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शनिवार, 16 अगस्त 2025

अगस्त १६, सॉनेट, गीत, मुक्तिका, हम वही हैं, घर, जन्माष्टमी


सलिल सृजन अगस्त १६
सॉनेट
अंजली
अंजली खाली मेरे ईश!
सब कुछ तेरा, क्या दूँ तुझको?
क्या मेरा कुछ?, बतला मुझको
विकल पूछता तेरा शीश
यह धन-दौलत, रिश्ते-नाते
तुम देते, तुम ही ले लेते
भ्रभ होता हम नैया खेते
तुम ही नैया पार लगाते
हम से तुम या तुम से हैं हम?
हम या तुम उपजाते सुख-गम
जान न पाते हो जाते गुम
प्रभु! यह अंजली भी तेरी है
कुछ दूँ, बुद्धि नहीं मेरी है
यही समर्पित बिन देरी है
१६-८-२०२३
•••
एक कविता :
होता था घर एक.
*
शायद बच्चे पढेंगे'
होता था घर एक.'
शब्द चित्र अंकित किया
मित्र कार्य यह नेक.
अब नगरों में फ्लैट हैं,
बंगले औ' डुप्लेक्स.
फार्म हाउस का समय है
मिलते मल्टीप्लेक्स.
बेघर खुद को कर रहे
तोड़-तोड़ घर आज.
इसीलिये गायब खुशी
हर कोई नाराज़.
घर न इमारत-भवन है
घर होता सम्बन्ध.
नाते निभाते हैं जहाँ
बिना किसी अनुबंध.
बना फेसबुक भी 'सलिल'
घर की नयी मिसाल.
नाते नव नित बन रहे
देखें आप कमाल.
बिना मिले भी मन मिले,
होती जब तकरार.
दूजे पल ही बिखरता
निर्मल-निश्छल प्यार.
मतभेदों को हम नहीं
बना रहे मन-भेद.
लगे किसी को ठेस तो
सबको होता खेद.
नेह नर्मदा निरंतर
रहे प्रवाहित मित्र.
'फेसबुक' घर का बने
'सलिल' सनातन चित्र..
१४.३.२०२१
*
गीत
*
किसके-किसके नाम करूँ मैं, अपने गीत बताओ रे!
किसके-किसके हाथ पिऊँ मैं, जीवन-जाम बताओ रे!!
*
चंद्रमुखी थी जो उसने हो, सूर्यमुखी धमकाया है
करी पंखुड़ी बंद भ्रमर को, निज पौरुष दिखलाया है
''माँगा है दहेज'' कह-कहकर, मिथ्या सत्य बनाया है
किसके-किसके कर जोड़ूँ, आ मेरी जान बचाओ रे!
किसके-किसके नाम करूँ मैं, अपनी पीर बताओ रे!!
*
''तुम पुरुषों ने की रंगरेली, अब नारी की बारी है
एक बाँह में, एक चाह में, एक राह में यारी है
नर निश-दिन पछतायेगा क्यों की उसने गद्दारी है?''
सत्यवान हूँ हरिश्चंद्र, कोई आकर समझाओ रे!
किसके-किसके नाम करूँ कवि की जागीर बताओ रे!!
*
महिलायें क्यों करें प्रशंसा?, पूछ-पूछ कर रूठ रही
खुद सवाल कर, खुद जवाब दे, विषम पहेली बूझ रही
द्रुपदसुता-सीता का बदला, लेने की क्यों सूझ रही?
झाड़ू, चिमटा, बेलन, सोंटा कोई दूर हटाओ रे!
