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शनिवार, 20 दिसंबर 2014

yamakeey doha:

यमकीय दोहा सलिला:
थकित-तृषित मन चल विहँस, अब दर्शन के गाँव धन्य हो सके प्राण-मन, तन चाहे कुछ छाँव
नाहक हक ना त्याग तू, ना हक  पीछे भाग
ना ज्यादा अनुराग रख, ना हो अधिक विराग 

मन उन्मन मत हो पुलक, चल चिलमन के गाँव
चिलम न भर चिल रह 'सलिल', तभी मिले सुख-छाँव 

गए दवाखाना तभी, पाया यह संदेश
भूल दवा खाना गए, खा लें था निर्देश 

ठाकुर जी सिर झुकाकर, करते नम्र प्रणाम
ठाकुर जी मुस्का रहे, आज पड़ा फिर काम

नम न हुए कर नमन तो, समझो होती भूल
न मन न तन हो समन्वित, तो चुभता है शूल

बख्शी को बख्शी गयी, जैसे ही जागीर
थे फकीर कहला रहे, पुरखे रहे अमीर

घट ना फूटे सम्हल जा, घट ना जाए मूल
घटना यदि घट जाए तो, व्यर्थ नहीं दें तूल 

चमक कैमरे ले रहे, जहाँ-तहाँ तस्वीर
दुर्घटना में कै मरे,जानो कर तदबीर

तिल-तिल कर जलता रहा, तिल भर किया न त्याग
तिल-घृत की चिंताग्नि की, सहे सुयोधन आग

'माँग भरें' वर माँगकर, गौरी हुईं प्रसन्न
वर बन बौरा माँग भर, हुए अधीन- न खिन्न
*

मंगलवार, 24 जून 2014

chhand salila: alha chhand -sanjiv

छंद सलिला:
आल्हा/वीर/मात्रिक सवैयाRoseछंद 

संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति , अर्ध सम मात्रिक छंद, प्रति चरण मात्रा ३१ मात्रा, यति १६ -१५, पदांत गुरु गुरु, विषम पद की सोलहवी मात्रा गुरु (ऽ) तथा सम पद की पंद्रहवीं मात्रा लघु (।),

लक्षण छंद:

आल्हा मात्रिक छंद सवैया, सोलह-पन्द्रह यति अनिवार्य.    
गुरु-लघु चरण अंत में रखिये, सिर्फ वीरता हो स्वीकार्य..
अलंकार अतिशयता करता बना राई को 'सलिल' पहाड़.
    
ज्यों मिमयाती बकरी सोचे, गुँजा रही वन लगा दहाड़..

उदाहरण:

१. बुंदेली के नीके बोल... संजीव 'सलिल'
*
तनक न चिंता करो दाऊ जू, बुंदेली के नीके बोल.
जो बोलत हैं बेई जानैं, मिसरी जात कान मैं घोल..
कबू-कबू ऐसों लागत ज्यौं, अमराई मां फिररै डोल.
आल्हा सुनत लगत हैं ऐसो, जैसें बाज रए रे ढोल..

अंग्रेजी खों मोह ब्याप गौ, जासें मोड़ें जानत नांय.
छींकें-खांसें अंग्रेजी मां, जैंसें सोउत मां बर्रांय..
नीकी भासा कहें गँवारू, माँ खों ममी कहत इतरांय.
पाँव बुजुर्गों खें पड़ने हौं, तो बिनकी नानी मर जांय..

फ़िल्मी धुन में टर्राउट हैं, आँय-बाँय फिर कमर हिलांय.
बन्ना-बन्नी, सोहर, फागें, आल्हा, होरी समझत नांय..
बाटी-भर्ता, मठा-महेरी, छोड़ केक बिस्कुट बें खांय.
अमराई चौपाल पनघटा, भूल सहर मां फिरें भुलांय..
*

२. कर में  ले तलवार घुमातीं, दुर्गावती करें संहार.
    यवन भागकर जान बचाते  गिर-पड़ करते हाहाकार.  
    सरमन उठा सूँढ से फेंके, पग-तल कुचले मुगल-पठान.  
    आसफ खां के छक्के छूटे, तोपें लाओ बचे तब जान.

