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गुरुवार, 4 जुलाई 2013

Kavita: amar prem dr. deepti gupta

मन पसंद रचना:

अमर प्रेम 

डॉ. दीप्ति गुप्ता 
*
युर्वेद के अनुसार जड़ी बूटियों की रानी सोमलता’ पौधे के आकार की एक अनूठी लता होती है! यह हिमालय और केरल के घाटों में ही उपलब्ध होती  है! इसमें ठीक १५ पत्तियाँ होती हैं! ये पत्तियाँ  पूर्णिमा के दिन ही देखी जा सकती हैयानी पूर्णिमा की  धवल कौमुदी में ही इसकी पत्तियाँ दिखाई देती हैं ! पूर्णिमा के अगले दिन  जैसे-जैसे सोम’ यानी चाँद  हर दिन घटता जाता है, सोमलता  की  पत्तियाँ  भी  एक-एक करके गिरनी शुरू हो  जाती हैं ! हर दिन एक पत्ती गिरती है  और उधर  इस तरह १५ दिन में चाँद का कृष्ण पक्ष आ जाता है और सोमलता  बिना पत्तियों  की  हो जाती  है ! लेकिन नए  चाँद  की जैसे ही नई यात्रा शुरू होती है,यानी पुन: चाँद बढ़ना शुरू होता है – सोमलता पर  हर रोज एक नई पत्ती आनी शुरू हो जाती है ! चन्द्रमा के घटने और बढने के साथ सोमलता  की  अद्भुत पत्तियाँ सोमरस को अपने में संजोए उगती  और झरती   हैं ! इन  पत्तियों का रस  सोने की सुई  से बड़ी सावधानी से निकाला जाता है !  जिसका प्रयोग 'सोम यज्ञ और रसायन’ उपचार में किया जाता है ! 'रसायनएक आयुर्वेदिक इलाज होता हैजो कायाकल्प’ करता है ! यानी वार्धक्य और मृत्यु की ओर जाते शरीर के चक्र को पुनरावर्तित  कर देता है !
It rewinds the life cycle. A person who had lost energy, vitality & charm due  to sickness or ageing, he regains it or we may say it rejuvenates a person. It  compensates what the human system lacks at every stage of life. This ‘Kaya kalp’  treatment  is  often misinterpreted as Geriatrics  or  old  age   care, but it is a process of  rejuvenation – a technique for reversing   age. Reversing is not a myth, it is a reality.
 
चन्द्रमा और सोमलता के इस अद्भुत अन्योन्याश्रित चुम्बकीय सम्बन्ध में हमने एक शाश्वत 'अमर प्रेम' की परिकल्पना की है ! यह परिकल्पना ही हमारी कविता का आधार है!
 
(इसके अलावा प्रेम का आधार मन होता है और मन का कारक या स्वामी चंद्रमा होता है! यह बात भी  परोक्ष रूप से इस कविता में समाहित है।)
 
 
 


               
'अमर प्रेम'
 
आसमां के तले  भी  आसमां  था  
वितान सा   रुपहला  इक तना था
तिलस्मे-ज़ीस्त  यूं  पसरा  हुआ था  
चाँद  पूरी  तरह  निखरा  हुआ  था 
प्रणय  के खेल हंस-हंस  खेलता था      
सोमरस   ‘सोमा’  पे   उडेलता  था;
                     
इधर  इक   ‘सोमलता’ धरती पे थी
देख कर चाँद  को जो खिल उठी थी
प्रिय  के  प्रणय  से  सिहरी  हुई सी
सिमटती,  मौन,   सहमी -  डरी  सी 
लहकती,लरजती,कंपकपी से भरी थी
सराबोर शिख से नख तक,  खडी थी;   
 
न कह पाती-''नही प्रिय अब संभलता  
करो बस,मुझ से अब नही सम्हलता''
समोती   झरता  अमिय  पत्तियों  में
सिमट  जाती मिलन प्रिय-प्रणयों में .
सिमटती   दूरियां,   धरती व  अम्बर
महकते वक़्त   केमौसम  के  तेवर;   
 
