा देरी से तो
आँखें लाल दिखायेगी..
मलकर बदन नहा ले जल्दी,
प्रभु को भोग लगाना है.
टन-टन घंटी मंगल ध्वनि कर-
विपदा दूर हटाएगी.
मुक्त कंठ-गा भजन-आरती,
सरगम-स्वर सध जायेंगे.
खोल झरोखा, झाँक-
ज़िंदगी के मानी मिल जायेंगे.....
*
मेरे कुँवर कलेवा कर फिर,
तुझको शाला जाना है.
पढ़ना-लिखना, खेल-कूदना,
अपना ज्ञान बढ़ाना है..
अक्षर,शब्द, वाक्य, पुस्तक पढ़,
तुझे मिलेगा ज्ञान नया.
जीवन-पथ पर आगे चलकर
तुझे सफलता पाना है..
सारी दुनिया घर जैसी है,
गैर स्वजन बन जायेंगे
खोल झरोखा, झाँक-
ज़िंदगी के मानी मिल जायेंगे.....
२६-९-२०२०
***
प्रश्न -उत्तर
*
हिन्द घायल हो रहा है पाक के हर दंश से
गॉधीजी के बन्दरों का अब बताओ क्या करें ? -समन्दर की मौजें
*
बन्दरों की भेंट दे दो अब नवाज़ शरीफ को
बना देंगे जमूरा भारत का उनको शीघ्र ही - संजीव
*
नवगीत
*
क्यों न फुनिया कर
सुनूँ आवाज़ तेरी?
*
भीड़ में घिर
हो गया है मन अकेला
धैर्य-गुल्लक
में, न बाकी एक धेला
क्या कहूँ
तेरे बिना क्या-क्या न झेला?
क्यों न तू
आकर बना ले मुझे चेला?
मान भी जा
आज सुन फरियाद मेरी
क्यों न फुनिया कर
सुनूँ आवाज़ तेरी?
*
प्रेम-संसद
विरोधी होंगे न मैं-तुम
बोल जुमला
वचन दे, पलटें नहीं हम
लाएँ अच्छे दिन
विरह का समय गुम
जो न चाहें
हो मिलन, भागें दबा दुम
हुई मुतकी
और होने दे न देरी
क्यों न फुनिया कर
सुनूँ आवाज़ तेरी?
२४-२५ सितंबर २०१६
***
: अलंकार चर्चा ११ :
श्लेष अलंकार
भिन्न अर्थ हों शब्द के, आवृत्ति केवल एक
अलंकार है श्लेष यह, कहते सुधि सविवेक
किसी काव्य में एक शब्द की एक आवृत्ति में एकाधिक अर्थ होने पर श्लेष अलंकार होता है. श्लेष का अर्थ 'चिपका हुआ' होता है. एक शब्द के साथ एक से अधिक अर्थ संलग्न (चिपके) हों तो वहाँ श्लेष अलंकार होता है.
उदाहरण:
१. रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून
पानी गए न ऊबरे, मोती मानस चून
इस दोहे में पानी का अर्थ मोती में 'चमक', मनुष्य के संदर्भ में सम्मान, तथा चूने के सन्दर्भ में पानी है.
२. बलिहारी नृप-कूप की, गुण बिन बूँद न देहिं
राजा के साथ गुण का अर्थ सद्गुण तथा कूप के साथ रस्सी है.
३. जहाँ गाँठ तहँ रस नहीं, यह जानत सब कोइ
गाँठ तथा रस के अर्थ गन्ने तथा मनुष्य के साथ क्रमश: पोर व रस तथा मनोमालिन्य व प्रेम है.
४. विपुल धन, अनेकों रत्न हो साथ लाये
प्रियतम! बतलाओ लाला मेरा कहाँ है?
यहाँ लाल के दो अर्थ मणि तथा संतान हैं.
५. सुबरन को खोजत फिरैं कवि कामी अरु चोर
इस काव्य-पंक्ति में 'सुबरन' का अर्थ क्रमश:सुंदर अक्षर, रूपसी तथा स्वर्ण हैं.
६. जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोय
बारे उजियारौ करै, बढ़े अँधेरो होय
इस दोहे में बारे = जलाने पर तथा बचपन में, बढ़े = बुझने पर, बड़ा होने पर
७. लाला ला-ला कह रहे, माखन-मिसरी देख
मैया नेह लुटा रही, अधर हँसी की रेख
लाला = कृष्ण, बेटा तथा मैया - यशोदा, माता (ला-ला = ले आ, यमक)
८. था आदेश विदेश तज, जल्दी से आ देश
खाया या कि सुना गया, जब पाया संदेश
संदेश = खबर, मिठाई (आदेश = देश आ, आज्ञा यमक)
९. बरसकर
बादल-अफसर
थम गये हैं.
बरसकर = पानी गिराकर, डाँटकर
१०. नागिन लहराई, डरे, मुग्ध हुए फिर मौन
नागिन = सर्पिणी, चोटी
***
नवगीत:
संजीव
*
एक शाम
करना है मीत मुझे
अपने भी नाम
.
अपनों से,
सपनों से,
मन नहीं भरा.
अनजाने-
अनदेखे
से रहा डरा.
परिवर्तन का मंचन
जब कभी हुआ,
पिंजरे को
तोड़ उड़ा
चाह का सुआ.
