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शनिवार, 27 अगस्त 2011

हास्य कुण्डली: साली महिमा --संजीव 'सलिल'

हास्य कुण्डली:
साली महिमा
संजीव 'सलिल'
*
साली जी गुणवान हैं, जीजा जी हैं फैन..
साली जी रस-खान हैं, जीजा सिर्फ कुनैन..
जीजा सिर्फ कुनैन, फ़िदा हैं जीजी जी पर.
सुबह-शाम करते सलाम उनको जी-जी कर..
बीबी जी पायी हैं मधु-रस की प्याली जी.
बोनस में स्नेह लुटाती हैं साली जी.
*
साली की महिमा बड़ी, कभी न भूलें आप.
हरि के पहले कीजिये साली जी का जाप..
साली जी का जाप करें उपवासे रहकर.
बीबी रहे प्रसन्न, भाव-सलिला में बहकर..
सुने प्रार्थना बीबी, दस दिश हो खुशहाली..
सुने वंदना जिस जीजा से प्रतिदिन साली.
*
जिसकी साली हो नहीं, उसका चैन हराम.
नीरस हो जीवन सकल, बिगड़ें सारे काम..
बिगड़ें सारे काम, रहें गृह लक्ष्मी गुमसुम.
बिन संज्ञा के सर्वनाम नाकारा हो तुम.
कहे 'सलिल' साली-वंदन से  किस्मत चमकी.
उसका गृह हो स्वर्ग, खूब हो साली जिसकी..
*******

शनिवार, 6 अगस्त 2011

राखी पर काव्यांजलि: शुभद राखी मन मोहे.. अम्बरीश श्रीवास्तव

राखी पर काव्यांजलि:                                                                    
शुभद राखी मन मोहे..
अम्बरीश श्रीवास्तव
*


एक छप्पय:
*
लेकर पूजन-थाल प्रात ही बहिना आई.
उपजे नेह प्रभाव, बहुत हर्षित हो भाई..
पूजे वह सब देव, तिलक माथे पर सोहे.
बँधे दायें हाथ, शुभद राखी मन मोहे..
हों धागे कच्चे ही भले, बंधन दिल के शेष हैं.
पुनि सौम्य उतारे आरती, राखी पर्व विशेष है..
दो कुण्डलियाँ:
रक्षा बंधन पर्व दे, खुशियाँ शत अनमोल,
बहना-भैया हैं मगन, मीठा-मीठा बोल.      
मीठा-मीठा बोल, सभी से बढ़कर आगे.
बंधन सदा अटूट, बने राखी के धागे,        
अम्बरीष यह नेह, मिला तो पुण्य फले हैं.
रक्षा करें बहिन की, ले संकल्प चले हैं..

आई श्रावण-पूर्णिमा, रक्षाबंधन नाम,
जन-जन में उल्लास है, हर्षित अपने राम.
हर्षित अपने राम, खिलाये सिवईं बहना,
सदा रहे खुशहाल,यही हम सबका कहना.
अम्बरीष जो आज, प्रकृति खुशहाली लाई.
सब वृक्षों को बाँध, सभी संग राखी भाई..
*

गुरुवार, 16 जून 2011

कुण्डलिया छन्द - वास्तविकता स्वीकारें --नवीन सी चतुर्वेदी


कुण्डलिनी छन्द - वास्तविकता स्वीकारें

जब से आइ पि एल ने, यार जगाई आस|
काउन्टी किरकेट का, क्रेज़ रहा ना खास||
क्रेज़ रहा ना खास, वास्तविकता स्वीकारें|
निज गृहजनगुणधर्म, समाज सदा सत्कारें|
निज 'भू' ही सम्मान - दिलाती - कहते तो सब|
किंतु समझते लोग, वक्त - समझाता है जब||



अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आइ सी सी की चौधराहट को आप लोग भूले नहीं होंगे| पर जब से आइ पी एल फॉर्मेट मशहूर हुआ है, इस को ले कर जब-तब आपत्तियाँ दर्ज कराई जाती रही हैं| हम मानते हैं कि आइ पी एल की अपनी खामियाँ हैं, पर क्या आइ सी सी दूध धुली थी? या है?

आज कम से कम भारतीय हुनरमंद प्रतियोगी किसी की इनायत के मोहताज तो नहीं हैं...................

भाई हमने तो अपने मन की बात कह दी है............................. आप क्या कहते हैं?



