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बुधवार, 25 जुलाई 2018

muktak

मुक्तक:muktak
संजीव 
*
मापनी: २११ २११ २११ २२ 
*
आँख मिलाकर आँख झुकाते
आँख झुकाकर आँख उठाते
आँख मारकर घायल करते
आँख दिखाकर मौन कराते
*
मापनी: १ २ २ १ २ २ १ २ २ १२२
*
न जाओ, न जाओ जरा पास आओ
न बातें बनाओ, न आँखें चुराओ
बहुत हो गया है, न तरसा, न तरसो
कहानी सुनो या कहानी सुनाओ
*
२५-६-२०१५
salil.sanjiv@gmail.com
#दिव्यनर्मदा
#हिंदी_ब्लॉगर

बुधवार, 25 जनवरी 2017

doha muktika

एक दोहा
हर दल ने दलदल मचा, साधा केवल स्वार्थ
हत्या कर जनतंत्र की, कहते- है परमार्थ
*
एक दोहा मुक्तिका
निर्मल मन देखे सदा, निर्मलता चहुँ ओर
घोर तिमिर से ज्यों उषा, लाये उजली भोर
*
नीरस-सरस न रस रहित, रखते रसिक अँजोर
दोहा-रस संबंध है, नद-जल, गागर-डोर
*
मृगनयनी पर सोहती, गाढ़ी कज्जल-कोर
कृष्णा एकाक्षी लगा, लगे अमावस घोर
*
चित्त चुराकर कह रहे, जो अकहे चितचोर
उनके चित का मिल सका, कहिये किसको छोर
*
आँख मिला मन मोहते, झुकती आँख हिलोर
आँख फिरा लें जान ही, आँख दिखा झकझोर
****

बुधवार, 17 फ़रवरी 2016

muhavare / kahawat / geet - aankh/andha

आँख पर मुहावरे: 


आँख मारना = इंगित / इशारा करना। 
मुझे आँख मारते देख गवाह मौन हो गया

आँखें आना = आँखों का रोग होना। 
आँखें आने पर काला चश्मा पहनें

आँखें चुराना = छिपाना। 
उसने समय पर काम नहीं किया इसलिए आँखें चुरा रहा है

आँखें झुकना = शर्म आना। 
वर को देखते ही वधु की आँखें झुक गयीं

आँखें झुकाना = शर्म आना। 
ऐसा काम मत करो कि आँखें झुकाना पड़े

आँखें टकराना = चुनौती देना।
आँखें टकरा रहे हो तो परिणाम भोगने की तैयारी भी रखो

आँखें दिखाना = गुस्से से देखना। 
दुश्मन की क्या मजाल जो हमें आँखें दिखा सके?

आँखें नटेरना = घूरना। 
आँखें मत नटेरो, अच्छा नहीं लगता। 

आँखें फेरना = अनदेखी करना।
आज के युग में बच्चे बूढ़े माँ-बाप से आँखें फेरने लगे हैं

आँखें बंद होना = मृत्यु होना। 
हृदयाघात होते ही उसकी आँखें बंद हो गयीं

आँखें मिलना = प्यार होना। 
आँखें मिल गयी हैं तो विवाह के पथ पर चल पड़ो 

आँखें मिलाना = प्यार करना। 
आँखें मिलाई हैं तो जिम्मेदारी से मत भागो

आँखों में आँखें डालना = प्यार करना

लैला मजनू की तरह आँखों में ऑंखें डालकर बैठे हैं 

आँखें मुँदना = नींद आना, मर जाना।
लोरी सुनते ही ऑंखें मुँद गयीं।
माँ की आँखें मुँदते ही भाई लड़ने लगे 

आँखें मूँदना = सो जाना। 
उसने थकावट के कारण आँखें मूँद लीं

आँखें मूँदना = मर जाना। 
डॉक्टर इलाज कर पते इसके पहले ही घायल ने आँखें मूँद लीं

आँखें लगना = नींद आ जाना। 
जैसे ही आँखें लगीं, दरवाज़े की सांकल बज गयी

आँखें लड़ना = प्रेम होना। 
आँखें लड़ गयी हैं तो सबको बता दो

आँखें लड़ाना = प्रेम करना। 
आँखें लड़ाना आसान है, निभाना कठिन

आँखें बिछाना = स्वागत करना। 
मित्र के आगमन पर उसने आँखें बिछा दीं।

आँखों का काँटा = शत्रु 
घुसपैठिए सेना की आँखों का काँटा हैं 

आँख का तारा = लाड़ला। 
कान्हा यशोदा मैया की आँखों का तारा था। 

आँखों की किरकिरी = जो अच्छा न लगे। 
आतंकवादी मानव की आँखों की किरकिरी हैं।

आँखों में खून उतरना = अत्यधिक क्रोध आना। 
कसाब को देखते ही जनता की आँखों में खून उतर आया।

