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बुधवार, 23 फ़रवरी 2011

दो यमकदार तेवरियाँ : ------- रमेश राज

दो यमकदार तेवरियाँ : ------- रमेश राज

दो यमकदार तेवरियाँ                                                                          

रमेश राज, संपादक तेवरीपक्ष, अलीगढ
*  
 १.
तन-चीर का उफ़ ये हरण, कपड़े बचे बस नाम को.
हमला हुआ अब लाज पै, अबला जपै बस राम को..

हर रोग अब तौ हीन सा, अति दीन सा, तौहीन सा.
हर मन तरसता आजकल, सुख से भरे पैगाम को.. 

क्या नाम इसका धरम ही?, जो धर मही जन गोद्ता.
इस मुल्क के पागल कहें सत्कर्म कत्ले-आम को..

उद्योग धंधे बंद हैं, मन बन, दहैं शोला सदृश.
हर और हहाका रही, अब जन तलाशें काम को..

अब आचरण बदले सभी, खुश आदतें बद ले सभी.
बीएस घाव ही मिलने सघन आगाज से अंजाम को..

२.

पलटी न बाजी गर यहाँ, दें मात बाजीगर यहाँ.
कल पीर में डूबे हुए होंगे सभी मंज़र यहाँ..

तुम छीन बैठे कौरवों, हम मंगाते हैं कौर वो
फिर वंश होगा आपका, कल को लहू से तर यहाँ..

दुर्भावना की कीच को, हम पै न फेंको, कीचको!.
कुंजर सरीखे भीम ही, अब भी मही पर वर यहाँ.. 


दुर्योधनों के बीच भीषम, आज भी सम मौन है. 
पर द्रौपदी के साथ हैं, बनकर हमीं गिरिधर यहाँ..  

अब पाएंगे हम जी तभी, जब साथ होगी जीत भी
हम चक्रव्यूहों में घिरे, दिन-रात ही अक्सर यहाँ.. 

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गुरुवार, 17 फ़रवरी 2011

मुक्तिका: कहने को संसार कहे ----- संजीव 'सलिल'

मुक्तिका: 

हम कैसे इस बात को मानें कहने को संसार कहे

संजीव 'सलिल'
*
सार नहीं कुछ परंपरा में, रीति-नीति निस्सार कहे.
हम कैसे इस बात को मानें, कहने को संसार कहे..

रिश्वत ले मुस्काकर नेता, उसको शिष्टाचार कहे.
जैसे वैश्या काम-क्रिया को, साँसों का सिंगार कहे..

नफरत के शोले धधकाकर, आग बर्फ में लगा रहा.
छुरा पीठ में भोंक पड़ोसी, गद्दारी को प्यार कहे..

लूट लिया दिल जिसने उसपर, हमने सब कुछ वार दिया.
अब तो फर्क नहीं पड़ता, युग इसे जीत या हार कहे..

चेला-चेली पाल रहा भगवा, अगवाकर श्रृद्धा को-
रास रचा भोली भक्तन सँग, पाखंडी उद्धार कहे..

जिनसे पद शोभित होता है, ऐसे लोग नहीं मिलते.
पद पा शोभा बढ़ती जिसकी, 'सलिल' उसे बटमार कहे..

लेना-देना लाभ कमाना, शासन का उद्देश्य हुआ.
फिर क्यों 'सलिल' प्रशासन कहते?, क्यों न महज व्यापार कहे?

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सोमवार, 20 दिसंबर 2010

घनाक्षरी : जवानी -- संजीव 'सलिल'

घनाक्षरी :
जवानी
संजीव 'सलिल'
*
१.
बिना सोचे काम करे, बिना परिणाम करे,
व्यर्थ ही हमेशा होती ऐसी कुर्बानी है.
आगा-पीछा सोचे नहीं, भूल से भी सीखे नहीं,
सच कहूँ नाम इसी दशा का नादानी है..
बूझ के, समझ के जो काम न अधूरा तजे-
मानें या न मानें वही बुद्धिमान-ज्ञानी है.
'सलिल' जो काल-महाकाल से भी टकराए-
नित्य बदलाव की कहानी ही जवानी है..
२.
लहर-लहर लड़े, भँवर-भँवर भिड़े,
झर-झर झरने की ऐसी ही रवानी है.
सुरों में निवास करे, असुरों का नाश करे,
आदि शक्ति जगती की मैया ही भवानी है.
हिमगिरि शीश चढ़े, सिन्धु पग धोये नित,
भारत की भूमि माता-मैया सुहानी है.
औरों के जो काम आये, संकटों को जीत गाए,
तम से उजाला जो उगाये वो जवानी है..
३.
नेता-अभिनेता जो प्रणेता हों समाज के तो,
भोग औ'विलास की ही बनती कहानी है.
अधनंगी नायिकाएं भूलती हैं फ़र्ज़ यह-
सादगी-सचाई की मशाल भी जलानी है.
निज कर्त्तव्य को न भूल 'सलिल' याद हो-
नींव के पाषाण की भी भूमिका निभानी है.
तभी संस्कृति कथा लिखती विकास की जब
दीप समाधान का जलती जब जवानी है..

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सोमवार, 13 दिसंबर 2010

एक रचना: ऐसा क्यों होता है? -- संजीव 'सलिल'

एक रचना:                                                                                        
ऐसा क्यों होता है?
संजीव 'सलिल'
*
ऐसा क्यों होता होता है ?...
*
रुपये लेकर जाता है जो वह आता है खाली हाथ.
खाली हाथ गया जो भीतर, धन पा करता ऊँचा माथ..
जो सच्चा वह क़र्ज़ चुकाता, जो लुच्चा खा जाता है-
प्रभु का कैसा न्याय? न हमको तनिक समझ में आता है.

कहे बैंक मैनेजर पहले ने धन अपना जमा किया.
दूजा बचत निकाल खा रहा, जैसे पीता तेल दिया..
क़र्ज़ चुकाकर ब्याज बचाता जो वह चतुर सयाना है.
क़र्ज़ पचा निकले दीवाला जिसका वह दीवाना है..

कौन बताये किसको क्यों, कब कहाँ और क्या होता है?
मन भरमाता है दिमाग कहकर ऐसा क्यों होता है ?...
*
जन्म-जन्म का लेखा-जोखा हमने कभी न देखा है.
उत्तर मिलता नहीं प्रश्न का, पृष्ठ बंद जो लेखा है..
सीमा तन की, काल-बाह्य जो वह हम देख नहीं पाते.
झुठलाते हैं बिन जाने ही, अनजाने ही कतराते..

कर्म न कोई निष्फल होता, वह पाता जो बोता है.
मिले अचानक तो हँसता मन, खो जाये तो रोता है..
विधि निर्मम-निष्पक्ष मगर हम उसको कृपानिधान कहें.
पूजा, भोग, चढ़ावा, व्रत से खुद को छल अभिमान करें..

जैसे को तैसा मिलता है, कोई न पाता-खोता है.
व्यर्थ पूछते हम जिस-तिससे कह ऐसा क्यों होता है ?...
*
जैसा औरों से चाहें हम, अपने संग व्यवहार करें.
वैसा ही हम औरों के संग, लेन-देन आचार करें..
हम सबमें है अंश उसी का, जिसका आदि न अंत कहीं.
सत्य समझ लें तो पायेगा कोई किसी से कष्ट नहीं..

ध्यान, धारणा फिर समाधि से सत्य समझ में आता है.
जो जितना गहरा डूबा वह उतना ऊपर जाता है..
पानी का बुलबुला किस तरह चट्टानों का सच जाने?
स्वीकारे अज्ञान न, लगता सत्य समूचा झुठलाने..

