नवगीत
नव भोर
*
मिलन की
नव भोर का
स्वागत करो रे!
*
विरह की रजनी
अँधेरी हारकर
मुँह छिपाती
उषा पर जय वारकर
दुंदुभी नभ में
बजाते परिंदे
वर बना दिनकर
धरा से प्यारकर
सृजन की
नव भोर का
स्वागत करो रे!
*
चूड़ियाँ खनकीं
नज़र मिल कर झुकीं
कलेवा दें थमा
उठ नज़रें मिलीं
बिन कहें कह शुक्रिया
ले ली विदा
मंज़िलों को नापने
चुप बढ़ चलीं
थकन की
नव कोर का
स्वागत करो रे!
*
दुपहरी में, स्वेद
गंगा नहाकर
नीड लौटे परिंदे
चहचहाकर
साँझ चंदा से
मिले हँस चाँदनी
साँस में घुल साँस
महकी लजाकर
पुलिनमय
चितचोर का
स्वागत करो रे!
***
२३-२-२०१६
नव भोर
*
मिलन की
नव भोर का
स्वागत करो रे!
*
विरह की रजनी
अँधेरी हारकर
मुँह छिपाती
उषा पर जय वारकर
दुंदुभी नभ में
बजाते परिंदे
वर बना दिनकर
धरा से प्यारकर
सृजन की
नव भोर का
स्वागत करो रे!
*
चूड़ियाँ खनकीं
नज़र मिल कर झुकीं
कलेवा दें थमा
उठ नज़रें मिलीं
बिन कहें कह शुक्रिया
ले ली विदा
मंज़िलों को नापने
चुप बढ़ चलीं
थकन की
नव कोर का
स्वागत करो रे!
*
दुपहरी में, स्वेद
गंगा नहाकर
नीड लौटे परिंदे
चहचहाकर
साँझ चंदा से
मिले हँस चाँदनी
साँस में घुल साँस
महकी लजाकर
पुलिनमय
चितचोर का
स्वागत करो रे!
***
२३-२-२०१६