कुल पेज दृश्य

doha salila लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
doha salila लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

गुरुवार, 4 अक्टूबर 2018

doha salila

दोहा सलिला
मिली न मिलकर भी कभी, कहाँ छिपी तकदीर
जीवन बीता जा रहा, कब तक धारूँ धीर?
*
गुरु गुड़ चेला शर्करा, तोड़ मोह के पाश
पैर जमकर धरा पर, छुए नित्य आकाश
*
ऐसा भाव अभाव का, करा रहा आभास
पूनम से भी हो रहा अमावसी अहसास
*

doha salila

दोहा सलिला
*
लिखा बिन लिखे आज कुछ, पढ़ा बिन पढ़े आज।
केर-बेर के संग से, सधे न साधे काज।।
*
अर्थ न रहे अनर्थ में, अर्थ बिना सब व्यर्थ।
समझ न पाया किस तरह, समझा सकता अर्थ।।
*
सजे अधर पर जब हँसी, धन्य हो गयी आप।
पैमाना कोई नहीं, जो खुशियाँ ले नाप।।
*
सही करो तो गलत क्यों, समझें-मानें लोग?
गलत करो तो सही, कह; बढ़ा रहे हैं रोग।।
*
दिल के दिल में क्या छिपा, बेदिल से मत बोल।
संग न सँगदिल का करो, रह जाएगी झोल।।
*
प्राण गए तो देह के, अंग दीजिए दान।
जो मरते जी सकेंगे, ऐसे कुछ इंसान।।
*
कंकर भी शंकर बने, कर विराट का संग।
रंग नहीं बदरंग हो, अगर करो सत्संग।।
*
कृष्णा-कृष्णा सब करें, कृष्ण हँस रहे देख।
मैं जन्मा क्यों द्रुपदसुता,का होता उल्लेख?
*
मटक-मटक जो फिर रहे, अटक रहे हर ठौर।
फटक न; सटके सफलता, अटके; करिए गौर।।
*


३.८.२०१८, ७९९९५५९६१८

doha salila

दोहा सलिला
*
गुरु गुड़ चेला शर्करा, तोड़ मोह के पाश। 
पैर जमा कर धरा पर, नित्य छुए आकाश।।
*
संगीता हर श्वास थी, परिणीता हर आस। 
'सलिल' जिंदगी जिंदगी, तभी हुआ आभास।।
*  
श्वास-श्वास हो प्रदीपा, आस-आस हो दीप। 
जीवन-सागर से चुनें, जूझ सफलता-सीप।।

शनिवार, 29 सितंबर 2018

doha salila

दोहा सलिला 
*
श्याम-गौर में भेद क्या, हैं दोनों ही एक 
बुद्धि-ज्ञान के द्वैत को, मिथ्या कहे विवेक
*
राम-श्याम हैं एक ही, अंतर तनिक न मान 
परमतत्व गुणवान है, आदिशक्ति रसखान
*
कृष्ण कर्म की प्रेरणा, राधा निर्मल नेह 
सँग अनुराग-विराग हो, साधन है जग-देह
*
कण-कण में श्री कृष्ण हैं, देख सके तो देख 
करना काम अकाम रह, खींच भाग्य की रेख
*
मुरलीधर ने कर दिया, नागराज को धन्य 
फण पर पगरज तापसी, पाई कृपा अनन्य
*
आत्म शक्ति राधा अजर, श्याम सुदृढ़ संकल्प 
संग रहें या विलग हों, कोई नहीं विकल्प
*
हर घर में गोपाल हो, मातु यशोदा साथ 
सदाचार बढ़ता रहे, उन्नत हो हर माथ
*
मातु यशोदा चकित चित, देखें माखनचोर
दधि का भोग लगा रहा, होकर भाव विभोर
*

रविवार, 23 सितंबर 2018

doha salila

दोहा सलिला
*
मीरा का पथ रोकना, नहीं किसी को साध्य।
दिखें न लेकिन साथ हैं, पल-पल प्रभु आराध्य।।
*
श्री धर कर आचार्य जी, कहें करो पुरुषार्थ। 
तभी सुभद्रा विहँसकर, वरण करेगी पार्थ।।
*
सरस्वती-सुत पर रहे, अगर लक्ष्मी-दृष्टि। 
शक्ति मिले नव सृजन की, करें कृपा की वृष्टि।।
*
राम अनुज दोहा लिखें, सतसई सीता-राम। 
महाकाव्य रावण पढ़े, तब हो काम-तमाम।।