३. एक-एक ने दस-दस मारे, हुआ कारगिल खूं से लाल 
    आये कहाँ से कौन विचारे, पाक शिविर में था भूचाल 
    या अल्ला! कर रहम बचा जां, छूटे हाथों से हथियार  
    कैसे-कौन निशाना साधे, तजें मोर्चा हो बेज़ार 
__________
*********  
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कमंद, कामिनीमोहन, काव्य, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दिक्पाल, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, नित, निधि, निश्चल, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदन,मदनावतारी, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, मृदुगति, योग, ऋद्धि, रसामृत, रसाल, राजीव, राधिका, रामा, रूपमाला, लीला, वस्तुवदनक, वाणी, विरहणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, शोभन, सरस, सार, सारस, सिद्धि, सिंहिका, सुखदा, सुगति, सुजान, सुमित्र, संपदा, हरि, हेमंत, हंसगति, हंसी)
chhand salila: alha  chhand  -sanjiv
acharya sanjiv verma 'salil', alha chhand, chhand, hindi chhand, veer chhand, maatrik savaiya chhand, ardh matrik sum chhand, 

बुधवार, 18 जून 2014

chhand salila: chaupaiyaa chhand -sanjiv

छंद सलिला:
चौपइयाRoseछंद 

संजीव
*
छंद लक्षण:  जाति महातैथिक, प्रति पद ३०  मात्रा, यति १०-८-१२,  पदांत गुरु (य, म ,र, स, गण)। 

लक्षण छंद:

    कवि रच चौपइया, ता ता थैया, गाओ झूमो नाचो 
    दस-आठ-सुबारह, यति-गति रखकर, छंद पत्रिका बाँचो 
    पद-अंत करे गुरु, संत भजे प्रभु, सत-शिव-सुन्दर गुनना    
    सत-चित-आनंदी, परमानंदी, नाद अनाहद सुनना 

उदाहरण:

१. शोषित मत होना, धैर्य न खोना, बदलो सरकारों को 
    गणतंत्र नदी में, नाव न डूबे, थामो पतवारों को 
    जन प्रतिनिधि चेतो, गला न रेतो, जनता-मतदाता का 
    रिश्वत मत लेना, घूस न देना, फहरा सत्य-पताका 
    जो धन विदेश में, जमा न भूलो, वापिस ले आना है 
    जन गण मन गाकर, विहँस तिरंगा, नभ में फहराना है     

२. कोशिश मत छोड़ो, मुँह मत मोड़ो, मुश्किल से मत डरना
    पथ पर रख पग दृढ़, बढ़ गिर उठ चढ़, नित नव मंज़िल वरना
    ले हाथ-हाथ में, कदम साथ में, धूप-छाँव संग सहना
    अरि-दल-दिल दहला, फेंको दहला, हर अवसर जय करना   

३. नभ-बादल छाये, द्युति धमकाये, मिटा नहीं हरियाली 
     ले पानी लाई, करूँ सफाई, भू पर हो खुशहाली
     जंगल मत काटो, गिरि मत खोदो, मत खो दो नदियों को 
     कहकर विकास मत, कर विनाश क्यों, शाप बनो सदियों को 
     गहरी कर नदियाँ, तट पर जंगल, घना खूब बढ़ने दो 
     पंछी कलरव कल,कल जल-रव तरु,विटप लता चढ़ने दो 
     मृग शावक उछलें, नाहर गरजें, गज मस्ती में झूमें 
     सीताफल जामुन, बेर फलें खा, वानर हूहें-लूमें     
__________
*********  
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अनुगीत, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामरूप, कामिनीमोहन, काव्य, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गीता, गीतिका, गंग, घनाक्षरी, चुलियाला, चौपइया, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दिक्पाल, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, धारा, नित, निधि, निश्चल, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदनअवतार, मदनाग, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मरहठा, मरहठा माधवी, मानव, माली, माया, माला, मोहन, मृदुगति, योग, ऋद्धि, रसामृत, रसाल, राजीव, राधिका, रामा, रूपमाला, रोला, लीला, वस्तुवदनक, वाणी, विद्या, विधाता, विरहणी, विशेषिका, विष्णुपद, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, शोभन, शुद्धगा, शंकर, सरस, सार, सारस, सिद्धि, सिंहिका, सुखदा, सुगति, सुजान, सुमित्र, संपदा, हरि, हरिगीतिका, हेमंत, हंसगति, हंसी)
chhand salila:  chaupaiyaa chhand  -sanjiv
acharya sanjiv verma 'salil', chaupaiya chhand, chhand, hindi chhand

