चित्र पर कविता:
बसंत के आगमन पर झूमते तन-मन की बानगी लिए चित्र देखिये और रच दीजिए भावप्रवण रचना। संभव हो तो रचना के छंद का उल्लेख करें।
बसंत के आगमन पर झूमते तन-मन की बानगी लिए चित्र देखिये और रच दीजिए भावप्रवण रचना। संभव हो तो रचना के छंद का उल्लेख करें।
डॉ. प्राची.सिंह
छंद त्रिभंगी
*
मन निर्मल निर्झर, शीतल जलधर, लहर लहर बन, झूमे रे..
मन बनकर रसधर, पंख प्रखर धर, विस्तृत अम्बर, चूमे रे..
ये मन सतरंगी, रंग बिरंगी, तितली जैसे, इठलाये..
जब प्रियतम आकर, हृदय द्वार पर, दस्तक देता, मुस्काये..
टीप: त्रिभंगी छंद के रचना विधान तथा उदाहरण प्रस्तुत किये जा चुके हैं।
त्रिभंगी सलिला:
ऋतुराज मनोहर...
संजीव 'सलिल'
*
ऋतुराज मनोहर, प्रीत धरोहर, प्रकृति हँसी, बहु पुष्प खिले.
पंछी मिल झूमे, नभ को चूमे, कलरव कर भुज भेंट मिले..
लहरों से लहरें, मिलकर सिहरें, बिसरा शिकवे भुला गिले.
पंकज लख भँवरे, सजकर सँवरे, संयम के दृढ़ किले हिले..
*
ऋतुराज मनोहर, स्नेह सरोवर, कुसुम कली मकरंदमयी.
बौराये बौरा, निरखें गौरा, सर्प-सर्पिणी, प्रीत नयी..
सुरसरि सम पावन, जन मन भावन, बासंती नव कथा जयी.
दस दिशा तरंगित, भू-नभ कंपित, प्रणय प्रतीति न 'सलिल' गयी..
*
ऋतुराज मनोहर, सुनकर सोहर, झूम-झूम हँस नाच रहा.
बौराया अमुआ, आया महुआ, राई-कबीरा बाँच रहा..
पनघट-अमराई, नैन मिलाई के मंचन के मंच बने.
कजरी-बम्बुलिया आरोही-अवरोही स्वर हृद-सेतु तने..
**
sn Sharma <ahutee@gmail.com>
चित्र पर रचना -
कौन तुम किस लोकवासी
तुहिन-वदना अप्सरा सी
प्रकट सहसा सरित-जल पर
शरद-ऋतु की पूर्णिमा सी
छंद त्रिभंगी
*
मन निर्मल निर्झर, शीतल जलधर, लहर लहर बन, झूमे रे..
मन बनकर रसधर, पंख प्रखर धर, विस्तृत अम्बर, चूमे रे..
ये मन सतरंगी, रंग बिरंगी, तितली जैसे, इठलाये..
जब प्रियतम आकर, हृदय द्वार पर, दस्तक देता, मुस्काये..
टीप: त्रिभंगी छंद के रचना विधान तथा उदाहरण प्रस्तुत किये जा चुके हैं।
त्रिभंगी सलिला:
ऋतुराज मनोहर...
संजीव 'सलिल'
*
ऋतुराज मनोहर, प्रीत धरोहर, प्रकृति हँसी, बहु पुष्प खिले.
पंछी मिल झूमे, नभ को चूमे, कलरव कर भुज भेंट मिले..
लहरों से लहरें, मिलकर सिहरें, बिसरा शिकवे भुला गिले.
पंकज लख भँवरे, सजकर सँवरे, संयम के दृढ़ किले हिले..
*
ऋतुराज मनोहर, स्नेह सरोवर, कुसुम कली मकरंदमयी.
बौराये बौरा, निरखें गौरा, सर्प-सर्पिणी, प्रीत नयी..
सुरसरि सम पावन, जन मन भावन, बासंती नव कथा जयी.
दस दिशा तरंगित, भू-नभ कंपित, प्रणय प्रतीति न 'सलिल' गयी..
*
ऋतुराज मनोहर, सुनकर सोहर, झूम-झूम हँस नाच रहा.
बौराया अमुआ, आया महुआ, राई-कबीरा बाँच रहा..
पनघट-अमराई, नैन मिलाई के मंचन के मंच बने.
कजरी-बम्बुलिया आरोही-अवरोही स्वर हृद-सेतु तने..