मिलन की  बीत घड़ियाँ कब गईऔर
दिवस बिछोह  का  आ  बैठा सर पर 
लगा दुःख से पिघलने चाँद  नभ पर  
परेशान,    विह्वल,   सोमा    धरा   पर 
'जियूंगी बिन पिया कैसे ?' विकल थी 
पल इक-इक था ज्यूं,युग-युग सा भारी;
 
थाम  कर सोमा की तनु-काय  न्यारी     
अनुरक्ति
  से  बाँध   बाहुपाश  प्यारी   
चाँद  अभिरत,  तब  अविराम  बोला
हृदय की विकलता का द्वार उसने खोला;
''मैं   लौटूंगा  प्रिय   देखो  तुरत ही
तुम्हारे बिन  ना  रह पाऊँगा मैं  भी ...के तुम  प्रिय  मेरी,  प्राण  सखा हो, 
के मेरे हर जनम की आत्म ऊर्जा हो;
 
तभी  से चाँद हर दिन-दिन  है  घटता 
लता 'सोमा'  का  तन पीड़ा  से कटता
ज्यूं  पत्ती  इक इक  कर गिरती जाती 
जान उसकी तिल-तिल निकलती जाती
दिवस  पन्द्रह  नज़र  आता  न  चंदा
तो  तजती  पत्तियाँ  'सोमाभी पन्द्रह
उजड़,  एकाकी   सी   बेजान   रहती 
दिवस  पन्द्रह   पड़ी  कुंठा ये  सहती;
   
तभी नव-रूप  धर चन्दा  फिर  आता 
खिला अम्बर पे  झिलमिल मुस्कुराता
झलक  पाकर  प्रियतम  की  सलोनी 
हृदय  सोमा  का  भी  तब लहलहाता
रगों  में  लहू   प्राणाधार  बन   कर   
दौड़ता  ऊर्जा   का  संचार  बन  कर
फूट  पड़ती  तभी  कोमल  सी  पत्ती 
लड़ी फ़िर दिन ब दिन पत्तों की बनती
 
उफ़क  पर  चाँदजब  बे-बाक़ खिलता
चैन  सोमा  को  तब धरती  पे  मिलता
सफ़र पूरा  यूं  होता  पन्द्रह दिनों का 
प्रणय - उन्मत्त  चाँद  गगन में चलता
छटा  सोमा   की  तब  होती निराली
ना  रहती  विरह की  बदरी भी काली;
 
सिमटते  चाँद  संग   पत्ती  का  झरना
निकलते  चाँद  पर   पत्ती  का  भरना
लखा   किसने   अनूठा   ये   समर्पण
ये  सोमा -चाँद  की  निष्ठा  का  दर्पण
देन  अद्भुत   अजब  मनुहार  की  ये
है  दुःख -हरनी कहानी  प्यार  की  ये !
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 deepti gupta <drdeepti25@yahoo.co.in>

FoI
Somlata   
Foto info
Somlata
  
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PNativeShrubUnknown
Photo: Thingnam Girija
Common name: Somlata, Gerard Jointfir • Hindi: Ain, Khanta, सोमलता Somlata • Ladakhi: ཆེཔཏ Chhepat, སོམlཏཱ Somlata • Malayalam: Buchchur • Sanskrit: सोमा Soma, सोमलता Somlata 
Botanical name:  Ephedra gerardiana    Family: Ephedraceae (Joint-Pine family)