'सलिल' समय-सलिला में बहता ऊपर-नीचे होता है.
जान सके जो सत्य, बताते कब-कैसा-क्यों होता है??
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रविवार, 28 नवंबर 2010

गीत: चलते-चलते -- संजीव 'सलिल'

गीत:                                                                                  


चलते-चलते

संजीव 'सलिल'
*
चलते-चलते अटक रहे हैं.
मिलते-मिलते भटक रहे हैं.....
*
गति-मति की युति हुई अनछुई.
मंजिल पग ने छुई-अनछुई..
लट्ठम-लट्ठा सूत ना रुई-
दुनियादारी ठगी हो गयी..
ढलते-ढलते सटक रहे हैं.....
*
रीति-नीति से प्रीति नहीं है.
सत की सत्य प्रतीति नहीं है.
हाय असत से भीती नहीं है.
काव्य रचे पर गीति नहीं है..  
खुद को खुद ही खटक रहे हैं.....
*
भारी को भी आभारी हैं.
हे हरि!  अद्भुत लाचारी है.
दृष्टि हो गयी गांधारी है.
सृष्टि समूची व्यापारी है..
अनचाहा भी गटक रहे हैं.

******************
                      

शुक्रवार, 26 नवंबर 2010

मुक्तिका: सच्चा नेह ---संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:                                                                                                                                      
सच्चा नेह
संजीव 'सलिल'
*
तुमने मुझसे सच्चा नेह लगाया था.
पीट ढिंढोरा जग को व्यर्थ बताया था..

मेरे शक-विश्वास न तुमको ज्ञात तनिक.
सत-शिव-सुंदर नहीं पिघलने पाया था..

पूजा क्यों केवल निज हित का हेतु बनी?
तुझको भरमाता तेरा ही साया था..

चाँद दिखा आकर्षित तुझको किया तभी
गीत चाँदनी का तूने रच-गाया था..

माँगा हिन्दी का, पाया अंग्रेजी का
फूल तभी तो पैरों तले दबाया था..

प्रीत अमिय संदेह ज़हर है सच मानो.
इसे हृदय में उसको कंठ बसाया था..

जूठा-मैला किया तुम्हींने, निर्मल था
व्यथा-कथा को नहीं 'सलिल' ने गाया था..

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रविवार, 21 नवंबर 2010

एक गीत: मत ठुकराओ संजीव 'सलिल'

एक गीत:                                                                                                      

मत ठुकराओ

संजीव 'सलिल'
*
मत ठुकराओ तुम कूड़े को
कूड़ा खाद बना करता है.....
*
मेवा-मिष्ठानों ने तुमको
जब देखो तब ललचाया है.
सुख-सुविधाओं का हर सौदा-
मन को हरदम ही भाया है.

ऐश, खुशी, आराम मिले तो
तन नाकारा हो मरता है.
मत ठुकराओ तुम कूड़े को
कूड़ा खाद बना करता है.....
*
मेंहनत-फाके जिसके साथी,
उसके सर पर कफन लाल है.
कोशिश के हर कुरुक्षेत्र में-
श्रम आयुध है, लगन ढाल है.

स्वेद-नर्मदा में अवगाहन
जो करता है वह तरता है.
मत ठुकराओ तुम कूड़े को
कूड़ा खाद बना करता है.....
*
खाद उगाती है हरियाली.
फसलें देती माटी काली.
स्याह निशासे, तप्त दिवससे-
ऊषा-संध्या पातीं लाली.

दिनकर हो या हो रजनीचर
रश्मि-ज्योत्सना बन झरता है.
मत ठुकराओ तुम कूड़े को
कूड़ा खाद बना करता है.....
**************************

शनिवार, 6 नवंबर 2010

मुक्तिका : उपहार सुदीपों का... संजीव 'सलिल'

मुक्तिका :                                                            
उपहार सुदीपों का...
संजीव 'सलिल'
*
सारा जग पाये उपहार सुदीपोंका.
हर घर को भाये सिंगार सुदीपोंका..

रजनीचर से विहँस प्रभाकर गले मिले-
तारागण करते सत्कार सुदीपोंका..

जीते जी तम को न फैलने देते हैं
हम सब पर कितना उपकार सुदीपोंका..

जो माटी से जुडी हुई हैं झोपड़ियाँ.
उनके जीवन को आधार सुदीपोंका..

रखकर दिल में आग, अधर पर हास रखें.
'सलिल' सीख जीवन-व्यवहार सुदीपोंका..

*****************

गुरुवार, 4 नवंबर 2010

नरक चौदस / रूप चतुर्दशी पर विशेष रचना: --संजीव 'सलिल'

नरक चौदस / रूप चतुर्दशी पर विशेष रचना:                      

संजीव 'सलिल'
*
असुर स्वर्ग को नरक बनाते
उनका मरण बने त्यौहार.
देव सदृश वे नर पुजते जो
दीनों का करते उपकार..
अहम्, मोह, आलस्य, क्रोध,
भय, लोभ, स्वार्थ, हिंसा, छल, दुःख,
परपीड़ा, अधर्म, निर्दयता,
अनाचार दे जिसको सुख..
था बलिष्ठ-अत्याचारी
अधिपतियों से लड़ जाता था.
हरा-मार रानी-कुमारियों को
निज दास बनाता था..
बंदीगृह था नरक सरीखा
नरकासुर पाया था नाम.
कृष्ण लड़े, उसका वधकर
पाया जग-वंदन कीर्ति, सुनाम..
राजमहिषियाँ कृष्णाश्रय में
पटरानी बन हँसी-खिलीं.
कहा 'नरक चौदस' इस तिथि को
जनगण को थी मुक्ति मिली..
नगर-ग्राम, घर-द्वार स्वच्छकर
निर्मल तन-मन कर हरषे.
ऐसा लगा कि स्वर्ग सम्पदा
धराधाम पर खुद बरसे..
'रूप चतुर्दशी' पर्व मनाया
सबने एक साथ मिलकर.
आओ हम भी पर्व मनाएँ
दें प्रकाश दीपक बनकर..
'सलिल' सार्थक जीवन तब ही
जब औरों के कष्ट हरें.
एक-दूजे के सुख-दुःख बाँटें
इस धरती को स्वर्ग करें..

************************

बोध कथा : ''भाव ही भगवान है''. संजीव 'सलिल'

बोधकथा                                                    
''भाव ही भगवान है''.
संजीव 'सलिल'
*
एक वृद्ध के मन में अंतिम समय में नर्मदा-स्नान की चाह हुई. लोगों ने बता दिया की नर्मदा जी अमुक दिशा में कोसों दूर बहती हैं, तुम नहीं जा पाओगी. वृद्धा न मानी... भगवान् का नाम लेकर चल पड़ी...कई दिनों के बाद उसे एक नदी... उसने 'नरमदा तो ऐसी मिलीं रे जैसे मिल गै मतारे औ' बाप रे' गाते हुए परम संतोष से डुबकी लगाई. कुछ दिन बाद साधुओं का एक दल आया... शिष्यों ने वृद्धा की खिल्ली उड़ाते हुए बताया कि यह तो नाला है. नर्मदा जी तो दूर हैं हम वहाँ से नहाकर आ रहे हैं. वृद्धा बहुत उदास हुई... बात गुरु जी तक पहुँची. गुरु जी ने सब कुछ जानने के बाद, वृद्धा के चरण स्पर्श कर कहा : 'जिसने भाव के साथ इतने दिन नर्मदा जी में नहाया उसके लिए मैया यहाँ न आ सकें इतनी निर्बल नहीं हैं. मैया तुम्हें नर्मदा-स्नान का पुण्य है लेकिन जो नर्मदा जी तक जाकर भी भाव का अभाव मिटा नहीं पाया उसे नर्मदा-स्नान का पुण्य नहीं है. मैया! तुम कहीं मत जाओ, माँ नर्मदा वहीं हैं जहाँ तुम हो.''