आँखों में धूल झोंकना = धोखा देना।
खड़गसिंग बाबा भारती की आँखों में धूल झोंक कर भाग गया। 

आँखों से गिरना = सम्मान समाप्त होना। 
झूठे आश्वासन देकर नेता मतदाताओं की आँखों से गिर गए हैं 

आँखों-आँखों में बात होना = इशारे से बात करना। 
आँखों-आँखों में  बात हुई और दोनों कक्षा से बाहर हो गये

आँख से सम्बंधित मुहावरे:

अंधो मेँ काना राजा = अयोग्यों में खुद को योग्य बताना
अंधों में काना राजा बनने से योग्यता सिद्ध नहीं होती

एक आँख से देखना = समानता का व्यवहार करना
सगे और सौतेले बेटे को एक आँख से कौन देखता है?

फूटी आँखों न सुहाना = एकदम नापसंद करना 
माली की बेटी रानी को फूटी आँखों न सुहाती थी

कहावत 


अंधे के आगे रोना, अपने नैना खोना = नासमझ/असमर्थ  के सामने अपनी व्यथा कहना
नेता को दुःख-दर्द बताना ऐसा ही है जैसे अंधे के आगे रोना, अपने नैना खोना। 

आँख का अंधा नाम नैन सुख = नाम के अनुसार गुण न होना। 
उसका नाम तो बहादुर है पर छिपकली से डर भी जाता हैं, इसी को कहते हैं आँख का अँधा नाम नैन सुख