साभार
नवीन सी चतुर्वेदी
मुम्बई

मैं यहाँ हूँ : ठाले बैठे
साहित्यिक आयोजन : समस्या पूर्ति
दूसरे कवि / शायर : वातायन
मेरी रोजी रोटी : http;//vensys.biz

बुधवार, 18 मई 2011

कुण्डलिनी: ---- संजीव 'सलिल'

कुण्डलिनी
संजीव 'सलिल'
हरियाली ही हर सके, मन का खेद-विषाद.
मानव क्यों कर रहा है, इसे नष्ट-बर्बाद?
इसे नष्ट-बर्बाद, हाथ मल पछतायेगा.
चेते, सोचे, सम्हाले, हाथ न कुछ आयेगा.
कहे 'सलिल' मन-मोर तभी पाये खुशहाली.
दस दिश में फैलायेंगे जब हम हरियाली..
*****

मंगलवार, 26 अप्रैल 2011

हिंदी काव्य का अमर छंद रोला ------ नवीन चतुर्वेदी

हिंदी काव्य का अमर छंद रोला

नवीन चतुर्वेदी
*
रोला छंद की विशेषताएं निम्न हैं:

१. चार पंक्तियों वाला होता है रोला छंद.
२. रोला छन्द की हर पंक्ति दो भागों में विभक्त होती है.
३. रोला छन्द की हर पंक्ति के पहले भाग में ११ मात्राएँ अंत में गुरु-लघु [२१] या लघु-लघु-लघु [१११] अपेक्षित हैं.
४. रोला छन्द की हर पंक्ति के दूसरे भाग में १३ मात्रा अंत में गुरु-गुरु [२२] / लघु-लघु-गुरु [११२] या लघु-लघु-लघु-लघु [११११] अपेक्षित है. कई विद्वानों का मत है क़ि रोला में पंक्ति के अंत में गुरु-गुरु [२२] से ही हो.
५. रोला छन्द की किसी भी पंक्ति की शुरुआत में लघु-गुरु-लघु [१२१] के प्रयोग से बचना चाहिए, इस से लय में व्यवधान उत्पन्न होता है|

रोला छन्द के कुछ उदाहरण:-

हिंद युग्म - दोहा गाथा सनातन से साभार:-:-

नीलाम्बर परिधान, हरित पट पर सुन्दर है.
२२११ ११२१=११ / १११ ११ ११ २११२ = १३
सूर्य-चन्द्र युग-मुकुट, मेखला रत्नाकर है.
२१२१ ११ १११=११ / २१२ २२११२ = १३
नदियाँ प्रेम-प्रवाह, फूल तारा-मंडल हैं
११२ २१ १२१=११ / २१ २२ २११२ = १३
बंदीजन खगवृन्द, शेष-फन सिंहासन है.
२२११ ११२१ =११ / २१११ २२११२ = १३


शिवकाव्य.कोम से साभार:-

अतल शून्य का मौन, तोड़ते - कौन कहाँ तुम.
१११ २१ २ २१ = ११ / २१२ २१ १२ ११ = १३
दया करो कुछ और, न होना मौन यहाँ तुम..
१२ १२ ११ २१ = ११ / १ २२ २१ १२ ११ = १३
नव जीवन संचार, करो , फिर से तो बोलो.
११ २११ २२१ = ११ / १२ ११ २ २ २२ = १३
तृषित युगों से श्रवण, अहा अमरित फिर घोलो..
१११ १२ २ १११ = ११ / १२ १११११ ११ २२ = १३

रूपचंद्र शास्त्री मयंक जी के ब्लॉग उच्चारण से साभार:-

समझो आदि न अंत, खिलेंगे सुमन मनोहर.
११२ २१ १ २१ = ११ / १२२ १११ १२११ = १३
रखना इसे सँभाल, प्यार अनमोल धरोहर..
११२ १२ १२१ = ११ / २१ ११२१ १२११ = १३


कवि श्रेष्ठ श्री मैथिली शरण गुप्त जी द्वारा रचित साकेत का द्वादश सर्ग तो रोला छन्द में ही है और उस की शुरुआती पंक्तियों पर भी एक नज़र डालते हैं:-

ढाल लेखनी सफल, अंत में मसि भी तेरी.
२१ २१२ १११ = ११ / २१ २ ११ २ २२ = १२
तनिक और हो जाय, असित यह निशा अँधेरी..
१११ २१ २ २१ = ११ / १११ ११ १२ १२२ = १३

इसी रोला छंद की तीसरी और चौथी पंक्तियाँ खास ध्यान देने योग्य हैं:-
ठहर तभी, कृष्णाभिसारिके, कण्टक कढ़ जा.
१११ १२ २२१२१२ = १६ / २११ ११ २ = ८
बढ़ संजीवनि आज, मृत्यु के गढ़ पर चढ़ जा..
११ २२११ २१ = ११ / २१ २ ११ ११ ११ २ = १३