'कंकर-कंकर में शंकर', 'मन चंगा तो कठौती में गंगा' का सत्य भी ऐसा ही है. 'भाव का भूखा है भगवान' जैसी लोकोक्ति इसी सत्य की स्वीकृति है. जिसने इस सत्य को गह लिया उसके लिये 'हर दिन होली, रात दिवाली' हो जाती है. 
****************

रविवार, 31 अक्टूबर 2010

हिंदी शब्द सलिला : २०          
संजीव 'सलिल'*
संकेत : अ.-अव्यय, अर. अरबी, अक्रि.-अकर्मक क्रिया, अप्र.-अप्रचलित, अर्थ.-अर्थशास्त्र, अलं.- अलंकार, अल्प-अल्प (लघुरूप) सूचक, आ.-आधुनिक, आयु.-आयुर्वेद, इ.-इत्यादि, इब.-इबरानी, उ. -उर्दू, उदा.-उदाहरण, उप.-उपसर्ग, उपनि.-उपनिषद, अं.-अंगिका, अंक.-अंकगणित, इ.-इंग्लिश/अंगरेजी, का.-कानून, काम.-कामशास्त्र, क्व.-क्वचित, ग.-गणित, गी.-गीता, गीता.-गीतावली, तुलसी-कृत, ग्रा.-ग्राम्य, ग्री.-ग्रीक., चि.-चित्रकला, छ.-छतीसगढ़ी, छं.-छंद, ज.-जर्मन, जै.-जैन साहित्य, ज्या.-ज्यामिति, ज्यो.-ज्योतिष, तं.-तंत्रशास्त्र, ति.-तिब्बती, तिर.-तिरस्कारसूचक, दे.-देशज, देव.-देवनागरी, ना.-नाटक, न्या.-न्याय, पा.-पाली, पारा.- पाराशर संहिता, पु.-पुराण, पुल.-पुल्लिंग, पुर्त. पुर्तगाली, पुरा.-पुरातत्व, प्र.-प्रत्यय, प्रा.-प्राचीन, प्राक.-प्राकृत, फा.-फ़ारसी, फ्रे.-फ्रेंच, ब.-बघेली, बर.-बर्मी, बहु.-बहुवचन, बि.-बिहारी, बुं.-बुन्देलखंडी, बृ.-बृहत्संहिता, बृज.-बृजभाषा  बो.-बोलचाल, बौ.-बौद्ध, बं.-बांग्ला/बंगाली, भाग.-भागवत/श्रीमद्भागवत, भूक्रि.-भूतकालिक क्रिया, मनु.-मनुस्मृति, महा.-महाभारत, मी.-मीमांसा, मु.-मुसलमान/नी, मुहा. -मुहावरा,  यू.-यूनानी, यूरो.-यूरोपीय, योग.योगशास्त्र, रा.-रामचन्द्रिका, केशवदास-कृत, राम.- रामचरितमानस-तुलसीकृत, रामा.- वाल्मीकि रामायण, रा.-पृथ्वीराज रासो, ला.-लाक्षणिक, लै.-लैटिन, लो.-लोकमान्य/लोक में प्रचलित, वा.-वाक्य, वि.-विशेषण, विद.-विदुरनीति, विद्या.-विद्यापति, वे.-वेदान्त, वै.-वैदिक, व्यं.-व्यंग्य, व्या.-व्याकरण, शुक्र.-शुक्रनीति, सं.-संस्कृत/संज्ञा, सक्रि.-सकर्मक क्रिया, सर्व.-सर्वनाम, सा.-साहित्य/साहित्यिक, सां.-सांस्कृतिक, सू.-सूफीमत, सूर.-सूरदास, स्त्री.-स्त्रीलिंग, स्मृ.-स्मृतिग्रन्थ, ह.-हरिवंश पुराण, हिं.-हिंदी.      
'अग' से प्रारंभ शब्द : ७.
संजीव 'सलिल'*
अग्निक- पु. सं. इंद्रगोप, बीरबहूटी, एक पौधा, साँप की एक जाति.
अग्निमान/मत- पु. सं. विधि अनुसार अग्न्याधान करनेवाला द्विज, अग्निहोत्री.
अग्नीध्र- पु. सं. यज्ञाग्नि जलानेवाला ऋत्विक, ब्रम्हा, यज्ञ, होम, स्वायंभुव मनु का एक पुत्र.  
अग्न्यगार/अग्न्यागार- पु. सं. यज्ञाग्नि रखने का स्थान.
अग्न्यस्त्र/अग्न्यास्त्र- पु. सं. मन्त्रप्रेरित बाण/तीर जिससे आग निकले, अग्निचालित अस्त्र बंदूक, रायफल इ.,तमंचा, पिस्तौल इ., तोप, मिसाइल आदि.
अग्न्याधा- पु.सं. वेद मन्त्र द्वारा अग्नि की स्थापना, अग्निहोत्र.
अग्न्यालय- पु. सं. देखें अग्न्यागार.
अग्न्याशय- पु. सं. जठराग्नि का स्थान.
अग्न्याहित- पु. सं. अग्निहोत्री, साग्निक.
अग्न्युत्पात- पु. सं. अग्निकाण्ड, उल्कापात.
अग्न्युत्सादी/दिन- वि. सं. यज्ञाग्नि को बुझने देनेवाला.
अग्न्युद्धार- पु. सं. दो अरणिकाष्ठों को रगड़कर अग्नि उत्पन्न करना.  
अग्न्युपस्थान- पु.सं. अग्निहोत्र के अंत में होनेवाली पूजा/मन्त्र.
अग्य- वि. स्त्री. दे. देखें अज्ञ.
अग्या/आग्या- स्त्री. दे. देखें आज्ञा.
अग्यारी- स्त्री. आग में गुड़/दशांग आदि डालना, अग्यारी-पात्र.
अग्र- वि. सं. अगला, पहला, मुख्य, अधिक. अ. आगे. पु. अगला भाग, नोक, शिखर, अपने वर्ग का सबसे अच्छा पदार्थ, बढ़-चढ़कर होना, उत्कर्ष, लक्ष्य आरंभ, एक तौल, आहार की के मात्रा, समूह, नायक.-कर-पु. हाथ का अगला हिस्सा, उँगली, पहली किरण,-- पु. नेता, नायक, मुखिया.-गण्य-वि. गिनते समय प्रथम, मुख्य, पहला.--गामी/मिन-वि. आगे चलनेवाला. पु. नायक, अगुआ, स्त्री. अग्रगामिनी.-दल-पु. फॉरवर्ड ब्लोक भारत का एक राजनैतिक दल जिसकी स्थापना नेताजी सुभाषचन्द्र बोसने की थी, सेना की अगली टुकड़ी,.--वि. पहले जन्मा हुआ, श्रेष्ठ. पु. बड़ा भाई, ब्राम्हण, अगुआ.-जन्मा/जन्मन-पु. बड़ा भाई, ब्राम्हण.-जा-स्त्री. बड़ी बहिन.-जात/ जातक -पु. पहले जन्मा, पूर्व जन्म का.-जाति-स्त्री. ब्राम्हण.-जिव्हा-स्त्री. जीभ का अगला हिस्सा.-णी-वि. आगे चलनेवाला, प्रथम, श्रेष्ठ, उत्तम. पु. नेता, अगुआ, एक अग्नि.-तर-वि. और आगे का, कहे हुए के बाद का, फरदर इ.-दाय-अग्रिम देय, पहले दिया जानेवाला, बयाना, एडवांस, इम्प्रेस्ट मनी.-दानी/निन- पु. मृतकके निमित्त दिया पदार्थ/शूद्रका दान ग्रहण करनेवाला निम्न/पतित ब्राम्हण,-दूत- पु. पहले से  पहुँचकर किसी के आने की सूचना देनेवाला.-निरूपण- पु. भविष्य-कथन, भविष्यवाणी, भावी. -सुनहु भरत भावी प्रबल. राम.,-पर्णी/परनी-स्त्री. अजलोमा का वृक्ष.-पा- सबसे पहले पाने/पीनेवाला.-पाद- पाँव का अगला भाग, अँगूठा.-पूजा- स्त्री. सबसे पहले/सर्वाधिक पूजा/सम्मान.-पूज्य- वि. सबसे पहले/सर्वाधिक सम्मान.-प्रेषण-पु. देखें अग्रसारण.-प्रेषित-वि. पहले से भेजना, उच्चाधिकारी की ओर आगे भेजना, फॉरवर्डेड इ.-बीज- पु. वह वृक्ष जिसकी कलम/डाल काटकर लगाई जाए. वि. इस प्रकार जमनेवाला पौधा.-भाग-पु. प्रथम/श्रेष्ठ/सर्वाधिक/अगला भाग -अग्र भाग कौसल्याहि दीन्हा. राम., सिरा, नोक, श्राद्ध में पहले दी जानेवाली वस्तु.-भागी/गिन-वि. प्रथम भाग/सर्व प्रथम  पाने का अधिकारी.-भुक/-वि. पहले खानेवाला, देव-पिटर आदि को खिलाये बिना खानेवाला, पेटू.-भू/भूमि-स्त्री. लक्ष्य, माकन का सबसे ऊपर का भाग, छत.--महिषी-स्त्री. पटरानी, सबसे बड़ी पत्नि/महिला.-मांस-पु. हृदय/यकृत का रक रोग.-यान-पु. सेना की अगली टुकड़ी, शत्रु से लड़ने हेतु पहले जानेवाला सैन्यदल. वि. अग्रगामी.-यायी/यिन वि. आगे बढ़नेवाला, नेतृत्व करनेवाला-योधी/धिन-पु. सबसे आगे बढ़कर लड़नेवाला, प्रमुख योद्धा.-लेख- सबसे पहले/प्रमुखता से छपा लेख, सम्पादकीय, लीडिंग आर्टिकल इ.,-लोहिता-स्त्री. चिल्ली शाक.-वक्त्र-पु. चीर-फाड़ का एक औज़ार.-वर्ती/तिन-वि. आगे रहनेवाला.-शाला-स्त्री. ओसारा, सामने की परछी/बरामदा, फ्रंट वरांडा इं.-संधानी-स्त्री. कर्मलेखा, यम की वह पोथी/पुस्तक जिसमें जीवों के कर्मों का लिखे जाते हैं.-संध्या-स्त्री. प्रातःकाल/भोर.-सर-वि. पु. आगेजानेवाला, अग्रगामी, अगुआ, प्रमुख, स्त्री. अग्रसरी.-सारण-पु. आगे बढ़ाना, अपनेसे उच्च अधिकारी की ओर भेजना, अग्रप्रेषण.-सारा-स्त्री. पौधे का फलरहित सिरा.-सारित-वि. देखें अग्रप्रेषित.-सूची-स्त्री. सुई की नोक,  प्रारंभ में लगी सूची, अनुक्रमाणिका.-सोची-वि. समय से पहले/पूर्व सोचनेवाला, दूरदर्शी. -अग्रसोची सदा सुखी मुहा.,-स्थान-पहला/प्रथम स्थान.--हर-वि. प्रथम दीजानेवाली/देय वस्तु.-हस्त-पु. हाथ का अगला भाग, उँगली, हाथी की सूंड़  की नोक.-हायण-पु. अगहन माह,-हार-पु. राजा/राज्य की प्र से ब्राम्हण/विद्वान को निर्वाहनार्थ मिलनेवाला भूमिदान, विप्रदान हेतु खेत की उपज से निकाला हुआ अन्न.
अग्रजाधिकार- पु. देखें ज्येष्ठाधिकार.
अग्रतः/तस- अ. सं. आगे, पहले, आगेसे.
अग्रवाल- पु. वैश्यों का एक वर्गजाति, अगरवाल.
अग्रश/अग्रशस/अग्रशः-अ. सं. आरम्भ से ही.
अग्रह- पु.संस्कृत ग्रहण न करना, गृहहीन, वानप्रस्थ.              ----------निरंतर                                                                                                                 

