कुल पेज दृश्य

डॉ. साधना वर्मा लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
डॉ. साधना वर्मा लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

मंगलवार, 15 दिसंबर 2020

बहुमुखी प्रतिभा की धनी डॉक्टर इला घोष डॉ. साधना वर्मा

भावांजलि
बहुमुखी प्रतिभा की धनी डॉक्टर इला घोष
डॉ. साधना वर्मा
*
[लेखक: डॉ. साधना वर्मा, प्राध्यापक अर्थशास्त्र विभाग, शासकीय मानकुँवर बाई कला वाणिज्य स्वशासी महिला महाविद्यालय जबलपुर। ]
*
मस्तिष्क में सहेजी पुरानी यादें किताब के पृष्ठों पर टंकित कहानियों की तरह होती हैं। एक बार खेलकर पढ़ना-जुड़ना आरंभ करते ही घटनाओं का अटूट सिलसिला और स्मरणीय व्यक्तित्वों की छवियाँ उभरती चली आती हैं। तीन दशक से अधिक के अपने प्राध्यापकीय जीवन पर दृष्टिपात करती हूँ तो जिन व्यक्तित्वों की छवि अपने मन पर अंकित पाती हूँ उनमें उल्लेखनीय नाम है असाधारण व्यक्तित्व-कृतित्व की धनी डॉक्टर इला घोष जी का । वर्ष १९८५ में विवाह के पूर्व मैंने भिलाई, रायपुर तथा बिलासपुर के विविध महाविद्यालयों में अध्यापन कार्य किया था। विवाह के पश्चात पहले १९८६ मेंशासकीय तिलक महाविद्यालय कटनी और फिर १९८७ में शासकीय महाकौशल महाविद्यालय जबलपुर में मेरी पदस्थापना हुई। शासकीय महाकौशल महाविद्यालय जबलपुर में पदभार ग्रहण करते समय मेरे मन में बहुत उथल-पुथल थी। बिलासपुर और कटनी के महाविद्यालय अपेक्षाकृत छोटे और कम विद्यार्थियों की कक्षाओं वाले थे। शासकीय महाकौशल महाविद्यालय में प्रथम प्रवेश करते समय यही सोच रही थी कि मैं यहाँ शिक्षण विभाग में पदस्थ वरिष्ठ और विद्वान प्राध्यापकों के मध्य तालमेल बैठा सकूँगी या नहीं?
सौभाग्य से महाविद्यालय में प्रवेश करते ही कुछ सहज-सरल और आत्मीय व्यक्तित्वों से साक्षात हुआ। डॉ. इला घोष, डॉ. गीता श्रीवास्तव, डॉ. सुभद्रा पांडे, डॉ. चित्रा चतुर्वेदी आदि ने बहुत आत्मीयता के साथ मुझ नवागंतुक का स्वागत किया। कुछ ही समय में अपरिचय की खाई पट गई और हम अदृश्य मैत्री सूत्र में बँधकर एक दूसरे के सुख-दुख के साथी बन गए। महाविद्यालय में विविध दायित्वों का निर्वहन करते समय एक-दूसरे के परामर्श और सहयोग की आवश्यकता होती ही है। इला जी अपने आकर्षक व्यक्तित्व, मंद मुस्कान, मधुर वाणी, सात्विक खान-पान, सादगीपूर्ण रहन-सहन तथा अपनत्व से पूरे वातावरण को सुवासित बनाए रखती थी। संस्कृत भाषा व साहित्य की गंभीर अध्येता, विदुषी व वरिष्ठ प्राध्यापक तथा नवोन्मेषी शोधकर्त्री होते हुए भी उनके व्यवहार में कहीं भी घमंड नहीं झलकता था। वे अपने से कनिष्ठों के साथ बहुत सहज, सरल, मधुर एवं आत्मीयतापूर्ण व्यवहार करती रही हैं।
कुशल प्रशासक, अनुशासित प्राध्यापक एवं दक्ष विभागाध्यक्ष के रूप से कार्य करने में उनका सानी नहीं है। महाविद्यालय में विद्यार्थियों को प्रवेश देते समय, छात्रसंघ के चुनावों के समय, स्नेह सम्मेलन अथवा अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों, मासिक, षडमात्रिक व वार्षिक परीक्षाओं के कार्य संपादित कराते समय कनिष्ठ प्राध्यापक कभी-कभी असहजता या उलझन अनुभव करते थे किंतु इला जी ऐसे अवसरों पर हर एक के साथ तालमेल बैठते हुए, सबको शांत रखते हुए व्यवस्थित तरीके से काम करने में सहायक होती थीं। मैंने उनका यह गुण आत्मसात करने की कोशिश की और क्रमश: वरिष्ठ होने पर अपने कनिष्ठों के साथ सहयोग करने का प्रयास करती रही हूँ।
