कृति सलिला:
"उत्सर्ग" कहानीपन से भरी पूरी कहानियाँ - राज कुमार तिवारी 'सुमित्र'
*
[उत्सर्ग, , प्रथम संस्करण २००, आकार २१.५ से.मी. x १४ से.मी., आवरण बहुरंगी सजिल्द, जैकेट सहित, पृष्ठ १४२, मूल्य १६०/-, पाथेय प्रकाशन जबलपुर]
- कहानी यानी ... ? 'था', 'है' और 'होगा' का अर्थपूर्ण सूत्र बंधन अर्थात कथ्य। 'कथ्य' को कथा-कहानी बनाता है किस्सागो या कहानीकार। किस्सागो कलम थाम ले तो क्या कहना... .सोन सुगंध की उक्ति चरितार्थ हो जाती है।
- कहानी को जनपथ पर उतरने के सहभागी प्रेमचंद से वर्तमान युग तक अनेक कथाकार हुए। कहानी ने अनेक आन्दोलन झेले, अनेक शिविर लगे, अनेक झंडे उड़े, झंडाबरदार लड़े, फतवे जारी किये गये किंतु अंतिम निर्णायक पाठक या श्रोता ही होता है। पाठकों की अदालत ही सर्वोच्च होती है।
- सो इसी बल पर कहानी आज तक बनी और बची रही और सृजन रत रहे कहानीकार। इसी सृजन समर्पित श्रृंखला की एक कड़ी हैं डॉ. राजलक्ष्मी शिवहरे। अरसे से समाजसेवा के साथ सृजन साधना कर रही डॉ. राजलक्ष्मी के उपन्यासों धूनी और अधूरा मन को पाठकों की अपार सराहना मिली। डॉ. राजलक्ष्मी के प्रस्तुत कहानी संग्रह ' उत्सर्ग' में १६ कहानियां संग्रहीत हैं जो स्वरूप, शाश्वतता, कला और लोक्प्रोयता को प्रमाणित करती हैं।
- संग्रह की पहली कहानी 'उत्सर्ग' देश हितार्थ प्रतिभाशाली संतान को जन्म देने के वैज्ञानिक प्रयोग की कथा है। लेखिका ने वैज्ञानिक तथ्य, कल्पना और राष्ट्रीय चेतना के योग से प्रभावी कथानक बुना है। 'पछतावा' में पुत्र से बिछुड़े पिता की मनोदशा और द्वार तक आये पिता को खो देने का पछतावा मार्मिकता के साथ चित्रित है। 'झुग्गी' में बुधुआ के सात्विक प्रेम का प्रतिबिंबन है। 'त्रिकोण' सिद्ध करती है कि ईर्ष्या भाव केवल स्त्रियों में नहीं पुरुषों में भी होता है। वापसी ऐसी यात्रा कथा है जो जीवन और समाज के प्रश्नों से साक्षात् कराती है। 'दायरे' सास-बहू के मध्य सामंजस्य के सूत्र प्रस्तुत करती है। 'कुत्ते की रोटी' एक ओर कवि भूपत के स्वाभिमान और दूसरी ओर नीलिमा और करुणा के विरोधाभासी चरित्रों को उजागर करती है। 'दूसरा पति' सहनशील पत्नी राधा की व्यथा कथा है जी पति के स्वाभाव को परिवर्तित करती है। 'परिवर्तन में 'साधू इतना चाहिए जामे कुटुम समाय' का संदेश निहित है और हिअ रिश्वत का दुष्परिणाम। 'दीप जले मेरे अँगना' विदेश प्रवास और प्रसिद्धि की महत्वाकांक्षा पर देश प्रेम की विजय गाथा है। 'परतें' के माध्यम से लेखिका ने मन की परतें खोलने के साथ ही अनाथ बच्चों की समस्या और उसका हल प्रस्तुत किया है। 'रूपकीरण यादों की भाव भरी मंजूषा है। 'नसीब' कहानी से हटकर कहानी है। घोड़े को माध्यम बनाकर लेखिका ने सूझ, परिश्रम और सामाजिक व्यवहार का महत्व प्रतिपादित किया है। 'मंगल मुहिम' वैवाहिक रूढ़ियों पर एक मखमली प्रहार है। 'एक बार' कहानी दर्शाती है कि स्वयं का अतीतजीवी होना दूसरे के वर्तमान को कितना कष्टदायी बना देता है। अंतिम कहानी 'सुख की खोज' में पारिवारिक संतुलन के सूत्र संजोये गए हैं और बताया गया है कि 'रिटायरमेंट' को अभिशाप बनने से कैसे बचाया जा सकता है।