किसके-किसके नाम करूँ अपनी तकदीर बताओ रे!!
*
देवदास पारो को समझ न पाया, तो क्यों प्यार किया?
'एक घाट-घर रहे न जो, दे दगा', कहे कर वार नया
'सलिल बहे पर रहता निर्मल', समझाकर मैं हार गया
पंचम सुर में 'आल्हा' गाए, 'कजरी' याद दिलाओ रे!
किसके-किसके नाम करूँ जिव्हा-शमशीर बताओ रे!!
*
कुसुम, सुमन, नीलू, अमिता, पूर्णिमा, नीरजा आएँगी
'पत्नी को परमेश्वर मानो', सबको पाठ पढ़ाएँगी
पत्नीव्रती न जो कवि होगा, उससे कलम छुड़ाएँगी
कोई भी मौसम हो तुम गुण पत्नी के ही गाओ रे!
किसके-किसके नाम करूँ कवि आहत वीर बताओ रे!!
***
मुक्तिका
*
रवि आ भा
छिप जाता
अनकहनी
कहवाता
माटी भी
है माता
जो खोता
वह पाता
मत तोड़ो
मन नाता
जो आता
वह जाता
पथ-भूला
समझाता
१६-८-२०२०
***
पूर्णिका जन्माष्टमी पर: 
*
हो चुका अवतार, अब हम याद करते हैं मगर 
अनुकरण करते नहीं, क्यों यह विरोधाभास है?
*
कल्पना इतनी मिला दी, सत्य ही दिखता नहीं
पंडितों ने धर्म का, हर दिन किया उपहास है
*
गढ़ दिया राधा-चरित, शत मूर्तियाँ कर दीं खड़ी
हिल गई जड़ सत्य की, क्या तनिक भी अहसास है?
*
शत विभाजन मिटा, ताकतवर बनाया देश को
कृष्ण ने पर भक्त तोड़ें, रो रहा इतिहास है
*
रूढ़ियों से जूझ गढ़ दें कुछ प्रथाएँ स्वस्थ्य हम
देश हो मजबूत, कहते कृष्ण- 'हर जन खास है'
*
भ्रष्ट शासक आज भी हैं, करें उनका अंत मिल
सत्य जीतेगा न जन को हो सका आभास है
*
फ़र्ज़ पहले बाद में हक़, फल न अपना साध्य हो
चित्र जिसका गुप्त उसका यह बदन आवास है.
***
नवगीत
*
पीटो ढोल
बजाओ मँजीरा
*
भाग गया परदेशी शासन
गूँज रहे निज देशी भाषण
वीर शहीद स्वर्ग से हेरें
मँहगा होता जाता राशन
रँगे सियार शीर्ष पर बैठे
मालिक बेबस नौकर ऐंठे
कद बौने, लंबी परछाई
सूरज लज्जित, जुगनू ऐंठे
सेठों की बन आयी, भाई
मतदाता की शामत आई
प्रतिनिधि हैं कुबेर, मतदाता
हुआ सुदामा, प्रीत न भायी
मन ने चाही मन की बातें
मन आहत पा पल-पल घातें
तब-अब चुप्पी-बहस निरर्थक
तब भी, अब भी काली रातें
ढोंग कर रहे
संत फकीरा
पीटो ढोल
बजाओ मँजीरा
*
जनसेवा का व्रत लेते जो
धन-सुविधा पा क्षय होते वो
जनमत की करते अवहेला
जनहित बेच-खरीद गये सो
जनहित खातिर नित्य ग्रहण बन
जन संसद को चुभे दहन सम
बन दलाल दल करते दलदल
फैलाते केवल तम-मातम
सरहद पर उग आये कंटक
हर दल को पर दल है संकट