तीसरी पंक्ति में यति को प्रधान्यता दी जाए तो यति आ रही है १६ मात्रा के बाद| कुल मात्रा १६+८=२४ ही हैं| परंतु यदि हम 'कृष्णाभिसारिके' शब्द का संधि विच्छेद करते हुए पढ़ें तो यूँ पाते हैं:-

ठहर तभी कृष्णाभि+सारिके कण्टक कढ़ जा
१११ १२ २२१ = ११ / २१२ २११ ११ २ = १३

अब कुछ अपने मन से : छंद रचना को ले कर लोगों में फिर से जागरूकता बढ़ान हमारा उद्देश्य है | हम में से कई बहुत सफलता से ग़ज़ल कह रहे हैं, उनकी तख्तियों को आसानी से समझ रहे हैं|  नीचे दिए गये पदभार (वज्न) भी रोला छंद लिखने में मदद कर सकते है, यथा:-

अपना तो है काम, छंद की बातें करना
फइलातुन फइलात फाइलातुन फइलातुन
२२२ २२१ = ११ / २१२२ २२२ = १३

भाषा का सौंदर्य, सदा सर चढ़ के बोले
फाईलुन मफऊलु / फईलुन फइलुन फइलुन
२२२ २२१ = ११ / १२२ २२ २२ = १३

रोला छन्द संबन्धित कुछ अन्य उदाहरण :- 
१.  पाक दिल जीत घर गया
तेंदुलकर, सहवाग, कोहली, गौतम, माही|
रैना सँग युवराज, कामयाबी के राही|
नहरा और मुनाफ़, इक दफ़ा फिर से चमके|
भज्जी संग जहीर, खेल दिखलाया जम के|१|

हारा मेच परन्तु, पाक दिल जीत घर गया|
एक अनोखा काम, इस दफ़ा पाक कर गया|
नफ़रत का हो अंत, प्यार वाली हो बिगिनिंग|
शाहिद ने ये बोल, बिगिन कर दी न्यू ईनिंग|२|

अब अंतिम है मेच, दिल धड़कता है पल छिन|
सब के सब बेताब, हो रहे घड़ियाँ गिन गिन|
कैसा होगा मेच, सोचते हैं ये ही सब|
बोल रहे कुछ लोग, जो नहीं अब, तो फिर कब|३|

तेंदुलकर तुम श्रेष्ठ, मानता है जग सारा|
आशा तुमसे चूँकि, खास अंदाज तुम्हारा|
तुम हो क्यूँ जग-श्रेष्ठ, आज फिर से बतला दो|
मारो सौवाँ शतक, झूमने का मौका दो|४|

भारत में किरकेट, बोलता है सर चढ़ के|
सब ने किया क़ुबूल, प्रशंसा भी की बढ़ के|
अपनी तो ये राय, हार हो या फिर विक्ट्री|
खेलें ऐसा खेल, जो क़ि बन जाए हिस्ट्री|५|

छन्द : रोला
विधान ११+१३=२४ मात्रा
२. भद्रजनों की रीत नहीं ये संगाकारा
हार गए जो टॉस, किसलिए उसे नकारा|
भद्रजनों की रीत, नहीं ये संगाकारा|
देखी जब ये तुच्छ, आपकी आँख मिचौनी|
चौंक हुए स्तब्ध, जेफ क्रो, शास्त्री, धोनी|१|

तेंदुलकर, सहवाग, ना चले, फर्क पड़ा ना|
गौतम और विराट, खेल खेले मर्दाना|
धोनी लंगर डाल, क्रीज़ से चिपके डट के|
समय समय पर दर्शनीय, फटकारे फटके|२|

जब सर चढ़े जुनून, ख्वाब पूरे होते हैं|
सब के सम्मुख वीर, बालकों से रोते हैं|
दिल से लें जो ठान, फिर किसी की ना मानें|
हार मिले या जीत, धुरंधर लड़ना जानें|३|

त्र्यासी वाली बात, अब न कोई बोलेगा|
सोचेगा सौ बार, शब्द अपने तोलेगा|
अफ्रीका, इंगलेंड, पाक, औसी या लंका|
सब को दे के मात, बजाया हमने डंका|४|

तख्तियों के जानकार इस बारे में और भी बहुत कुछ हम लोगों से साझा कर सकते हैं|
 आभार: http://thalebaithe.blogspot.com/2011/04/blog-post_04.html
**************

रविवार, 24 अप्रैल 2011

एक षटपदी : भारत के गुण गाइए ---संजीव 'सलिल'

एक षटपदी :



संजीव 'सलिल'
*
भारत के गुण गाइए, ध्वजा तिरंगी थाम.
सब जग पर छा जाइये, बढ़े देख का नाम ..
बढ़े देख का नाम प्रगति का चक्र चलायें.
दंड थाम उद्दंड शत्रु को पथ पढ़ायें..
बलिदानी केसरिया की जयकार करें शत.
हरियाली सुख, शांति श्वेत, मुस्काए भारत..