शनिवार, 8 फ़रवरी 2014

chhand salila: jaya chhand -sanjiv

​​छंद सलिला:
जाया छंद
संजीव
*
(अब तक प्रस्तुत छंद: अग्र, अचल, अचल धृति, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, एकावली, कीर्ति, घनाक्षरी, छवि,
​जाया, ​
तांडव, तोमर, दीप, दोधक, निधि, प्रेमा, बाला, मधुभार, माया, माला, रामा, लीला, वाणी, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शिव, शुभगति, सार, सुगति, सुजान, हंसी)

*
दो पदी, चार चरणीय, ४ वर्ण, ६९ मात्राओं के मात्रिक जाया छंद में प्रथम- द्वितीय-तृतीय चरण उपेन्द्र वज्रा छंद के
तथा चतुर्थ चरण इंद्र वज्रा छंद के होते हैं.
उदाहरण:
१. अनाम नाता न निभा सकोगी, प्रणाम माता न डिगा सकोगी
   दिया सहारा जिसने मुझे था, बोलो उसे भी अपना सकोगी?
२. कभी न कोई उपकार भूले, कहीं न कोई प्रतिकार यूँ ले
   नदी तरंगोंवत झूल झूले, तौलो न बोलो कडुआ कभी भी
३. हमें लुभातीं छवियाँ तुम्हारी, प्रिये! न जाओ नज़दीक आओ
    यही तुम्हारी मनकामना है, जानूं! हमीं से सच ना छिपाओ
*********
facebook: sahiyta salila / sanjiv verma 'salil'


गुरुवार, 6 फ़रवरी 2014

harigitika: ambareesh shrivastav



माँ नर्मदा दिवस पर विशेष..

छंद हरिगीतिका:
इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'
Ambarish Srivastava
*
हर शिवसुता माँ नर्मदा आहत हुईं अपमान से.
विपरीत पथ पर भी अडिग हैं बह रहीं सम्मान से.
क्षणमात्र दर्शन पापमोचक, शांति सुख वरदान दें.
दें नर्मदेश्वर विश्वपूजित, भक्तिमय सद्ज्ञान दें..


Anshumali Patel की फ़ोटो. 
मन कामना है यह हमारी नर्मदा युग-युग बहें.
शुभ शिवकृपा उन पर सदा हो, कष्ट मत कोई सहें.
हृद वेदना हो दूर उनकी, हम सदा ही ध्यान दें.
हों अतिक्रमण से दूर हम, माँ नर्मदा को मान दें.. 


Ambarish Srivastava की फ़ोटो.

बुधवार, 5 फ़रवरी 2014

chhand salila: bala chhand -sanjiv

छंद सलिला:
बाला छंद 
संजीव 
*
(अब तक प्रस्तुत छंद: अग्र, अचल, अचल धृति, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, एकावली, कीर्ति, घनाक्षरी, छवि, तांडव, तोमर, दीप, दोधक, निधि, प्रेमा, बाला, मधुभार, माला, रामा, लीला, वाणी, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शिव, शुभगति, सार, सुगति, सुजान, हंसी)
*
बाला छंद में प्रथम तीन चरण इंद्र वज्रा छंद के तथा चतुर्थ उपेन्द्र वज्रा छंद के होते हैं. 
उदाहरण:
१. आओ, बुलाया मन है हमारा, मानो न मानो दिल से पुकारा 
   बोलो न बोलो, हमने सुना है, किया अजाने किसने इशारा?
२. लोकापवादों युग से कही है, गाथा सदा ही जन ने अनोखी 
    खोटी रही तो दिल को दुखाया, सुनी कहानी कुछ खूब चोखी
३. डाला न ताला जिसने जुबां पे, भोग बुरा ही उसने हमेशा 
   रोका न टोका जिसको बड़ों ने, होगा न अच्छा उसका नसीबा 
   *********