महाविद्यालयों में समाज के विभिन्न वर्गों से विद्यार्थी प्रवेश लेते हैं। संपन्न या प्रभावशाली परिवारों के छात्र वैभव प्रदर्शन कर गर्वित होते, राजनैतिक पृष्ठभूमि के विद्यार्थी नियमों की अवहेलना कर अन्य छात्रों को प्रभवित करने की कुचेष्टा करते जबकि ग्रामीण तथा कमजोर आर्थिक परिवेश से आये छात्र अपने में सिमटे-सँकुचे रहते। प्राध्यापक सबके साथ समानता का व्यवहार करें, बाह्य तत्वों का अवांछित हस्तक्षेप रोकें तो कठिनाइयों और जटिलताओं से सामना करना होता है। ऐसी दुरूह परिस्थितियों में इलाजी मातृत्व भाव से पूरी तरह शांत रहकर, सभी को शांत रहने की प्रेरणा देती। उनका सुरुचिपूर्ण पहनावा, गरिमामय व्यवहार, संतुलित-संयमित वार्तालाप उच्छृंखल तत्वों को बिना कुछ कहे हतोत्साहित करता। अन्य प्राध्यापक भी तदनुसार स्थिति को नियंत्रित करने का प्रयास करते और महाविद्यालय का वातावरण सौहार्द्रपूर्ण बना रहता।
अपनी कुशलता और निपुणता के बल पर यथासमय पदोन्नत होकर इलाजी ने शासकीय महाविद्यालय कटनी, स्लीमनाबाद, दमोह, जुन्नारदेव आदि में प्राचार्य के पद पर कुशलतापूर्वक कार्य करते हुए मापदंड इतने ऊपर उठा दिए जिनका पालन करना उनके पश्चातवर्तियों के लिए कठिन हो गया। आज भी उन सब महाविद्यालयों में इला जी को सादर स्मरण किया जाता है। उनके कार्यकाल में महाविद्यालयों में निरन्तर नई परियोजनाएँ बनीं, भवनों का निर्माण हुआ, नए विभाग खुले और परीक्षा परिणामों में सुधार हुआ। संयोगवश मेरे पति इंजी. संजीव वर्मा, संभागीय परियोजना अभियंता के पद पर छिंदवाड़ा में पदस्थ हुए। उनके कार्यक्षेत्र में जुन्नारदेव महाविद्यालय भी था जहाँ छात्रावास भवन निर्माण का कार्य आरंभ कराया गया था। कार्य संपादन के समय उनके संपर्क में आये तत्कालीन प्राध्यापकों और प्राचार्य ने इलाजी को सम्मान सहित स्मरण करते हुए उनके कार्य की प्रशंसा की जबकि इलाजी तब सेवा निवृत्त हो चुकी थीं। यही अनुभव मुझे जुन्नारदेव में बाह्य परीक्षक के रूप में कार्य करते समय हुआ।
किसी कार्यक्रम की पूर्व तैयारी करने में इला जी जिस कुशलता, गहन चिंतन के साथ सहभागिता करती हैं, वह अपनी मसाल आप है। हरि अनंत हरि कथा अनंता.... इला जी के समस्त गुणों और प्रसंगों की चर्चा करने में स्थानाभाव के आशंका है। ऐसी बहुमुखी प्रतिभा, इतना ज्ञान, इतनी विनम्रता, संस्कृत हिंदी बांग्ला और अंग्रेजी की जानकारी, प्राचीन साहित्य का गहन अध्ययन और उसे वर्तमान परिवेश व परिस्थितियों के अनुकूल ढालकर नवीन रचनाओं की रचना करना सहज कार्य नहीं है। इला जी एक साथ बहुत सी दिशाओं में जितनी सहजता, सरलता और कर्मठता के साथ गतिशील रहती हैं वह आज के समय में दुर्लभ है। सेवा निवृत्ति के पश्चात् जहाँ अधिकांश जन अपन में सिमटकर शिकायत पुस्तिका बन जाते हैं वहाँ इला जी समाजोपयोगी गतिविधियों में निरंतर संलग्न हैं। उनकी कृतियाँ उनके परिश्रम और प्रतिभा की साक्षी है। मैं ईश्वर से प्रार्थना करती हूँ कि इलाजी शतायु हों और हिंदी साहित्य को अपनी अनमोल रत्नों से समृद्ध और संपन्न करती रहें।
***

