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मंगलवार, 23 अप्रैल 2019

षट्पदी बुक डे

एक षट्पदी 
*
'बुक डे' 
राह रोक कर हैं खड़े, 'बुक' ले पुलिस जवान 
वाहन रोकें 'बुक' करें, छोड़ें ले चालान 
छोड़ें ले चालान, कहें 'बुक' पूरी भरना
छूट न पाए एक, न नरमी तनिक बरतना
कारण पूछा- कहें, आज 'बुक डे' है भैया
अगर हो सके रोज, नचें कर ता-ता थैया
***

सोमवार, 21 अगस्त 2017

आज की बात

षट्पदी-
आत्मानुभूति
कहाँ कब-कब हुआ पैदा, कहाँ कब-कब रहा डेरा?
कौन जाने कहाँ कब-कब, किया कितने दिन बसेरा?
है सुबह उठ हुआ पैदा, रात हर सोया गया मर-
कौन जाने कल्प कितने लगेगा अनवरत फेरा?
साथ पाया, स्नेह पाया, सत्य बडभागी हुआ हूँ.
व्यर्थ क्यों वैराग लूं मैं, आप अनुरागी हुआ हूँ.
२०-८-२०१७
***
षट्पदी-
कठिन-सरल
'क ख ग' भी लगा था, प्रथम कठिन लो मान.
बार-बार अभ्यास से, कठिन हुआ आसान
कठिन-सरल कुछ भी नहीं, कम-ज्यादा अभ्यास
मानव मन को कराता, है मिथ्या आभास.
भाषा मन की बात को, करती है प्रत्यक्ष
अक्षर जुड़कर शब्द हों, पाठक बनते दक्ष
***
षट्पदी-
कर-भार
चाहा रहें स्वतंत्र पर, अधिकाधिक परतंत्र
बना रहा शासन हमें, छीन मुक्ति का यंत्र
रक्तबीज बन चूसते, कर जनता का खून
गला घोंटते निरन्तर, नए-नए कानून
राहत का वादा करें, लाद-लाद कर-भार
हे भगवान्! बचाइए, कम हो अत्याचार
***
चतुष्पदी
फूल चित्र दे फूल मन, बना रहा है fool.
स्नेह-सुरभि बिन धूल है, या हर नाता शूल
स्नेह सुवासित सुमन से, सुमन कहे चिर सत्य
जिया-जिया में पिया है, पिया जिया ने सत्य


***
मुक्तिका: १
जागे बहुत, चलो अब सोएँ
किसका कितना रोना रोएँ?
नेता-अफसर माखन खाएँ
आम आदमी दही बिलोएँ
पाये-जोड़े की तज चिंता
जो पाया, दे कर खुद खोएँ
शासन चाहे बने भिखारी
हम-तुम केवल साँसें ढोएँ
रहे विपक्ष न शेष देश में
फूल रौंदकर काँटे बोएँ
सत्ता करे देश को गंदा
जनगण केवल मैला धोएँ
***
मुक्तिका: २
जागे बहुत, चलो अब सोएँ
स्वप्न सजा नव जग में खोएँ
जनगण वे कांटे काटेंगे
जो नेताजी निश-दिन बोएँ
हुए चिकित्सक आज कसाई
शिशु मारें फिर भी कब रोएँ?
रोज रेलगाड़ियाँ पलटेंगी
मंत्री हँसें, न नयन भिगोएँ
आना-जाना लगा रहेगा
नाहक नैना नहीं भिगोएँ
अधरों पर मुस्कान सजाकर
मधुर मिलन के स्वप्न सँजोएँ
***
मुक्तिका ३
बेटी
*
बेटी दे आशीष, आयु बढ़ती है
विधि निज लेखा मिटा, नया गढ़ती है
*
सचमुच है सौभाग्य बेटियाँ पाना-
आस पुस्तकें, श्वास मौन पढ़ती है.
*
कभी नहीं वह रुकती,थकती, चुकती
चुक जाते सोपान अथक चढ़ती है
*
पथ भटके तो नाक कुलों की कटती
काली लहू खलों का पी कढ़ती है
*
असफलता का फ्रेम बनाकर गुपचुप
चित्र सफलता का सुन्दर मढ़ती है