अनुबंधों!
प्रतिबंधों!!
प्राण-मन कहें
तुम्हें राम-राम.
.
ज्यों की त्यों
चादर कब
रह सकी कहो?
दावानल-
बड़वानल
सह, नहीं दहो.
पत्थर का
वक्ष चीर
सलिल सम बहो.
पाए को
खोने का
कुछ मजा गहो.
सोनल संसार
हुआ कब कभी कहो
इस-उस के नाम?
.
संझा में
घिर आएँ
याद मेघ ना
आशुतोष
मौन सहें
अकथ वेदना.
अंशुमान निरख रहे
कालचक्र-रेख.
किस्मत में
क्या लिखा?,
कौन सका देख??
पुष्पा ले जी भर तू
ओम-व्योम, दिग-दिगंत
श्रम कर निष्काम।
***
एक गीत:
*
ह्रदय प्रफुल्लित
मुकुलित मन
अपनों से मिलकर
*
सद्भावों की क्यारी में
प्रस्फुटित सुमन कुछ
गंध बिखेरें अपनेपन की.
स्नेहिल भुजपाशों में
बँधकर बाँध लिया सुख.
क्षणजीवी ही सही
जीत तो लिया सहज दुःख
बैर भाव के
पर्वत बौने
काँपे हिलकर
ह्रदय प्रफुल्लित
मुकुलित मन
सपनों से मिलकर
*
सलिल-धार में सुधियों की
तिरते-उतराते
छंद सुनाएँ, उर धड़कन की.
आशाओं के आकाशों में
कोशिश आमुख,
उड़-थक-रुक-बढ़ने को
प्रस्तुत, चरण-पंख कुछ.
बाधाओं के
सागर सूखे
गरज-हहरकर
ह्रदय प्रफुल्लित
मुकुलित मन
छंदों से मिलकर
*
अविनाशी में लीन विनाशी
गुपचुप बिसरा, काबा-
काशी, धरा-गगन की.
रमता जोगी बन
बहते जाने को प्रस्तुत,
माया-मोह-मिलन के
पल, पल करता संस्तुत.
अनुशासन के
बंधन पल में
टूटे कँपकर.
ह्रदय प्रफुल्लित
मुकुलित मन
नपनों से मिलकर
*
मुक्त, विमुक्त, अमुक्त हुए
संयुक्त आप ही
मुग्ध देख छवि निज दरपन की.
आभासी दुनिया का हर
अहसास सत्य है.
हर प्रतीति क्षणजीवी
ही निष्काम कृत्य है.
त्याग-भोग की
परिभाषाएँ
रचें बदलकर.
ह्रदय प्रफुल्लित
मुकुलित मन
गंधों से मिलकर
***
मुक्तक:
घाट पर ठहराव कहाँ?
राह में भटकाव कहाँ?
चलते ही रहना है-
चाह में अटकाव कहाँ?
२६-९-२०१५

रविवार, 14 सितंबर 2025

सितंबर १४, हिंदी दिवस, सॉनेट, भारत, कुण्डलिया, राजस्थानी मुक्तिका, मुक्तक


सलिल सृजन सितंबर १४
*
सॉनेट
भारत में लेकर इकतारा,
यायावरी साधु करते हैं,
अलखनिरंजन कर जयकारा,
नगर गाँव घर घर फिरते हैं।
प्रेमगीत वे प्रभु के गाते,
करते मंगलभाव व्यक्त वे,
जन-मन में शुभ भाव जगाते
समरसता के दूत शक्त वे।
इटली में प्रेमी यायावर,
प्रेम गीत गा रहे घूमते,
प्रेम गीत सॉनेट सुनाकर,
वाद्य बजा लब रहे चूमते।
साथ समय के भारत आया।
सॉनेट ने नवजीवन पाया।।
१४.९.२०२३
•••
मुक्तक
हिंदी का उद्घोष छोड़, उपयोग सतत करना है
कदम-कदम चल लक्ष्य प्राप्ति तक संग-संग बढ़ना है
भेद-भाव की खाई पाट, सद्भाव जगाएँ मिलकर
गत-आगत को जोड़ सके जो वह पीढ़ी गढ़ना है
*
दोहा
हर पल हिंदी को जिएँ, दिवस न केवल एक।
मानस मैया मानकर, पूजें सहित विवेक।।
*
विश्व में सर्वाधिक बोले जानेवाली भाषा हिंदी- डॉ. जयंती प्रसाद नौटियाल
*
विश्व में सर्वाधिक बोले जानेवाली भाषा निर्विवाद रूप से हिंदी है। आज हिंदी दिवस पर सभी हिंदीभाषियों का कर्तव्य है कि
१. वे अपना अधिकतम कार्य (सोचना, बोलना, लिखना, पढ़ना आदि) हिंदी में करें।
२. यथा संभव हिंदी में बातचीत करें।
३. अपना हस्ताक्षर हिंदी में करें।
४. बैंक तथा अन्य सरकारी कार्यालयों/विभागों से हिंदी में पत्राचार करें तथा उन्हें दस्तावेज (बैंक लेखा पुस्तिका आदि) हिंदी में देने हेतु अनुरोध करें।
५. अपनी नाम पट्टिका, परिचय पत्रक (विजिटिंग कार्ड) आदि पर हिंदी ही रखें।