शुक्रवार, 17 अप्रैल 2015

pustak samiksha: Dr. sadhna verma

ॐ 
कृति परिचय: 
आधुनिक अर्थशास्त्र: एक बहुउपयोगी कृति 
चर्चाकार- डॉ. साधना वर्मा 
सहायक प्रध्यापक अर्थशास्त्र 
शासकीय महाकौसल स्वशासी अर्थ-वाणिज्य महाविद्यालय जबलपुर 
*
[कृति विवरण: आधुनिक अर्थशास्त्र, डॉ. मोहिनी अग्रवाल, अकार डिमाई, आवरण बहुरंगी सजिल्द, लेमिनेटेड, जेकेट सहित, पृष्ठ २१५, मूल्य ५५०/-, कृतिकार संपर्क: एसो. प्रोफेसर, अर्थशास्त्र विभाग, महिला महाविद्यालय, किदवई नगर कानपुर, रौशनी पब्लिकेशन ११०/१३८ मिश्र पैलेस, जवाहर नगर कानपूर २०८०१२ ISBN ९७८-९३-८३४००-९-६]

अर्थशास्त्र मानव मानव के सामान्य दैनंदिन जीवन के अभिन्न क्रिया-कलापों से जुड़ा विषय है. व्यक्ति, देश, समाज तथा विश्व हर स्तर पर आर्थिक क्रियाओं की निरन्तरता बनी रहती है. यह भी कह सकते हैं कि अर्थशास्त्र जिंदगी का शास्त्र है क्योंकि जन्म से मरण तक हर पल जीव किसी न किसी आर्थिक क्रिया से संलग्न अथवा उसमें निमग्न रहा आता है. संभवतः इसीलिए अर्थशास्त्र सर्वाधिक लोकप्रिय विषय है. कला-वाणिज्य संकायों में अर्थशास्त्र विषय का चयन करनेवाले विद्यार्थी सर्वाधिक तथा अनुत्तीर्ण होनेवाले न्यूनतम होते हैं. कला महाविद्यालयों की कल्पना अर्थशास्त्र विभाग के बिना करना कठिन है. यही नहीं अर्थशास्त्र विषय प्रतियोगिता परीक्षाओं की दृष्टि से भी बहुत उपयोगी है. उच्च अंक प्रतिशत के लिये तथा साक्षात्कार में सफलता के लिए इसकी उपादेयता असिंदिग्ध है. देश के प्रशासनिक अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों में अनेक अर्थशास्त्र के विद्यार्थी रहे हैं.
आधुनिक जीवन प्रणाली तथा शिक्षा प्रणाली के महत्वपूर्ण अंग उत्पादन, श्रम, पूँजी, कौशल, लगत, मूल्य विक्रय, पारिश्रमिक, माँग, पूर्ति, मुद्रा, बैंकिंग, वित्त, विनियोग, नियोजन, खपत आदि अर्थशास्त्र की पाठ्य सामग्री में समाहित होते हैं. इनका समुचित-सम्यक अध्ययन किये बिना परिवार, देश या विश्व की अर्थनीति नहीं बनाई जा सकती.
डॉ. मोहिनी अग्रवाल लिखित विवेच्य कृति 'आधुनिक अर्थशास्त्र' एस विषय के अध्यापकों, विद्यार्थियों तथा जनसामान्य हेतु सामान रूप से उपयोगी है. विषय बोध, सूक्ष्म अर्थशास्त्र, वृहद् अर्थशास्त्र, मूल्य निर्धारण के सिद्धांत, मजदूरी निर्धारण के सिद्धांत, मांग एवं पूर्ति तथा वित्त एवं विनियोग शीर्षक ७ अध्यायों में विभक्त यह करती विषय-वस्ती के साथ पूरी तरह न्याय करती है. लेखिका ने भारतीय तथा पाश्चात्य अर्थशास्त्रियों के मताभिमतों की सरल-सुबोध हिंदी में व्याख्या करते हुए विषय की स्पष्ट विवेचना इस तरह की है कि प्राध्यापकों, शिक्षकों तथा विद्यार्थियों को विषय-वस्तु समझने में कठिनाई न हो.आमजीवन में प्रचलित सामान्य शब्दावली, छोटे-छोटे वाक्य, यथोचित उदाहरण, यथावश्यक व्याख्याएँ, इस कृति की विशेषता है. विषयानुकूल रेखाचित्र तथा सारणियाँ विषय-वास्तु को ग्रहणीय बनाते हैं.
विषय से संबंधित अधिनियमों के प्रावधानों, प्रमुख वाद-निर्णयों, दंड के प्रावधानों आदि की उपयोगी जानकारी ने इसे अधिक उपयोगी बनाया है. कृति के अंत में परिशिष्टों में शब्द सूची, सन्दर्भ ग्रन्थ सूचि तथा प्रमुख वाद प्रकरणों की सूची जोड़ी जा सकती तो पुस्तक को मानल स्वरुप मिल जाता. प्रख्यात अर्थशास्त्रियों के अभिमतों के साथ उनके चित्र तथा जन्म-निधन तिथियाँ देकर विद्यार्थियों की ज्ञानवृद्धि की जा सकती थी. संभवतः पृष्ठ संख्या तथा मूल्य वृद्धि की सम्भावना को देखते हुए यह सामग्री न जोड़ी जा सकी हो. पुस्तक का मूल्य विद्यार्थियों की दृष्टि से अधिक प्रतीत होता है. अत: अल्पमोली पेपरबैक संस्करण उपलब्ध कराया जाना चाहिए.
सारत: डॉ. मोहिनी अग्रवाल की यह कृति उपयोगी है तथा इस सारस्वत अनुष्ठान के लिए वे साधुवाद की पात्र हैं. 
*