गुरुवार, 28 अक्टूबर 2010

बालगीत: अनुष्का संजीव 'सलिल'

बालगीत:

अनुष्का

संजीव 'सलिल'
*
(लोस एंजिल्स अमेरिका से अपनी मम्मी रानी विशाल के साथ ददिहाल-ननिहाल भारत आई नन्हीं अनुष्का के लिए है यह गीत)

 लो भारत में आई अनुष्का.
सबके दिल पर छाई अनुष्का.

यह परियों की शहजादी है.
खुशियाँ अनगिन लाई अनुष्का..

है नन्हीं, हौसले बड़े हैं.
कलियों सी मुस्काई अनुष्का..

दादा-दादी, नाना-नानी,
मामा के मन भाई अनुष्का..

सबसे मिल मम्मी क्यों रोती?
सोचे, समझ न पाई अनुष्का..

सात समंदर दूरी कितनी?
कर फैला मुस्काई अनुष्का..

जो मन भाये वही करेगी.
रोको, हुई रुलाई अनुष्का..

मम्मी दौड़ी, पकड़- चुपाऊँ.  
हाथ न लेकिन आई अनुष्का..

ठेंगा दिखा दूर से हँस दी .
भरमा मन भरमाई अनुष्का..

**********************

नवगीत : मन की महक --- संजीव 'सलिल'

नव गीत

मन की महक

संजीव 'सलिल'
*
मन की महक
बसी घर-अँगना
बनकर बंदनवार...
*
नेह नर्मदा नहा,
छाछ पी, जमुना रास रचाये.
गंगा 'बम भोले' कह चम्बल
को हँस गले लगाये..
कहे : 'राम जू की जय'
कृष्णा-कावेरी सरयू से-
साबरमती सिन्धु सतलज संग
ब्रम्हपुत्र इठलाये..

लहर-लहर
जन-गण मन गाये,
'सलिल' करे मनुहार.
मन की महक
बसी घर-अँगना
बनकर बंदनवार...
*
विन्ध्य-सतपुड़ा-मेकल की,
हरियाली दे खुशहाली.
काराकोरम-कंचनजंघा ,
नन्दादेवी आली..
अरावली खासी-जयंतिया,
नीलगिरी, गिरि झूमें-
चूमें नील-गगन को, लूमें
पनघट में मतवाली.

पछुआ-पुरवैया
गलबहियाँ दे
मनायें त्यौहार.
मन की महक
बसी घर-अँगना
बनकर बंदनवार...
*
चूँ-चूँ चहक-चहक गौरैया
कहे हो गयी भोर.
सुमिरो उसको जिसने थामी
सब की जीवन-डोर.
होली ईद दिवाली क्रिसमस
गले मिलें सुख-चैन
मिला नैन से नैन,
बसें दिल के दिल में चितचोर.

बाज रहे
करताल-मंजीरा
ठुमक रहे करतार.
मन की महक
बसी घर-अँगना
बनकर बंदनवार...
****************

सोमवार, 25 अक्टूबर 2010

मुक्तिका: आँख में संजीव 'सलिल

मुक्तिका:

आँख में

संजीव 'सलिल'
*
जलती, बुझती न, पलती अगन आँख में.
सह न पाता है मन क्यों तपन आँख में ??

राम का राज लाना है कहते सभी.
दीन की कोई देखे  मरन आँख में..

सूरमा हो बड़े, सारे जग से लड़े.
सह न पाए तनिक सी चुभन आँख में..

रूप ऊषा का निर्मल कमलवत खिला
मुग्ध सूरज हुआ ले किरन आँख में..

मौन कैसे रहें?, अनकहे भी कहें-
बस गये हैं नयन के नयन आँख में..

ढाई आखर की अँजुरी लिये दिल कहे
दिल को दिल में दो अशरन शरन आँख में..

ज्यों की त्यों रह न पायी, है चादर मलिन
छवि तुम्हारी है तारन-तरन आँख में..

कर्मवश बूँद बन, गिर, बहा, फिर उड़ा.
जा मिला फिर 'सलिल' ले लगन आँख में..

साँवरे-बाँवरे रह न अब दूर रख-
यह 'सलिल' ही रहे आचमन, आँख में..