आँख पर चित्रपटीय गीत

हमने देखी है इन आँखों की महकती खुशबू   -गुलजार   

छलके तेरी आँखों से शराब और ज्यादा   -हसरत जयपुरी   

जलते हैं जिसके लिये, तेरी आँखों के दिये  -मजरूह सुल्तानपुरी 

आँखों के ऊपर “आँखें” नाम से अभी तक जो मुझे पता है, तीन फिल्में बन चुकी हैं, २००२ (विपुल शाह निर्देशित अमिताभ बच्चन के साथ), १९९३(डेविड धवन निर्देशित गोविंदा के साथ) और १९६८ (रामानंद सागर निर्देशित धर्मेन्द्र के साथ)।
सबसे पहले उन आँखों का जिक्र करते हैं जो शांत हैं, चौकस हैं और जरूरत पड़ने पर अंगारे भी बरसाती हैं। अगर अभी तक आप अंदाज नही लगा पायें हैं तो मैं सीमा पर पहरा देती बहादुर फौजियों की आँखों का जिक्र कर रहा हूँ और इन आँखों पर साहिर लुधयानवी ने क्या खूब लिखा है – उस मुल्क की सरहद को कोई छू नही सकता जिस मुल्क की सरहद की निगेहबाँ हैं आँखें…….शबनम कभी शोला कभी तूफान हैं आँखें
अक्सर प्रेमी युगल आँखों का उपयोग बातें करने में भी करते हैं शायद ऐसे ही किसी जोड़े को देख जान निसार अख्तर ने लिखा “आँखों ही आँखों में इशारा हो गया“। बात इशारों तक ही सीमित नही रहती कुछ प्रेमी इन आँखों को शो-केस की तरह इस्तेमाल भी करते हैं, और गुलजार ने इसे कुछ यूँ बयाँ किया “आँखों में हमने आपके सपने सजाये हैं“, और “आपकी आँखों में कुछ महके हुए से ख्वाब हैं“।
आँखों में सपने और ख्वाब के अलावा भी बहुत कुछ देखा जा सकता है मसलन एस एच बिहारी (फिल्म किस्मत में नूर देवासी ने भी गीत लिखे थे) कहते हैं, “आँखों में कयामत के काजल” जबकि राजेन्द्र कृष्ण का मानना है, “आँखों में मस्ती शराब की” लेकिन इतना सब सुनकर भी मजरूह (सुल्तानपुरी) साहेब मासूमियत से पूछते हैं, “आँखों में क्या जी?” एक तरफ शराब की मस्ती की बात करने वाले राजेन्द्र कृष्ण ठुकराये जाने का दर्द कुछ इस तरह बयाँ करते हैं, “आँसू समझ के क्यों मुझे आँख से तुमने गिरा दिया, मोती किसी के प्यार का मिट्टी में क्यों मिला दिया“।
प्रेम धवन भी आँखों की तारीफ में पीछे नही रहते और कह उठते हैं, “बहुत हसीँ है तुम्हारी आँखें, कहो तो मैं इनसे प्यार कर लूँ” जबकि साहिर लुधयानवी साहेब का कुछ ये कहना है, “भूल सकता है भला कौन प्यारी आँखें, रंग में डूबी हुई नींद से भारी आँखें“। लेकिन राजेन्द्र कृष्ण के ख्यालात अपने साथियों से बिल्कुल जुदा है, ये एक तरफ कहते हैं “आँखें हमारी हों सपने तुम्हारे हों” और फिर इशारे में बात करने लगते हैं “तेरी आँख का जो इशारा ना होता, तो बिस्मिल कभी दिल हमारा ना होता“।
कैफी आजमी साहब जहाँ सवालिया मूड में सवाल करते हैं, “जाने क्या ढूँढती रहती हैं ये आँखें मुझमें, राख के ढेर में शोला है ना चिंगारी है” वहीं दिल्ली के तख्त में बैठने वाले आखिरी बादशाह बहादुर शाह जफर अपनी जिंदगी के दुख को यूँ बयाँ करते हैं, “ना किसी की आँख का नूर हूँ, ना किसी के दिल का करार हूँ, जो किसी के काम ना आ सके मैं वो एक मुस्त-ए-गुबार हूँ“।
साहिर लुधयानवी से बादशाह का दुख नही देखा गया और कलम उठा के उनको पाती में लिख भेजा, “पोंछ कर अश्क अपनी आँखों से मुस्कुराओ तो कोई बात बने, सर झुकाने से कुछ नही होगा, सर उठाओ तो कोई बात बने“।
और इस पोस्ट के अंत में एक बार फिर गुलजार साहब का आँखों पर लिखा कुछ इस तरह है , “मचल के जब भी आँखों से छलक जाते हैं दो आँसू, सूना है आबसारों को बड़ी तकलीफ होती है“।
लेकिन आँखों पर लिखे पहले भाग में आनंद बख्शी का आँखों पर कही बात कैसे छोड़ सकते हैं भला,- 
कितने दिन आँखें तरसेंगी, कितने दिन यूँ दिल तरसेंगे,
एक दिन तो बादल बरसेंगे, ऐ मेरे प्यासे दिल।
आज नही तो कल महकेगी ख्वाबों की महफिल।
आँखों ही आँखों में इशारा हो गया / बैठे-बैठे जीने का सहारा हो गया

आँखों-आँखों में बात होने दो / मुझको अपनी बाँहों में सोने दो

ये काली-काली आँखें / ये गोर-गोरे गाल  -दिलवाले 

आँखें भी होती हैं दिल की जुबां / बिन बोले, कर देती हैं हालत ये पल में बयां -हासिल 

उस मुल्क की सरहद को कोइ छू नहीं सकता / जिस मुल्क की सरहद की निगहबान हो आँखें  -आँखें 

आँखों की, गुस्ताखियाँ, माफ़ हो / 

आँखों में तेरी अजब सी, अजब सी अदाएं हैं    -ॐ शांति ॐ 

सुरीली आँखोंवाले सुना है तेरी आँखों में / बहती हैं नींदें, और नींदों में सपने -वीर 

कत्थई आँखोंवाली लड़की / एक ही बात पे रोज लड़ती है -डुप्लीकेट 

तेरी कली अँखियों से, जिंद मेरी जागे / धड़कन से तेज दौडूँ, सपनों से आगे 

नैन सो नैन नहीं मिलाओ / देखत सूरत आवत लाज सैयां!

तेरे मस्त-मस्त दो नैन / मेरे दिल का ले गए चैन 

तोसे नैना लागे पिया! 