शुक्रवार, 31 जनवरी 2014

chhand salila: shashivdna chhand -sanjiv

छंद सलिला:

शशिवदना छंद
(अब तक प्रस्तुत छंद: अग्र, अचल, अचल धृति, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, एकावली, कीर्ति, घनाक्षरी, छवि, तांडव, तोमर, दीप, दोधक, निधि, प्रेमा, मधुभार ,माला, लीला, वाणी, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शिव, शुभगति, सार, सुगति, सुजान, हंसी)
*
संजीव
*
यह दस मात्रिक छंद है.

उदाहरण:

१. शशिवदना चपला
   कमलाक्षी अचला
   मृगनयनी मुखरा  
   मीनाक्षी मृदुला

२. कर्मदा वर्मदा धर्मदा नर्मदा
   शर्मदा मर्मदा हर्म्यदा नर्मदा
   शक्तिदा भक्तिदा मुक्तिदा नर्मदा
   गीतदा प्रीतदा मीतदा नर्मदा

३. गुनगुनाना सदा
   मुस्कुराना सदा
   झिलमिलाना सदा
   खिलखिलाना सदा
   गीत गाना सदा
   प्रीत पाना सदा
   मुश्किलों को 'सलिल'
   जीत जाना सदा

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chhand salila: ekawali chhand -sanjiv

छंद सलिला:   
एकावली छंद
संजीव
*
(अब तक प्रस्तुत छंद: अग्र, अचल, अचल धृति, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, एकावली, कीर्ति, घनाक्षरी, छवि, तांडव, तोमर, दीप, दोधक, निधि, प्रेमा, मधुभार ,माला, लीला, वाणी, शक्तिपूजा, शाला, शिव, शुभगति, सार, सुगति, सुजान, हंसी)
*
दस मात्रिक एकावली छंद के हर चरण में ५-५ मात्राओं पर यति होती है.

उदाहरण :

१. नहीं सर झुकाना, नहीं पथ भुलाना
   गिरे को  उठाना, गले से लगाना
   न तन को सजाना, न मन को भुलाना
   न खुद को लुभाना, न धन ही जुटाना

२. हरि भजन कीजिए, नित नमन कीजिए
    निज वतन पूजिए, फ़र्ज़ मत भूलिए
    मरुथली भूमियों को,  चमन कीजिए
   भाव से भीगिए, भक्ति पर रीझिए

३. कर प्रीत, गढ़ रीत / लें जीत मन मीत
    नव गीत नव नीत, मन हार मन जीत
  
    **********

गुरुवार, 30 जनवरी 2014

chhand salila: tandav chhand -sanjiv

छंद सलिला :
ताण्डव छंद
संजीव
*
(अब तक प्रस्तुत छंद: अग्र, अचल, अचल धृति, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, कीर्ति, घनाक्षरी, छवि, ताण्डव, तोमर, दीप, दोधक, निधि, प्रेमा, मधुभार,माला, वाणी, शक्तिपूजा, शाला, शिव, शुभगति, सार, सुगति, सुजान, हंसी)
तांडव रौद्र कुल का बारह मात्रीय छंद है जिसके हर चरण के आदि-अंत में लघु वर्ण अनिवार्य है.

उदाहरण:

१. भर जाता भव में रव, शिव करते जब ताण्डव
   शिवा रहित शिव हों शव, आदि -अंत लघु अभिनव
   बारह आदित्य मॉस राशि वर्ण 'सलिल' खास
   अधरों पर रखें हास, अनथक करिए प्रयास

२. नाश करें प्रलयंकर, भय हरते अभ्यंकर
   बसते कंकर शंकर, जगत्पिता बाधा हर
   महादेव हर हर हर, नाश-सृजन अविनश्वर 
   त्रिपुरारी उमानाथ, 'सलिल' सके अब भव तर

३. जग चाहे रहे वाम, कठिनाई सह तमाम
   कभी नहीं करें डाह, कभी नहीं भरें आह
   मन न तजे कभी चाह, तन न तजे तनिक राह
   जी भरकर करें काम, तभी भला करें राम