६. अभियंता परियोजना संबंधी प्राक्कलन, प्रतिवेदन, मूल्यांकन, देयक, आदि हिंदी में ही बनायें। अधिवक्ता वाद-परिवाद, बहस तथा अन्य न्यायालयीन लिखा-पढ़ी हिंदी में करें। चिकित्सक मरीज से बातचीत करने, औषधि पर्ची तथा रोग का इतिहास आदि लिखने में हिंदी को वरीयता दें। शिक्षक शिक्षण कार्य में हिंदी का अधिकाधिक प्रयोग करें।
७. आंग्ल/अहिन्दी भाषी विद्यालयों में शिक्षणेतर कार्य (प्रार्थना, शुभकामना आदान-प्रदान, अभिवादन आदि) हिंदी में हो।
८. सभी कार्यों में हिंदी अंकों, प्रतीकाक्षरों आदि का प्रयोग करें। बच्चों को हिंदी संख्याओं का ज्ञान अवश्य दें।
डॉ जयंती प्रसाद नौटियाल (महानिदेशक, वैश्विक हिन्दी शोध संस्थान, मनोजय भवन, ११५, विष्णुलोक कॉलोनी, तपोवन रोड, देहरादून २४८००८ उत्तराखंड, भारत, चलभाष ९९०००६८७२२, ईमेल: dr.nautiyaljp@gmail.com) ने अपनी शोध में यह सिद्ध किया है कि विश्व में हिन्दी विश्व में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है।
विश्व में भाषाओं की रैंकिंग प्रक्रिया :
विश्व में भाषाओं कि रैंकिंग गैर सरकारी संस्था “एथ्नोलोग” (मुख्यालय अमेरिका) नामक संस्था करती है। यह संस्था, विश्व की भाषाओं के आँकड़े (डेटाबेस) अपने प्रतिनिधियों/प्रतिनिधि संस्थाओं से एकत्र कर; जारी करती है । जिस भाषा के बोलनेवाले संसार में सबसे अधिक होते हैं वह भाषा पहले नंबर पर आती है। भाषा के जानकारों की संख्या को स्थूल रूप में दो वर्गों में रखा जाता है; इन्हें एल-1 और एल-2 कहा जाता है । एल-1 अर्थात वे लोग जिनकी यह मातृभाषा हो अथवा जिन्हें इस भाषा पर दक्षता हासिल हो। एल-2 अर्थात वे लोग जिनकी वह भाषा अर्जित भाषा हो। उदाहरण के लिए हिन्दी के लिए एल-1 के अंतर्गत हिन्दी भाषी प्रदेशों की जनसंख्या और जिन्हें हिन्दी में दक्षता प्राप्त हो उनकी गणना होगी तथा एल-2 के अंतर्गत जो लोग सामन्य (कामचलाऊ) हिन्दी जानते हैं गिने जाएँगे।
हिन्दी विश्व में प्रथम कैसे?
डॉ. नौटियाल द्वारा की गयी शोध के अनुसार हिन्दी का विश्व में पहला स्थान है लेकिन एथ्नोलोग ने अपनी वर्ष २०२१ की रिपोर्ट में अँग्रेजीभाषी 1348 मिलियन (१ अरब ३४ करोड़ ८), मंदारिनभाषी ११२० मिलियन (१अरब १२ करोड़) तथा हिन्दी भाषी ६०० मिलियन (६० करोड़) दर्शाए हैं। वस्तुत: विश्व में हिन्दीभाषी १३५६ मिलियन (१ अरब ३५ करोड़ ६० लाख) हैं। हिन्दीभाषी अँग्रेजीभाषियों से १ करोड़ ५२ लाख अधिक हैं। अतः, हिन्दी विश्व में सबसे अधिक बोली जानेवाली भाषा, विश्व भाषाओं की रैंकिंग में पहले स्थान पर है।
हिन्दी को तीसरे स्थान पर क्यों दर्शाया जाता है? :
हिन्दी को तीसरे स्थान पर दर्शाये जाने के दो कारण हैं-
१. एथ्नोलोग एक दशक पुरानी जनगणना के सरकारी आंकड़े के आधार पर हिंदीभाषियों की गणना करता है। भारत सरकार ने इस पर आपत्ति नहीं की; न ही एथ्नोलोग के गलत आंकड़े में संशोधन करने में रूचि ली। अन्य भाषा-भाषियों के नवीनतम आंकड़ों के साथ हिंदी भाषा-भाषियों के ११ साल पुराने आँकड़े के आधार पर हिंदी को तीसरी सर्वाधिक बोली जानेवाली भाषा कह दिया गया।
२. अन्य देशों में भाषा-भाषियों की गणना करते समय उस भाषा का अक्षर ज्ञान मात्र होने पर उसे भाषाभाषी गिन लिया जाता है।भारत में हिन्दी के लिए अलग मापदंड बनाकर जिनकी मातृभाषा हिंदी है सिर्फ उन्हें ही हिंदी भाषा-भाषी गिना जाता है। यह भारत और हिंदी की गरिमा घटाने की सोची समझी-चाल है। इसे इस प्रकार समझें-