व्यंजन सी हो व्यंजना, दोहा रुचता खूब। 
जी भरकर आनंद लें, रस-सलिला में डूब।।
*
काव्य-सुधा वर्षण हुआ, श्रोता चातक तृप्त। 
कवि प्यासा लिखता रहे, रहता सदा अतृप्त।।
*
शशि-त्यागी चंद्रिका गह, सलिल सुशोभित खूब।  
घाट-बाट चुप निरखते, शास्वत छटा अनूप।।
*
 दीप जलाया भरत ने, भारत गहे प्रकाश।  
कीर्ति न सीमित धरा तक, बता रहा आकाश।।
*
राव वही जिसने गहा, रामानंद अथाह। 
नहीं जागतिक लोभ की, की किंचित परवाह। 
*
अविरल भाव विनीत कहँ, अहंकार सब ओर। 
इसीलिए टकराव हो, द्वेष बढ़ रहा घोर।।
*
तारे सुन राकेश के, दोहे तजें न साथ। 
गयी चाँदनी मायके, खूब दुखा जब माथ।।

कथ्य रखे दोहा अमित, ज्यों आकाश सुनील। 
नहीं भाव रस बिंब में, रहे लोच या ढील।।
*
वंदन उमा-उमेश का, दोहा करता नित्य।
कालजयी है इसलिए, अब तक छंद अनित्य।।
*
कविता की आराधना, करे भाव के साथ। 
जो उस पर ही हो सदय, छंद पकड़ता हाथ।।
*
कवि-प्रताप है असीमित, नमन करे खुद ताज। 
कवि की लेकर पालकी, चलते राजधिराज।।  
*
अनिल अनल भू नभ सलिल, पञ्च तत्वमय सृष्टि। 
कथ्य, भाव रस बिंब लय, करें सत्य की वृष्टि।।
*
करे कल्पना कल्पना, दोहे में साकार। 
पाठक पढ़ समझे तभी, भावों का व्यापार।।
*
दूर कहीं क्या घट रहा, संजय पाया देख। 
दोहा बिन देखे करे, शब्दों से उल्लेख।।
*
बेदिल से बेहद दुखी, दिल-डॉक्टर मिल बैठ। 
कहें बिना दिल किस तरह, हो अपनी घुसपैठ।।
*
मुक्तक खुद में पूर्ण है, होता नहीं अपूर्ण। 
छंद बिना हो किस तरह, मुक्तक कोई पूर्ण।।
*
तनहा-तनहा फिर रहा, जो वह है निर्जीव।
जो मनहा होकर फिर, वही हुआ संजीव।।
*
पूर्ण मात्र परमात्म है, रचे सृष्टि संपूर्ण। 
मानव की रचना सकल, कहें लोग अपूर्ण।।
*
छंद सरोवर में खिला, दोहा पुष्प सरोज।
प्रियदर्शी प्रिय दर्श कर, चेहरा छाए ओज।.
*
किस लय में दोहा पढ़ें, समझें अपने आप। 
लय जाए तब आप ही, शब्द-शब्द में व्याप।।
*
कृष्ण मुरारी; लाल हैं, मधुकर जाने सृष्टि। 
कान्हा जानें यशोदा, अपनी-अपनी दृष्टि।। 
 *
नारायण देते विजय, अगर रहे यदि व्यक्ति। 
भ्रमर न थकता सुनाकर, सुनें स्नेहमय उक्ति।।
*
शकुंतला हो कथ्य तो, छंद बने दुष्यंत। 
भाव और लय यों रहें, जैसे कांता-कंत।।
*
छंद समुन्दर में खिले, दोहा पंकज नित्य। 
तरुण अरुण वंदन करे, निरखें रूप अनित्य।।
*
 विजय चतुर्वेदी वरे, निर्वेदी की मात। 
जिसका जितना अध्ययन, उतना हो विख्यात।।
*
श्री वास्तव में गेह जो, कृष्ण बने कर कर्म। 
आस न फल की पालता, यही धर्म का मर्म।।
*
राम प्रसाद मिले अगर, सीता सा विश्वास। 
जो विश्वास न कर सके, वह पाता संत्रास।।
*
२३.९.२०१८      
      





