    ---------------------------

मंगलवार, 28 जनवरी 2014

chhand salila: madhubhar chhand -sanjiv



छंद सलिला:
छंद सलिला:   
मधुभार छंद
संजीव
*
(अब तक प्रस्तुत छंद: अग्र, अचल, अचल धृति, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, कीर्ति, घनाक्षरी, छवि, तोमर, दीप, दोधक, निधि, प्रेमा, मधुभार,माला, वाणी, शक्तिपूजा, शाला, शिव, शुभगति, सार, सुगति, सुजान, हंसी)
मधुभार अष्टमात्रिक छंद है. इसमें ३ -५ मात्राओं पर यति और चरणान्त में जगण होता है. 
उदाहरण:
१. सहे मधुभार / सुमन गह सार 
   त्रिदल अरु पाँच / अष्ट छवि साँच
२. सुनो न हिडिम्ब / चलो अविलंब 
   बनो मत खंब / सदय अब अंब
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रविवार, 26 जनवरी 2014

chhand salila: shiv chhand -sanjiv


छंद सलिला:
शिव छंद
संजीव
*
(अब तक प्रस्तुत छंद: अग्र, अचल, अचल धृति, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, कीर्ति, घनाक्षरी, छवि, तोमर, दीप, दोधक, निधि, प्रेमा, माला, वाणी, शक्तिपूजा, शाला, शिव, शुभगति, सार, सुगति, सुजान, हंसी)
*
एकादश रुद्रों के आधार पर ग्यारह मात्राओं के छन्दों को 'रूद्र' परिवार का छंद कहा गया है. शिव छंद भी रूद्र परिवार का छंद है जिसमें ११ मात्राएँ होती हैं. तीसरी, छठंवीं तथा नवमी मात्रा लघु होना आवश्यक है. शिव छंद की मात्रा बाँट ३-३-३-३-२ होती है.
छोटे-छोटे चरण तथा दो चरणों की समान तुक शिव छंद को गति तथा लालित्य से समृद्ध करती है. शिखरिणी की सलिल धर की तरंगों के सतत प्रवाह और नरंतर आघात की सी प्रतीति कराना शिव छंद का वैशिष्ट्य है.
शिव छंद में अनिवार्य तीसरी, छठंवीं तथा नवमी लघु मात्रा के पहले या बाद में २-२ मात्राएँ होती हैं. ये एक गुरु या दो लघु हो सकती हैं. नवमी मात्रा के साथ चरणान्त में दो लघु जुड़ने पर नगण, एक गुरु जुड़ने पर आठवीं मात्र लघु होने पर सगण तथा गुरु होने पर रगण होता है.
सामान्यतः दो पंक्तियों के शिव छंद की हर एक पंक्ति में २ चरण होते हैं तथा दो पंक्तियों में चरण साम्यता आवश्यक नहीं होती। अतः छंद के चार चरणों में लघु, गुरु, लघु-गुरु या गुरु-लघु के आधार पर ४ उपभेद हो सकते हैं.
उदाहरण:
१. चरणान्त लघु:
   हम कहीं रहें सनम, हो कभी न आँख नम
   दूरियाँ न कर सकें, दूर- हों समीप हम
२. चरणान्त गुरु:
   आप साथ हों सदा, मोहती रहे अदा
   एक मैं नहीं रहूँ, भाग्य भी रहे फ़िदा
३. चरणान्त लघु-गुरु:
   शिव-शिवा रहें सदय, जग तभी रहे अभय
   पूत भक्ति भावना, पूर्ण शक्ति कामना
४. चरणान्त गुरु लघु:
   हाथ-हाथ में लिये, बाँध मुष्टि लब सिये
   उन्नत सर-माथ रख, चाह-राह निज परख
                  ------ 
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शनिवार, 18 जनवरी 2014

chhand salila: sujan chhand -sanjiv

छंद सलिला:
सुजान छंद
संजीव
*
द्विपदीय मात्रिक सुजान छंद में चौदह तथा नौ मात्राओं पर यति तथा पदांत में गुरु-लघु का विधान होता है.