तेरे नैना बड़े दगाबाज रे! - दगाबाज रे 

तेरे नैना बड़े कातिल मार ही डालेंगे -जय हो 

तेरे नैना हँस दिए / बस गए दिल में मेरे / तेरे नैना -चाँदनी चौक टु चाइना 

नैनों की चाल है, मखमली हाल है / नीची पलकों से बदले समा

निगाहें मिलाने को जी चाहता है / दिलो-जां लुटाने को जी चाहता है 

शुक्रवार, 17 जुलाई 2015

doha

दोहा सलिला:

आँखों-आँखों में हुआ, जाने क्या संवाद?
झुकीं-उठीं पलकें सँकुच, मिलीं भूल फरियाद
*
आँखें करतीं साधना, रहीं वैद को टेर
जुल्मी कजरा आँज दे, कर न देर-अंधेर
*
आँखों की आभा अमित, पल में तम दे चीर
जिससे मिलतीं, वह हुआ, दिल को हार फ़क़ीर
*
आँखों में कविता कुसुम, महकें ज्यों जलजात
जूही-चमेली, मोगरा-चम्पा, जग विख्यात
*
विरह अमावस, पूर्णिमा मिलन, कह रही आँख 
प्रीत पखेरू घर बना, बसा समेटे पाँख 
*
आँख आरती हो गयी, पलक प्रार्थना-लीन  
संध्या वंदन साधना, पूजन करे प्रवीण 
*

बुधवार, 20 मई 2015

doha salila: aankh

दोहा सलिला:
दोहों के रंग  आंख के संग
संजीव
*
आँख लड़ी झुक उठ मिली, मुंदी कहानी पूर्ण
लाड़ मुहब्बत ख्वाब सँग, श्वास-आस का चूर्ण
*
आँख कहानी लघुकथा, उपन्यास रस छंद
गीत गजल कविता भजन, सुख-दुःख परमानंद
*
एक आँख से देखते, धूप-छाँव जो मीत
वही उतार-चढ़ाव पर, चलकर पाते जीत
*
धुल झोंकते आँख में, आँख बिछाकर लोग
चुरा-मिला आँखें दिखा, झूठ मनाते सोग
*

मंगलवार, 19 मई 2015

doha salila: aankh -sanjiv

दोहा सलिला:
दोहा के रंग आँखों के संग ३ 
संजीव 
*
आँख न रखते आँख पर, जो वे खोते दृष्टि 
आँख स्वस्थ्य रखिए सदा, करें स्नेह की वृष्टि
*

मुग्ध आँख पर हो गये, दिल को लुटा महेश 
एक न दो,  लीं तीन तब, मिला महत्त्व अशेष
*
आँख खुली तो पड़ गये, आँखों में बल खूब 
आँख डबडबा रह गयी, अश्रु-धार में डूब 
*
उतरे खून न आँख में,  आँख दिखाना छोड़ 
आँख चुराना भी गलत, फेर न, पर ले मोड़ 
*
धूल आँख में झोंकना, है अक्षम अपराध 
आँख खोल दे समय तो, पूरी हो हर साध 
*
आँख चौंधियाये नहीं, पाकर धन-संपत्ति 
हो विपत्ति कोई छिपी, झेल- न कर आपत्ति 
आँखें पीली-लाल हों,  रहो आँख से दूर 
आँखों का काँटा बनें, तो आँखें हैं सूर 
*
शत्रु  किरकिरी आँख की, छोड़ न कह: 'है दीन'
अवसर पा लेता वही, पल में आँखें छीन 
*
आँख बिछा स्वागत करें,रखें आँख की ओट
आँख पुतलियाँ मानिये, बहू बेटियाँ नोट 
*
आँखों का तारा 'सलिल', अपना भारत देश 
आँख फाड़ देखे जगतं, उन्नति करे विशेष
*