नाग, साँप, बिच्छू दल आये
किसको चुनें-तजें, है झंझट
क्यों कोई उम्मीदवार हो?
जन पर क्यों बंदिश-प्रहार हो?
हर जन जिसको चाहे चुन ले
इतना ही अब तो सुधार हो
मत मतदाता
बने जमूरा?
पीटो ढोल
बजाओ मँजीरा
*
चयनित प्रतिनिधि चुन लें मंत्री
शासक नहीं, देश के संत्री
नहीं विपक्षी, नहीं विरोधी
हटें दूर पाखंडी तंत्री
अधिकारी सेवक मनमानी
करें न, हों विषयों के ज्ञानी
पुलिस न नेता, जन-हित रक्षक
हो, तब ऊगे भोर सुहानी
पारदर्शितामय पंचायत
निर्माणों की रचकर आयत
कंकर से शंकर गढ़ पाये
सब समान की बिछा बिछायत
उच्छृंखलता तनिक नहीं हो
चित्र गुप्त अपना उज्जवल हो
गौरवमय कल कभी रहा जो
उससे ज्यादा उज्जवल कल हो
पूरा हो
हर स्वप्न अधूरा
पीटो ढोल
बजाओ मँजीरा
***
एक रचना-
हम वही हैं
*
हम वही हैं,
यह न भूलो
झट उठो आकाश छू लो।
बता दो सारे जगत को
यह न भूलो
हम वही है।
*
हमारे दिल में पली थी
सरफरोशी की तमन्ना।
हमारी गर्दन कटी थी
किंतु
किंचित भी झुकी ना।
काँपते थे शत्रु सुनकर
नाम जिनका
हम वही हैं।
कारगिल देता गवाही
मर अमर
होते हमीं हैं।
*
इंकलाबों की करी जयकार
हमने फेंककर बम।
झूल फाँसी पर गये
लेकिन
न झुकने दिया परचम।
नाम कह 'आज़ाद', कोड़े
खाये हँसकर
हर कहीं हैं।
नहीं धरती मात्र
देवोपरि हमें
मातामही हैं।
*
पैर में बंदूक बाँधे,
डाल घूँघट चल पड़ी जो।
भवानी साकार दुर्गा
भगत के
के संग थी खड़ी वो।
विश्व में ऐसी मिसालें
सत्य कहता हूँ
नहीं हैं।
ज़िन्दगी थीं या मशालें
अँधेरा पीती रही
रही हैं।
*
'नहीं दूँगी कभी झाँसी'
सुनो, मैंने ही कहा था।
लहू मेरा
शिवा, राणा, हेमू की
रग में बहा था।
पराजित कर हूण-शक को
मर, जनम लेते
यहीं हैं।
युद्ध करते, बुद्ध बनते
हमीं विक्रम, 'जिन'
हमीं हैं।
*
विश्व मित्र, वशिष्ठ, कुंभज
लोपामुद्रा, कैकयी, मय ।
ऋषभ, वानर, शेष, तक्षक
गार्गी-मैत्रेयी
निर्भय?
नाग पिंगल, पतंजलि,
नारद, चरक, सुश्रुत
हमीं हैं।
ओढ़ चादर रखी ज्यों की त्यों
अमल हमने
तही हैं।
*
देवव्रत, कौंतेय, राघव
परशु, शंकर अगम लाघव।
शक्ति पूजित, शक्ति पूजी
सिय-सती बन
जय किया भव।
शून्य से गुंजित हुए स्वर
जो सनातन
हम सभी हैं।
नाद अनहद हम पुरातन
लय-धुनें हम
नित नयी हैं।
*
हमीं भगवा, हम तिरंगा
जगत-जीवन रंग-बिरंगा।
द्वैत भी, अद्वैत भी हम
हमीं सागर,