**
sn Sharma <ahutee@gmail.com>
चित्र पर रचना -
कौन तुम किस लोकवासी
तुहिन-वदना अप्सरा सी
प्रकट सहसा सरित-जल पर
शरद-ऋतु की पूर्णिमा सी
आचार्य संजीव जी द्वारा इंगित त्रिभंगी-छंद में उक्त कलाकृति पर
कुछ पंक्तिया लिखने का प्रयास किया है । इस छंदके व्याकरण और शिल्प पर
उनके आलेख की मेल मेरे कंप्यूटर से लोप हो चूकी थी अस्तु उनके दूसरे त्रिभंगी छंद
को पढ़ कर अपने अनुमान से यह रचना प्रस्तुत कर रहा हूँ । आशा है आचार्य जी अपनी
प्रतिक्रिया में इसके व्याकारण दोष और शिल्प-दोष पर प्रकाश डालेंगे ।
छंद त्रिभंगी षट -रस रंगी अमिय सुधा-रस पान करे
छवि का बंदी कवि-मन आनंदी स्वतः त्रिभंगी-छंद झरे
दृश्यावलि सुन्दर लोल-लहर पर अलकावलि अति सोहे
पृथ्वी-तल पर सरिता-जल पर पसरी कामिनी मन मोहे
उषाकाल नव-किरण जाल जल का उछाल यह लख रे
सद्यस्नाता कंचन गाता रति-रूप लजाता दृश्य अरे
सस्मित निरखत रस रूप-सुधा घट चितवत नेह-पगा रे
गगन मुदित रवि नैसर्गिक छवि विस्मित मौन ठगा रे
श्यामल केश कमल-मुख श्वेत रुचिर परिवेश प्रदान करे
नयन खुले से निमिष-तजे से अधर मंद मुस्कान भरे
उभरे वक्षस्थल जलक्रीडा स्थल लहर उछल मन प्राण हरे
सोई सुषमा सी विधु ज्योत्स्ना सी शरद पूर्णिमा नृत्य करे
रोमांचित तन प्रमुदित मन आलोकित सिकता-कण बिखरे
सस्मित आकृति अनमोल कलाकृति मुग्ध प्रकृति इस पल रे
उतरी जल-परि सी सिन्धु-लहर सी प्रात प्रहर सुर-धन्या सी
दीप-शिखा सी नव-कालिका सी इठलाती हिम-कन्या सी
दादा
कुछ पंक्तिया लिखने का प्रयास किया है । इस छंदके व्याकरण और शिल्प पर
उनके आलेख की मेल मेरे कंप्यूटर से लोप हो चूकी थी अस्तु उनके दूसरे त्रिभंगी छंद
को पढ़ कर अपने अनुमान से यह रचना प्रस्तुत कर रहा हूँ । आशा है आचार्य जी अपनी
प्रतिक्रिया में इसके व्याकारण दोष और शिल्प-दोष पर प्रकाश डालेंगे ।
छंद त्रिभंगी षट -रस रंगी अमिय सुधा-रस पान करे
छवि का बंदी कवि-मन आनंदी स्वतः त्रिभंगी-छंद झरे
दृश्यावलि सुन्दर लोल-लहर पर अलकावलि अति सोहे
पृथ्वी-तल पर सरिता-जल पर पसरी कामिनी मन मोहे
उषाकाल नव-किरण जाल जल का उछाल यह लख रे
सद्यस्नाता कंचन गाता रति-रूप लजाता दृश्य अरे
सस्मित निरखत रस रूप-सुधा घट चितवत नेह-पगा रे
गगन मुदित रवि नैसर्गिक छवि विस्मित मौन ठगा रे
श्यामल केश कमल-मुख श्वेत रुचिर परिवेश प्रदान करे
नयन खुले से निमिष-तजे से अधर मंद मुस्कान भरे
उभरे वक्षस्थल जलक्रीडा स्थल लहर उछल मन प्राण हरे
सोई सुषमा सी विधु ज्योत्स्ना सी शरद पूर्णिमा नृत्य करे
रोमांचित तन प्रमुदित मन आलोकित सिकता-कण बिखरे
सस्मित आकृति अनमोल कलाकृति मुग्ध प्रकृति इस पल रे
उतरी जल-परि सी सिन्धु-लहर सी प्रात प्रहर सुर-धन्या सी
दीप-शिखा सी नव-कालिका सी इठलाती हिम-कन्या सी
दादा
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