Somlata is a low-growing rigid tufted shrub 1-2 ft tall, with numerous densely clustered erect slender, smooth, green, jointed branches, arising from a branched woody base. Branches have scales at the joints. Male cones are ovate, 6-8 mm, solitary or 2-3, with 4-8 flowers each with 5-8 anthers with fused filaments, and rounded fused bracts. Female cones are usually solitary. Fruit is ovoid 7-10 mm, with fleshy red succulent bracts enclosing the seeds. Goats and yaks feed on the branches during winter. Gerard Jointfir is found on stony slopes, gravel terraces and drier places in the Himalayas, from Afghanistan to Bhutan, at altitudes of 2400-5000 m. Flowering: May-June.
Medicinal uses:  Ephedra gerardiana has very likely been used in India since the Vedic period as a soma substitute. There came a time when the Aryans were no longer able to find the original psychoactive plant known as soma, perhaps because the identity of that plant was kept so secret or perhaps because it had been lost, and so it was that many people took to preparing the sacred soma beverage with substitute plants, one of which was E. gerardiana. This is how the plant received the name somalata, ‘plant of the moon’. The effects of E. gerardiana are more stimulating than visionary, however, indicating that this plant is not the original soma of the Vedas.
Photographed in Nubra Valley, Ladakh.

रविवार, 30 जून 2013

science: manav kloning dr. deepti gupta

विज्ञान सलिला :
मानव क्लोनिंग
डॉ. दीप्ति गुप्ता 
*
मनुष्य बहुत कुछ करना  चाहता है,  कर्म भी करता है भरसक प्रयास  भी  करता है लेकिन  कुछ काम हो पाते हैं और शेष नहीं हो पाते! जैसे  अनेक समृद्ध व संपन्न होने का प्रयास  करते है लेकिन  नहीं हो पाते! जो बिज़नेस करना चाहता  है, वह उसमें असफल होकर अध्यापक बन जाता है, जो संगीतज्ञ  बनना चाहताहै, वह डाक्टर बन जाता है, तमाम आई.पी. एस. अधिकारी और प्रशासनिक अधिकारी  अपनी  अफसरी छोडकर विश्वविद्यालय  प्रोफैसर बने! जिससे सिद्ध होता है कि ईश्वरेच्छा सर्वोपरि है!  इसी प्रकार, बहुत से जोड़े चाहते हुए भी  माता-पिता  ही नहीं बन पाते !

‘क्लोन’शब्द प्राचीन ग्रीक शब्द Klon, twig से व्युत्पन्न हुआ जो पेड़ की शाख से  नया पौधा पैदा किया जाने की प्रकिया के लिए प्रयुक्त किया जाता था! धीरे-धीरे यह शब्दकोष में सामान्य सन्दर्भ में प्रयुक्त होने लगा! ‘ईव’ सबसे पहली मानव क्लोन थी! जब वह जन्मी तो, उसने अपने साथ  वैज्ञानिक और राजनीतिक बहस को भी जन्म दिया! इस विषय पर आगे बढ़ने से पहले हमें मानव क्लोनिंग  को एक बार अच्छी तरह समझ लेना चाहिए! समान जीवो को उत्पन्न करने की  प्रक्रिया ‘प्रतिरूपण’ (क्लोनिंग) कहलाती है अर्थात प्रतिरूपण (क्लोनिंग) आनुवांशिक रूप से ‘समान दिखने’ वाले  प्राणियों को जन्म देने वाली ऐसी प्रकिया है जो विभिन्न जीवों से खास प्रक्रिया से प्रजनन करने पर घटित होती है! जैसे फोटोकापी मशीन से अनेक छायाप्रतियां बना लेते हैं उसी तरह  डी.एन.ए. खंडों (Molecular cloning) और कोशिकाओं (Cell Cloning) के भी प्रतिरूप बनाए जाते हैं!  बायोटेक्नोलौजी में  डी.एन.ए. खण्डों  के  प्रतिरूपण  की प्रक्रिया को  ‘क्लोनिंग’  कहते हैं ! यह टर्म किसी भी चीज़ की अनेक  प्रतिरूप (से डिजिटल मिडिया) बनाने  के लिए भी  प्रयुक्त होता है !
 