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बुधवार, 20 अक्टूबर 2010

बाल कविता: कोयल-बुलबुल की बातचीत --- संजीव 'सलिल'

बाल कविता:

कोयल-बुलबुल की बातचीत

संजीव 'सलिल'
*
कुहुक-कुहुक कोयल कहे: 'बोलो मीठे बोल'.
चहक-चहक बुलबुल कहे: 'बोल न, पहले तोल'..

यह बोली: 'प्रिय सत्य कह, कड़वी बात न बोल'.
वह बोली: 'जो बोलना उसमें मिसरी घोल'.

इसका मत: 'रख बात में कभी न अपनी झोल'.
उसका मत: 'निज गुणों का कभी न पीटो ढोल'..


इसके डैने कर रहे नभ में तैर किलोल.
वह फुदके टहनियों पर, कहे: 'कहाँ भू गोल?'..

यह पूछे: 'मानव न क्यों करता सच का मोल.
वह डांटे: 'कुछ काम कर, 'सलिल' न नाहक डोल'..

***************

शुक्रवार, 15 अक्टूबर 2010

विजयादशमी पर विशेष : आओ हम सब राम बनें --- डॉ. अ. कीर्तिवर्धन

विजयादशमी पर विशेष :
 
आओ हम सब राम बनें
 
डॉ. अ. कीर्तिवर्धन, मुजफ्फरपुर
*
त्रेता युग मे राम हुए थे
रावण का संहार किया
द्वापर मे श्री कृष्ण आ गए
कंस का बंटाधार किया ।
कलियुग भी है राह देखता
किसी राम कृष्ण के आने की
भारत की पावन धरती से
दुष्टों को मार भगाने की।
आओ हम सब राम बनें
कुछ लक्ष्मण सा भाव भरें
नैतिकता और बाहुबल से
आतंकवाद को खत्म करें।
एक नहीं लाखों रावण हैं
जो संग हमारे रहते
दहेज -गरीबी- अ शिक्षा का
कवच चढाये बैठे हैं।
कुम्भकरण से नेता बैठे
स्वार्थों की रुई कान मे डाल
मारीच से छली अनेकों
राष्ट्र प्रेम का नही है ख्याल ।
शीघ्र एक विभिक्षण ढूँढो
नाभि का पता बताएगा
देश भक्ति के एक बाण से
रावण का नाश कराएगा।
******
09911323732

हिंदी शब्द सलिला : ७ अ से प्रारंभ होनेवाले शब्द : ७ ---संजीव 'सलिल'

हिंदी शब्द सलिला : ७  

संजीव 'सलिल'
*
संकेत : अ.-अव्यय, अर. अरबी, अक्रि.-अकर्मक क्रिया, अप्र.-अप्रचलित, अर्थ.-अर्थशास्त्र, अलं.- अलंकार, अल्प-अल्प (लघुरूप) सूचक, आ.-आधुनिक, आयु.-आयुर्वेद, इ.-इत्यादि, इब.-इबरानी, उ. -उर्दू, उदा.-उदाहरण, उप.-उपसर्ग, उपनि.-उपनिषद, अं.-अंगिका, अंक.-अंकगणित, इ.-इंग्लिश/अंगरेजी, का.-कानून, काम.-कामशास्त्र, क्व.-क्वचित, ग.-गणित, गी.-गीता, गीता.-गीतावली, तुलसी-कृत, ग्रा.-ग्राम्य, ग्री.-ग्रीक., चि.-चित्रकला, छ.-छतीसगढ़ी, छं.-छंद, ज.-जर्मन, जै.-जैन साहित्य, ज्या.-ज्यामिति, ज्यो.-ज्योतिष, तं.-तंत्रशास्त्र, ति.-तिब्बती, तिर.-तिरस्कारसूचक, दे.-देशज, देव.-देवनागरी, ना.-नाटक, न्या.-न्याय, पा.-पाली, पारा.- पाराशर संहिता, पु.-पुराण, पुल.-पुल्लिंग, पुर्त. पुर्तगाली, पुरा.-पुरातत्व, प्र.-प्रत्यय, प्रा.-प्राचीन, प्राक.-प्राकृत, फा.-फ़ारसी, फ्रे.-फ्रेंच, ब.-बघेली, बर.-बर्मी, बहु.-बहुवचन, बि.-बिहारी, बुं.-बुन्देलखंडी, बृ.-बृहत्संहिता, बृज.-बृजभाषा  बो.-बोलचाल, बौ.-बौद्ध, बं.-बांग्ला/बंगाली, भाग.-भागवत/श्रीमद्भागवत, भूक्रि.-भूतकालिक क्रिया, मनु.-मनुस्मृति, महा.-महाभारत, मी.-मीमांसा, मु.-मुसलमान/नी, मुहा. -मुहावरा,  यू.-यूनानी, यूरो.-यूरोपीय, योग.योगशास्त्र, रा.-रामचन्द्रिका, केशवदस-कृत, राम.- रामचरितमानस-तुलसीकृत, रामा.- वाल्मीकि रामायण, रा.-पृथ्वीराज रासो, ला.-लाक्षणिक, लै.-लैटिन, लो.-लोकमान्य/लोक में प्रचलित, वा.-वाक्य, वि.-विशेषण, विद.-विदुरनीति, विद्या.-विद्यापति, वे.-वेदान्त, वै.-वैदिक, व्यं.-व्यंग्य, व्या.-व्याकरण, शुक्र.-शुक्रनीति, सं.-संस्कृत/संज्ञा, सक्रि.-सकर्मक क्रिया, सर्व.-सर्वनाम, सा.-साहित्य/साहित्यिक, सां.-सांस्कृतिक, सू.-सूफीमत, स्त्री.-स्त्रीलिंग, स्मृ.-स्मृतिग्रन्थ, ह.-हरिवंश पुराण, हिं.-हिंदी.     

अ से प्रारंभ होनेवाले शब्द : 

संजीव 'सलिल'

अकेतन - वि. सं. बेघर-बार, गृहहीन.
अकेतु - वि. सं. आकृतिहीन, जो पहचाना न जा सके, निराकार, चित्रगुप्त (प्रत्यधि देव केतु).
अकेल - वि. दे. अकेला, एकाकी.
अकेला - वि. एकाकी, बिना साथी का, तनहा उ., बेजोड़, फर्द, खाली (मकान) पु. निर्जन स्थान, स्त्री अकेली, एकाकिनी, -दम- पु. एक ही प्राणी, -दुकेला- वि. अकेला या जिसके साथ एक और हो, इक्का-दुक्का, -ली- स्त्री. एक तरफ़ा बात, -जान- स्त्री. जिसका कोइ साथी न हो, तन-तनहा.
अकेले - अ. बिना किसी  साथी के, तनहा, केवल, बिना किसी को साथ लिये, बगैर किसी और को शरीक किये, -दुकेले- किसी और के साथ.
अकेश - वि. सं. केशरहित, अल्प केशयुक्त, बुरे बालोंवाला.
अकैतव - पु. सं. निष्कपटता, वि. निष्कपट, निश्छल.
अकैया - पु. सामान रखने का थैला, गोन.
अकोट - पु. सं. सुपारी या उसका पेड़. वि. अनगिन, अगणित, असंख्य, करोड़ों.
अकोतर सौ - वि. सौ से एक अधिक, एक सौ एक. पु. १०१ संख्या.
अकोप - पु. सं. कोप का अभाव, रजा दशरथ का एक मंत्री.
अकोप्या पणयात्रा - स्त्री. सं. सिक्के का निर्बाध प्रचलन.
अकोर - पु. देखें अँकोर.
अकोरी - स्त्री. अंकवार, गोद.
अकोला - पु. अंकोल वृक्ष.
अकोविद - वि. सं. अपन्दित, मूर्ख, अनाड़ी.
अकोसना - सक्रि, बुरा-भला कहना, गालियाँ देना.
अकौआ - पु. मदार, आक, ललरी, गले की घंटी.
अकौटा - पु. गड़री का डंडा, धुरा, एक्सेल इं..
अकौटिल्य - पु. सं. कौटिल्य / कुटिलता का अभाव, सरलता, भोलापन.
अकौता - पु. देखें उकवत.
अकौशल - पु. सं. कुशलता का अभाव, अकुशलता, अदक्षता, अनिपुणता.
अक्का - स्त्री. सं. माता, जननी, माँ.
अक्कास - पु. अ. अक्स उतारनेवाला, छायाकार, फोटोग्राफर इं.
अक्कासी - स्त्री. छायांकन का काम, फोटोग्राफी इं.
अक्खड़ - वि. उजड्ड, गँवार, अशिष्ट, उद्धत, लड़ाका, दो टूक कहने वाला, निडर, झगड़ालू, जड़, मूर्ख.-पन- पु. उजड्डपन, उग्रता, अशिष्टता, लड़ाकापन, निर्भयता, स्पष्टवादिता.
अक्खर - पु. आखर, देखें अक्षर.
अक्खा - पु. गोन.
अक्खो-मक्खो - पु. बच्चे को बहलाने / बुरी नजर से बचाने के लिये कहा जानेवाला वाक्यांश, (स्त्रियाँ दीपक की लौ के समीप हाथ लेजाकर बच्चे के मुँह पर फेरते हुए कहती हैं- 'अक्खो-मक्खो दिया बरक्खो, जो मेरे बच्चे को तक्के, उसकी फूटें दोनों अक्खों).
* क्रमशः