सोमवार, 18 मई 2015

दोहा सलिला: आँख संजीव

दोहा सलिला:
दोहे के रंग आँख के संग: ३
संजीव 

आँख न दिल का खोल दे, कहीं अजाने राज 
काला चश्मा आँख पर, रखता जग इस व्याज
*
नाम नयनसुख- आँख का, अँधा मगर समाज
आँख न खुलती इसलिए, है अनीति का राज
*
आँख सुहाती आँख को, फूटी आँख न- सत्य
आना सच है आँख का, जाना मगर असत्य
*
खोल रही ऑंखें उषा, दुपहर तरेरे आँख
संध्या झपके मूँदती, निशा समेटे पाँख
*
श्याम-श्वेत में समन्वय, आँख बिठाती खूब
जीव-जगत सम संग रह, हँसते ज्यों भू-धूप
*

doha salila: aankh -sanjiv

दोहा सलिला:
दोहे के रंग आँख के संग
संजीव
*
आँखों का काजल चुरा, आँखें कहें: 'जनाब!
दिल के बदले दिल लिया,पूरा हुआ हिसाब'
*
आँख मार आँखें करें, दोल पर सबल प्रहार 
आँख न मिल झुक बच गयी, चेहरा लाल अनार 
*
आँख मिलकर आँख ने, किया प्रेम संवाद 
आँख दिखाकर आँख ने, वर्ज किया परिवाद 
*
आँखों में ऑंखें गड़ीं, मन में जगी उमंग 
आँखें इठला कर कहें, 'करिए मुझे न तंग'
*
दो-दो आँखें चार लख, हुए गुलाबी गाल 
पलक लपककर गिर बनी, अंतर्मन की ढाल 
*
आँख मुँदी तो मच गया, पल में हाहाकार 
आँख खुली होने लगा, जीवन का सत्कार 
*
कहे अनकहा बिन कहे, आँख नहीं लाचार 
आँख न नफरत चाहती, आँख लुटाती प्यार 
*
सरहद पर आँखें गड़ा, बैठे वीर जवान 
अरि की आँखों में चुभें, पल-पल सीना तान 
*
आँख पुतलिया है सुता, सुत है पलक समान 
क्यों आँखों को खटकता, दोनों का सम मान 
*
आँख फोड़कर भी नहीं, कर पाया लाचार 
मन की आँखों ने किया, पल में तीक्ष्ण प्रहार 
*
अपनों-सपनों का हुईं, आँखें जब आवास
कौन किराया माँगता, किससे कब सायास 
*
अधर सुनें आँखें कहें, कान देखते दृश्य 
दसों दिशा में है बसा, लेकिन प्रेम अदृश्य 
*
आँख बोलती आँख से, 'री! मत आँख नटेर' 
आँख सिखाती है सबक, 'देर बने अंधेर' 
*
ताक-झाँककर आँक ली, आँखों ने तस्वीर
आँख फेर ली आँख ने, फूट गई तकदीर 
*
आँख मिचौली खेलती, मूँद आँख को आँख 
आँख मूँद मत देवता, कहे सुहागन आँख 
*

शनिवार, 29 नवंबर 2014

muhavare / kahavat

आँखों आँखों में बात होना =

आँख का काँटा = 

आँख का तारा = अत्यधिक प्रिय। बेटे को आँख का तर बना कर रखा पर बुढ़ापे में काम न आया

आँख खोलना =

आँख चुराना = सत्य बताना। राय प्रवीण के दोहे ने अकबर की आँख खोल दी 

आँख झुकना =  शर्म आना 

आँख झुकाना = नीचा दिखाना 

आँख दिखाना = डराना 

आँख फेरना = 

आँख मारना = 

आँख मिलाना =
आँखें मूंदना =

आँख लड़ना = 



लोकोक्ति: 