'प्रतिरूपण'   की  पद्धति - 

          जेनेटिक तौर पर अभिन्न पशुओं के निर्माण के लिए प्रजननीय प्रतिरूपण आमतौर पर "दैहिक कोशिका परमाणु हस्तांतरण" (SCNT = Somatic-cell nuclear transfer) का प्रयोग करता है !  इस प्रक्रिया में एक 'दाता (Donar) वयस्क कोशिका' (दैहिक कोशिका) से किसी नाभिक-विहीन अण्डे में नाभिक (nucleus) का स्थानांतरण  शामिल करना होता है !  यदि अण्डा सामान्य रूप से विभाजित हो जाए, तो इसे   'प्रतिनिधि  माँ ' (surrogate mother) के गर्भाशय में स्थानांतरित कर दिया जाता है ! फिर धीर-धीरे  उसका विकास होता जाता है !

       इस प्रकार के प्रतिरूप पूर्णतः समरूप नहीं होते क्योंकि दैहिक कोशिका के नाभिक डी.एन.ए में कुछ परिवर्तन हो सकते हैं !  किन्ही  विशेष कारणों से वे  अलग भी  दिख  सकते हैं !   surrogate माँ के हार्मोनल प्रभाव भी  इसका एक कारण माना जाता है ! यूं तो स्वाभाविक रूप से पैदा हुए  जुडवां बच्चो के भी उँगलियों के निशान भिन्न  होते है , स्वभाव अलग होते हैं, रंग फर्क  होते हैं !

             हाँलाकि  १९९७ तक  प्रतिरूपण साइंस फिक्शन की चीज़  था ! लेकिन  जब ब्रिटिश शोधकर्ता ने ‘डौली’ नामकी  भेड का क्लोन  प्रस्तुत किया (जो २७७ बार प्रयास करने के बाद सफल हुआ और डौली का जन्म हो पाया) तो तब से जानवरों - बंदर, बिल्ली, चूहे आदि पर  इस प्रक्रिया के  प्रयोग किए गए !  वैज्ञानिको  ने  मानव प्रतिरूपण का अधिक स्वागत नहीं किया  क्योकि  बच्चे के बड़े होने पर, उसके कुछ  नकारात्मक परिणाम सामने आए ! इसके आलावा, दस में से एक या दो भ्रूण ही सफलतापूर्वक विकसित  हो पाते हैं ! जानवरों पर किए  गए प्रयोगों से सामने आया कि २५  से ३० प्रतिशत जानवरों में  अस्वभाविकतएं आ जाती हैं ! इस दृष्टि से क्लोनिंग  खतरनाक है !
        वस्तुत; क्लोनिंग प्रतिरूपण के कुछ  ही सफल प्रयोगों पर हम खुश हो जाते है लेकिन यह  ध्यान देने योग्य बात है कि बड़ी संख्या में अनेक प्रयास  असफल ही रह जाते हैं ! जो सफल होते हैं उनमें बाद में  कोई  प्राणी बड़ा होता जाता है, उसकी अनेक शारीरिक स्वास्थ्य संबंधी सामने आने लगती हैं ! अब तक जानवरों के जो प्रतिरूपण बनाए गए उनसे निम्नलिखित समस्याएं
 सामने आई  -
१)       परिणाम असफल रहे ! यह प्रतिशत ०.१ से ३ तक ही रहा ! मतलब कि यदि १००० प्रयास  किए गए तो उनमें ३०   प्रतिरूपण ही सफल हुए ! क्यों ?
   *    नाभिक-विहीन अण्डे  और स्थानांतरित नाभिक (nucleus)  में   अनुकूलता (compatibility) न बैठ पाना  !
 
   *   अंडे का विभाजित न होना और विकसित  होने में बाधा  आना !
           *   प्रतिनिधि (Surrogate )  माँ के गर्भाशय में अंडे को स्थापित करने पर , स्थापन का असफल हो जाना
 
       *  बाद के विकास  काल में समस्याएं आना !