शुक्रवार, 3 अगस्त 2018

doha salila

दोहा सलिला 
*
लिखा बिन लिखे आज कुछ, पढ़ा बिन पढ़े आज 
केर-बेर के संग से, सधे न साधे काज
*
अर्थ न रहे अनर्थ में, अर्थ बिना सब व्यर्थ 
समझ न पाया किस तरह, समझा सकता अर्थ
*
सजे अधर पर जब हँसी, धन्य हो गयी आप 
पैमाना कोई नहीं, जो खुशियाँ ले नाप
*
सही करो तो गलत क्यों, समझें-मानें लोग? 
गलत करो तो सही, कह; बढ़ा रहे हैं रोग

*
दिल के दिल में क्या छिपा, बेदिल से मत बोल 
संग न सँगदिल का करो, रह जाएगी झोल
*
प्राण गए तो देह के, अंग दीजिए दान
जो मरते जी सकेंगे, ऐसे कुछ इंसान

*
कंकर भी शंकर बने, कर विराट का संग 
रंग नहीं बदरंग हो, अगर करो सत्संग
*
कृष्णा-कृष्णा सब करें, कृष्ण हँस रहे देख
मैं जन्मा क्यों द्रुपदसुता,का होता उल्लेख?

*
मटक-मटक जो फिर रहे, अटक रहे हर ठौर 
फटक न;  सटके सफलता, अटके; करिए गौर।  
*
३.८.२०१८, ७९९९५५९६१८ 
salil.sanjiv@gmail.com  

बुधवार, 25 जुलाई 2018

doha salila

दोहा सलिला;doha salila
रवि-वसुधा के ब्याह में...
संजीव 'सलिल'
*
रवि-वसुधा के ब्याह में, लाया नभ सौगात.
'सदा सुहागन' तुम रहो, ]मगरमस्त' अहिवात..
सूर्य-धरा को समय से, मिला चन्द्र सा पूत.
सुतवधु शुभ्रा 'चाँदनी', पुष्पित पुष्प अकूत..
इठला देवर बेल से बोली:, 'रोटी बेल'.
देवर बोला खीझकर:, 'दे वर, और न खेल'..
'दूधमोगरा' पड़ोसी, हँसे देख तकरार.
'सीताफल' लाकर कहे:, 'मिल खा बाँटो प्यार'..
भोले भोले हैं नहीं, लीला करे अनूप.
बौरा गौरा को रहे, बौरा 'आम' अरूप..
मधु न मेह मधुमेह से, बच कह 'नीबू-नीम'.
जा मुनमुन को दे रहे, 'जामुन' बने हकीम..
हँसे पपीता देखकर, जग-जीवन के रंग.
सफल साधना दे सुफल, सुख दे सदा अनंग..
हुलसी 'तुलसी' मंजरित, मुकुलित गाये गीत.
'चंपा' से गुपचुप करे, मौन 'चमेली' प्रीत..
'पीपल' पी पल-पल रहा, उन्मन आँखों जाम.
'जाम' 'जुही' का कर पकड़, कहे: 'आइये वाम'..
बरगद बब्बा देखते, सूना पनघट मौन.
अमराई-चौपाल ले, आये राई-नौन..
कहा लगाकर कहकहा, गाओ मेघ मल्हार.
जल गगरी पलटा रहा, नभ में मेघ कहार..
*
salil.sanjiv@gmail.com
#दिव्यनर्मदा
#हिंदी_ब्लॉगर