चौदह-नौ यति रख रचें, कविगण छंद सुजान
हो पदांत लघु-गुरु 'सलिल', रचना रस की खान

उदाहरण :

१. चौदह-नौ पर यति सुजान / में'सलिल'-प्रवाह
   गुरु-लघु से पद-अंत करे, कवि पाये वाह

२. डर न मुझको किसी का भी / है दयालु ईश
   देश-हित हँसकर 'सलिल' कर / अर्पित निज शीश

३. कोयल कूके बागों में / पनघट पर शोर
   मोर नचे अमराई में / खेतों में भोर

            * * *

शुक्रवार, 10 जनवरी 2014

chhand salila: gang chhand -sanjiv

छंद सलिला:
नौ मात्रिक छंद गंग
संजीव
*
संजीव
(अब तक प्रस्तुत छंद: अग्र, अचल, अचल धृति, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रा वज्रा, उपेन्द्र वज्रा, कीर्ति, घनाक्षरी, प्रेमा, वाणी, शक्तिपूजा, सार, माला, शाला, हंसी, दोधक, सुजान, छवि)

*
९ वसुओं के आधार पर नौ मात्राओं के छंदों को वासव छंद कहा गया है. नवधा भक्ति,  नौ रस, नौ अंक, अनु गृह, नौ निधियाँ भी नौ मात्राओं से जोड़ी जा सकती हैं. नौ मात्राओं के ५५ छंदों को ५ वर्गों में विभाजित किया जा सकता है.
१. ९ लघु मात्राओं के छंद                  १
२. ७ लघु + १ गुरु मात्राओं के छंद       ७
३. ५ लघु + २ गुरु मात्राओं के छंद     २१
४. ३ लघु + ३ गुरु मात्राओं के छंद     २०
५. १ लघु + ४ गुरु मात्राओं के छंद      ५

नौ मात्रिक छंद गंग
नौ मात्रिक गंग छंद के अंत में २ गुरु मात्राएँ होती हैं.
उदाहरण:
१. हो गंग माता / भव-मुक्ति-दाता
   हर दुःख हमारे / जीवन सँवारो
   संसार चाहे / खुशियाँ हजारों
   उतर आसमां से / आओ सितारों
   जन्नत जमीं पे, नभ से उतारो
   शिव-भक्ति दो माँ / भाव-कष्ट-त्राता
२. दिन-रात जागो / सीमा बचाओ
   अरि घात में है / मिलकर भगाओ
   तोपें चलाओ / बम भी गिराओ
​   ​
​सेना लड़ेगी / सब साथ आओ ​


​३. बचपन हमेशा / चाहे कहानी ​

​   है साथ लेकिन / दादी न नानी ​

​   हो ज़िंदगानी / कैसे सुहानी ​

​   सुने न किस्से, न / बातें बनानी

   *****​

गुरुवार, 9 जनवरी 2014

chhand salila: chhavi chhand -sanjiv

छंद सलिला:
अष्ट मात्रिक छवि छंद
संजीव
(अब तक प्रस्तुत छंद: अग्र, अचल, अचल धृति, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रा वज्रा, उपेन्द्र वज्रा, कीर्ति, घनाक्षरी, प्रेमा, वाणी, शक्तिपूजा, सार, माला, शाला, हंसी, दोधक, सुजान)
*
अष्ट मात्रिक छन्दों को ८ वसुओं के आधार पर 'वासव छंद' कहा गया है. इस छंदों के ३४ भेद सम्भव हैं जिनकी मात्रा बाँट निम्न अनुसार होगी:
अ. ८ लघु: (१) १. ११११११११,
आ. ६ लघु १ गुरु: (७) २. ११११११२ ३. १११११२१, ४. ११११२११, ५. १११२१११, ६. ११२११११, ७. १२१११११, ८. २११११११,
इ. ४ लघु २ गुरु: (१५) ९. ११११२२, १०. १११२१२, ११. १११२२१, १२, ११२१२१, १३. ११२२११, १४, १२१२११, १५. १२२१११,  १६. २१२१११, १७. २२११११, १८. ११२११२,, १९. १२११२१, २०. २११२११, २२. १२१११२, २३. २१११२१,
ई. २ लघु ३ गुरु: (१०) २४. ११२२२, २५. १२१२२, २६. १२२१२, २७. १२२२१, २८. २१२२१, २९. २२१२१, ३०. २२२११, ३१. २११२२, ३२. २२११२, ३३. २१२१२
उ. ४ गुरु: (१) २२२२
विविध चरणों में इन भेदों का प्रयोग कर और अनेक उप प्रकार हो सकते हैं.
उदाहरण:
१. करुणानिधान! सुनिए पुकार, / रख दास-मान, भव से उबार
२. कर ले सितार, दें छेड़ तार / नित तानसेन, सुध-बुध बिसार
३. जब लोकतंत्र, हो लोभतंत्र / बन कोकतंत्र, हो शोकतंत्र
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सोमवार, 30 दिसंबर 2013