शिखर, गंगा।
ध्यान-धारी, धर्म-धर्ता
कम-कर्ता
हम गुणी हैं।
वृत्ति सत-रज-तम न बाहर
कहीं खोजो,
त्रय हमीं हैं।
*
भूलकर मत हमें घेरो
काल को नाहक न टेरो।
अपावन आक्रांताओं
कदम पीछे
हटा फेरो।
बर्फ पर जब-जब
लहू की धार
सरहद पर बही हैं।
कहानी तब शौर्य की
अगणित, समय ने
खुद कहीं हैं।
*
हम वही हैं,
यह न भूलो
झट उठो आकाश छू लो।
बता दो सारे जगत को
यह न भूलो
हम वही है।
*
गीत :
*
अरमानों की फसलें हर दिन ही कुदरत बोती है
कुछ करने के लिए कभी भी देर नहीं होती है
उठ आशीष दीजिए छोटों को महके फुलवारी
नमन ईश को करें दूर हों चिंता पल में सारी
गीत ग़ज़ल कवितायेँ पोयम मंत्र श्लोक कुछ गा लें
मन की दुनिया जब जैसी चाहें रच खूब मजा लें
धरती हर दुःख सह देती है खूब न पर रोती है
कुछ करने के लिए कभी भी देर नहीं होती है
देश-विदेश कहाँ कैसा क्या भला-बुरा बतलायें
हम न जहाँ जा पाये पढ़कर ही आनंद मनायें
मौसम लोग, रीतियाँ कैसी? कैसा ताना-बाना
भारत की छवि कैसी? क्या वे चाहें भारत आना?
हरे अँधेरा मौन चाँदनी, नील गगन धोती है
कुछ करने के लिए कभी भी देर नहीं होती है
१६-८-२०१५
***
मुक्तक सलिला :
*
नयन में शत सपने सुकुमार
अधर का गीत करे श्रृंगार
दंत शोभित ज्यों मुक्तामाल
केश नागिन नर्तित बलिहार
*
भौंह ज्यों प्रत्यंचा ली तान
दृष्टि पत्थर में फूंके जान
नासिका ऊँची रहे सदैव
भाल का किंचित घटे न मान
*
सुराही कंठ बोल अनमोल
कर्ण में मिसरी सी दे घोल
कपोलों पर गुलाब खिल लाल
रहे नपनों-सपनों को तोल
१६-८-२०१४
***
एक कविता :
होता था घर एक.
*
शायद बच्चे पढेंगे'
होता था घर एक.'
शब्द चित्र अंकित किया
मित्र कार्य यह नेक.
अब नगरों में फ्लैट हैं,
बंगले औ' डुप्लेक्स.
फार्म हाउस का समय है
मिलते मल्टीप्लेक्स.
बेघर खुद को कर रहे
तोड़-तोड़ घर आज.
इसीलिये गायब खुशी
हर कोई नाराज़.
घर न इमारत-भवन है
घर होता सम्बन्ध.
नाते निभाते हैं जहाँ
बिना किसी अनुबंध.
बना फेसबुक भी 'सलिल'
घर की नयी मिसाल.
नाते नव नित बन रहे
देखें आप कमाल.
बिना मिले भी मन मिले,
होती जब तकरार.
दूजे पल ही बिखरता
निर्मल-निश्छल प्यार.
मतभेदों को हम नहीं
बना रहे मन-भेद.
लगे किसी को ठेस तो
सबको होता खेद.
नेह नर्मदा निरंतर
रहे प्रवाहित मित्र.
'फेसबुक' घर का बने
'सलिल' सनातन चित्र..
१६-८-२०१०
*

