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शनिवार, 23 जुलाई 2011

दोहा सलिला: यमक दमकता सूर्य सम संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:
यमक दमकता सूर्य सम
संजीव 'सलिल'
*
खींची-छोड़ी रास तो, लगीं दिखाने रास.
घोड़ी और पतंग का, 'सलिल' नहीं विश्वास..
रास = लगाम/डोर, नृत्य.

मोह न मोहन अब अधिक, सोहन सोह न और.
गह न गहन को कभी भी, अगहन मिले न ठौर..

'रोक न, जाने दे' उसे, था इतना आदेश.
'रोक, न जाने दे' समझ, समझा गया विशेष..

था 'आदेश' विदेश तज, तू अब तो 'आ देश'.
खाया याकि सुना गया, जब पाया संदेश..
आदेश = आज्ञा, देश आ.
संदेश = बंगाली मिठाई, निर्देश. -श्लेष अलंकार.

'खाना' या 'खा ना' कहा, 'आना' या 'आ ना'.
'पा ना' कह 'पाना' दिया, 'गा ना' कह 'गाना'  

नाना ने नाना दिये, स्नेह सहित उपहार.
ना-ना कहकर भी करे, हमने हँस स्वीकार..  

नाक कटी साबित रही, लेकिन फिर भी नाक.
कान करे नापाक जो, कहलाये वह पाक..

नाग चढ़ा जब नाग पर, नाग उठा फुंफकार.
नाग गरजकर बरसता, होता हाहाकार..
नाग = हाथी, पर्वत, एक प्रकार का साँप, बादल.

नाम अनाम सुनाम हो, किन्तु न हो बदनाम.
हो सकाम-निष्काम पर, 'सलिल' न हो बेकाम..
*

Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com