 २) जो  जानवर  जीवित रहे वे आकार में सामान्य से  काफी बड़े थे ! वैज्ञानिको ने इसे "Large Offspring Syndrome" (LOS) के नाम से अभिहित किया ! इसी  तरह उनके ऊपरी आकार ही नहीं अपितु, शिशु जानवरों के अंदर के अंग भी विशाल आकार के पाए गए ! जिसके करण उन्हें साँस लेने, रक्त संचालन व  अन्य समस्याएं हुई ! लेकिन ऐसा  हमेशा  नहीं भी घटता है ! कुछ  क्लोन प्राणियों की किडनी  और मस्तिष्क के आकार विकृत पाए गए तथा  इम्यून सिस्टम भी  अशक्त  था ! 

३)    जींस के (एक्सप्रेशन) प्रस्तुति सिस्टम का  असामान्य होना भी सामने आया ! यद्यपि क्लोन मौलिक  देहधारियो जैसे ही दिखते है और उनका डी एन ए  sequences क्रम भी समान होता है ! लेकिन वे सही समय पर सही जींस को  प्रस्तुत कर पाते हैं ? यह सोचने का विषय है !
४ )     Telomeric विभिन्नताएँ - जब कोशिका या कोशाणु (cells )विभाजित होते हैं तो, गुण सूत्र (chromosomes) छोटे होते जाते हैं! क्योकि डी.एन.ए क्रम (sequences) गुण सूत्रों के दोनों ओर- जो टेलोमियर्स – कहलाते हैं वे हर बार डी.एन.ए के प्रतिरूपण प्रक्रिया के तहत लम्बाई में सिकुडते जाते हैं !  प्राणी उम्र में जितना बड़ा होगा टेलीमियर्स उतने ही छोटे होगें ! यह उम्रदर प्राणियों के साथ एक सहज प्रक्रिया है ! ये भी समस्या का विषय निकला !

           इन कारणों से विश्व के वैज्ञानिक मानव प्रतिरूपण के पक्ष में नहीं  हैं! वैसे भी कहा यह जाता है कि इस तरह बच्चा प्राप्त करने कि प्रक्रिया उन लोगों के लिए सामने  लाई  गई, जो चाहते हुए भी माता-पिता  नहीं बन पाते! 

अब आप खुद  ही सोचिए कि  ईश्वर  प्रदत्त  मानव  ज्यादा बेहतर कि इस तरह के कृत्रिम विधि से पैदा  मानव..... जिनमे तमाम विकृतियां अधिक और सामान्य - स्वस्थ शरीर  कम मिलेगे ! प्रकति पर विजय प्राप्त करने के नतीजे अभी केदारनाथ-बद्रीनाथ की प्रलय में देख ही लिए हैं ! आने वाले समय में ९० प्रतिशत  विकृत शरीर, विकृत मनों-मस्तिष्क वाले अक्षम मनुष्य  और देखने को मिलेगें  ! इसलिए प्रकृति  के खिलाफ जाना   श्रेयस्कर  नहीं ! प्रकृति यानी ईश्वर का प्रतिरूप - उसके  अनुरूप ही अपने को ढाल कर चलना  चहिए  क्योंकि  हम उसका सहज- स्वाभाविक हिस्सा है !
======