doha salila: sanjiv

दोहा सलिला:
पौधरोपण कीजिए
संजीव
*
पौधारोपण कीजिए, शुद्ध हो सके वायु
जीवन जियें निरोग सब, मानव हो दीर्घायु
*
एक-एक ग्यारह हुए, विहँसे बारह मास
तेरह पग चलकर हरें, 'सलिल' सभी संत्रास
*
मैं-तुम मिल जब हम हुए, मंज़िल मिली समीप
हों अनेक जब एक तो, तम हरते बन दीप
*
चेतन जब चैतन्य हो, तब होता संजीव
अंतर्मन शतदल सदृश, खिल होता राजीव
*
विजय-पराजय से रहे, जब अंतर्मन दूर
प्रभु-कीर्तन पल-पल करे, श्वासों का संतूर
*
जब तक रीतेगा नहीं, आकांक्षा का कोष
जब तक पायेगा नहीं, अंतर्मन संतोष
*
नित लाती है रवि-किरण, दिनकर का पैगाम
लाली आती उषा के, गालों पर सुन नाम
*
आशीषों की रोटरी, कोशिश की हो राह
वाह परिश्रम की करें, मन में पले न डाह
*
अंकुर पल्लव पौध ही, बढ़ बनते उद्यान
संरक्षण पा ओषजन, से दें जीवन दान
*
 

मंगलवार, 12 नवंबर 2013

chhand salila: saar chhand -sanjiv

 छंद सलिला:

सार छंद
संजीव
* 
(द्विपदिक मात्रिक छंद, मात्रा २८, १६ - १२ पर यति, पदांत २ गुरु मात्राएँ, उपनाम : ललित / दोवै / साकीं मराठी छंद)
सोलह बारह पर यति रखकर, द्विपदिक छंद बनायें
हों पदांत दो गुरु मात्राएँ, सार सुछंद सजायें
साकीं दोवै ललित नाम दे, कविगण रचकर गायें
घनानंद पा कविता प्रेमी, 'सलिल' संग मुस्कायें
*
कर सोलह सिंगार नवोढ़ा, सजना को तरसाती
दूर-दूर से झलक दिखाती, लेकिन हाथ न आती
जीभ चिढ़ाती कभी दिखाती, ठेंगा प्रिय खिसयाये                                  तरस-तरस कह कह तरसाती, किंचित तरस न खाये                                        'दाग लगा' यह बोला उसने, 'सलिल'-धार मुँह धोया
'छोड़ो' छोड़ न कसकर थामे, छवि निरखे वह खोया
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बढ़े सैन्य दल एक साथ जब, दुश्मन थर्रा जाता
काँपे भय से निबल कलेजा, उसका मुँह को आता  
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रविवार, 10 नवंबर 2013

chhand salila: kakubh / kukabh

: छंद सलिला :
ककुभ / कुकुभ
संजीव
*
(छंद विधान: १६ - १४, पदांत में २ गुरु)
*
यति रख सोलह-चौदह पर कवि, दो गुरु आखिर में भाया
ककुभ छंद मात्रात्मक द्विपदिक, नाम छंद ने शुभ पाया
*
देश-भक्ति की दिव्य विरासत, भूले मौज करें नेता
बीच धार मल्लाह छेदकर, नौका खुदी डुबा देता
*
आशिको-माशूक के किस्से, सुन-सुनाते उमर बीती.
श्वास मटकी गह नहीं पायी, गिरी चटकी सिसक रीती.
*
जीवन पथ पर चलते जाना, तब ही मंज़िल मिल पाये
फूलों जैसे खिलते जाना, तब ही तितली मँडराये
हो संजीव सलिल निर्मल बह, जग की तृष्णा हर पाये
शत-शत दीप जलें जब मिलकर, तब दीवाली मन पाये
*
(ककुभ = वीणा का मुड़ा हुआ भाग, अर्जुन का वृक्ष)