***

मुक्तक
जिसने सपने में देखा, उसने ही पाया
जिसने पाया, स्वप्न मानकर तुरत भुलाया
भुला रहा जो याद उसी को फिर-फिर आया
आया बाँहों-चाहों में जो वह मन-भाया
***
मुक्तक:
मिलीं मंगल कामनाएँ, मन सुवासित हो रहा है।
शब्द, चित्रों में समाहित, शुभ सुवाचित हो रहा है।।
गले मिल, ले बाँह में भर, नयन ने नयना मिलाए-
अधर भी पीछे कहाँ, पल-पल सुहासित हो रहा है।।
*** दोहा सलिला
मन-मंजूषा जब खिली, यादें बन गुलकंद
मतवाली हो महककर, लुटा रही मकरंद
*
सुमन सुमन उपहार पा, प्रभु को नमन हजार
सुरभि बिखेरें हम 'सलिल ', दस दिश रहे बहार
*
जिससे मिलकर हर्ष हो, उससे मिलना नित्य
सुख न मिले तो सुमिरिए, प्रभु को वही अनित्य
*

salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.com
#हिंदी_ब्लॉगर

बुधवार, 5 जुलाई 2017

shatpadi

एक षट्पदी:
*
ब्रह्मा-विष्णु-सदाशिव को जप, पी ब्रांडी-व्हिस्की-शैम्पेन,
रम पी राम-राम जप प्यारे, भाँग छान ले भोले मैन
चिलम धतूरा चंचल चित ले, चिन्मय से साक्षात् करे-
चकित-भ्रमित या थकित अगर तू, खुद में डूब न हो बेचैन। 
सुर-नर-असुर सुरा पीने हित, तज मतभेद एक होते
पी स्कोच चढ़ा ठर्रा सँग दीन-धनी दूरी खोते
***
#हिंदी_ब्लॉगिंग

shatpadee

एक षट्पदी
आइये, सोचें-विचारें :
- संजीव 'सलिल'
*
जिन्हें हमारी फ़िक्र, उन्हें हम रहे रुलाते.
रोये उनके लिए, न जिनके मन हम भाते..
करते उनकी फ़िक्र, न जिनको फ़िक्र हमारी-
है अजीब, पर सत्य समझ-स्वीकार न पाते..
'सलिल' समझ सच को, बदलें हम खुद को फ़ौरन.
कभी नहीं से देर भली, कहते विद्वज्जन..
***
५-७-२०१०


#हिंदी_ब्लॉगिंग

रविवार, 23 अप्रैल 2017

shatpadi

एक षट्पदी
*
'बुक डे'
राह रोक कर हैं खड़े, 'बुक' ले पुलिस जवान
वाहन रोकें 'बुक' करें, छोड़ें ले चालान
छोड़ें ले चालान, कहें 'बुक' पूरी भरना
छूट न पाए एक, न नरमी तनिक बरतना
कारण पूछा- कहें, आज 'बुक डे' है भैया  
अगर हो सके रोज, नचें कर ता-ता थैया
***


मंगलवार, 23 दिसंबर 2014

shatpadi

षट्पदी :
संजीव
.
है समाज परिवार में, मान हो रहे अंध
जुट समाजवादी गये, प्रबल स्वार्थ की गंध
प्रबल स्वार्थ की गंध, समूचा कुनबा नेता
घपलों-घोटालों में माहिर, छद्म प्रणेता
कथनी-करनी से हुआ शर्मसार जन-राज है
फ़िक्र न इनको देश की, संग न कोई समाज है


सोमवार, 13 अक्टूबर 2014

shatpadi:

षट्पदी :