भारत में अँग्रेजी जाननेवाले सिर्फ ६ % (८ करोड़ ४० लाख) हैं, इसे १०% (१४ करोड़) और कई जगह २०% प्रतिशत (२८ करोड़) दिखा दिया जाता है। भारत में प्रशासन की मानसिकता अंगेरजीभाषियों की संख्या अधिकतम दिखाकर खुद को उन्नत समझने की है।
चीन में ७० से अधिक बोलियाँ है। ये एक दूसरे से बिलकुल नहीं मिलती हैं अर्थात ये आपस में बोधगम्य नहीं हैं। मंदारिनभाषियों में इन बोलियों को बोलनेवालों की संख्या बढ़ा-चढ़ाकर जोड़कर १ अरब १२ करोड़ बताकर, इसे दूसरे नंबर पर दिखाया गया है।
भारत में हिंदी मातृभाषावाले ११ राज्यों (राजभाषा नियम के अनुसार 'क' क्षेत्र) की जनसंख्या ६५ करोड़ ५८ लाख है, एथ्नोलोग हिन्दीभाषियों की संख्या केवल ६० करोड़ दर्शाता है ।
कुछ अन्य राज्यों में जिनकी भाषा हिंदी से मिलती-जुलती है और वहाँ के निवासी हिंदी समझते हैं ('ख' क्षेत्र) की कुल जनसंख्या है २२ करोड़ ४९ लाख। इनमें ९०% प्रतिशत जनता (२० करोड़ २४ लाख) हिंदी जानती है। तीसरा 'ग' क्षेत्र है, हिंदीतर भाषी क्षेत्र जहाँ का प्रचलन कम है लेकिन हिंदी जाननेवाले बड़ी संख्या में हैं। इन राज्यों की कुल जनसंख्या है ४९ करोड़ ९८ लाख जिनमें हिंदी के जानकार हैं २९ करोड़ ७८ लाख। इन तीनों क्षेत्रों को जोड़कर भारत में हिन्दी जाननेवालों की संख्या है: क क्षेत्र में ६५ करोड़ ५८ लाख + ख क्षेत्र २० करोड़ २४ लाख + ग क्षेत्र २९ करोड़ ७८ लाख = १ अरब १६ करोड़।
विश्व में ग हिंदीभाषी- प्रत्येक उर्दूभाषी हिन्दी जानता है। एथ्नोलोग के अनुसार विश्व में उर्दूभाषी १७ करोड़ हैं। एथ्नोलोग के अनुसार विश्व के अन्य देशों में हिन्दी जाननेवालों की संख्या है ४२ लाख। (डॉ. नौटियाल के शोध के अनुसार यह संख्या २ करोड़ है)। भारत में जो अवैध आप्रवासी हिंदी बोलते हैं उनकी संख्या है १करोड़ ६०लाख । इस प्रकार विश्व में हिन्दी भाषा के जानकार हैं : १ अरब ३३ करोड़ (भारत में) + ४२ लाख (अन्य देशों में) + १ करोड़ ६० लाख (अवैध शरणार्थी) = १ अरब ३५ करोड़ से अधिक। यहाँ भी हिंदीभाषियों की संखया कम से कम गिनी गयी है ताकि विवाद न हो ।जिस सिद्धान्त से अँग्रेजी और मंदारिन के आँकड़े लिए गए हैं यदि वही तरीका हिंदी के लिए लें तो विश्व में हिंदीभाषियों की संख्या १ अरब ४५ करोड़ होगी।
क्रम भाषा विश्व में बोलनेवालों की संख्या विश्व में स्थान /रैंकिंग
१. हिंदी १ अरब ३५ करोड़ (१३५० मिलियन ) प्रथम
२. अँग्रेजी १ अरब २६ करोड़ (१२६८ मिलियन ) द्वितीय
३. मंदारिन १ अरब १२ करोड़ (११६८ मिलियन ) तृतीय
रैंकिंग की वर्तमान स्थिति :
डॉ. नौटियाल ने अपनी शोध एथ्नोलोग को भेजी कि वे हिंदी को प्रथम स्थान पर दिखाएँ। एथ्नोलोग ने सुझाव दिया कि हिंदी में उर्दू भाषा को विलीन करने के लिए आइ. एस. ओ. में परिवर्तन करने की आवश्यकता है। इसलिए लाइब्रेरी ऑफ कॉंग्रेस से संपर्क कर आगे की कार्रवाई की जाए। डॉ. नौटियाल ने एथ्नोलोग को उत्तर भेजा कि उर्दू भाषा का अस्तित्व मिटाने कि आवश्यकता नहीं है, सिर्फ उर्दू जाननेवालों कि गणना हिंदी जाननेवालों मे भी की जानी है, जैसे अन्य भाषाओं में किया जाता है। यह तर्क संगत है तथा एथ्नोलोग के मानदंडों के अनुरूप भी है। यह मामला संपादक मण्डल के पास विचारार्थ है । शीघ्र ही वे अपने डाटा बेस में सुधार करके हिंदी को प्रथम स्थान पर दर्शाने की प्रक्रिया आरंभ करेंगे।
कानूनी स्थिति :