शुक्रवार, 25 अगस्त 2023

सॉनेट, मुक्तक, रेल, नवगीत, पद, जन्माष्टमी, पोयम

सॉनेट

*
रंगभूमि से जंगभूमि तक
मनमानी अरु मन की बातें
काम करे निष्ठा से जनगण
नेता जी करते हैं घातें
कुटिया का दिन अँधियारा है
संसद की रातें भी उजली
हर अफसर का पौ बारा है
धनपतियों की तबियत मचली
न्याय वही जो कुर्सी चाहे
लिए तराजू तौले अँधा
मन का कालापन वस्त्रों पर
बहस कुतर्कों का है धंधा
बेच-खरीदों जनप्रतिनिधियों को
जो न बिके वह खाए लातें
२५-८-२०२२
***
मुक्तक रेल के
प्रभु तो प्रभु है, ऊपर हो या नीचे हो।
नहीं रेल के प्रभु सा आँखें मीचे हो।।
निचली श्रेणी की करता कुछ फ़िक्र न हो-
ऊँची श्रेणी के हित लिए गलीचे हो।।
***
ट्रेन पटरी से उतरती जा रही।
यात्रियों को अंत तक पहुँचा रही।।
टिकिट थोड़ी यात्रा का था लिया-
पार भव से मुफ्त में करवा रही।।
***
आभार करिए रेलवे का रात-दिन।
काम चलता ही नहीं है ट्रेन बिन।।
करें पल-पल याद प्रभु को आप फिर-
समय काटें यार चलती श्वास गिन।।
***
जो चाहे भगवान् वही तो होता है।
दोष रेल मंत्री को क्यों जग देता है।।
चित्रगुप्त प्रभु दुर्घटना में मार रहे-
नाव आप तू कर्म नदी में खेता है।।
***
आय घटे, वेतन रुके तो हो हाहाकार।
बढ़े टिकिट दर तो हुई जनता ही बेज़ार।।
रिश्वत लेना छोड़ता कभी नहीं स्टाफ-
दोष न मंत्री का तनिक, सत्य करें स्वीकार।।
२५-८-२०१७
***
नवगीत
*
नयनों ने
नयनों को
नेहिल आमन्त्रण दे
नयनों में बसा लिया।
हुलस-पुलक गया हिया।
*
मधुरिम-मादक चितवन
खिले अगिन स्नेह-सुमन
मन-प्राणों ने पाती
भेजी, संलग्न जिया।
हुलस-पुलक गया हिया।
*
मन भाई छवि बाँकी
एकटक देखी झाँकी
नयन कलश, नयन अधर
प्रेमामृत घूँट पिया
हुलस-पुलक गया हिया।
*
प्रकृति-पुरुष पुनः मिले
शत सरसिज विहँस खिले
नयनातुर नयनों ने
नयनों में गेह दिया
हुलस-पुलक गया हिया।
*
प्रणय-पत्र अनबाँचा
नयन-नयन ने बाँचा
पाणिग्रहण पल भर में
नयनों ने आप किया
हुलस-पुलक गया हिया।
*
युग गाथा गायेगा
चरण-सर नवायेगा
नयनों में नयनों को
बसा कहे 'धन्य प्रिया'
हुलस-पुलक गया हिया।
कृष्ण जन्माष्टमी २०१६
***
पद
प्रभु जी! झूलें विहँस हिंडोला
*
मैया खोंसें कान कजलियाँ, मुस्कायें बम भोला।
ग्वाल-बाल सँग खाँय खजुरियाँ, तजकर माखन-गोला।
हमें बुला बिठलाँय बगल में, राधा का मन डोला।
रिमझिम-रिमझिम बादल बरसें, भीगा सबका चोला।
सावन गीत गा रहीं सखियाँ, प्रेम सुरों में घोला।
२५-८-२०१६
***
गीत :
संजीव
*
मैं बना लूँ मित्र
तो क्या साथ
डेटिंग पर चलोगी?
*
सखी हो तुम
साथ बगिया-गली में
हम खूब खेले
हाथ थामे
मंदिरों में गये
देखे झूम मेले
खाई अमिया तोड़ खट्टी
छीन इमली करी कट्टी
पढ़ी मानस, फाग गायी
शरारत माँ से छिपायी
मैं पकड़ लूँ कान
तो बन सपन
नयनों में प लोगी?
मैं बना लूँ मित्र
तो क्या साथ
डेटिंग पर चलोगी?
*
आस हो तुम
प्यास मटकी उठाकर
पनघट गये हम
हास समझे ज़िंदगी
तज रास, हो
बेबस वरे गम
साथ साया भी न आया
हुआ हर अपना पराया
श्वास सूली पर चढ़े चुप
किन्तु कब तुमसे सके छुप
आखिरी दम हे सुधा!
क्या कभी
चन्दर से मिलोगी?
मैं बना लूँ मित्र
तो क्या साथ
डेटिंग पर चलोगी?
*
बड़ों ने ही
बड़प्पन खोकर
डुबायी हाय नौका
नियति निष्ठुर
दे सकी कब
भूल सुधरे- एक मौक़ा?
कोशिशों का काग बोला
मुश्किलों ने ज़हर घोला
प्रथाओं ने सूर्य सुत तज
कन्हैया की ली शरण भज
पाँच पांडव इन्द्रियों
की मौत कृष्णा
बनोगी, अब ना छलोगी?
मैं बना लूँ मित्र
तो क्या साथ
डेटिंग पर चलोगी?

*

***

POEM:

*
I slept
I awakened
I entered my childhood
I smiled.
I slept
I awakened
I entered my young age
I quarreled.
I slept
I awakened
I entered my old age
I repented.
An angel came in dream
And asked
If I get a new life
How will I like to live?
I replied
My life and way of living
Are my own
I will live it in the same way.
I will do nothing better
I will do nothing worse
I will like to live in my own way
It's better to die than to live
According to other's values.
२५-८-२०१५
***