- 'उत्सर्ग' की कहानियों की भाषा सहज, स्वाभाविक और प्रवाहपूर्ण है। तद्भव और देशज शब्दों के साथ तत्सम शब्दावली तरह है। भाषा में चित्रात्मकता है। संवाद कहानियों को प्रभावी बनाते हैं। मनोविज्ञान, एहसास और सूक्ष्म निरीक्षण लेखिका की शक्ति है। कहानियाँ राष्ट्रीय भावधारा, प्रेम, करुणा, सामाजिक और सांस्कृतिक चेतना से परिपूरित हैं।
*
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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गुरुवार, 11 फ़रवरी 2021
समीक्षा राजलक्ष्मी शिवहरे
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सुमित्र
समीक्षा राजलक्ष्मी शिवहरे
समीक्षा
प्रो (डॉ.) साधना वर्मा
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भारत में बाल कथा हर घर में कही-सुनी जाती है। पंचतत्र और हितोपदेश की लोकोपयोगी विरासत को आगे बढ़ाती है डॉ. राजलक्ष्मी शिवहरे की कृति ''चिम्पी जी की दुल्हनियाँ''। आठ बाल कहानियों का यह संग्रह रोचक विषय चयन, बाल रुचि के पक्षी-पक्षी पात्रों, सरल-सहज भाषा व सोद्देश्यता के कारण पठनीय बना पड़ा है। 'चिंपी जी की दुल्हनिया' में सहयोग भावना, 'अक्ल बड़ी या भैंस' में शिक्षा का महत्व, 'बाज चाचा' में सच्चे व् कपटी मित्र, 'चिंपी जी की तीर्थ यात्रा', 'सुनहरी मछली' व 'चिंटू चूहा और जेना जिराफ' में परोपकार से आनंद, 'लालू लोमड़ की बारात' में दहेज़ की बुराई तथा 'चिंपी बंदर की समझ' में बुद्धि और सहयोग भाव केंद्र में है।
राजलक्ष्मी जी बाल पाठकों के मानस पटल पर जो लिखना चाहती हैं उसे शुष्क उपदेश की तरह नहीं रोचक कहानी के माध्यम से प्रस्तुत करने में सफल हुई हैं। कहानियों की विषय वस्तु व्यावहारिक जीवन से जुडी हैं। थोथा आदर्शवाद इनमें न होना ही इन्हें उपयोगी बनाता है। बच्चे इन्हें पढ़ते, सुनते, सुनाते हुए अनजाने में ही वह ग्रहण कर लें जो उनके विकास के लिए आवश्यक है। इस उद्देश्य को पूर्ण करने में ये कहानियाँ पूरी तरह सफल हैं। बाल शिक्षा से जुडी रही छाया त्रिवेदी के अनुसार "बच्चों समाये निराधार भय को हटाने में हुए उनमें आत्मविश्वास बढ़ाने में सहायक हैं ये कहानियाँ। बाल नाटककार अर्चना मलैया ने इन कहानियों को "बच्चों को पुरुषार्थ पथ पर प्रेरित करने में सहायक" पाया है। कवयित्री प्रभा पाण्डे 'पुरनम' की दृष्टि में इनका "अपना सौंदर्य है, इनमें बालकों को संस्कारित करने की आभा है।"
मैंने इन कहानियों को बच्चों ही नहीं बड़ों के लिए भी आवश्यक और उपयोगी पाया है। हमारे सामान्य सामाजिक जीवन में विघटित होते परिवार, टूटते रिश्ते, चटकते मन, बढ़ती दूरियाँ और दिन-ब-दिन अधिकाधिक अकेला होता जाता आदमी इन कहानियों को पढ़कर स्वस्थ्य जीवन दृष्टि पाकर संतुष्टि की राह पर कदम बढ़ा सकता है। सामान्यत: बाल मन छल - कपट से दूर होता है किंतु आजकल हो रहे बाल अपराध समाज के लिए चिंता और खतरे की घंटी हैं। बालकों में सरलता के स्थान पर बढ़ रही कुटिलतापूर्ण अपराधवृत्ति को रोककर उन्हें आयु से अधिक जानने किन्तु न समझने की अंधी राह से बचाने में सकारात्मक भूमिका निभा सकता है ऐसा बाल साहित्य। बाल शिक्षा से जुडी रही राजलक्ष्मी जी को बाल मनोविज्ञान की जानकारी है। किसी भी कहानी में अवैज्ञानिक किस्सागोई न होना सराहनीय है। पुस्तक का आकर्षक आवरण पृष्ठ, सुंदर छपाई इसे प्रभावशाली बनाती है।
