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सोमवार, 27 जुलाई 2020

क्षणिका

क्षणिकायें:
१. आभार
*
आभार
अर्थात आ भार.
तभी कहें
जब सकें स्वीकार
*
२. वरदान
*
ज़िन्दगी भरा चाहा
किन्तु न पाया.
अवसर मिला
तो नाहक गँवाया.
मन से किया
कन्यादान.
पर भूल गए
करना वरदान.
*
३. कविता
भाव सलिला से
दर्द की उषा किरण
जब करती है अठखेली
तब जिंदगी
उसे बनाकर सहेली
कर देती है कविता.
*

२७-७-२०१७
salil.sanjiv@gmail.com

बुधवार, 24 जून 2015

Muktak: sanjiv

मुक्तक:
संजीव
*
रौशनी कब चराग करते हैं?
वो न सीने में आग धरते हैं.
तेल-बाती सदा जला करती-
पूजकर पैर 'सलिल' तरते हैं.
*
मिले वरदान चाह की हमने
दान वर का नहीं किया तुमने
दान बिन मान कहाँ मिल सकता
उँगलियों पर लिया नचा हमने
*
माँग थी माँग आज भर देना
दान कन्या का झुका सर लेना
ले लिया कर में कर न छूटेगा
ज़िंदगी भर न चुके, कर देना
*