व्यंग
गीत:
कथनी-करनी
संजीव 'सलिल'
*
कथनी-करनी एक न हो,
जाग्रत कभी विवेक न हो.....
*
साधु-संत सुत हों पड़ोस में,
अपना नेता-अफसर हो.
मीरां-काली तेरे घर हो,
श्री-समृद्धि मेरे घर हो.
एक राह है, एक चाह है-
हे हरि! लक्ष्य अ-नेक न हो.....
*
पूजें हम रैदास-कबीरा.
चाहें खुद हों धन्नामल.
तुम त्यागी-वैरागी हो, हम-
व्यापारी हों निपुण-कुशल.
हमको कुर्सी, गद्दी, आसन
तुम्हें नसीबित टेक न हो.....
*
हमको पूड़ी, तुमको रोटी.
तुमको सब्जी, हमको बोटी.
विफल पैंतरे रहें तुम्हारे-
'सलिल' सफल हों अपनी गोटी.
जो रचना को नहीं सराहे
चोट लगे पर सेक न हो.....
******
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
कुल पेज दृश्य
hindi vyang geet लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
hindi vyang geet लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
शुक्रवार, 26 नवंबर 2010
व्यंग गीत: कथनी-करनी संजीव 'सलिल'
चिप्पियाँ Labels:
-acharya sanjiv 'salil',
aratee. samyik hindi kavita,
Contemporary Hindi Poetry,
hindi vyang geet,
indian,
jabalpur,
kathni-karni
सदस्यता लें
संदेश (Atom)