शनिवार, 7 जुलाई 2018

दोहा सलिला

दोहा सलिला:
*
अधिक कोण जैसे जिए, नाते हमने मीत। 
न्यून कोण हैं रिलेशन, कैसे पाएँ प्रीत।। 
*
हाथ मिला; भुज भेंटिए, गले मिलें रह मौन। 
किसका दिल आया कहाँ बतलायेगा कौन?
*
रिमझिम को जग देखता, रहे सलिल से दूर।
रूठ गया जब सलिल तो, उतरा सबका नूर
*
माँ जैसा दिल सलिल सा, दे सबको सुख-शांति
ममता के आँचल तले, शेष न रहती भ्रांति
*
वाह, वाह क्या बात है, दोहा है रस-खान।
पढ़; सुन-गुण कर बन सके, काश सलिल गुणवान
*
आप कहें जो वह सही, एक अगर ले मान
दूजा दे दूरी मिटा, लोग कहें गुणवान
*
यह कवि सौभाग्य है, कविता हो नित साथ
चले सृजन की राह पर, लिए हाथ में हाथ
*
बात राज की एक है, दीप न हो नाराज
ज्योति प्रदीपा-वर्तिका, अलग न करतीं काज
*
कभी मान-सम्मान दें, कभी लाड़ या प्यार
जिएँ ज़िंदगी साथ रह, करें मान-मनुहार
*
साथी की सब गलतियाँ, विहँस कीजिए माफ़
बात न दिल पर लें कभी, कर सच्चा इंसाफ
*
साथ निभाने का यही, पाया एक उपाय
आपस में बातें करें, बंद न हो अध्याय
*
खुद को जो चाहे कहो, दो न और को दोष
अपना गुस्सा खुद पियो, व्यर्थ गैर पर रोष
*
सबक सृजन से सच मिला, आएगा नित काम
नाम मिले या मत मिले, करे न प्रभु बदनाम
*
जो न सके कुछ जान वह, सब कुछ लेता जान
जो भी शब्दातीत है, सत्य वही लें मान
*
ममता छिप रहती नहीं, लिखा न जाता प्यार। 
जिसका मन खाली घड़ा, करे शब्द-व्यवहार।।
*
७.७.२०१८, ७९९९५५९६१८  

शनिवार, 30 जून 2018

doha salila

दोहा सलिला
*
नहीं कार्य का अंत है, नहीं कार्य में तंत। माया है सारा जगत, कहते ज्ञानी संत।।
*
आता-जाता कब समय, आते-जाते लोग। जो चाहें वह कार्य कर, नहीं मनाएँ सोग।।
*
अपनी-पानी चाह है, अपनी-पानी राह। करें वही जो मन रुचे, पाएँ उसकी थाह।।
*
एक वही है चौधरी, जग जिसकी चौपाल। विनय उसी से सब करें, सुन कर करे निहाल।।
*
जीव न जग में उलझकर, देखे उसकी ओर। हो संजीव न चाहता, हटे कृपा की कोर।।
*
मंजुल मूरत श्याम की, कण-कण में अभिराम। देख सके तो देख ले, करले विनत प्रणाम।।
*
कृष्णा से कब रह सके, कृष्ण कभी भी दूर।
उनके कर में बाँसुरी, इनका मन संतूर।।
*
अपनी करनी कर सदा, कथनी कर ले मौन। किस पल उससे भेंट हो, कह पाया कब-कौन??
*
करता वह, कर्ता वही, मानव मात्र निमित्त। निर्णायक खुद को समझ, भरमाता है चित्त।।
***
३०.६.२०१८, ७९९९५५९६१८, ९४२५१८३२४४

शनिवार, 16 जून 2018

दोहा सलिला

दोहा सलिला
*
कलकल सुन कर कल मिले. कल बनकर कल नष्ट।
कल बिसरा बेकल न हो, अकल मिटाए कष्ट।।
*
शब्द शब्द में भाव हो, भाव-भाव में अर्थ।
पाठक पढ़ सुख पा सके, वरना दोहा व्यर्थ।।
*
मेरा नाम अनाम हो, या हो वह गुमनाम।
देव कृपा इतनी करें, हो न सके बदनाम।।
*
चेले तो चंचल रहें, गुरु होते गंभीर।
गुरु गंगा बहते रहे, चेले बैठे तीर।।
*
चेला गुरु का गुरु बने, पल में रचकर स्वांग।
हँस न करता शोरगुल, मुर्गा देता बांग।।
*
१६.६.२०१८ -, ७९९९५५९६१८


रविवार, 20 मई 2018

दोहा सलिला: करनाटक

विधा: दोहा
मुहावरा: मन चाही कबहूँ नहीं
*
कर नाटक पछता रहे, पद के दावेदार.
करनाटक में कट गई, नाक हुए चित यार.
जनादेश मतभेद दें, भुला मिलाएँ हाथ.
कमल-कोंग्रेसी करें, जनसेवा मिल साथ.
जनादेश समझें नहीं, बढ़ा रखी तकरार.
झट कुमारस्वामी बढ़ा, बना सके सरकार.
एक-एक ग्यारह हुए, एक अकेला ढेर.
अमित-लोभ की खुल गई, पोल नहीं अंधेर.
मन चाही कबहूँ नहीं, प्रभु चाही तत्काल.
चौबे छब्बे बन चले, डूब दुबे फिलहाल.
*
२०.८.२०१८, ७९९९५५९६१८
salil.sanjiv@gmail.com