हिंदी आज कि तारीख में तथ्यतः (D Facto) विश्व में पहले स्थान पर है व एथ्नोलोग से रैंकिंग बदलने के बाद यह विधितः (D Jure) भी प्रथम स्थान पर होगी। यह मामला कानूनी विशेषज्ञ के पास विधिक राय के लिए भी भेजा गया था। कानूनी विशेषज्ञ ने भी कानूनी रूप से यह पुष्टि की है कि हिंदी का विश्व में पहला स्थान है ।
प्रमाणीकरण :
यह शोध प्रमाणीकरण प्रक्रिया के २० चरण सफलतापूर्वक पूर्ण कर चुकी है, पूरी तरह प्रामाणिक है। राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय, भारत सरकार ने इस शोध को “फ़ैक्ट चेक” हेतु केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा को भेजा। संस्थान ने इस शोध के तथ्यों की जाँच के लिए विधिवत विशेषज्ञ नियुक्त किया जिसने इस रिपोर्ट को प्रामाणिक मानते हुए इसकी प्रबल रूप में संपुष्टि की है तथा अपनी विस्तृत सकारात्मक रिपोर्ट दी है। भारत सहित विश्व के शीर्ष १७२ भाषाविदों, विशेषज्ञों व विद्वानों ने इस रिपोर्ट की प्रामाणिकता की पुष्टि की है। संसदीय राजभाषा समिति के माननीय सदस्य राजभाषा निरीक्षणों के दौरान इस शोध की सगर्व चर्चा करते हैं। इस शोध की प्रामाणिकता को देखते हुए वित्त मंत्रालय , वित्तीय सेवाएँ विभाग, भारत सरकार ने बैंकों, वित्तीय संस्थाओं एवं बीमा कंपनियों द्वारा आयोजित कार्यशालाओं में इसको प्रशिक्षण में अनिवार्य कर दिया है साथ ही उक्त सगठनों द्वारा प्रकाशित पत्रिकाओं में भी इस शोध को प्रकाशित करने के सरकारी आदेश जारी किए हैं। मूल शोध रिपोर्ट, शोध के प्रमाणीकरण संबंधी दस्तावेज़ या इनके प्रमाण डॉ. नौटियाल से प्राप्त किए जा सकते हैं। सुधी पाठकों के सुझावों का स्वागत है ।
***
डॉ जयंती प्रसाद नौटियाल का अति सूक्ष्म परिचय
जन् ३ मार्च १९५६, देहरादून । शिक्षा- एम.ए. (हिंदी), एम.ए. (अँग्रेजी), पी-एच.डी., डी.लिट, एम.बी.ए., एल-एल.बी. सहित ८१ डिग्री/डिप्लोमा और सर्टिफिकेट कोर्स। से.नि. उपमहाप्रबंधक यूनियन बैंक ऑफ इंडिया। 'विश्व का सर्वाधिक बहुमुखी प्रतिभा संपन्न व्यक्ति' होने का गौरव प्राप्त। आपका बायोडाटा (Resume) विश्व का सबसे वृहद (७ खंड, ४२०० पृष्ठ) एवं अद्वितीय है। इसमें डॉ. नौटियाल की ५०३० उपलब्धियाँ दर्ज हैं। लेखन- ८१ पुस्तकों के लेखन में योगदान, अधिकांश विश्वविद्यालयों में पाठ्य पुस्तक व संदर्भ पुस्तकें। १८०० से अधिक रचनाएँ प्रकाशित। सम्मान- ११२ अवॉर्ड, सम्मान, और पुरस्कार, २२५ प्रशंसा पत्र। राष्ट्र की १४० शीर्ष समितियों में प्रतिनिधित्व। १६५ शोध कार्य। राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में ६८६ व्याख्यान। १५० प्रकार के बौद्धिक कार्यों में योगदान। ७३ प्रकार के व्यवसायों/ पदों पर कार्य करने का अनुभव। ९११ से अधिक वेबसाइटों में विवरण उपलब्ध। प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में भी स्थान । हिंदी विकिपीडिया,अंग्रेजी विकिटिया जैसे अन्य पोर्टलों पर विवरण उपलब्ध हैं।
***
हिंदी - कुण्डलिया
हिंदी की जय बोलिए, उर्दू से कर प्रीत
अंग्रेजी को जानिए, दिव्य संस्कृत रीत
दिव्य संस्कृत रीत, तमिल-असमी रस घोलें
गुजराती डोगरी, मराठी कन्नड़ बोलें
बृज मलयालम गले मिलें गारो से निर्भय
बोलें तज मतभेद, आज से हिंदी की जय
*
हिंदी की जय बोलिए, हो हिंदीमय आप.
हिंदी में नित कार्य कर, सकें विश्व में व्याप..
सकें विश्व में व्याप, नाप लें समुद ज्ञान का.
नहीं व्यक्ति का, बिंदु 'सलिल' राष्ट्रीय आन का..
नेह-नरमदा नहा, बोलिए होकर निर्भय.
दिग्दिगंत में गूँज उठे, फिर हिंदी की जय..