गुरुवार, 30 मई 2013

taanka in hindi : deepti - sanjiv

विश्ववाणी हिंदी - जापानी सेतु :
तांका: एक परिचय
दीप्ति - संजीव
*
पंचपदी लालित्यमय, तांका शाब्दिक छन्द,
बंधन गण पदभार तुक, बिन रचिए स्वच्छंद।
प्रथम तीसरी पंक्तियाँ, पंचशब्दी मकरंद।।
शेष सात शब्दी रखें, गति-यति रहे न मंद।
जापानी हिंदी जुड़ें, दें पायें आनंद।।
*
यह जापान की  प्राचीनतम क्लासिकल काव्य-विधा मानी जाती है ! यह  ५ पंक्तियों  की  कविता होती है जिसमे पहली और तीसरी पंक्ति में  पाँच  शब्द  और शेष में सात  शब्द   होते   हैं ! इसके विषय प्रक्रति , मौसम, प्रेम और उदासी आदि होते हैं !
Tanka : Deepti
Tanka is a Japanese poetry type of five lines, the first and third composed of five syllables and the rest of seven. Tanks poems are written about nature, seasons, love, sadness and other strong emotions.  Tanka is the oldest type of poetry in Japan.
*  
Lovely,  lively ,  pretty,  colourful, beautiful                           -  5

Nature   is  God's  eternal    and  divine  creation                    - 7

Makes  us  fresh   and  energetic                                                  -  5    

It's     my    best    friend , teacher   and   guide                            - 7
                                                  
Always    with   me    in   happiness   and    grief                          - 7     
*
उदाहरण : सलिल
निरंतर निनादित धवल धार अनुपम,
निरखो न परखो न सँकुचो न ठिठको
कहती टिटहरी प्रकृति पुत्र! आओ
झिझको न, टेरो मन-मीत को तुम
छप-छप-छपाक, नीर नद में नहाओ
*
बन्धन भुलाकर करो मुक्त खुदको
अंजुरी में जल भर, रवि को चढ़ाओ
मस्तक झुकाओ, भजन भी सुनाओ
माथे पे चन्दन, जिव्हा पर हरि-गुण
दिखा भोग प्रभु को, भर पेट खाओ
*

सोमवार, 8 अप्रैल 2013

English poetry 2 : Acrostic Poems : dr. deepti gupta

अँग्रेज़ी काव्य विधाएँ-२
Acrostic Poems :   (आक्रोस्टिक पोयम्स): 

dr. deepti gupta
* 
यह अँग्रेज़ी कविता  का ऐसा  रूप है  जिसमें हर पंक्ति  में पहले शब्द
का पहला अक्षर आगे आने वाले अक्षरों के साथ जुड कर संयुक्त रूप से
एक  सार्थक शब्द या सन्देश  का सृजन  करता है- जो कविता का
शीर्षक भी हो सकता है! जैसे&
 
THE ROSE
 
T hirty two steps through the yellow 
  green grass led me to you.
H aving to choose which one, my heart 
  will no doubt choose you.   
E very rose bloomed quite differently 
 though nothing meretricious like you.
 
R ed is knewn to be the favourite 
  colour to man,colour blinded, my 
  soul desired you.
O of all the roses, my senses were 
  captivated and comly to you. 
S ome man may pick up more than one 
  rose, but I only want you.
E ven mother nature pulchritudinous 
  can't compare you. 
  
MY POETRY SOUP 


M y eyes see what your heart is 
  feeling
Y our feelings you write out as 
  poetry
 

P ain, love, joy, wonder, 
  inspiration
O nly you can help me see, hear
  and feel you
E ven though only words you have 
  written they
T ouch my heart and mind deeply 
  from within
R equiring me to write a poem so 
  full of feeling as
Y ou become my poetry I write 
  from my heart
 
S mile, laugh, cry, whisper, or 
  shout
O pen your heart, mind, and soul
U tter your words on paper or 
  screen
P oetry is where I see and feel 
  your soul
*
Nicky
by
Marie Hughes
0                         
Nicky is a Nurse
It's her chosen career
c hiidren or old folks
k indness in abundance
Y ear after year
  