बुधवार, 25 अगस्त 2021

नवगीत, जन्माष्टमी, नयन

नवगीत
*
नयनों ने
नयनों को
नेहिल आमन्त्रण दे
नयनों में बसा लिया।
हुलस-पुलक गया हिया।
*
मधुरिम-मादक चितवन
खिले अगिन स्नेह-सुमन
मन-प्राणों ने पाती
भेजी, संलग्न जिया।
हुलस-पुलक गया हिया।
*
मन भाई छवि बाँकी
एकटक देखी झाँकी
नयन कलश, नयन अधर
प्रेमामृत घूँट पिया
हुलस-पुलक गया हिया।
*
प्रकृति-पुरुष पुनः मिले
शत सरसिज विहँस खिले
नयनातुर नयनों ने
नयनों में गेह दिया
हुलस-पुलक गया हिया।
*
प्रणय-पत्र अनबाँचा
नयन-नयन ने बाँचा
पाणिग्रहण पल भर में
नयनों ने आप किया
हुलस-पुलक गया हिया।
*
युग गाथा गायेगा
चरण-सर नवायेगा
नयनों में नयनों को
बसा कहे 'धन्य प्रिया'
हुलस-पुलक गया हिया।
*****
कृष्ण जन्माष्टमी २०१६
२५-८-२०१६ 

शुक्रवार, 18 अगस्त 2017

dwipadiyaan

द्विपदियाँ जन्माष्टमी पर:
संजीव 
*
हो चुका अवतार, अब हम याद करते हैं मगर 
अनुकरण करते नहीं, क्यों यह विरोधाभास है?
*
कल्पना इतनी मिला दी, सत्य ही दिखता नहीं
पंडितों ने धर्म का, हर दिन किया उपहास है
*
गढ़ दिया राधा-चरित, शत मूर्तियाँ कर दीं खड़ी
हिल गयी जड़ सत्य की, क्या तनिक भी अहसास है?
*
शत विभाजन मिटा, ताकतवर बनाया देश को
कृष्ण ने पर भक्त तोड़ें, रो रहा इतिहास है
*
रूढ़ियों से जूझ गढ़ दें कुछ प्रथाएँ स्वस्थ्य हम
देश हो मजबूत, कहते कृष्ण- 'हर जन खास है'
*
भ्रष्ट शासक आज भी हैं, करें उनका अंत मिल
सत्य जीतेगा न जन को हो सका आभास है
*
फ़र्ज़ पहले बाद में हक़, फल न अपना साध्य हो
चित्र जिसका गुप्त उसका देह यह आवास है.
***
salil.sanjiv@gmail.com,९४२५१८३२४४
http://divyanarmada.blogspot.in

#हिंदी_ब्लॉगर 

सोमवार, 14 अगस्त 2017

bhakti geet

भक्ति गीत :
कहाँ गया
*
कहाँ गया रणछोड़ रे!
जला प्रेम की ज्योत
*
कण-कण में तू रम रहा
घट-घट तेरा वास.
लेकिन अधरों पर नहीं
अब आता है हास.
लगे जेठ सम तप रहा
अब पावस-मधुमास
क्यों न गूंजती बाँसुरी
पूछ रहे खद्योत
कहाँ गया रणछोड़ रे!
जला प्रेम की ज्योत
*
श्वास-श्वास पर लिख लिया
जब से तेरा नाम.
आस-आस में तू बसा
तू ही काम-अकाम.
मन-मुरली, तन जमुन-जल
व्यथित विधाता वाम
बिसराया है बोल क्यों?
मिला ज्योत से ज्योत
कहाँ गया रणछोड़ रे!,
जला प्रेम की ज्योत
*
पल-पल हेरा है तुझे
पाया अपने पास.
दिखता-छिप जाता तुरत
ओ छलिया! दे त्रास.
ले-ले अपनीं शरण में
'सलिल' तिहारा दास
दूर न रहने दे तनिक
हम दोनों सहगोत
कहाँ गया रणछोड़ रे!
जला प्रेम की ज्योत
***
salil.sanjiv@gmail.com, ९४२५१८३२४४
http://divyanarmada.blogspot.com
#हिंदी_ब्लॉगर

शुक्रवार, 14 अगस्त 2009

पाती प्रभु के नाम : संजीव 'सलिल'

जन्म-जन्म जन्माष्टमी, मना सकूँ हे नाथ.

कृष्ण भक्त को नमन कर, मैं हो सकूँ सनाथ.

वृन्दावन की रेणु पा, हो पाऊँ मैं धन्य.

वेणु बना लो तो नहीं मुझ सा कोई अन्य.

जो जन तेरा नाम ले, उसको करे प्रणाम.

चाकर तेरा है 'सलिल', रसिक शिरोमणि श्याम..