मंगलवार, 12 अक्टूबर 2010

गीत: जीवन तो... संजीव 'सलिल'

गीत:

जीवन तो...

संजीव 'सलिल'
*
जीवन तो कोरा कागज़ है...
*
हाथ न अपने रख खाली तू,
कर मधुवन की रखवाली तू.
कभी कलम ले, कभी तूलिका-
रच दे रचना नव आली तू.

आशीषित कर कहें गुणी जन
वाह... वाह... यह तो दिग्गज है.
जीवन तो कोरा कागज़ है...
*
मत औरों के दोष दिखा रे.
नाहक ही मत सबक सिखा रे.
वही कर रहा और करेगा-
जो विधना ने जहाँ लिखा रे.

वही प्रेरणा-शक्ति सनातन
बाधा-गिरि को करती रज है.
जीवन तो कोरा कागज़ है...
*
तुझे श्रेय दे कार्य कराता.
फिर भी तुझे न क्यों वह भाता?
मुँह में राम, बगल में छूरी-
कैसा पाला उससे नाता?

श्रम -सीकर से जो अभिषेकित
उसके हाथ सफलता-ध्वज है.
जीवन तो कोरा कागज़ है...
*

सोमवार, 11 अक्टूबर 2010

हिंदी शब्द सलिला : ४ अ से आरम्भ होनेवाले शब्द: ४ -------संजीव 'सलिल'

हिंदी शब्द सलिला : ४

संजीव 'सलिल'
*
संकेत : अ.-अव्यय, अर. अरबी, अक्रि.-अकर्मक क्रिया, अप्र.-अप्रचलित, अर्थ.-अर्थशास्त्र, अलं.- अलंकार, अल्प-अल्प (लघुरूप) सूचक, आ.-आधुनिक, आयु.-आयुर्वेद, इ.-इत्यादि, इब.-इबरानी, उ. -उर्दू, उदा.-उदाहरण, उप.-उपसर्ग, उपनि.-उपनिषद, अं.-अंगिका, अंक.-अंकगणित, इ.-इंग्लिश/अंगरेजी, का.-कानून, काम.-कामशास्त्र, क्व.-क्वचित, ग.-गणित, गी.-गीता, गीता.-गीतावली, तुलसी-कृत, ग्रा.-ग्राम्य, ग्री.-ग्रीक., चि.-चित्रकला, छ.-छतीसगढ़ी, छं.-छंद, ज.-जर्मन, जै.-जैन साहित्य, ज्या.-ज्यामिति, ज्यो.-ज्योतिष, तं.-तंत्रशास्त्र, ति.-तिब्बती, तिर.-तिरस्कारसूचक, दे.-देशज, देव.-देवनागरी, ना.-नाटक, न्या.-न्याय, पा.-पाली, पारा.- पाराशर संहिता, पु.-पुराण, पुल.-पुल्लिंग, पुर्त. पुर्तगाली, पुरा.-पुरातत्व, प्र.-प्रत्यय, प्रा.-प्राचीन, प्राक.-प्राकृत, फा.-फ़ारसी, फ्रे.-फ्रेंच, ब.-बघेली, बर.-बर्मी, बहु.-बहुवचन, बि.-बिहारी, बुं.-बुन्देलखंडी, बृ.-बृहत्संहिता, बृज.-बृजभाषा  बो.-बोलचाल, बौ.-बौद्ध, बं.-बांग्ला/बंगाली, भाग.-भागवत/श्रीमद्भागवत, भूक्रि.-भूतकालिक क्रिया, मनु.-मनुस्मृति, महा.-महाभारत, मी.-मीमांसा, मु.-मुसलमान/नी, मुहा. -मुहावरा,  यू.-यूनानी, यूरो.-यूरोपीय, योग.योगशास्त्र, रा.-रामचन्द्रिका, केशवदस-कृत, राम.- रामचरितमानस-तुलसीकृत, रामा.- वाल्मीकि रामायण, रा.-पृथ्वीराज रासो, ला.-लाक्षणिक, लै.-लैटिन, लो.-लोकमान्य/लोक में प्रचलित, वा.-वाक्य, वि.-विशेषण, विद.-विदुरनीति, विद्या.-विद्यापति, वे.-वेदान्त, वै.-वैदिक, व्यं.-व्यंग्य, व्या.-व्याकरण, शुक्र.-शुक्रनीति, सं.-संस्कृत/संज्ञा, सक्रि.-सकर्मक क्रिया, सर्व.-सर्वनाम, सा.-साहित्य/साहित्यिक, सां.-सांस्कृतिक, सू.-सूफीमत, स्त्री.-स्त्रीलिंग, स्मृ.-स्मृतिग्रन्थ, ह.-हरिवंश पुराण, हिं.-हिंदी.     