अंधों में काना राजा = 

आँख का अंधा नाम नैन सुख: अर्थ - नाम के अनुसार गुण न होना 

अंधे आगे रोना, अपने नैना खोना = नासमझ को समझाना 

एक आँख से देखना = 

बुधवार, 26 नवंबर 2014

muhavra / kahavat salila: aankh

मुहावरा - कहावत सलिला 
मुहावरा = अनेक लोगों के मुँह पर चढ़ी बात। बातचीत, बोलचाल में लाक्षणिक व्यंग्यार्थ में प्रयुक्त वाक्य। सामान्य अर्थ से भिन्न लाक्षणिक अर्थ की अनुभूति करनेवाला वाक्यांश मुहावरा कहलाता है। मुहावरे छोटे-छोटे वाक्यांश हैं जिनके प्रयोग से भाषा में सजावट, प्रभाव, चमत्कार और विलक्षणता आती है। मुहावरा स्वतंत्र वाक्य नहीं वाक्य का हिस्सा होता है। मुहावरे के प्रयोग से कही गयी बात अधिक प्रभाव छोड़ती है। 'मुहावरा' शब्द अरबी भाषा से लिया गया है, जिसका अर्थ है- अभ्यास। मुहावरा अतिसंक्षिप्त रूप में होते हुए भी बड़े भाव या विचार को प्रकट करता है। मुहावरे प्रायः नीति, व्यंग्य, चेतावनी, उपालम्भ आदि से सम्बंधित होते हैं।
कहावत / लोकोक्ति = लोक + उक्ति = लोकोक्ति = कई लोगों द्वारा कही बात, लोक में प्रचलित उक्ति, बात जो कही जाती है, मसल, कथन। जीवन के अनुभवों का सार बार-बार तथा कई लोगों के द्वारा कहा जाने पर कहावत बन जाता है।  कुछ लोकोक्तियाँ अंतर्कथाओं से भी संबंध रखती हैं, जैसे 'भगीरथ प्रयास' अर्थात जितना परिश्रम राजा भगीरथ को गंगा के अवतरण के लिए करना पड़ा, उतना ही कठिन परिश्रम। लोकोक्ति लेखक या वक्त के कथन से निसृत होकर प्रचलित होती हैं। लोकोक्ति भाषा तथा साहित्य का गौरव है।
मुहावरे वाक्यांश होते हैं, जिनका प्रयोग क्रिया के रूप में वाक्य के बीच में किया जाता है, जबकि लोकोक्तियाँ स्वतंत्र वाक्य होती हैं, जिनमें एक पूरा भाव छिपा रहता है। लोकोक्ति मुहावरे की तुलना में अधिक विस्तृत होती है। लिंग, वचन तथा प्रसंग के अनुसार इनका रूप बदलता है। ये वाक्य रूप में अपने आपमें पूर्ण होती हैं।
कुछ मुहावरे आँख पर 
आँख का काँटा = 
आँखों आँखोंमें बात होना = 
आँख का तारा = 
आँख चुराना = 

आँख झुकना = 

आँख दिखाना = 

आँख फेरना = 

आँख मारना = 

आँख मिलाना =

आँख लड़ना = 

अंधों में काना राजा = 

आँख का अंधा नाम नैन सुख: अर्थ - नाम के अनुसार गुण न होना >>> उसका नाम तो वीर प्रताप

है पर डर छिपकली से भी जाते हैं, इसी को कहते हैं आँख का अँधा नाम नैन सुख

अंधे आगे रोना, अपने नैना खोना = 

एक आँख से देखना = 




गुरुवार, 20 नवंबर 2014

kahawaten, muhaware, lokoktiyan: aankh

कहावतें, मुहावरे, लोकोक्तियाँ

आँख से सम्बंधित कहावतें, मुहावरे, लोकोक्तियाँ अर्थ और प्रयोग सहित प्रस्तुत करें।

जैसे आँख लगना = नींद आ जाना।  जैसे ही आँख लगी दरवाजे की सांकल बज गयी. 


शुक्रवार, 20 जून 2014

chitrapateey gazal:

ग़ज़ल / गीत


हम ने देखी है इन आँखों की महकती खुशबू
हाथ से छूके इसे रिश्तों का इल्ज़ाम न दो
सिर्फ़ एहसास है ये रूह से महसूस करो
प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम न दो
हम ने देखी है ...

प्यार कोई बोल नहीं, प्यार आवाज़ नहीं
एक खामोशी है सुनती है कहा करती है
ना ये बुझती है ना रुकती है ना ठहरी है कहीं
नूर की बूँद है सदियों से बहा करती है
सिर्फ़ एहसास है ये, रूह से महसूस करो
प्यार को प्यार ही रहने दो, कोई नाम ना दो
हम ने देखी है ...

मुस्कराहट सी खिली रहती है आँखों में कहीं
और पलकों पे उजाले से छुपे रहते हैं
होंठ कुछ कहते नहीं, काँपते होंठों पे मगर
कितने खामोश से अफ़साने रुके रहते हैं
सिर्फ़ एहसास है ये, रूह से महसूस करो
प्यार को प्यार ही रहने दो, कोई नाम ना दो
हम ने देखी है ...