*
हिंदी की जय बोलिए, तज विरोध-विद्वेष
विश्व नीड़ लें मान तो, अंतर रहे न शेष
अंतर रहे न शेष, स्वच्छ अंतर्मन रखिए
जगवाणी हिंदी अपनाकर, नव सुख गहिए
धरती माता के माथे पर, शोभित बिंदी
मूक हुए 'संजीव', बोल-अपनाकर हिंदी
***
परमपिता ने जो रचा, कहें नहीं बेकार
ज़र्रे-ज़र्रे में हुआ, ईश्वर ही साकार
ईश्वर ही साकार, मूलतः: निराकार है
व्यक्त हुआ अव्यक्त, दैव ही गुणागार है
आता है हर जीव, जगत में समय बिताने
जाता अपने आप, कहा जब परमपिता ने
*
निर्झर - नदी न एक से, बिलकुल भिन्न स्वभाव
इसमें चंचलता अधिक, उसमें है ठहराव
उसमें है ठहराव, तभी पूजी जाती है
चंचलता जीवन में, नए रंग लाती है
कहे 'सलिल' बहते चल,हो न किसी पर निर्भर
रुके न कविता-क्रम, नदिया हो या हो निर्झर
***
राजस्थानी मुक्तिका
*
नेह नर्मदा तैर भायला
बह जावैगौ बैर भायला
गेलो आपूं आप मलैगौ
मंज़िल की सुन टेर भायला
मुश्किल है हरदा सूं खड़बो
तू आवैगो फेर भायला
घणू कठण है कविता करबो
आकासां की सैर भायला
स्कूल गइल पै यार 'सलिल' तू
चाल मेलतो पैर भायला
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भाषा विविध: दोहा
संस्कृत दोहा: शास्त्री नित्य गोपाल कटारे
वृक्ष-कर्तनं करिष्यति, भूत्वांधस्तु भवान्। / पदे स्वकीये कुठारं, रक्षकस्तु भगवान्।।
मैथली दोहा: ब्रम्हदेव शास्त्री
की हो रहल समाज में?, की करैत समुदाय? / किछु न करैत समाज अछि, अपनहिं सैं भरिपाय।।
अवधी दोहा: डॉ. गणेशदत्त सारस्वत
राम रंग महँ जो रँगे, तिन्हहिं न औरु सुहात। / दुनिया महँ तिनकी रहनि, जिमी पुरइन के पात।।
बृज दोहा: महाकवि बिहारी
जु ज्यों उझकी झंपति वदन, झुकति विहँसि सतरात। / तुल्यो गुलाल झुठी-मुठी, झझकावत पिय जात।।
कवि वृंद:
भले-बुरे सब एक सौं, जौ लौं बोलत नांहिं। / जान पडत है काग-पिक, ऋतु वसंत के मांहि।।
बुंदेली दोहा: रामेश्वर प्रसाद गुप्ता 'इंदु'
कीसें कै डारें विथा, को है अपनी मीत? इतै सबइ हैं स्वारथी, स्वारथ करतइ प्रीत।।
पं. रामसेवक पाठक 'हरिकिंकर': नौनी बुंदेली लगत, सुनकें मौं मिठियात। बोलत में गुर सी लगत, फर-फर बोलत जात।।
बघेली दोहा: गंगा कुमार 'विकल'
मूडे माँ कलशा धरे, चुअत प्यार की बूँद। / अँगिया इमरत झर रओ, लीनिस दीदा मूँद।।
पंजाबी दोहा: निर्मल जी
हर टीटली नूं सदा तो, उस रुत दी पहचाण। / जिस रुत महकां बाग़ विच, आके रंग बिछाण।।
-डॉ. हरनेक सिंह 'कोमल'
हलां बरगा ना रिहा, लोकां दा किरदार।/ मतलब दी है दोस्ती, मतलब दे ने यार।।
गुरुमुखी: गुरु नानक
पहले मरण कुबूल कर, जीवन दी छंड आस। / हो सबनां दी रेनकां, आओ हमरे पास।।
भोजपुरी दोहा: संजीव 'सलिल'-
चिउड़ा-लिट्ठी ना रुचे, बिरयानी की चाह।/ नवहा मलिकाइन चली, घर फूँके की राह।।
मालवी दोहा: संजीव 'सलिल'-
भणि ले म्हारा देस की, सबसे राम-रहीम। /जल ढारे पीपल तले, अँगना चावे नीम।।
निमाड़ी दोहा: संजीव 'सलिल'-
रयणो खाणों नाचणो, हँसणो वार-तिवार। / गीत निमाड़ी गावणो, चूड़ी री झंकार।।
छत्तीसगढ़ी दोहा: संजीव 'सलिल'-
जाँघर तोड़त सेठ बर, चिथरा झूलत भेस । / मुटियारी माथा पटक, चेलिक रथे बिदेस ।।
राजस्थानी दोहा:
पुरस बिचारा क्या करै, जो घर नार कुनार। /ओ सींवै दो आंगळा, वा फाडै गज च्यार।।
अंगिका दोहा: सुधीर कुमार
ऐलै सावन हपसलो', लेनें नया सनेस । / आबो' जल्दी बालमां, छोड़ी के परदेश।।
बज्जिका दोहा: सुधीर गंडोत्रा
चाहू जीवन में रही, अपने सदा अटूट। / भुलिओ के न परे दू, अपना घर में फूट।।
हरयाणवी दोहा: श्याम सखा 'श्याम'
मनै बावली मनचली, कहवैं सारे लोग। / प्रेम-प्रीत का लग गया, जिब तै मन म्हं रोग।।
मगही दोहा :
रउआ नामी-गिरामी, मिलल-जुलल घर फोर। / खम्हा-खुट्टा लै चली,
राजस्थानी दोहा:
पुरस बिचारा क्या करै, जो घर नार कुनार। / ओ सींवै दो आंगळा, वा फाडै गज च्यार।।
कन्नौजी दोहा:
ननदी भैया तुम्हारे, सइ उफनाने ताल। / बिन साजन छाजन छवइ, आगे कउन हवाल।।
सिंधी दोहा: चंद्रसिंह बिरकाली
ग्रीखम-रुत दाझी धरा कळप रही दिन रात। / मेह मिलावण बादळी बरस बरस बरसात ।।
दग्ध धरा ऋतु ग्रीष्म से, कल्प रही रही दिन-रात। / मिलन मेह से करा दे, बरस-बरस बरसात।।
गढ़वाली दोहा: कृष्ण कुमार ममगांई
धार अड़ाली धार माँ, गादम जैली त गाड़। / जख जैली तस्ख भुगत ली, किट ईजा तू बाठ।।
सराइकी दोहा: संजीव 'सलिल'
शर्त मुहाणां जीत ग्या, नदी-किनारा हार। / लेणें कू धिक्कार हे, देणे कूँ जैकार।।
मराठी दोहा: वा. न. सरदेसाई
माती धरते तापता, पर्जन्यची आस। / फुकट न तृष्णा भागवी, देई गंध जगास।।
गुजराती दोहा: श्रीमद योगिंदु देव
अप्पा अप्पई जो मुणइ जो परभाउ चएइ। / सो पावइ सिवपुरि-गमणु जिणवरु एम भणेइ।।
दोहा दिव्य दिनेश से साभार
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कार्यशाला
दो कवि एक कुण्डलिया
*
आओ! सब मिलकर रचें, ऐसा सुंदर चित्र।
हिंदी पर अभिमान हो, स्वाभिमान हो मित्र।। -विशम्भर शुक्ल
स्वाभिमान हो मित्र, न टकरायें आपस में।
फूट पड़े तो शत्रु, जयी हो रहे न बस में।।
विश्वंभर हों सदय, काल को जूझ हराओ।
मोदक खाकर सलिल, गजानन के गुण गाओ।। -संजीव 'सलिल'
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दोहा
हर पल हिंदी को जिएँ, दिवस न केवल एक।
मानस मैया मानकर, पूजें सहित विवेक।।
१४-९-२०१८
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हाइकु गीत
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बोल रे हिंदी
कान में अमरित
घोल रे हिंदी
*
नहीं है भाषा
है सभ्यता पावन
डोल रे हिंदी
*
कौन हो पाए
उऋण तुझसे, दे
मोल रे हिंदी?
*
आंग्ल प्रेमी जो
तुरत देना खोल
पोल रे हिंदी
*
झूठा है नेता
कहाँ सच कितना?
तोल रे हिंदी
*
मुक्तक
हिंदी का उद्घोष छोड़, उपयोग सतत करना है
कदम-कदम चल लक्ष्य प्राप्ति तक संग-संग बढ़ना है
भेद-भाव की खाई पाट, सद्भाव जगाएँ मिलकर
गत-आगत को जोड़ सके जो वह पीढ़ी गढ़ना है
*
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गीत
*
देश-हितों हित
जो जीते हैं
उनका हर दिन अच्छा दिन है।
वही बुरा दिन
जिसे बिताया
हिंद और हिंदी के बिन है।
*
अपने मन में
झाँक देख लें
क्या औरों के लिए किया है?
या पशु, सुर,
असुरों सा जीवन
केवल निज के हेतु जिया है?
क्षुधा-तृषा की
तृप्त किसी की,
या अपना ही पेट भरा है?
औरों का सुख छीन
बना जो धनी
कहूँ सच?, वह निर्धन है।
*
जो उत्पादक
या निर्माता
वही देश का भाग्य-विधाता,
बाँट, भोग या
लूट रहा जो
वही सकल संकट का दाता।
आवश्यकता
से ज्यादा हम
लुटा सकें, तो स्वर्ग रचेंगे
जोड़-छोड़ कर
मर जाता जो
सज्जन दिखे मगर दुर्जन है।
*
बल में नहीं
मोह-ममता में
जन्मे-विकसे जीवन-आशा।
निबल-नासमझ
करता-रहता
अपने बल का व्यर्थ तमाशा।
पागल सांड
अगर सत्ता तो
जन-गण सबक सिखा देता है
नहीं सभ्यता
राजाओं की,
आम जनों की कथा-भजन है
***
सलिल-लहर से रश्मि मिले तो, झिलमिल हो जीवन नदिया
रश्मि न हो तम छाये दस-दिश, बंजर हो जग की बगिया
रश्मि सूर्य को पूज्य बनाती, शशि को देती रूप छटा-
रश्मि ज्ञान की मिल जाए तो जीवात्मा होती अभया
*
हिंदी दिवस २०१६
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गीत
*
छंद बहोत भरमाएँ
राम जी जान बचाएँ
*
वरण-मातरा-गिनती बिसरी
गण का? समझ न आएँ
राम जी जान बचाएँ
*
दोहा, मुकतक, आल्हा, कजरी,
बम्बुलिया चकराएँ
राम जी जान बचाएँ
*
कुंडलिया, नवगीत, कुंडली,
जी भर मोए छकाएँ
राम जी जान बचाएँ
*
मूँड़ पिरा रओ, नींद घेर रई
रहम न तनक दिखाएँ
राम जी जान बचाएँ
*
कर कागज़ कारे हम हारे
नैना नीर बहाएँ