अ से आरम्भ होनेवाले शब्द: ४  

अकलउता - वि. छ. एकमात्र, इकलौता.
अकलउती - वि. छ. एकमात्र, इकलौती.
अकलकरहा - सं. पु, छ. अकरकरा, एक दवा / औषधि का पौधा.
अकलमुड़ा - वि. छ. उल्टी अकल का, बेअकल. सं., पु. इकलौता, इकलौती.
अकसरिया - वि. छ. एक बार, पहली बार.
अकसी - सं. छ. पेड़ से फल तोड़ने के लिये डंडे / बाँस में जाली बाँध कर बनाई गई डंगनी जिससे तोड़ते समय फल नीचे न गिरे. 
अकाउंट - पु. इ. हिसाब, लेखा. -असिस्टेंट- पु., लेखा सहायक, -ऑफीसर- पु., लेखाधिकारी, -बुक- बही-खाता, -लैस- लेखा बिना, लेखा हीन .
अकाउन्टेंट - पु. इ. हिसाब-किताब लिखने / जाँचने वाला, मुनीम.
अकाउन्टेंसी - स्त्री. इ. लेखा-विद्या, लेखाशास्त्र, लेखा-कर्म, लेखा-विधि. 
अकाज - पु. कार्य-हानि, काम का नुक्सान, हर्ज, विघ्न, बाधा, दुष्कर्म, बुरा काम. अ., व्यर्थ ही, निष्प्रयोजन.
अकाजना - सक्रि. हानि करना. अक्रि., नष्ट होना, न रहना.
अकाजी - वि. अकाज करनेवाला, हानि करनेवाला, न करने योग्य काम / दुष्कर्म करनेवाला, निरुद्देश्य काम करनेवाला.
अकाट - वि. ऐसी दलील / तर्क जो कट न सके / जिसे काटा न जा सके, अखण्डणीय, अकाट्य.
अकाट्य - वि. ऐसी दलील / तर्क जो कट न सके / जिसे काटा न जा सके, अखण्डणीय, अकाट.
अकातर - वि. सं., जो भीरु / हतोत्साहित / डरा / भीत न हो.
अकाथ - वि. अकथनीय, न कहने योग्य, अ., अकारथ, व्यर्थ.
अकादमी - पु. उच्च शिक्षा संस्था, किसी विषय / विधा की उन्नति हेतु स्थापित विद्वानों की परिषद्.
अकाम - वि. सं. कामनारहित, निष्काम, इच्छारहित, उदासीन, अनिच्छुक, वासनाहीन. पु., दुष्कर्म, अ., निष्प्रयोजन, अकारण, निरुद्देश्य, बिना काम के. -हत- वि. जो इच्छा से प्रभावित न हो, धीर, शांत.
अकामता - स्त्री. सं. इच्छा का अभाव.   
अकामी /मिन - वि. सं. देखें अकाम.
अकाय - वि. सं. कायरहित, अशरीर. पु. राहू, परमात्मा, निराकार, चित्रगुप्त.
अकार - पु. सं. 'अ' अक्षर या उसकी उच्चारण ध्वनि.
अकारण - अ. सं. बिना कारण, बेमतलब. वि. हेतुरहित, निरुद्देश्य., पु. कारण का अभाव.
अकारत/थ - अ. व्यर्थ, बेकार (आना, जाना, होना), वि. निष्फल, लाभहीन.
अकारन   - पु. सं. देखें अकारण.
अकारांत - वि. सं. जिसके अंत में 'अ' हो.
अकारादि - वि. सं. 'अ' से आरंभ होनेवाला क्रम.
अकारपण्य - वि. सं. जो बिना नीचता या दीनता दिखाए प्राप्त किया गया हो. पु दीनता, कृपणता या हीनता का अभाव.
अकार्य - वि. सं. न करने योग्य, अकर्तव्य, अनुचित. पु. बुरा काम, अनुचित कार्य. -कारी/रिन- वि., बुरा काम करनेवाला, कर्त्तव्य का पालन न करनेवाला.
अकाल - पु. सं. अयोग्य या अनियत काल, कुसमय, अनवसर, अशुभकाल, काल के परे, परमात्मा, चित्रगुप्त. हि. दुर्भिक्ष, सूखा, कमी. वि. जो काला न हो, सफ़ेद, बेमौसिम का, असामयिक. -कुसुम-बेमौसिम का फूल, बेमौसिम की चीज. -कुष्मांड / कूष्माण्ड- पु. बेमौसिम का कुम्हड़ा, बलिदान आदि के काम न आनेवाला कुम्हड़ा, बेकार चीज, बेकाम वस्तु, निरर्थक जन्म. (गांधारी को कूष्मान्डाकार मांसपिंड का अकाल प्रसव हुआ था जिससे कुरुकुलनाशक दुर्योधन आदि सौ पुत्रों का जन्म हुआ जो कौरव कहलाये.) -ग्रस्त- दुर्भिक्ष का मारा, समय का मारा, विपदा-संकट में फँसा हुआ. --वि.असमय उत्पन्न होनेवाला. -जलद- पु. असमय का बादल, -जलोदय/मेघोदय- पु. बेवक्त, बेमौसिम बादलों का घिरना. -जात- समय से पहले, बेमौसिम उपजा हुआ. -तख़्त- सिखों की सर्वोच्च धार्मिक पीठ, अमृतसर में. -पक्व- वि. समय से पहले पक जाने वाला (फल आदि), -पुरुष/पुरुख- पु. परमेश्वर चित्रगुप्त/कायस्थ, परमात्मा सिख. -पंथ- सिखों की एक शाखा. -प्रसव- समय-पूर्व प्रसव, वक़्त से पहले जचकी. -भूत- एक प्रकार का दास जो अकाल में मिला हो. -मूर्ति- पु. अविनाशी पुरुष. -मृत्यु- स्त्री.असामयिक/दुर्घटना या अल्प वय में होने वाली मौत. -विचारणा- स्त्री. (इन्क्वेस्ट) अकाल मृत्यु आदि के संबंध में की जानेवाली कानूनी जाँच-पड़ताल, अन्वीक्षण, अपमृत्यु-समीक्षा. -वृद्ध- वि. समय से पहले बूढा, कमजोर हो जानेवाला. -बेला- स्त्री. असमय. -सह- जो देर न सह सके, अधीर, जो देर तक चल या टिक न सके.          
अकालिक - वि. सं. असामयिक.
अकाली - पु. सिखों का एक संप्रदाय, अकाल तख़्त का अनुयायी.
अकालोत्पन्न - वि. सं. समय से पहले उत्पन्न.
अकाव - पु. आक, मंदार.
अकास - पु. देखें आकाश. -दिया/दीया- पु. आकाशदीप. -नीम- पु. एक पेड़. -बानी- स्त्री. आकाशवाणी, देव-वाणी. -बेल- स्त्री. अमरबेल. मु. -बाँधना- असंभव काम करने का यत्न करना, -'सूधे बात कहौ सुख पावै, बंधन कहत अकास- सूरदास.
अकासी - स्त्री. एक पक्षी, चील, द्रव जिसे पीकर दिमाग आसमान में उड़ने की अनुभूति कराये, ताड़ी.   
*

रविवार, 10 अक्टूबर 2010

हिंदी शब्द सलिला : ३ अ से आरम्भ होनेवाले शब्द: ३ ---------संजीव 'सलिल'

हिंदी शब्द सलिला : ३
 
संजीव 'सलिल'
*
संकेत : अ.-अव्यय, अर. अरबी, अक्रि.-अकर्मक क्रिया, अप्र.-अप्रचलित, अर्थ.-अर्थशास्त्र, अलं.- अलंकार, अल्प-अल्प (लघुरूप) सूचक, आ.-आधुनिक, आयु.-आयुर्वेद, इ.-इत्यादि, इब.-इबरानी, उ. -उर्दू, उदा.-उदाहरण, उप.-उपसर्ग, उपनि.-उपनिषद, अं.-अंगिका, अंक.-अंकगणित, अंग.- अंग्रेजी, का.-कानून, काम.-कामशास्त्र, क्व.-क्वचित, ग.-गणित, गी.-गीता, गीता.-गीतावली, तुलसी-कृत, ग्रा.-ग्राम्य, ग्री.-ग्रीक., चि.-चित्रकला, छ.-छतीसगढ़ी, छं.-छंद, ज.-जर्मन, जै.-जैन साहित्य, ज्या.-ज्यामिति, ज्यो.-ज्योतिष, तं.-तंत्रशास्त्र, ति.-तिब्बती, तिर.-तिरस्कारसूचक, दे.-देशज, देव.-देवनागरी, ना.-नाटक, न्या.-न्याय, पा.-पाली, पारा.- पाराशर संहिता, पु.-पुराण, पुल.-पुल्लिंग, पुर्त. पुर्तगाली, पुरा.-पुरातत्व, प्र.-प्रत्यय, प्रा.-प्राचीन, प्राक.-प्राकृत, फा.-फ़ारसी, फ्रे.-फ्रेंच, ब.-बघेली, बर.-बर्मी, बहु.-बहुवचन, बि.-बिहारी, बुं.-बुन्देलखंडी, बृ.-बृहत्संहिता, बृज.-बृजभाषा  बो.-बोलचाल, बौ.-बौद्ध, बं.-बांग्ला/बंगाली, भाग.-भागवत/श्रीमद्भागवत, भूक्रि.-भूतकालिक क्रिया, मनु.-मनुस्मृति, महा.-महाभारत, मी.-मीमांसा, मु.-मुसलमान/नी, मुहा. -मुहावरा,  यू.-यूनानी, यूरो.-यूरोपीय, योग.योगशास्त्र, रा.-रामचन्द्रिका, केशवदस-कृत, राम.- रामचरितमानस-तुलसीकृत, रामा.- वाल्मीकि रामायण, रा.-पृथ्वीराज रासो, ला.-लाक्षणिक, लै.-लैटिन, लो.-लोकमान्य/लोक में प्रचलित, वा.-वाक्य, वि.-विशेषण, विद.-विदुरनीति, विद्या.-विद्यापति, वे.-वेदान्त, वै.-वैदिक, व्यं.-व्यंग्य, व्या.-व्याकरण, शुक्र.-शुक्रनीति, सं.-संस्कृत, सक्रि.-सकर्मक क्रिया, सर्व.-सर्वनाम, सा.-साहित्य/साहित्यिक, सां.-सांस्कृतिक, सू.-सूफीमत, स्त्री.-स्त्रीलिंग, स्मृ.-स्मृतिग्रन्थ, ह.-हरिवंश पुराण, हिं.-हिंदी.     