शनिवार, 12 मई 2018

दोहा सलिला

दोहा सलिला:
*
अनिल अनल भू नभ 'सलिल', पंचतत्वमय सृष्टि। 
मनुज शत्रु बन स्वयं का, मिटा रहा खो दृष्टि
। 
*
'सलिल' न हो तो किस तरह, हो निर्जीव सजीव?
पंचतत्व संतुलित रख, हो शतदल राजीव
*
जीवन चक्र चला सलिल, बरसे बह हो भाप। 
चक्र रोककर सोचिए, जी पाएँगे आप?
*
सलिल न तो मरुथल जगत, मिटे किस तरह प्यास? 
हास न होगी अधर पर, शेष न होगी आस
अगर चाहते आप हो, सकल सृष्टि संजीव। 
स्वच्छ सलिल-धारा रखें, खुश हों करुणासींव।  
*

गुरुवार, 26 अप्रैल 2018

दोहा सलिला

 दोहा सलिला:
चर्चित होते क्यों सदा, अपराधी-अपराध?
शब्द साधकों को नहीं, पल भी मिले अबाध

*
नेता नायक संत के, सत्कर्मों को भूल
समाचार बनते सलिल', हैं कुकर्म दे तूल
*

बगिया में दोनों मिलें, कुछ काँटे कुछ फूल
मनुज फेंककर कमल को, खोजे सिर्फ बबूल
*
सूरज में भी ताप है, चंदा में भी दाग।
अमिय चंद्र के साथ शिव, रखते विषधर नाग
*
तम में साया भी नहीं, देता पल भर साथ।
फिर मायापति किस तरह, दें माता तज साथ?
*
मनुज न बंधन चाहता, छंद नहीं निर्बंध।
लेकिन फिर भी अमर है, दोनों का संबंध
*
होता है अंधेर ही, अगर न्याय में देर।
दे उजास खुद जल मरे, दीप छिपा अंधेर
*
मलिन नहीं होती नदी, उद्गम से ही आप।
मानव दूषित कर कहे, प्रभु! मेटो, अभिशाप
*
कर्म किया है तो मिले, निश्चय उसका दंड।
भोग लगाकर हो न तू, और अधिक उद्दंड
*
प्रभु निर्मम-निष्पक्ष है, सत्य अगर ले जान।
सर न झुकाए दूर से, कभी उसे इंसान
*
'ठाकुर' ने जैसे किया, आकर नम्र प्रणाम।
ठाकुर जी मुस्का दिए, आज पड़ा फिर काम
*
जान गया जो ब्रम्ह को, ब्राम्हण है वह मीत!
ब्रम्ह न जाने 'ब्राम्हण', जग की भ्रामक रीत
*
जात दिखा दर्शा गया, वह अपनी पहचान।
अंतर्मन से था पतित, चोला साधु समान
*
काया रच निज अंश रख, जब करता विधि वास।
तब होता 'कायस्थ' वह, जैसे सुमन-सुवास
*
धन की जाति न धर्म है, जैसे भी हो लूट।
वैश्य न वश में लोभ रख, रहा माथ निज कूट
*
सेवा कर प्रतिदान ले, शूद्र उसे पहचान
बिना स्वार्थ सेवा करे, जो वह देव समान
*
मेरे घर हो लक्ष्मी, काली तेरे द्वार।
तू ही ले-ले शारदा, मैं हूँ परम उदार
*
जिसका ईमां मुसलसल, मुसलमान लें जान।
चाहे वह गीता पढ़े, या पढ़ ले कुरआन
*
औरों के हित हेतु जो, लड़-सह ले तकलीफ।
सिक्ख वही जो चाहता, हो न तनिक तारीफ
*
जो मन-इन्द्रिय जीत ले, करे न संचय-लोभ।
जैन उसी को जानिए, नत हो गहें प्रबोध
*
त्याग-राग के मध्य में, चले समन्वय साध
बौद्ध न अति की ओर जा, कहे सत्य आराध
*