राम जी जान बचाएँ
*
ग़ज़ल, हाइकू, शे'र डराएँ
गीदड़-गधा बनाएँ
राम जी जान बचाएँ
*
ऊषा, संध्या, निशा न जानी
सूरज-चाँद चिढ़ाएँ
राम जी जान बचाएँ
१४-९-२०१६
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कविता का अनुकथन :
हिंदी के किसी प्रसिद्ध कवि की कविता का चयन कर उसके कथ्य को किसी अन्य कवि की शैली में लिखिए। अपनी रचना भी प्रस्तुत कर सकते हैं। शालीनता और मौलिकता आवश्यक है।
रचनाकार: संजीव
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शैली : बालकृष्ण शर्मा 'नवीन'
राधावत, राधसम हो जा, रे मेरे मन,
पेंग-पेंग पायेगा , राधा से जुड़ता तन
शुभदा का दर्शन कर, जग की सुध दे बिसार
हुलस-पुलक सिहरे मन, राधा को ले निहार
नयनों में नयन देखे मन सितार बज
अग-जग की परवा तज कर, जमुना जल मज्जन
राधावत, राधसम हो जा, रे मेरे मन
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मूल पंक्तियाँ:
अंतर्मुख, अंतर्मुख हो जा, रे मेरे मन,
उझक-उझक देखेगा तू किस-किसके लांछन?
कर निज दर्शन, मानव की प्रवृत्ति को निहार
लख इस नभचारी का यह पंकिल जल विहार
तू लख इस नैष्ठि का यह व्यभिचारी विचार,
यह सब लख निज में तू, तब करना मूल्यांकन
अंतर्मुख, अंतर्मुख हो जा, रे मेरे मन.
हम विषपायी जनम के, पृष्ठ १९
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शैली : वीरेंद्र मिश्र
जमुन तट रसवंत मेला,
भूल कर जग का झमेला,
मिल गया मन-मीत, सावन में विहँस मन का।
मन लुभाता संग कैसे,
श्वास बजती चंग जैसे,
हुआ सुरभित कदंबित हर पात मधुवन का।
प्राण कहता है सिहर ले,
देह कहती है बिखर ले,
जग कहे मत भूल तू संग्राम जीवन का।
मन अजाने बोलता है,
रास में रस घोलता है,
चाँदनी के नाम का जप चाँद चुप मनका।
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मूल रचना-
यह मधुर मधुवन्त वेला,
मन नहीं है अब अकेला,
स्वप्न का संगीत कंगन की तरह खनका।
साँझ रंगारंग है ये,
मुस्कुराता अंग है ये,
बिन बुलाये आ गया मेहमान यौवन का।
प्यार कहता है डगर में,
बाह नहीं जाना लहर में,
रूप कहता झूम जा, त्यौहार है तन का।
घट छलककर डोलता है,
प्यास के पट खोलता है,
टूट कर बन जाय निर्झर, प्राण पाहन का।
अविरल मंथन, सितंबर २०००, पृष्ठ ४४
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शैली : डॉ. शरद सिंह
आ झूले पर संग झूलकर, धरा-गगन को एक करे
जमुना जल में बिंब देखकर, जीवन में आनंद भरें
ब्रिज करील वन में गुंजित है, कुहू कुहू कू कोयल की
जैसे रायप्रवीण सुनाने, कजरी मीठी तान भरे
रंग कन्हैया ने पाया है, अंतरिक्ष से-अंबर से
ऊषा-संध्या मौक़ा खोजें, लाल-गुलाबी रंग भरे
बाँहों में बाँहें डालो प्रिय!, मुस्का दो फिर हौले से
कब तक छिपकर मिला करें, हम इस दुनिया से डरे-डरे
चलो कोर्ट मेरिज कर लें या चल मंदिर में माँग भरूँ
बादल की बाँहों में बिजली, देख-देख दिल जला करे
हममें अपनापन इतना है, हैं अभिन्न इक-दूजे से
दूरी तनिक न शेष रहे अब, मिल अद्वैत का पंथ वरे
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मूल रचना-
रात चाँद की गठरी ढोकर, पूरब-पश्चिम एक करे
नींद स्वप्न के पोखर में से, अँजुरी-अँजुरी स्वप्न भरे
घर के आँगन में फ़ैली है, आम-नीम की परछाईं
जैसे आँगन में बिखरे हों, काले-काले पात झरे
उजले रंग की चादर ओढ़े, नदिया सोई है गुपचुप
शीतल लहरें सोच रही हैं, कल क्या होगा कौन डरे?
कोई जब सोते-सोते में, मुस्का दे यूँ हौले से
समझो उसने देख लिये हैं काले आखर हरे-हरे
बड़ा बृहस्पति तारा चमके, जब मुँडेर के कोने पर
ऐसा लगता है छप्पर ही, खड़ा हुआ है दीप धरे
यूँ तो अपनापन सिमटा है, मंद हवा के झोंकें में
फिर भी कोई अपना आये, कहता है मन राम करे!
१४-९-२०१५