अ से आरम्भ होनेवाले शब्द: ३ 
अकरी - स्त्री., हल में लगा हुआ चोंगा (फनल) जिसमें भरकर बाई करते समय खेत में बीज गिराया जाता है., एक विशेष पौधा.
अकरुण - वि., सं., करुणा रहित, निष्करुण, निष्ठुर.
अकर्कश - वि. सं., कर्कशतारहित, नरम, मृदु.
अकर्णक - वि., सं., कर्णहीन, भावार्थ बधिर, बहरा.
अकर्न्य - वि., सं., जो कानों के योग्य न हो, अश्रवणीय.
अकर्तन - वि., सं., नहीं काटना, बोना.
अकर्तव्य - वि., सं., न करने योग्य, अविहित, अनुचित. पु. अनुचित कर्म.
अकर्ता/ अकर्तृ  - वि., सं., जो कर्ता न हो, कर्म न करनेवाला, कर्म से अलिप्त पुरुष, अकर्मा, ईश्वर, परमब्रम्ह.
अकर्तक - वि., सं., जिसका कोई कर्ता न हो.
अकर्तृत्व - पु., सं., कर्तृत्व/कर्तापन के अभिमान का अभाव.
अकर्म - पु., सं., कर्म का अभाव, निष्क्रियता, कर्तव्य/कर्म न करना, बुरा काम. -भोग - पु., कर्मफल के भोग से मुक्ति. -शील - वि., सुस्त, आलसी, कामचोर.
अकर्मक - वि., सं., वह क्रिया जिसके लिये कर्म की अपेक्षा न हो (व्या.). पु. परमात्मा..
अकर्मण्य - वि., सं., कर्म के अयोग्य, निकम्मा, आलसी, न  कर्म न करने योग्य.
अकर्मा/अकर्मन - वि., सं., कर्मरहित, जो कुछ न कर्ता हो, निकम्मा, बेकाम, संस्कार आदि का अनधिकारी.
अकर्मान्वित - वि., सं., अपराधी, दुष्कर्मयुक्त, निठल्ला, बेकार.   
अकर्मी / अकर्मिन - वि., सं., दुष्कर्म करनेवाला, दुष्कर्मी, पापी.
अकर्षण - पु., सं., कर्षण या खिंचाव न होना, आकर्षण = खिंचाव.
अकलंक - वि., सं., कलंकरहित, निर्दोष, बेदाग़,
अकलंकता - स्त्री., सं., दोषहीनता, निर्दोषिता.
अकलंकित - वि., सं., निर्दोष, शुद्ध, बेदाग़.
अकल - वि., सं., अवयवरहित, यंत्रहीन, अखण्ड, अंशरहित, निराकार, कलाहीन, गुणहीन, स्त्री. अकल, -दाढ़- स्त्री., युवा होने पर उगनेवाली दाढ़, अक्ल का दाँत.
अकलखुरा - वि., अकेला खानेवाला, स्वार्थी, ईर्ष्यालु, जो मिलनसार न हो.
अकलवर / अकलवीर - पु., पौधा जिसकी जड़ रेशम पर रंग चढ़ाने के काम आती है.
अकलुष - वि. सं., स्वच्छ, मलहीन, निर्दोष, साफ़, गन्दगीरहित. -इस्पात- पु., क्रोमियम आदि धातुएं मिलाकर तैयार किया गया इस्पात जिसमें मोर्चा/जंग नहीं लगता, स्टेनलैस स्टील.
अकल्क - वि., सं., बिना तलछट का, निर्मल, शुद्ध, निष्पाप, स्वच्छ.
अकल्कक, अकल्कन, अकल्कल -  वि., सं., विनम्र, दंभरहित, घमंडहीन, निरहंकार, ईमानदार.
अकल्कता - स्त्री., सं., ईमानदारी, शुद्धता.
अकल्का - स्त्री., सं., चाँदनी, ज्योत्सना.
अकल्प - वि., सं., अनियंत्रित, नियम न माननेवाला, दुर्बल, अक्षम, अतुलनीय.
अकल्पनीय - वि. ,सं., जिसकी कल्पना न की जा सके, अप्रामाणिक, असंभावित.
अकल्पित -वि., सं., कल्पनारहित, अकाल्पनिक, अकृत्रिम, प्राकृतिक, प्रामाणिक, संभावित.
अकल्मष - वि., सं., बेदाग़, निर्दोष, शुद्ध.
अकल्य - वि., सं., अस्वस्थ, सत्य.
अकल्याण - पु., सं., अमंगल, अहित. वि. अशुभ.
अकव / अकवा  - वि., सं., अवर्णनीय, जो तुच्छ या कृपण न हो. रघुराजसिंह कृत राम स्वयंवर.
अकवच - वि., सं., कवचरहित, जिसके बदन पर बख्तर न हो.
अकवन - पु., अर्क / आक का पेड़.
अकवाम - स्त्री., अ., उ., कौम का बहुवचन.
अकविता - स्त्री., कविता के पूर्व प्रचलित उपादानों को नकारकर आगे बढ़नेवाली काव्य-प्रवृत्ति.
अकशेरुकी - पु. इनवर्टिब्रेट, मेरुदंड / रीढ़ विहीन प्राणी, जैसे: प्रोटोजोआ, घोंघा, अपृष्ठवंशी.
अकस - पु., द्वेष, ईर्ष्या, बराबरी, छाया, प्रतिबिम्ब.
अकस - अ., अकस्मात्. -पृथ्वीराज रासो.
अकसना - अक्रि., बराबरी करना, समसरी करना, समानता करना, बैर करना, झगड़ना, लड़ना, स्पर्धा करना.
अकसर - वि., अ., बहुत अधिक, अत्यधिक. अधिकतर, बहुधा. वि. अकेला, अकेले, बिना किसी को साथ लिये, एकाकी. कवण हेतु मन व्यग्र अति, अकसर आयेहु तात.-राम.        
अकसी - अकस / द्वेष रखनेवाला, बैरी, शत्रु, दुश्मन.
अकसीर - स्त्री., अ., कीमिया, दवा जिससे सस्ती धातु से सोना बनाया जा सके, रोग विशेष की अचूक / अति गुणकरी औषधि. वि, अचूक, अव्यर्थ. -गर- कीमियाबनानेवाला, कीमियागर, -की बूटी- सोना-चाँदी बनाने की बूटी.   
अकस्मात् - अ., सं., सहसा, अचानक, एकाएक, हठात, संयोगवश, आकारण, बिना कारण, दर्शन का एक पारिभाषिक शब्द जो तांत्रिक साधना में विशिष्ट अर्थ रखता है.
अकह - वि., अवर्णनीय, न कहने योग्य, अकहनीय, अकथनीय, अनुचित.
अकहानी - स्त्री., यूरोप में प्रचलित 'एंटी स्टोरी' का हिन्दी रूप जो यह मानता है कि कहनी के परंपरागत तत्वों को नकारकर ही कहानी खुद को आधुनिक बना सकती है.
अकहुवा / अकहुआ  - वि., दे., अकथनीय, जिसका वर्णन न हो सके.

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