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chhand salila: tatank chhand - sanjiv

छंद सलिला:
ताटंक छंद :
संजीव 
*
(छंद विधान: यति १६ - १४, पदांत मगण, सम पदान्ती द्विपदिक मात्रिक छंद)
मराठी का लावणी छंद भी १६ - १४ मात्राओं का छन्द है किन्तु उसमें पदांत में मात्रा सम्बन्धी कोई नियम नहीं होता।)  
*
सोलह-चौदह यतिमय दो पद, मगण अंत में आया हो.
रचें छंद ताटंक कर्ण का, आभूषण लहराया हो..
*
आये हैं लड़ने चुनाव जो, सब्ज़ बाग़ दिखलायें क्यों?
झूठे वादे करते नेता, किंचित नहीं निभायें क्यों?
सत्ता पा घपले-घोटाले, करें नहीं शर्मायें क्यों?
न्यायालय से दंडित हों, खुद को निर्दोष बतायें क्यों?

जनगण को भारत माता को, करनी से भरमायें क्यों?
ईश्वर! आँखें मूंदें बैठे, 'सलिल' न पिंड छुड़ायें क्यों?
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शनिवार, 9 नवंबर 2013

chhand salila: tatank chhand: - Dr. Satish Saxena

छंद सलिला:
ताटंक छंद 
डॉ. सतीश सक्सेना'शून्य'
मुझको हिन्दी प्यारी है

(छंद विधान-ताटंक:मात्रा ३०=१६,१४ पर विराम)

देवों की भाषा यह अनुपम जन मन गण की उत्थानी

सादा सरल सरस सुन्दर शुचि सुद्रढ़ सांस्कृतिक संधानी
सबका प्यार इसीने पाया सबकी ये जननी प्यारी
शब्द सरोबर अतुल राशि जल नवल उर्मियाँ अति प्यारी
ज्ञान और विज्ञान विपुल सत्चिन्तन की धारा भारी
विश्व रहेगा ऋणी सदा मानवता है जब तक जारी
अब भी अवसर है तुम चेतो वरना हार तुम्हारी है
करो प्रतिज्ञा आज सभी मिल हमको हिन्दी प्यारी है
मुझ को हिन्दी प्यारी है
सब को हिन्दी प्यारी है

अंग्रेज़ी वलिहारी है

(छंद विधान- वीर छंद मात्रा ३१=१६,१५ पर विराम )

पूज्य पिताजी' डेड' कहाते सड़ी लाश 'मम्मी' प्यारी
कहलाते स्वर्गीय 'लेट' जो शब्दों कीयह गति न्यारी
'ख़' को तो खागई विचारी 'घ','ड.' का तो पता नहीं
'च' 'छ' 'ज' 'झ' मिले कहीं ना 'त' 'थ' 'द' 'ध' नाम नहीं
'भ' का भाग भले ही फूटे 'श' 'ष' करी किनारी है
नहीं रीढ़ की अस्थि मगर व्याकरण कबड्डी जारी है
लिखें और कुछ पढ़ें और कुछ ये कैसी वीमारी है
तू तो 'तू' है तुम भी 'तुम' हो 'आप' नहीं लाचारी है
अंग्रेज़ी वलिहारी है ...

doha salila: sanjiv

दोहा सलिला:
संजीव
*
नट के करतब देखकर, राधा पूछे मौन
नट मत नटवर नट कसे, कहाँ बता कब कौन??
*
हहर-हहर-हर रही हर, लहर-लहर सुख-चैन
सिहर-सिहर लख प्राण-मन, आठ प्रहर दिन-रैन
*
पलकर पल भर भूल मत, पालक का अहसान
रूप-गंध, रस-स्वाद बिन, पालक गुण की खान
*
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