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पुस्तक सलिला
*रहस्यमयी गुफा*
[रहस्यमयी गुफा, बाल कहानियाँ, डॉ राजलक्ष्मी शिवहरे प्रकाशक- पाथेय प्रकाशन , जबलपुर (म.प्र.) पृष्ठ- 64, मूल्य- 100₹]
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सभी बच्चों को समर्पित यह बाल कहानियों का संग्रह 3 से 12 साल के बच्चों को अवश्य ही पसंद आयेगा । बाल्यकाल में ही नैतिक आचरण की नींव पड़ जाती है, ऐसे समय में अच्छी कहानियाँ बच्चों को न केवल समझदार बनाती हैं वरन उनका जीवन के प्रति नजरिया भी बदल देती हैं ।आपस में प्रेम भाव से मिलकर रहना, सूझबूझ, नैतिक शिक्षा का पाठ , इन्हीं बाल कथाओं के माध्यम से सीखा जा सकता है । पुस्तक का आकर्षक आवरण पृष्ठ, सुंदर प्रिंटिंग इसे और भी प्रभावशाली बनाती है । इसमें छह कहानियाँ हैं -
*पहली कहानी- फूटी ढोलकिया*
इस कहानी को लेखिका ने बहुत ही रोचक ढंग से लिखा है । ऐसा लगता है मानो कोई बड़ा बूढ़ा कहानी सुना रहा हो । इस कहानी में चतुर सुजान नामक पात्र के माध्यम से बहुत ही अच्छे तरीके से शिक्षा दी गयी है कि बुद्धिमानी से कुछ भी संभव है । कैसे चतुरसुजान ने अकेले ही चोर लुटेरों को बुद्धू बना अपनी यात्रा निर्विघ्न सम्पन्न की ।
बीच - बीच में कुछ गीत की पंक्तियाँ हैं जिससे उत्सुकता और बढ़ रही है ।
वाह रे चतुर सुजान
चले हैं देखो ससुराल
लाने को बहुरिया
चेहरे पर सजी है शान
पर साथ में लाना है दहेज का माल
खरी तौर से संभाल ।
ये कहानी पूरे तारतम्य के साथ सधी हुयी शैली में आगे बढ़ती जाती है , अब क्या होगा यह जिज्ञासा भी बनी रहती है । किस प्रकार से चतुर सुजान समस्या से निपटेंगे । फूटी ढोलकिया में टेप रिकार्डर के द्वारा आवाज उतपन्न कर एक अलग ही रोमान्च पैदा किया है । बच्चों को काल्पनिकता बहुत भाती है ।
*दूसरी कहानी- जन्मदिन की गुड़िया*
सभी बच्चों को जन्मदिन का बेसब्री से इंतजार रहता है और वे इसे खास बनाने हेतु कोई न कोई योजना मन में बना लेते हैं व अपने पापा मम्मी से पूरी करवा कर ही दम लेते हैं ।
ऐसी ही कहानी शिवी की है जिसके पापा सीमा पर हैं जहाँ लड़ाई चल रही है । माँ सिलाई करके जीविका चलाती है । शिवी का माँ से पाँच रुपये का माँगना और माँ ने उसे दे दिया अब कैसे वो उसका उपयोग समझदारी से करती है ये इस कथानक का मुख्य उद्देश्य है । ये शिक्षा बच्चों को ऐसी ही कहानियों द्वारा दी जा सकती है ।
जन्मदिन पर जैसा अक्सर घरों में होता है वैसा ही इस कहानी में खूबसूरती के साथ लिखा गया है -
*भगवान को प्रणाम करके शिवी माँ के पास गयी तो देखा माँ हलवा बना रही थी ।*
माँ का हलवे को भोग लगाकर शिवी को खिलाना, टीका करना , ये सब भारतीय संस्कृति के हिस्से हैं जिनसे बच्चों का परिचय होना जरूरी है ।