 
अभिनव प्रयोग-
आद्याक्षरी कविता सरस 
संजीव वर्मा 'सलिल'
०
आदि-अंत से रहित है, सबका पालनहार.
द्याना सबको यथोचित, कारया करे करतार..
क्षमा वीर को सोहती, दे उदार ही दान. 
रीझे कवि सौंदर्य पर, संत तजे अभिमान..
कन्या को शालीनता, सुत को संयम-सीख.
विग्य सदा कहते रहे, ज़्यादा रह कम दीख..
तालमेल से शांति-सुख, अहंकार दुख-ख़ान.
सदाचार से स्नेह हो, नष्ट करे अभिमान..
रसना रस की दास बन, नष्ट करे सम्मान.
सविनय सीखे सबक जो, वही बने गुणवान..
०
टीप: द्याना = दिलाना 
उक्त आद्याक्षरी रचना दोहा के छन्द-विधान के 
अनुरूप है. 
हर दो पंक्तियों में समान तुक का पालन होने 
से यह कप्लेट(द्विपदी)भी है. 
*
madhu gupta
 
MADHU 
M y struggle in life
A rise from the past strife
D ead are the by gone moments 
H ell and fury would scream aloud
U nder the ruins of pain I live 
  and will one day die.
*
SHIVER

S he rose from the dust of her ashes
H aving nothing on herself except
I nsult of being born
V aluable future did'nt forsake
E ver went ahead looking straight in
  the eyes of the Sun
R aring not to subdue, daring the pain.
 (Audi Riak a 6 yeared Sudani refugee girl
  along with thousadns leved, died & 
  survived above reaction 0n her.)
*
नींजा जी   
नीं द कैसे आयगी गर भूखे ही रह जायेंगे
र ह रह के करवटें बदलेंगे सो नहीं पायेंगे 
जा नेमन न हुईं जो शबे रात में पास तुम
जी कैसे बहलाएँगे तरसते ही रह जायेंगे 
*

महेश चन्द्र द्विवेदी
-
नींजा जी   
नी रव जीवन में प्रतिपल झंकृत 
र जनी के तम में चिरआलोकित
जा न्हवी सम महेश को अर्पित,
जी वनसंगिनि! यह तुम्हे समर्पित 
 
*
 

                                                                                             
 

शुक्रवार, 5 अप्रैल 2013

English Poetry 1 : Couplet Dr. deepti Gupta



अंगरेजी काव्य विधाएं और हिंदी रूपंरातण  १ 

दीप्ति गुप्ता  
*
आदरणीय  संजीव जी के  आदेश एवं  सुन्दर  सुझाव के तहत  अपनी तुच्छ  जानकारी के  अनुसार  अंग्रेजी की कविता के  विविध प्रकार  के बारे में  हम जानकारी   देने  की  कोशिश करेगें !  इससे  हमें  भी  एक लाभ होगा कि हमारा  विद्यार्थी जीवन पुनर्जीवित हो उठेगा और  हमारी  पढाई- लिखाई   की   जंग  भी साफ़  हो जायेगी !  कहीं - कहीं भूल-चूक  होने की संभावना  है, सो  उसके लिए  अभी से  आप सबको   हमें  'क्षमा'  करने के लिए  तैयार रहना  होगा ! 

अस्तु,   आज  सबसे पहले -  अंग्रेजी कविता के  विविध रूपों का  उल्लेख मात्र - जिनके नाम  इस प्रकार है -  

Acrostic Poems,  

ABC Poems,  

Blank Verse Poems,    

Cinquain Poems,

Circle Poems,
 
Concrete Poems, 

Couplet Poems,
Diamante, 

Haiku,  

Limerick,
 
Name Poem,   

Ode,
 
Parody Poems,
 
Quatrain Poems, Sonnets,
   
Who-What-When-Where-Why Poems,

     इनके बारे में हम  एक-एक करके  लिखेगें -  आज  सबसे आसान और प्रचलित  कविता  Couplet के बारे में  


Couplet  :

समध्वनियों   वाले शब्दों  पे  अंत होने वाली   दो  लयात्मक  पंक्तियों   की कविता  को   couplet  कहा  जाता  है !   दोनों पंक्तियों  का मीटर  समान होता है !  जैसे -


Watering rain on the leaves
Orchid plant mutely sleeps


Under the pillow raining night
Memory coins may or might!
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