********

मंगलवार, 19 अप्रैल 2011

षटपदियाँ : संजीव 'सलिल'

षटपदियाँ :
संजीव 'सलिल'
*
इनके छंद विधान में अंतर को देखें. प्रथम अमृत ध्वनि है, शेष कुण्डलिनी
भारत के गुण गाइए, मतभेदों को भूल.
*
फूलों सम मुस्काइये, तज भेदों के शूल..
तज भेदों के, शूल अनवरत, रहें सृजनरत.
मिलें अंगुलिका, बनें मुष्टिका, दुश्मन गारत..
तरसें लेनें. जन्म देवता, विमल विनयरत.
'सलिल' पखारे, पग नित पूजे, माता भारत..
*
कंप्यूटर कलिकाल का, यंत्र बहुत मतिमान.
हुए पराजित पलों में, कोटि-कोटि विद्वान..
कोटि-कोटि विद्वान, कहें- मानव किंचित डर.
तुझे बना ले, दास अगर हो, हावी तुझ पर..
जीव श्रेष्ठ, निर्जीव हेय, सच है यह अंतर.
'सलिल' न मानव से बेहतर कोई कंप्यूटर..  
*
सुंदरियाँ घातक; सलिल' पल में लें दिल जीत.
घायल करें कटाक्ष से, जब बनतीं मन-मीत.
जब बनतीं मन-मीत, मिटे अंतर से अंतर.
बिछुड़ें तो अवढरदानी  भी हों प्रलयंकर.
असुर-ससुर तज सुर पर ही रीझें किन्नरियाँ.
नीर-क्षीर बन, जीवन पूर्ण करें सुंदरियाँ..
*

रविवार, 6 मार्च 2011

फागुन के ६ छक्के: संजीव 'सलिल'

फागुन के ६ छक्के:                                                                            

संजीव 'सलिल'
*
फागुन आया है सखी, मचा खूब हुडदंग.
फेंक रहे दिल मनचले, कर दो हुलिया तंग.
कर दो हुलिया तंग, लगा मुँह पर रंग काला.
लगा कीच-गोबर भूलें लव करना लाला..
कहे 'सलिल' नभ बरसे तो आ जाये सावन.
हो जोरी-बरजोरी तो सार्थक हो सावन..
*
नक्सलवादी खून की होली करदें बंद.
बजा प्रेम की बांसुरी, सुनें नेह के छंद..
सुनें नेह के छंद, कुंडली, दोहे, टप्पे.
खाएँ गुझिया-सेव, भुला क्रांति के लटके..
कहे 'सलिल' मत मार घटाओ तुम आबादी.
नस्ल नेह की नित्य बढ़ाओ नक्सलवादी..
*
पिचकारी थामे साखी, हरि दें लगा गुलाल.
होली खेलें मुक्त-मन, दिल से भुला मलाल..
दिल से भुला मलाल, शांति चाहे हर गुनिया.
भ्रान्ति क्रांति की भटकाती, भरमाती दुनिया..
कहे 'सलिल' कविराय, राय सत्य-हितकारी.
बन्दूकों को फेंक उठाओ रंग-पिचकारी..
*
छक्के-चौके लग रहे, छक्के करते नृत्य.
छक के पी खो होश दें, निंदनीय है कृत्य..
निंदनीय है कृत्य, सत्य को भुला न देना.
मिले प्रलोभन, गले असत को लगा न लेना.
'सलिल' मैच ले जीत, रहें सब हक्के-बक्के.
'सचिन' शतक दे लगा, न चूकें चौके-छक्के..
*
मुखिया कैसे मनाएँ, होली हैं लाचार.
सत्ता वरकर हो रहे, कुर्सी से बेज़ार..
कुर्सी से बेज़ार, न लेकिन छोड़ें सत्ता.
सत्य जानते पल में, कट जाएगा पत्ता..
कहे 'सलिल' सुख छिपा, बने ऊपर से दुखिया.
मनमोहन धन मोह न बाँटे, संग हैं सुखिया..
*
राजनीति में हर किसी के मन में है मैल.
निर्मल चादर रह सके कोई न ऐसी गैल..
कोई न ऐसी गैल, चलाते सब पिचकारी.
खुद का खोट न देख, दूसरों को दें गारी..
लट्ठमार बृज-नार, चटायें धूल वीथि में.
काला करदें मुँह, जो गंदे राजनीति में..

******