हुदहुद बरपाकर कहर चला गया निज राह
मानव यत्नों की नहीं ले पाया वह थाह
ले पाया वह थाह नहीं निर्माण शक्ति की
रचें नया मिल साथ सदा हो विजय युक्ति की
हो संजीव मुसीबत को कर देब हम बुदबुद
हारेगा सौ बार मनुज से टकरा हुदहुद 

मंगलवार, 21 जनवरी 2014

shatpadee: sanjiv

​​
षट्पदी :
संजीव 
*
सु मन कु मन से दूर रह, रचता मनहर काव्य
झाड़ू मन हर कर कहे,  निर्मलता संभाव्य
निर्मलता संभाव्य, सुमन से बगिया शोभित
पा सुगंध सब जग, होता है बरबस मोहित
कहे 'सलिल' श्रम सीकर से जो करे आचमन
उसकी जीवन बगिया में हों सुमन ही सुमन

facebook: sahiyta salila / sanjiv verma 'salil'

सोमवार, 28 अक्टूबर 2013

chitr par kavita: kundali -sanjiv


चित्र पर कविता: कुंडली
प्रथम पेट पूजा करें
संजीव

तस्वीर



प्रथम पेट पूजा करें, लक्ष्मी-पूजन बाद
मुँह में पानी आ रहा, सोच मिले कब स्वाद
सोच मिले कब स्वाद, भोग पहले खुद खा ले
दास राम का अधिक, राम से यह दिखला दे
कहे 'सलिल' कविराय, न चूकेंगे अवसर हम
बन घोटाला वीर, लगायें भोग खुद प्रथम

pratham pet pooja karen , lakshami poojan baad
munh men pani aa raha, soch mile kab swad
soch mile kab swad, bhog pahle khud khaa le
daas ram ka adhik ram se, yah dikhla de
kahe 'salil' kaviraay, n chookenge avsar hm
ban ghotala veer, lagayen bhog khud pratham
facebook: sahiyta salila / sanjiv verma 'salil'
​​

​​

शुक्रवार, 25 अक्टूबर 2013

shatpadi: vishdhar ki abhiram chhvi -sanjiv

एक षटपदी
विषधर की अभिराम छवि
संजीव
*
Photo: California Red-Sided Garter Snake.

विषधर की अभिराम छवि देख हुए हैरान
ज्यों नेता इस देश के दिखें न--- हैं शैतान
दिखें न हैं शैतान मोहकर जनगण का मन
संसद में जन सेवा का करते हैं मंचन
घपला करने का न चूकते अफसर अवसर
शासन और प्रशासन ही हैं असली विषधर
***

गुरुवार, 24 जनवरी 2013

सामयिक षटपदियाँ: संजीव 'सलिल'

सामयिक षटपदियाँ:
संजीव 'सलिल'
*
मानव के आचार का स्वामी मात्र विचार.
सद्विचार से पाइए, सुख-संतोष अपार..
सुख-संतोष अपार, रहे दुःख दूर आपसे.
जीवन होगा मुक्त, मोहमय महाताप से..
कहे 'सलिल' कुविचार, नाश करते दानव के.
भाग्य जागते निर्बल होकर भी मानव के..
***
हार न सकती मनीषा, पशुपति दें आशीष.
अपराजेय जिजीविषा, सदा साथ हों ईश..
सदा साथ हों ईश, कैंसर बाजी हारे.
आया है युवराज जीत, फिर ध्वज फहरा रे.
दुआ 'सलिल' की, मौत इस तरह मार न सकती.
भारत माता साथ, मनीषा हार न सकती..
*
शीश काटना उचित जब, रहे सामने युद्ध.
शीश झुकाना उचित यदि, मिलें सामने बुद्ध..
शुद्ध ह्रदय से कीजिए, मन में तनिक विचार.
शांति काल में शीश, क्यों काटें- अत्याचार..
दंड न अत्याचार का, दें- हों कुपित शशीश.
बदले में ले लीजिए, दुश्मन के सौ शीश..
*               
***