शिवी ने कैसे पड़ोस में रहनेवाली दादी की मदद की दवाई खरीदने में, उसने अपने 5 रुपये उन्हें दे दिए । माँ के पूछने पर क्या तुम सहेलियों के साथ जन्मदिन मना आयी तो बहुत ही समझदारी भरा जबाब दिया । वो माँ द्वारा बनायी गयी गुड़िया से संतुष्ट हो गयी । ये सब शिक्षा बड़े आसानी से बच्चों को समझ में आ जायेगी । देने का सुख क्या होता है । मिल बाँट कर इस्तेमाल की आदत का विकास भी ऐसी ही बाल कथाओं से होता है ।
*तीसरी कहानी- मैं झूठ क्यों बोला*
हम बच्चों को सदैव सिखाते हैं सच बोलना चाहिए, पर कई बार ऐसे अवसर आते हैं जब झूठ बोलने से किसी का भला हो जाता है तो ऐसे अवसर पर समझदारी से कार्य करना पड़ता है ।
इस कहानी द्वारा यही सीख मिलती है । तीन दोस्त किस तरह से अच्छे नंबरों से पास हुए , पढ़ाई अलग- अलग बैठकर अच्छे से होती है ये भी समझ में आया । बहुत सरल तरीके से अच्छे उदाहरण के द्वारा लेखिका ने अपनी बात बच्चों तक पहुँचायी ।
*चौथी कहानी- सोने का अंडा*
छोटे बच्चों को परी की कहानी बहुत लुभाती है । इसकी ये लाइन देखिए इसमें छोटी बच्ची जिसका नाम मीनू है परी से कह रही है - हाँ दीदी , माँ कहती हैं , सबकी सहायता करने से भगवान खुश होते हैं ।
इस कहानी में जो सोने का अंडा उन्हें मिलता उसे बेचकर वे थोड़ा सा खुद रखतीं बाकी गरीबो को बाँट देती ये सीख आज के समय बहुत जरूरी है क्योंकि अक्सर लोग लालच में अंधे होकर सब मेरा हो इसी लिप्सा की पूर्ति में आजीवन लगे रहते हैं ।
*पाँचवी कहानी- रहस्यमयी गुफा*
तिलिस्म पर आधारित बालकथा , बहुत ही धाराप्रवाह तरीके से लिखी गयी है । अजीत नामक बालक न केवल न्याय करता है बल्कि पूरी विनम्रता के साथ राजदरबार के कार्यों का संचालन करता है ।
छोटे छोटे संवाद कहानी की सहजता को बढ़ाते हैं । आसानी से बच्चे इसको पढ़कर या सुनकर आनन्दित होंगे ।
तो क्या हम भी सुबह कैद कर लिए जायेंगे ?
महाराज यह तो आपकी न्याय बुद्धि बतायेगी ।
ठीक है कहकर अजीत सिंहासन पर बैठ गया ।
हमारी मुहर लाओ ।
ऐसे ही छोटे- छोटे वाक्यों के प्रयोग से बात आसानी से पाठकों तक पहुँचती है ।
तथ्यों को सुनकर फैसला देना, सबको आजाद करना ये सब घटनाएँ रोचक तरीके से लिखी गयी हैं ।
*छटवीं कहानी- बच्चों का अखबार*
आज की ताजी खबर, सुनों मुन्ना जी इधर ।
सुनो रीना जी इधर, आज की ताजा खबर ।।
इस पंक्ति से शुरू व इसी पर समाप्त होती ये कहानी बहुत ही सिलसिलेवार ढंग से आगे बढ़ती है । बच्चे खुद ही अखबार सम्पादित करें, उन्हीं की खबरें हों, वे ही इसे बाँटे इस कल्पना को साकार करती हुयी अच्छी शिक्षाप्रद कहानी ।
काल्पनिकता को विकसित करने हेतु ऐसी कहानियों को अवश्य ही बच्चों को पढ़ने हेतु देना चाहिए ।
चूँकि लेखिका वरिष्ठ उपन्यासकार , कथाकार व कवयित्री हैं इसलिए उनके अनुभवों का असर इन बालकथाओं पर स्पष्ट दिख रहा है । सभी कहानियाँ शिक्षाप्रद होने के साथ- साथ सहज व सरल हैं जिससे इन्हें पढ़ने या सुनने वाला अवश्य ही लाभांवित होगा ।
*समीक्षक*
छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर (म. प्र.)
7024285788
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